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Thursday 24 November 2016

आर॰ बी॰ आई॰ एक्ट 1934 (RBI ACT) की धारा 45 E में तुरंत बदलाव कर लोन डिफ़ौल्टर्स के नाम उजागर किए जाये

देश को एनपीए (NON-PERFORMING ASSET) से छुटकारा दिलाया जाए


प्रधानमंत्री ने नोटबन्दी पर एक कडा कदम उठा लिया है, जिससे एक बात साफ है, यदि प्रधानमंत्री चाहे तो कोई भी कदम उठा सकते है| कई दशकों से बड़े उद्योगों ने सरकारी और प्राइवेट बेंकों से परियोजनाओं के लिए भारी भरकम रकम ऋण के रूप में लिया है| लेकिन लंबी अवधि बीत जाने पर भी ऋण चुकाया नहीं गया| एक समय था कि ये न तो ब्याज ही देते थे और न ही ऋण वापस करते थे| ऐसी रकम को एन.पी.ए में बदल दिया गया| आज ये रकम मिलकर करीब 3 लाख करोड़ से अधिक हो गई है और एनपीए कर दी गई है| आर॰ बी॰ आई॰ एक्ट (RBI Act)1934 कि धारा 45 C के तहत बेंकों से डिफालटर बड़े उद्योगपतियों कि लिस्ट मँगवाई जाती है, लेकिन 5 करोड़ और उससे बड़े डिफालटर उद्योगपतियों की लिस्ट को आर॰ बी॰ आई॰ एक्ट 1934 की धारा 45 E के तहत गोपनीय रखने का प्रावधान है| इसका अर्थ हुआ की 5 करोड़ से अधिक पैसा गटकने वालों का नाम बदनाम न हो जाए, सभी सरकारों ने इस अधिनियम का सहारा लेकर ऋण न चुकाने वालों का नाम सूप्रीम कोर्ट के मांगने के बावजूद भी नहीं उजागर किए| सबसे अचरज की बात यह है कि मोदीजी ने भी आज तक इस अधिनियम में बदलाव नहीं किया| उनका दावा है कि उन्होने सारे अंग्रेज़ो के समय के कानून या तो बदल दिये या निरस्त कर दिये| लेकिन ये कानून जो सबसे पहले बदलना था, ये कैसे छूट गया| ये साफ दिख पड़ता है, इन बड़े उद्योगपतियों को बचाने का ही प्रयास है| याद रहे, ये एक्ट अंग्रेज़ो के समय का है, उस समय राजा, महाराजा, पटेल, सेठ, थोकदार, मालदार और इस तरह के अमीर और प्रभावशाली डिफालटर उद्योगपतियों की बदनामी के डर से उजागर नहीं किए जाते थे | असल में अंग्रेजों ने इन्ही के दम पर भारत में राज किया था| दिल्ली में अभी भी इन सब देशभक्तो की हवेलियाँ हैं| इनमे से बहुत तो आज भी राजा ही हैं| बहुतों को तो अंग्रेजों ने ही पैदा किया था, अपने स्वार्थ के लिए उधार ना चुकाने के बावजूद भी इनकी डिफालटर लिस्ट उजागर नहीं की जाती थी| लेकिन अब तो प्रजातन्त्र है और जनता  का पैसा बैंको के माध्यम से उधार दिया जाता है| फिर क्यों सरकार इन्हे उजागर करने से कतराती है, क्योंकि ये बड़ी गहरी साँठगांठ है| यहीं कारण है कि मोदी जी कि निगाह इस पर नहीं पड़ी| इसका खुलासा पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी किया था| संसद में भी इस पर शोर मचता रहा कि नाम उजागर किए जाये| लेकिन ये अंग्रेज़ो के समय का कानून है, जो अपने करीबी लोगो को बचाने के लिए बना था, उसका इस्तेमाल आज भी छाती चौड़ी करके किया जाता है|
