देश को एनपीए (NON-PERFORMING ASSET) से छुटकारा दिलाया जाए
प्रधानमंत्री ने नोटबन्दी पर एक कडा कदम उठा लिया है, जिससे एक बात साफ है, यदि प्रधानमंत्री चाहे तो
कोई भी कदम उठा सकते है| कई दशकों से बड़े उद्योगों ने सरकारी और प्राइवेट बेंकों
से परियोजनाओं के लिए भारी भरकम रकम ऋण के रूप में लिया है| लेकिन लंबी अवधि बीत जाने
पर भी ऋण चुकाया नहीं गया| एक समय था कि ये न तो ब्याज ही देते थे और न ही ऋण वापस
करते थे| ऐसी रकम
को एन.पी.ए में बदल दिया गया| आज ये रकम मिलकर करीब 3
लाख करोड़ से अधिक हो गई है और एनपीए कर दी गई है| आर॰ बी॰ आई॰ एक्ट (RBI Act)1934 कि धारा 45 C के तहत बेंकों से डिफालटर
बड़े उद्योगपतियों कि लिस्ट मँगवाई जाती है, लेकिन 5 करोड़ और उससे बड़े
डिफालटर उद्योगपतियों की लिस्ट को आर॰ बी॰ आई॰ एक्ट 1934 की धारा 45 E के तहत गोपनीय रखने का
प्रावधान है| इसका अर्थ हुआ की 5 करोड़ से अधिक पैसा गटकने वालों का
नाम बदनाम न हो जाए, सभी सरकारों ने इस अधिनियम का सहारा लेकर ऋण न चुकाने
वालों का नाम सूप्रीम कोर्ट के मांगने के बावजूद भी नहीं उजागर किए| सबसे अचरज की बात यह है
कि मोदीजी ने भी आज तक इस अधिनियम में बदलाव नहीं किया| उनका दावा है कि उन्होने
सारे अंग्रेज़ो के समय के कानून या तो बदल दिये या निरस्त कर दिये| लेकिन ये कानून जो सबसे
पहले बदलना था, ये कैसे छूट गया| ये साफ दिख पड़ता है, इन बड़े उद्योगपतियों को
बचाने का ही प्रयास है| याद रहे, ये एक्ट अंग्रेज़ो के समय का है, उस समय राजा, महाराजा, पटेल, सेठ, थोकदार, मालदार और इस तरह के अमीर
और प्रभावशाली डिफालटर उद्योगपतियों की बदनामी के डर से उजागर नहीं किए जाते थे | असल में अंग्रेजों ने
इन्ही के दम पर भारत में राज किया था| दिल्ली में अभी भी इन सब देशभक्तो की
हवेलियाँ हैं| इनमे से बहुत तो आज भी ‘राजा’ ही हैं| बहुतों को तो अंग्रेजों ने ही पैदा
किया था, अपने
स्वार्थ के लिए उधार ना चुकाने के बावजूद भी इनकी डिफालटर लिस्ट उजागर नहीं की
जाती थी| लेकिन अब
तो प्रजातन्त्र है और जनता का पैसा बैंको के
माध्यम से उधार दिया जाता है| फिर क्यों सरकार इन्हे उजागर करने से कतराती है, क्योंकि ये बड़ी गहरी साँठगांठ है| यहीं कारण है कि मोदी जी
कि निगाह इस पर नहीं पड़ी| इसका खुलासा पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी किया था| संसद में भी इस पर शोर
मचता रहा कि नाम उजागर किए जाये| लेकिन ये अंग्रेज़ो के समय का कानून है, जो अपने करीबी लोगो को
बचाने के लिए बना था, उसका इस्तेमाल आज भी छाती चौड़ी करके किया जाता है|
अब समय आ गया है कि आर॰ बी॰ आई॰ एक्ट 1934 (RBI ACT) की धारा 45 E में तुरंत संशोधन किया
जाये ताकि 5 करोड़ से ऊपर डिफालटर उद्योगो और उनके मालिको का नाम उजागर किया जा सके| अभी
मालया का नाम एक आम आदमी भी जनता है| सरकारों ने कोई ठोस कदम
नहीं उठाए इस कारण देश के लोगो का एक बड़ा पैसा आज तक लौटाया नहीं गया| बड़ी विडम्बना है, विदेशी बेंकों, खास तौर पर स्विस बैक, में भी जिनका काला धन रखा है, उनको भी आज तक देश को
नहीं बताया गया| उसमे तो मल्टिपल अग्रीमेट्स के कारण ऐसा नहीं हो सका| लेकिन देश के कानून में
संशोधन कर देश कि जनता को डिफालटर उद्योगो और उनके मालिको का नाम बताया जाए, जो असल तो छोड़िए ब्याज भी
नहीं चुका रहे| असल में
ये कहा जाता है कि इनके नाम उजागर होने से शेयर मार्केट और बाज़ार पर
प्रतिकूल असर पड़ेगा| फिर तो ये और भी जरूरी है कि इनके नाम उजागर किए जाए
ताकि मार्किट वास्तव में ऊपर जाये न कि केवल सट्टेबाजी के आधार पर|
एक बार ठोस कदम से भविष्य में परियोजना का क्रियान्वयन ठीक समय पर हो सकेगा और
एनपीए से बचा जा सकेगा| नोटबन्दी में भी कहा गया कि देश वासी सब्र करें|
अगर इस नियम को बदला जाता है,
तो सारा आर्थिक तंत्र ठीक से आगे बढ़ेगा|
इस अकेले कदम से सारे देशवासी वास्तव में खुश होंगे|
इस अधिनियम में बदलाव के साथ इन सभी डिफालटर
उद्योगपतियों को एक महीने का समय देकर उनसे ऋण की रकम वसूली जाए| अगर ये ऋण वापस नहीं करते है तो इनपर
भी कानूनी शिकंजा कसा जाए और इनकी संपत्ति को नीलम कर दिया जाए ताकि कुछ तो रकम
वापस आ सके| एक आम आदमी जब छोटा सा ऋण लेता है, ऋण न चुकाने पर रिकवरी और उसकी संपत्ति
की कुड़की तक हो जाती है| आजतक किसान और आम आदमी छोटे- छोटे ऋण के कारण खुदखुशी
करते रहे है, लेकिन आजतक कितने बड़े उद्योगपतियों ने खुदखुशी की है, ये लोग जानते है| ये बड़े लोग आज भी खुले आम
मौजमस्ती का जीवन जी रहे है| संविधान की नज़र में सारे नागरिक एक समान है| इसलिए ये कदम वास्तव में
एक बहुत बड़ा कदम होगा| इसलिए इस अंग्रेज़ो के समय के कानून की धारा 45 E को नोटबन्दी की तरह एक
झटके में ही बदल कर देश के सामने उन सभी बड़े उद्योगपतियों के नाम उजागर करे, ताकि ये सिलसिला यहीं रुक
जाये| अगर नोटबंदी से पहले ये कदम उठाया जाता, अधिक सार्थक कदम होता| केवल 100 डिफ़ालटरों से ही
हमारे देश के खजाने भर जाते| नोटबंदी की सफलता इस बात पर निर्भर
करती है की अन्य दलों सहित सत्तारूढ़ दल से जुड़े कितने लोग कानून
के चंगुल में आते है| अभी तो पूरे देश में क्या नुकसान हुआ है और क्या फायदा, इसका मूल्यांकन और प्रभाव
भविष्य के गर्भ में छुपा है|
रमेश मुमुक्षु
Please subscribe, share and comment