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Thursday 23 November 2023

ऐसा ही ठहरा मेरा कमरा

🛖 ऐसा ही ठहरा मेरा कमरा
👉👉मेरा  कमरा अस्त व्यस्त
रहता है,
ठीक मेरे जैसे
🪑 कुर्सी पर कपड़े लिपटे रहते है, बेतरतीव से 
खूंटी पर टंगे रहते है
झुरमुट बनाए हुए 
कपड़े 
जो कह रहे है कि कभी 
हिला भी दिया कर
बिस्तर पर कंबल का 
अलमस्त पड़े रहना,
 बिस्तर के किनारे पर 
कुछ कुछ पड़ा देख वास्तव में
  किसी को
भी अच्छा न लगे
मेरे छोटे कमरे में बिना 
टकराए 
चलना कहां होता है, 
संभव
कभी कभी महीनों में 
एक बार बदलती है, 
मेरे कमरे की सूरत 
ठीक 
मेरे जैसे
लेकिन इस बेतरतीब 
अस्त व्यस्त कमरे में 
🕊️ सकून, 😘 प्रेम और अपनेपन 
 का 
साम्राज्य है, 
कमरे के एक किनारे में रसोई है
जहां पर
रामकृष्ण परमहंस  
के अहसास जैसे 
 प्रेमल सरल
 पकवान बनते है
उनकी तरह खाना परोसना
कमरे में कहीं भी बैठने पर
सीधी सादी बिना किसी 
टेबल के
प्लेट आनंद  😊 भर ही देती है
इसी उटपटांग कमरे में  संगीत 🎶 की सुरलहरी का आनंद लेकर
मेरी  🤞 उंगली पेपर पर 🖋️ पेन, रंग और 📱 मोबाइल से क्रेटिविटी को सराबोर कर देती है
सरस्वती का अहसास 
होता रहता है, 
सौंदर्य देव अपने दस्तक
 रंगों में दे ही जाते है, 
यदा कदा कभी कभार 
सत्यं शिवम सुंदरम के
 पदार्पण होते रहते है
सुबह सूर्य की पहली  किरण और रात में चंद्रमा की चांदनी 
मेरे बेतरतीब कमरे के रोजमर्रा के 
मेहमान है
रात के 😶 सन्नाटे में  झींगुर का स्वर खामोशी में  🎵 संगीत भरना ही है
🌧️ बरसात में बादलों का वितान तना ही रहता है
रात पाथर की छत में वर्षा का टिप टिप करना 
सच में संगीत का आनंद  दे देता हैं 
कहीं दूर  🐆 गुलदार की दहाड़, से 
 🦌 काकड़ का बोलना, 
जंगली सुअर का चिल्लाना 
जंगल का अहसास करवा देता है
शाम होते ही  जंगली मुर्गी के इधर उधर भागना मेरे प्रतिदिन के दृश्य  ही है
जंगली फल, काफल, 
किलमोडी,हिसालू, 
 वन जीरा मेरे 
ऋतुओं के मेहमान है
ठीक सामने सीढ़ीनुमा खेतों का सौन्दर्य पुरखों की मेहनत और कौशल का प्रतिफल ही  है
🐄 गाएं , 🐐 बकरी, को चराते ग्वाला मेरे संगी साथी है
असोज में घास काटने वाले 
मेरे कमरे से गुजरते है, मेहनतकश ,कर्मठ ग्रामीण विशेषकर स्त्रियां, 
इस फक्कड़नुमा कमरे में
चाय की चुस्की 
चलती रहती है
बिना ये देखे कि कौन 
 इसका आनंद ले रहा है
बड़ा सकून है कि 
किसे के आने से पहले   
सफाई और कमरे को सजाने की अच्छी आदत से दूर
मेरा कमरा 
 सभी का  प्रेम से 
स्वागत करता है, 
सुबह पक्षी मेरे से बात करते है
कीट पतंग, तितली, रंग बिरंगे पक्षी अपनी दस्तक दे ही जाते है
पूरे वर्ष फूलों से परिपूर्ण है
कमरे के आसपास का जंगल
बुरांश से पयां तक रंग बिरंगी चादर ओढ़े
 हिमालय की पंचाचुली बर्फ से भरी चोटियां अपनी ओर निहारने को आतुर कर देती है,
 🌞 सूर्योदय और सूर्यास्त के बदलते रंग
रात को 🌙 चांदनी और ☁️ मेघों का 
एक दूसरे में लिपटना और 
अपनी छटा से 
प्रकृति को सुंदर बनाना
मेरे कमरे के आकर्षण है
शुद्ध प्रकृति से ओत प्रोत
ऐसा ही ठहरा मेरा कमरा.....
रमेश मुमुक्षु
9810610400
21.11.2023