अब समय आ गया है कि  आर॰ बी॰ आई॰ एक्ट 1934 (RBI ACT) की धारा 45 E में तुरंत संशोधन किया जाये ताकि 5 करोड़ से ऊपर डिफालटर उद्योगो और उनके मालिको का नाम उजागर किया जा सके| अभी  मालया का नाम एक आम आदमी भी जनता है| सरकारों ने कोई ठोस कदम नहीं उठाए इस कारण देश के लोगो का एक बड़ा पैसा आज तक लौटाया नहीं गया| बड़ी विडम्बना है, विदेशी बेंकों, खास तौर पर स्विस बैक,  में भी जिनका काला धन रखा है, उनको भी आज तक देश को नहीं बताया गया| उसमे तो मल्टिपल अग्रीमेट्स के कारण ऐसा नहीं हो सका| लेकिन देश के कानून में संशोधन कर देश कि जनता को डिफालटर उद्योगो और उनके मालिको का नाम बताया जाए, जो असल तो छोड़िए ब्याज भी नहीं चुका रहे| असल में ये कहा जाता है कि इनके नाम उजागर होने से शेयर मार्केट और बाज़ार पर प्रतिकूल असर पड़ेगा| फिर तो ये और भी जरूरी है कि इनके नाम उजागर किए जाए ताकि मार्किट वास्तव में ऊपर जाये न कि केवल सट्टेबाजी के आधार पर| एक बार ठोस कदम से भविष्य में परियोजना का क्रियान्वयन ठीक समय पर हो सकेगा और एनपीए से बचा जा सकेगा| नोटबन्दी में भी कहा गया कि देश वासी सब्र करें| अगर इस नियम को बदला जाता है, तो सारा आर्थिक तंत्र ठीक से आगे बढ़ेगा| इस अकेले कदम से सारे देशवासी वास्तव में खुश होंगे|
इस अधिनियम में बदलाव के साथ इन सभी डिफालटर उद्योगपतियों को एक महीने का समय देकर उनसे ऋण की रकम वसूली जाए| अगर ये ऋण वापस नहीं करते है तो इनपर भी कानूनी शिकंजा कसा जाए और इनकी संपत्ति को नीलम कर दिया जाए ताकि कुछ तो रकम वापस आ सके| एक आम आदमी जब छोटा सा ऋण लेता है, ऋण न चुकाने पर रिकवरी और उसकी संपत्ति की कुड़की तक हो जाती है| आजतक किसान और आम आदमी छोटे- छोटे ऋण के कारण खुदखुशी करते रहे है, लेकिन आजतक कितने बड़े उद्योगपतियों ने खुदखुशी की है, ये लोग जानते है| ये बड़े लोग आज भी खुले आम मौजमस्ती का जीवन जी रहे है| संविधान की नज़र में सारे नागरिक एक समान है| इसलिए ये कदम वास्तव में एक बहुत बड़ा कदम होगा| इसलिए इस अंग्रेज़ो के समय के कानून की धारा 45 E को नोटबन्दी की तरह एक झटके में ही बदल कर देश के सामने उन सभी बड़े उद्योगपतियों के नाम उजागर करे, ताकि ये सिलसिला यहीं रुक जाये| अगर नोटबंदी से पहले ये कदम उठाया जाता, अधिक सार्थक कदम होता| केवल 100 डिफ़ालटरों से ही हमारे देश के खजाने भर जाते| नोटबंदी की सफलता इस बात पर निर्भर करती है की अन्य दलों सहित सत्तारूढ़ दल से जुड़े कितने लोग कानून के चंगुल में आते है| अभी तो पूरे देश में क्या नुकसान हुआ है और क्या फायदा, इसका मूल्यांकन और प्रभाव भविष्य के गर्भ में छुपा है|

