कचरे के जन्मदाता मानव तेरे से अज्ञानी इस धरती पर कोई नही। जिस कचरे के सामने जाने से तू नाक सिकोड़ के चलता है। वो कभी तेरी रसोईघर की शान था। तेरे फ्रिज की शोभा और तेरी जीभ के स्वाद का द्योतक। महामूर्ख जब तू गांव में बसता था ,तेरे पुरखे जो की अक्षरज्ञान से दूर थे ,उनके आस पास कचरा होता ही नही था। वो फलों के छिलके को ,बची कुछ सब्जी के पत्ते और डंठल को अपने पशु को से देता था ,या एक स्थान पर रख दिया करता था। जो अगले एक साल में खाद बन जाती थी।
तेरी अक्ल ने ही प्लास्टिक पैदा किया।मुझे याद है तू किस तरह कुप्पा सा फूल गया था।प्लास्टिक को तूने अमर बनाने की कोशिश की और वो कोशिश तेरे जी का जंजाल बन गया। प्लास्टिक भी मुक्ति चाहता है। उसमें सब कुछ मिलकर तड़प तड़प के जान देते है। उनको सांस लेने की जगह नही मिलती। कितनी बार निरीह प्राणी उसको निगल कर दर्दनाक मौत मरते है।
मूढ़मते जैविक अवशेष कूड़ा नही होता। तू पार्क बनाता है और पतझड़ को कोसता है। पतझड़ खाद की ओर जाने की यात्रा है। बसंत से नए पत्तों यात्रा का आरंभ होता है। महामूर्ख पत्तों से खाद निर्मित होती है। किसी जंगल में जाकर सीख जहां कुछ भी कचरा नही होता। प्रकृति सब कुछ अपने आँचल में समा लेती है।
हे एम सी डी के कर्णधारों शीघ्रता से मेरा तर्पण करो । मुझे अलग करो ताकि में अगली योनी में प्रवेश कर सकूं। घर से बचे कुछ जैविक खजाने को उसके उचित स्थान तक पहुंचा दो ,ताकि वो समय से खाद में परिवर्तित हो सके। जो आज सूखा पत्ता है कभी वो कोंपल के रूप में अस्तित्व में आया होगा। फिर रंग बदलता हुआ, हरा एवं पीला होता हुआ , सूखने लगा होगा। सूख कर वो अपने जन्मदाता पेड़ में खाद का रूप लेकर अपने अस्तित्व को पेड़ की नई कोंपलों और बीजो के रूप में आहूत कर डालता है। मूर्ख वो कूड़ा नही होता कूड़ा तेरे दिमाग में भरा है। इसलिए तूने सारी वैविध्यपूर्ण पूर्ण धारा को कचरा घर बना दिया है। जो भी तूने लोभ से बनाया, वो तेरा ही काल बनकर तुझे लील लेने को आतुर है। तू अपने को स्वयंभू समझने लगा। प्लास्टिक और रासायनिक खाद आज तेरे लिए काल बन कर तेरे अस्तित्व को चुनौती दे रहे है और तू ठगा सा अगल बगल झांक रहा है। हज़ारों वर्ष तू भी प्रकृति की चाल चलता रहा। अभी एक शताब्दी के आस पास तूने प्रकृति की लय ही बिगाड़ने का काम किया है। तस्वीर तेरे सामने है। धरती जीतने जीतने वाले एक बटन दबाकर तू अपने अस्तित्व को मिटा सकता है। लेकिन तू चिंता न कर तू कचरे से ही मर लेगा।
जल, वायु और समस्त दूषित कर कर दिया है। तू दूषित हवा और पानी से ही मर सकता है। एक पल ऑक्सीजन न मिले तो तेरा धरती से लोप ही हो जाये और तू अपने को विश्व विजयी समझता है।
धरती एक है ,तूने इसको अपनी खंडित सोच से खंड खंड कर डाला। लेकिन प्रकृति की चाल को रोकना तेरे बूते की बात नही। अभी दुनियां मुझे कचरा समझ कर घृणा करता है। ये तेरे भीतर छिपी गंदगी का परिचायक है। अगर तू घर से ही अलग अलग गीला सूखा कर ले ,तो कचरे के ढेर क्यों लगे? अब कचरा बढ़ गया तो नए नए महंगे तरीके खोजों और उलझते रहो। अब तो चेत जा नही तो फिर कब चेतेगा। अब झेल मेरे इस अवस्था से निकलने वाली गैसों और लीचट को , सूंघ बदबू और अपने पवित्र पावन शरीर को नाना बीमारियों का घर बना ले। जब हम प्रकृति में थे, उस वक्त तितलियां और मधु मक्खियों शहद बनाती थी। अब हमारी तूने ऐसी गत कर दी ,अब हमारे इस मिक्स कचरे में विषैले तत्व और विषाणु पैदा होंगे ,जो तुझे आराम से जीने नही देंगे। तू अपनी मौत खुद ही मरेगा और अपनी गलती से ही सब कुछ झेलने को मजबूर होगा। हम तो कचरा बन झेल ही रहे है। ओ एम सी डी के कर्णधारों मेरा तर्पण करो।
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष ,हिमाल
29. 11.2019