Friday 10 November 2023

घर के मंदिर की मूर्ति से कचरा बनी मूर्ति की आत्मकथा: कब सुधरेगा हे मानव ( द्वारका नई दिल्ली एशिया की सबसे बड़ी और हाई प्रोफाइल सब्सिडी)

घर के मंदिर की मूर्ति से कचरा बनी मूर्ति की आत्मकथा: कब सुधरेगा हे मानव ( द्वारका नही दिल्ली एशिया की सबसे बड़ी और हाई प्रोफाइल सबसिटी )
 कितना अद्भुत है, हे मानव कैसे  तू मुझे खरीद कर लाया था। कपड़े से मुझे साफ करता था। कितनी बार मुझ को छूकर उल्टे सीधे  सभी काम भी करता था। कितनी बार तो मिठाई भी मुझे लगा देता था। ॐ जै जगदीश से लेकर गायत्री,महामृत्यंजय मंत्र और न जाने क्या क्या करता रहा है। "मैं पापी हूं, खलगामी, पतित , और अधर्मी हूं"। हे प्रभु मेरा तर्पण करें। मुझे छू कर मुझ पर गंगा  की बूंदें भी छिड़कता रहा है। लेकिन अभी दीवाली आने से पूर्व मुझे घर से ऐसे निकाल कर पीपल के पेड़ के नीचे डाल गया, जैसे मैं इसके लिए केवल कचरा बन गई।इसको किंचित मात्र भी अंतर नही पड़ता कि वो क्या कर रहा है। एक वर्ष तक ये मुझे मूर्ति मात्र नही, बल्कि  साक्षात ईश्वर ही समझता रहा। लेकिन अभी मेरे साथ मिट्टी के गणेश, शिव ,दुर्गा सभी की मूर्तियां को भी फेंक दिया। हम सभी
मंदिर की  मूर्ति से कचरा रूप धारण कर चुके है। 
हे ! हे  त्रिमूर्ति इस मानव को सद्बुद्धि प्रदान कर और जो इसके पास है, उसको जाग्रत कर, उसकी चेतना को सुप्तावस्था से उठा दे ताकि ये धर्म, अध्यात्म और भक्ति के सच्चे अर्थों को समझ सके और वातावरण को स्वच्छ रखने का व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास आरंभ करें।
रमेश मुमुक्षु
9810610400
10.11.2023

Wednesday 1 February 2023

शादी के बैंड बाजे वाले: दशकों से नही बदले हाल

शादी के बैंड बाजे वाले: दशकों से नही बदले हाल
बचपन में बैंड बाजे वालों को देख कभी कभी दया भी आती थी। शादी का सबसे मुख्य आकर्षण होता था ,बारात का बैंड बाजा, जिसके बिना शादी कहां शादी लगती है। आज वर्षो बाद बैंड वालों को को दीवार पर टेक लगाए लोधी कॉलोनी में देखा तो बचपन की छवि उभर आई। संगीत मन को प्रफुल्लित कर देता है। लेकिन ये बैंड बाजे वालों को चेहरों पर उत्साहहीनता  साफ झलक जाती है। कोई उमंग नही ,कोई जोश नही। कुछ खास धुन को ही बजाते रहते थे। "देश है,वीर जवानों का" आज मेरे यार की शादी है" 70 के दशक में " शीशी भरी शराब की पत्थर पे तोड़ दूं" खासतौर पर सुबह विदाई के समय ठंड के मौसम में आंखों में नींद और लगभग कांपते हुए , धुन " बाबुल की दुवाएं लेती जा" अभी भी बचपन की यादों में ले गई।
इतना कुछ बदल गया। शादी अब इवेंट्स बन चुकी है । टेंट से गुजरती हुई डेस्टिनेशन मैरिज तक आ गई, लेकिन ये बैंड बाजे वाले आज तक वहीं खड़े लगते है। पहले से ही कुछ लोग कंधो पर लाइट उठा कर चलते थे। कुछ बड़े बैंड ,जैसे हिंदू जिया बैंड , में कपड़े अच्छे होते थे। बाकी की हालत खस्ता रहती थी।
देखना है कि कब इनके चेहरों पर रौनक आयेगी और आयेगी ताजगी, ये तो देखना ही होगा।
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
1.2.2023