रमेश मुमुक्षु
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Thursday 17 November 2016

एक नज़र इधर भी 500, 1000 के नोटो के बंद होने पर



8 नवम्बर से पहले नकद धंधा करने वाले सब ठीक थे|  जिनके बैंक में खाते नहीं खुले वो चोर नहीं थे| भारत के अधिकांश लोग 8 तारीख की शाम तक रोज़मर्रा की सभी चीजे सामान नकद खरीद रहे थे| अचानक 8 नवम्बर के बाद ये सब काला बाजारी से जुड़ गए| मैं यहाँ किसी दुकानदार और नकद धंधा करने वाले को सपोर्ट नहीं कर रहा, लेकिन वो एक बड़े हिस्से में सभी के साथ शामिल है| 8 तारीख की शाम तक कोई जागरण हो, समूहिक पुजा हो, किसी नेता का आगमन हो यहाँ तक की किसी सरकारी अधिकारी का आना हो तो तुरंत लाला जी  से ले आओ, यहाँ पर भी उसको ही चोर बना देते है, ये कह कर की वो टेक्स बचाता है इसलिए देता है| चित भी मेरी पट भी मेरी|  एक बड़ा वर्ग या अधिकतर सभी लोग बिना पक्की रसीद के ही सामान लेना पसंद करते है| पूरा सब्जी का धंधा नकद का ही है| जो नौकरी करते है वो सबसे अधिक गुस्से में है कि उनका ही टेक्स कटता है, बात में वज़न है| कितने किसान, मजदूर समेत लोग होंगे जो सरकारी और गैरसरकारी विभाग  में चपरासी के बराबर भी कमाते होंगे, मेडिकल फैसिलिटी, छुट्टी, एलटीसी जैसी सुविधा सब को मिला दो तो बहुत अधिक है| इसके अतिरिक्त सरकारी नौकरी में नमक  के दारोगा जो है, उनके ठाठ बाट का कोई मुक़ाबला नहीं | कुछ विभाग मलाई वाले माने जाते है जैसे इंकम टेक्स जो आज सबसे ईमानदार विभाग की भूमिका निभा रहा है| कस्टम, सेल टेक्स, राजस्व, भू विभाग, सारे भारत के जमीन को पंजीकरण करने वाले सब-रैजिस्ट्रार, पटवारी समेत अधिकांश भू और राजस्व के कर्मचारी और अधिकारी, जिले के खंड विकास, ब्लॉक से जुड़े अधिकांश लोग, पुलिस और कितने नाम गिने| लोग जानते और समझते ही है| सारे कर्मचारी और अधिकारी करप्ट नहीं होते, लेकिन यहाँ पर लेना देना चलता है| केंद्र में बड़ी मछ्ली और मगरमच्छ है, जो निगल भी ले और डकार भी न मारे| जुड़ीशियल सिस्टम के बारे में तो सूप्रीम कोर्ट के चीफ़ ने ही उंगली उठा दी तो फिर वकीलों की बात क्या कहे| वकालत तो सारा लगभग नकद मे ही होता है, कोर्ट  फीस को छोड़| इसमे सब लोग लगे है| प्राइवेट स्कूल में आज भी मोटा चंदा बिना रसीद चलता है| ये सब लोग ही करते है, हम लोगो ने ऐसा ही सिस्टम बना लिया|
बड़ी संख्या में दुकान और यहाँ तक मकान गैरकानूनी है, लेकिन उनको बिजली और पानी सरकारी तौर पर मिला है| अब किसी ने नकद पैसा घर में रखा है, उसको भी चोर कहा जा रहा है| असल में किसी मोटे चोर को बचाना हो तो सबको छोटा चोर बना दो, जैसे किसी ने एक सर दर्द की गोली ली और उससे पूछो की रसीद ली? वो मना करेगा तो वो चोर बन गया| अरबों रुपयो की सरकारी परियोजनाये जुगाड़ से दिलवाने वाले  बिचोलिए और एक गोली खरीदने वाले दोनों चोर साबित हो गए, ऐसा होता ही है| इसलिए समाज में सब कुछ पटरी पर आए, लेकिन जस्टिस के साथ, सुधार में ये निपुणता जरूरी है| बड़े- बड़े घपले पकड़े जाये तो छोटे तो वेसे ही कम हो जाते है| नन्द साम्राज्य में सम्राट घनानन्द के महा- आमात्य शकटार ईमानदार थे, दरबारी घोटाले बाज थे, उन्होने शकटार के सरकारी खजाने से एक स्वर्ण मुद्रा निकाल ली और उनको भी चोर साबित कर दिया| सम्राट कहता है एक मुद्रा की चोरी और लाख मुद्रा की चोरी आखिरकार चोरी ही तो है| शकटार जबाव देते है की महाराज बात सही है, लेकिन आपको एक मुद्रा की चोरी तो दिखाई दे रही है लेकिन लाखो मुद्रा की चोरी नहीं दिखाई पड़ रही| बस ऐसा न हो जाए | जिसकी संभावना अधिक है |