Thursday 15 September 2022

फ्लाइट लेफ्टिनेंट सुमित मोहंती मेमोरियल पार्क की स्थापना

फ्लाइट लेफ्टिनेंट सुमित मोहंती मेमोरियल पार्क की स्थापना
13 सितंबर 2022  को  सेक्टर 7 में एयर फोर्स एंड नेवल ऑफिसर्स (AFNOE) एन्क्लेव के बगल राइज फाउंडेशन के माध्यम से AFNOE , एयर विस्तारा एवं
फ्लाइट लेफ्टिनेंट सुमित मोहंती फाउंडेशन व द्वारका रेसीडेंट्स के आपसी सहयोग से  दो चरणों में 10 सितंबर व 13 सितंबर को मियावाकी  वन लगाया गया। करीब 3000 वर्ग फीट पार्क में 900 सैपलिंग जिसमें 25 स्थनीय प्रजाति भी शामिल थी। 
राइज फाउंडेशन के द्वारा ये बारहवां  मियावाकी प्रोजेक्ट सम्पन्न किया गया।  
अकीरा  मियावाकी ने शहरों में कम जगह पर कम दूरी में विभिन्न प्रजातियों के पेड़ों व झाड़ियों को इस तरह लगाने की तकनीक विकसित की कि कम जगह में कम समय में ही ये जंगल पनप जाता है। 
राइड फाउंडेशन के सह सचिव श्री मधुकर वार्ष्णेय ने अपनी कॉर्पोरेट की नौकरी के समय स्मार्ट सिटी के अध्ययन के दौरान कई देशों की यात्रा में  मियावाकी प्रोजेक्ट की जानकारी ली और उन्होंने अपनी संस्था के सहयोग से एन सी आर में इसको आरम्भ किया। एयरफोर्स एंड नेवल ऑफिसर्स  एन्क्लेव (AFNOE) सोसाइटी की मैनेजमेंट हमेशा ही पर्यावरण के कार्य में बढ़ चढ़ के हिस्सा लेती आई है। कुछ वर्ष पूर्ण इनके ऑडिटोरियम में पर्यावरण पर लेक्चर सीरीज आरम्भ की थी, मुझे भी वहां शामिल होने का अवसर मिला था।
एयर विस्तारा ने अपने सी एस आर द्वारा ये बहुत ही याद रखने वाली मदद की है।  वृक्षारोपण धरती को संरक्षित रखने व मानव द्वारा विनाश की प्रक्रिया को बाधित करने का एक बड़ा कदम है। राइज फाउंडेशन की सचिव श्रीमती माधुरी वार्ष्णेय रावत विगत कई वर्षों से राइज फाउंडेशन के माध्यम से विभिन्न सामाजिक कार्यो  में संलग्न है।
हमारी संस्था हिमालयन इंस्टीटूट ऑफ मल्टीप्ल अल्टरनेटिव लाइवलीहुड (हिमाल) द्वारा एच आई वी अनाथ बच्चों के तहत एक युवा को उसकी पढ़ाई आदि के लिए  आर्थिक मदद भी प्रदान की थी। राइज फाउंडेशन ने हमारी संस्था के द्वारा रूद्राक्ष वन आटी ग्राम, दन्या, अल्मोड़ा का दौरा किया । इस तरह राइज फाउंडेशन द्वारा विविध सामाजिक कार्य के माध्यम से सतत विकास के मार्ग पर चलने का प्रयास है। 
इस  मियावाकी वन को फ्लाइट लेफ्टिनेंट सुमित मोहंती मेमोरियल पार्क के रूप में बनाना वास्तव में सच्चा कदम है।मियावाकी  प्रोजेक्ट के बारें में अब धीरे धीरे लोग जानने लगे है। 2021 में उस वक्त के उपायुक्त एस डी एम सी ,नजफगढ़ जोन के श्री भूपेश चौधुरी ने ग्रीन यात्रा सामाजिक संस्था के माध्यम से इन्द्रप्रस्त एन्क्लेव द्वारका  सेक्टर 17, पॉकेट A2 ,नई दिल्ली में बहुत ही सुंदर  मियावाकी वन की स्थापना की है। वहां पर 90 प्रतिशत से अधिक पेड़ संरक्षित है। वहाँ पर विभिन्न वृक्षों से आने वाली हवा में खुशबू आने लगी है। 
राइज फाउंडेशन ने ब्रह्मा अपार्टमेंट में द्वारका का पहला  मियावाकी वन लगया था। ये पर्यावरण संरक्षण की राह में पॉजिटिव कदम है। 
लेकिन हम सब देश वासियों को देश के सघन वनों को कम से कम क्षति पहुँचाने  की कोशिश करनी चाहिए।  मियावाकी  वनों का तभी लाभ सही अर्थों में होगा, जब देश के सघन वन प्रदेश व जैव विविधता संरक्षित रहेगी।  देश को 33%वन कुल भूभाग में संरक्षित रखने और उसको बढ़ाने का बीड़ा उठाना होगा।  विकास का मॉडल हिमालय समेत पूरे देश के वनों व प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने का हो ऐसी  आवाज उठानी है। विकास आज बहुत सहज हो चला है। लेकिन वन प्रान्तर एक लंबी उद्विकास की  प्रक्रिया के माध्यम से पनपता है। 
इसके लिए हम सब को एक साथ आगे आना है। जितने सघन वन देश में होंगे ,उतना ही वातावरण शुद्ध और स्वछ होगा। प्राकृतिक वैविध्य ही पर्यावरण की असली कुंजी है।
देश तभी विकसित सही अर्थों में होगा, जब देश जल जंगल जमीन संरक्षित रहेंगे। हम सब देश वासियों को हिमालय में 3000 मीटर की ऊंचाई से ऊपर वाले क्षेत्रों को विशेष रूप से संरक्षित रखने और उनमें कम से कम मानव गतिविधियों व निर्माण  के मॉडल को अपनाना ही होगा।   आज हिमालय के हज़ारों प्राकृतिक स्रोत  सूखने के कगार पर है। इस बात को हम हमेशा याद रखे।  इसलिए चिपको आंदोलन का ये नारा सदैव हम सभी को प्रेरणा देता रहेगा। 
क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल 
9810610400
15.9.2022

Sunday 4 September 2022

यूं तो चांद देखने का उनको शौक था निकला था रात चंद पर वो नींद में रहे

यूं तो चांद देखने का उनको शौक था 
निकला था रात चंद पर वो नींद में रहे
 मेरी पुरानी कविता या ग़ज़ल की लाइन याद आ गई। ये चांद की फ़ोटो आई पी यूनिवर्सिटी के निकट के नाले के पास खड़े होकर खींची  ,नाले में प्रतिबिम्ब दीख रहा था। मोबाइल कैमरा अच्छी क्वालिटी का नही था। लेकिन चांद सूरज महानगर में भी दिखते है। भले वो सागर किनारे व पहाड़ो जैसे न दिखें। टूरिज्म के नाम से कई स्थान चांद सूरज दिखने के लिए प्रसिद्ध हो जाते है। वहां पर विशेषता तो होती ही है। लेकिन लोग ऐसे कैमरे लेकर खड़े हो जाते है कि वो चांद सूरज को देखें बिना नही रह सकते है। कितने लोग ऐसा भी कह देते है कि महानगर आदि में कहां पर चांद ,सूरज, सूर्यास्त फुल मून  दिखते है। उनका कहना पूरी तरह गलत भी नही है। ऊंची मल्टीस्टोरी बिल्डिंग के ग्राउंड फ़्लोर आदि से ये कहाँ देखा जा सकता है। लेकिन बहुत जगह है ,जहां से देखा जा सकता है।
लेकिन हमारे विकास के अनर्गल मॉडल ने आम आदमी को चांद सूरज से भी महरूम कर दिया है। लेकिन मित्रों कभी कभार कही न कही से इनके दर्शन हो ही जाते है। प्रकृति को कही भी निहारना मन को सकून तो देता है है। आजकल एक नया वर्ग बना है ,जिसको पहाड़, नदी का किनारा, पेड़ पौधों से बहुत प्रेम है, ऐसा वो कहते है। लेकिन रोज़मर्रा के जीवन में उनको इन सब से कुछ लेना देना नही । ये वो लोग है ,जिनको घर के आस पास कही भी पेड़ नही चाहिए, ये लोग पार्क में पेड़ बढ़ जाये तो जंगल बढ़ रहा है ,कहने लगते है। कोशिश भी करते है कि ये हट ही जाए। लेकिन पहाड़ो में इनको जंगल के पास जमीन चाहिए। महानगर तो पानी के स्रोत लील ही गया है।  लेकिन नदी किनारे जमीन चाहिए । 
लेकिन चांद सूरज और प्रकृति कभी भेद नहीं करती , अभी पिछली पूनम की रात मैं पहाड़ो में था, कल पैदल आते आते चंद्रमा और नीचे गंदे नाले में चांद में चांद का प्रतिबिंब दिखा तो फ़ोटो लेने का मन हो गया। अगर रूटीन में प्रकृति के किसी भी रूप में हम करीब रहे। भीड़ भाड़ वाली सड़क से भी खूबसूरत सूर्यास्त के दर्शन हो ही जाते है।लेकिन वो पहाड़ो और सागर जितना सुंदर न भी हो लेकिन आनंद तो देता है है। दिल्ली जैसे महानगरों में भी हर सीजन में पेड़ों पर फूल, नए पत्ते, पतझड़ आते जाते ही है। उसकी खूबसूरती का लुत्फ उठाया जा सकता है। द्वारका जैसे उपनगर में तो पार्कों और पेड़ो की कतारें और कैनोपी बहुत खूब सूरत लगती है। अमलतास और अन्य पेड़ों पर फूल दिख ही जाते है। प्रकृति के दर्शन करने की आदत वाले पर्यटन के नाम पर बवाल और  उतावलापन नही  करते है।  मनुष्य ने ही अनाप शनाप विकास से खुद को प्रकृति से दूर कर लिया। बस नज़र उठाने भर की बात है , बहुत कुछ दिख जाता है , नजरिया ही तो बदलना है। 
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
4.9.2022