बैंक के माध्यम से अभी हाल फिलहाल में ही SPEAK ASIA सर्वे कम्पनी का अरबों का घोटाला और एमसीएक्स कोमोडिटी के जिग्नेश शाह, मार्केट का लगभग 20 हज़ार करोड़ का घपला सामने आया है | ये सब बैंक के माध्यम से हुआ है| 2008 में सारी दुनिया मंदी में डूब गई थी, उस वक्त कहा जाता था की भारत केवल नकद के कारण ही बचा| सरकार द्वारा काले धन, नकली नोट के खिलाफ कार्यवाही को कोई गलत नहीं कह सकता, लेकिन सब को चोर और काला बाज़ार से जोड़ना उचित नहीं और जस्टिस भी नहीं|
सिस्टम बदले ये कोई भी मना नहीं करेगा| हर चीज़ को लीगल फ्रेम में फिट करने का सिस्टम विकसित होने से ये सब होता जाएगा| इसलिए 60 साल से सब चोर है, ये सब कहने का अर्थ सारा धार्मिक सिस्टम नकद पर चलता है, सब काला बाजारी है| बेहतर यही होगा की एक बात को ही कहा जाए की सब लोग अब सिस्टम को बदले ताकि घपले के अवसर कम होते जाए|
देश में चार्टर्ड अकाउंटेंट, टेक्स कंसल्टेंट और ऑडिटर को सभी जानते है| ये नहीं की सभी चोर है, लेकिन हमारे सिस्टम में ऐसा चलन सालों से है, उसको बदलना है| ये एक सतत प्रक्रिया है| अब चुनाव में शराब का बटना क्या रसीद काट के होगा? आज तक किसी भी दल ने चुनाव खर्च को आर टी आई अधिनियम 2005 के तहत लाने की बात नहीं मानी| समाज में नेता को लोगो ने आम आदमी के रूप में देखा होता है, लेकिन धीरे- धीरे वो धनवान होता जाता है| शराब बेचकर लोग धनवान बन जाते है| पुलिस समेत कितने लोगो की संपत्ति को देख आम आदमी वेसा करने की सोचता है| इसलिए इसमे सभी शामिल है| इसलिए ये धीरज धरने का समय है| जो वास्तव में काला बाज़ार के मसीहा है, वो भगधड़ में छुप कर बच न जाए, जिसकी संभावना अधिक है| कही ऐसा न हो जाए की एक सर दर्द की गोली बिना रसीद के लेने वाला और काले बाज़ार के बादशाह दोनों को एक साथ चोर घोषित करके असली चोर को संदेह का लाभ मिल जाये, इस आशंका को नहीं भुलाया जा सकता|
इसलिए इस सुधार आंदोलन को जस्टिस और ईमानदारी से आगे ले जाए, अगर जस्टिस नहीं हुआ तो एक आम आदमी का विश्वास टूट जाता है, और ये सिस्टम और सरकार की हार ही होगी| प्रधानमंत्री ने केवल काला बाज़ार वालों की बात कही है| इस पर ही सबको ध्यान देना है| सभी पार्टी घपले में शामिल है| “टाइम्स नाऊ” की बहस में अर्णव गोस्वामी बैंक का खाता न खोलने वालों को भी काला बाज़ार से जुड़े कह रहा था| चिल्ला कर कह रहा था कि ये मासूम नहीं है, नकद वाला काला बाजारी करता है| इस आदत से बचना है| नकली नोट रुक जाए, ये ही अपने आप में एक बड़ा है|
एक बात का ध्यान रहे कि चिंदी चोर तो पकड़ा जाए और महा चोर निकाल जाए| इसलिए इस अवसर पर फूँक के कदम रखना है| बड़े उद्योगपति जो उधार नहीं चुकाते और विदेशों में काले धन पर भी कुठराघात जरूरी है | अभी बेनामी संपत्ति पर भी सरकार के ठोस कदम का इंतजार है | इन सब का परिणाम भविष्य के गर्भ में छुपा है , आशा है, इसका परिणाम निरपेक्ष ही हो बिना किसी के गलत नियत के|

रमेश मुमुक्षु
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