Tuesday 30 August 2022

श्रीमती सिसली कोडीयान से अंतरंग मुलाकात: हमेशा याद रहेगी।

श्रीमती सिसली कोडीयान से अंतरंग मुलाकात: हमेशा याद रहेगी।
कल श्री उमेश काला , गंगोत्री अपार्टमेंट की RWA के 4 बार अध्यक्ष रहे है, ने किसी बुजुर्ग समाज सेविका से मिलना है कि बात कही । मैंने उनका नाम पुछा तो उमेश ने कहा कि कोई कोड़ीयान  मैडम है। मैंने तुरंत कहा कि सिसली  कोडीयान होंगी ,जिनको अधिकांश द्वारका के लोग जानते ही है।
उनकी संस्था  का नाम ANHLGT  (Association of Neighbourhood Ladies Get-,Together ) वर्षों से लोगों ने सुना ही है। बड़ी तादाद में महिलाएं ANHLGT की मेंबर है।
   ANHLGT का मिशन रहा है , ग्रीन , क्लीन, ब्यूटीफुल, सेफ एंड हेल्थी सोसाइटी , जिसके अनुसार ये सब विशेषकर बच्चों के साथ काम में लगे हुए है। 
सिसली कोडीयान मूलतः केरल राज्य की है।  उनका जन्म कोडनाड जिला एरुंगला , kadanad, district Erangla , हुआ था।  वयोवृद्ध होने के बाद भी उनका उत्साह देखते ही बनता है। आरंभिक शिक्षा उन्होंने संस्कृत में ली थी। बचपन से ही उनके भीतर समाज के लिए कुछ करने की ललक उनके माता पिता से मिली। इनके पिता भी समाज सुधार के विभिन्न कार्यो से जुड़े हुए थे।
पढ़ना पढ़ाना उनके लिए एक मिशन ही था। उन्होंने काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर और बाद में रूस के कल्चरल सेंटर में सहायक पुस्कालयाध्यक्ष के रूप में काम किया।
उन्होंने बातों बातों में बताया कि विवाह से पूर्व उनको भारत के प्रथम राष्ट्रपति स्व. राजेन्द्र प्रसाद जी के पोते व उनके भाई के बच्चों को गणित व इंग्लिश की ट्यूशन पढ़ाने का अवसर मिला , उस समय उनको सब लोग  मास्टरनी कहा करते थे। उनका विवाह स्व. पी के कोडीयान  से हुआ, जो एर्नाकुलम में वायपिन vypeen आइलैंड के रहने वाले थे ।  ये सुन मुझे रोमांच हुआ क्योंकि मैं  वायपिन आइलैंड 1985 अपने मित्र अजय के साथ एक रात रहा था । उनके पति  तीन बार दूसरी, छटी व सातवी संसद में सांसद रहे। उनके पति ने ही खेत मजदूर संघ की स्थापना की ओर 1968 में देश भर से 5 लाख  मजदूरों को दिल्ली बुलाकर न्यूनतम मजदूरी जैसी मांग की। वो भी बहुत ही ईमानदार व्यक्ति थे।
उनके पति सामाजिक कार्य में लगे रहते थे।  सिसली कोडीयान ने बताया कि कितनी बार उनको अपने पति को उनके कामों के लिए पैसा देना होता था। ऐसे नेताओं को उन्होंने देखा , जो आज एक सपना ही लगता है, जो गुजर गया। 
लेकिन सिसली कोडीयान जी ने अपने बच्चों की पढ़ाई और उनकी प्रगति के लिए भी एक मिशन की तरह काम किया। लंबे समय उनका सम्बंध नेताओं से रहा ,लेकिन वो ह्रदय से   समाज सेवा में ही रही।
इसी कारण उनके बच्चों ने जीवन में बहुत तरक्की भी की।
नार्थ एवेन्यू में रह कर उन्होंने संसदीय शिशु विद्यालय की स्थापना भी की। भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी उनके विभिन्न सामाजिक  कार्यों में मदद की। 
उन्होंने बताया कि एम पी कैंटीन का भी उन्होंने संचालन किया। 
उनका मिशन रहा कि बच्चों में वैज्ञानिक सोच का प्रचार हो , इसलिए उन्होंने भारत व विदेशी वैज्ञानिकों की जीवनी भी लिखी कि वो बचपन में कैसे थे और उनके भीतर विज्ञान कैसे पनपा। उन्होंने करीब 12 पुस्तक लिखी है, अभी भी लिख रही है।
जैसा होता ही है, उनके साथ बहुत संख्या में मेंबर जुड़े हुए है, लेकिन अधिकांश सभी विभिन्न कार्यों में व्यस्त रहते है। 
उनका मिशन है कि द्वारका के पॉकेट व सोसाइटी के बच्चें छोटे छोटे पौधे स्वयं से लगाये ताकि उनके प्रति उनके भीतर अनुराग व भाव पैदा हो सकें।
सरकार ने उनको सेक्टर 23 के सामुदायिक केंद्र में एक कमरा भी प्रदान किया है ,जहां पर उन्होंने आफिस के साथ पुस्तकालय भी खोला हुआ है। उनका कहना है कि वर्तमान रक्षा मंत्री श्री  राजनाथ सिंह ने उनको ये आफिस सौंपा था।
उमेश काला जी जो बहुत ही जुझारू व्यक्ति है, उन्होंने वहीं बैठकर कितनी ही पॉकेट में वृक्षारोपण के बारें में बात कर ली।
उनके साथ विभिन्न विषयों पर चर्चा हुई। उनका लम्बा समय नार्थ, साउथ एवेन्यू व वी पी हाउस में ही बीता, 2001 अपने पति की मृत्यु के उपरांत वो वहां से बाहर गई। उपरोक्त जगहों पर वो लोग एक साथ मिलकर रहते थे, सभी त्यौहार मिलकर मानते थे। लेकिन जब वो द्वारका आईं तो एक दम नए माहौल में उन्होंने खुद को पाया। उनकी इच्छा है कि सभी लोग आपस में प्रेम व भाई चारे से रहे। पर्यावरण के प्रति सजग रहे और बच्चों में इन सब बातों की बचपन से ही डालना जरूरी है। 
उनके साथ इस तरह उनके घर में फॉर्मल बात चीत में आनंद आया और उम्र कभी काम में बाधा नही होती, 93वे वर्ष होने के बावजूद उनकी उनकी आंखों की चमक ने स्वयं ही कह डाला।
लंबे समय तक ये मुलाकात याद रहेगी। जल्दी ही किसी पॉकेट में उनके साथ वृक्षारोपण,  उनके द्वारा शपथ 
OATH
Let there be always peaceful Earth
Let there be always cheerful Earth
Let us protect our mother Earth
Let us make Dwarka clean and beautiful
Let us make Dwarka safe and healthy 
Let us live in social solidarity
Let us live with community responsibility
Let us live in unity without hatred against cast creed or religion
 व सर्टिफिकेट बच्चों को प्रदान करते हुए कुछ समय दिया जा सकता है। उनसे बात करने के बाद मन समाज में समर्पण, फक्कड़ की तरह लगे रहना का अहसास स्मरण हो उठा, जो आज सपने की तरह लगने लगा है। समाज के प्रति ईमानदारी से लगे रहना , किसी भी व्यक्ति को अकेला कर सकता है।  लोग तारीफ करेंगे और लेकिन कब एक किनारा कर ले, ये कह कठिन है । जब विवेकानद जैसे महान संत ऐसा अनुभव करते थे, तो ये ही प्रसाद होता है और ये ही होता है, परितोष। तनिक मन करुणामय होता है, फिर यात्रा पथ पर निकल जाता है, रविन्द्र नाथ टैगोर की कविता  "जदि तोर डाक शुने केउ ना आसे तबे एकला चलो रे"......कहीं भीतर से यकायक उभर आई।

रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
30.8.2022

Friday 19 August 2022

कृष्णजन्मष्टमी : संत कवियों के मुख से।

कृष्णजन्मष्टमी : संत कवियों के मुख से।
"सेस महेस, गनेस, दिनेस, सुरेसहु जाहिं निरन्तर गावैं
जाहि अनादि, अनन्त अखंड, अछेद, अभेद सुवेद बतावैं
नारद से सुक व्यास रटैं, पचि हारे तऊ पुनि पार न पावैं
ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भर छाछ पे नाच नचावैं ":रसखान द्वारा रचित काव्यपंक्ति श्री कृष्ण के होने का पूरा विवरण प्रस्तुत करती है। 
 सूरदास की काव्यपंक्तियों का आनंद ले:
मैया! मैं नहिं माखन खायो।
ख्याल परै ये सखा सबै मिलि मेरैं मुख लपटायो॥
मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।
मो सों कहत मोल को लीन्हों तू जसुमति कब जायो॥
कबहुं चितै प्रतिबिंब खंभ मैं लोनी लिए खवावत॥
दुरि देखति जसुमति यह लीला हरष आनंद बढ़ावत।
सूरदास के पदों का आनंद ले ,उनके बारें में कहां जाता है कि वो सबसे महान कवि थे ।
बिहारी ने लिखा है: 
भक्ति या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोइ। 
ज्यौं-ज्यौं बूड़ै स्याम रँग, त्यौं-त्यौं उज्जलु होई॥ 
मनुष्य के अनुरागी हृदय की वास्तविक गति और स्थिति को कोई भी नहीं समझ सकता है। जैसे-जैसे मन कृष्ण-भक्ति के रंग में डूबता जाता है, वैसे-वैसे वह अधिक उज्ज्वल से उज्ज्वलतर होता जाता है।
"सूर सुर तुलसी शशि ।,उडगन केशव दास।
अबके कवि खद्योत सम ,जहँ तहँ करहिं प्रकाश ।।"
गोपियों की तरह कान्हा को दूर से स्मरण  करें और पढ़े ऊधव गोपियाँ संवाद : 
"ऊधौ मन ना भये दस-बीस
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, कौ आराधे ईस ।"
राधे कॄष्ण राधे कृष्ण
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष हिमाल
9810610400
18.8.2022