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Thursday 31 December 2020

नव वर्ष 2021 की शुभकामना

नव वर्ष 2021 की शुभकामना
2020  वर्तमान पीढ़ी और आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए न भूलने वाला वर्ष रहेगा। 2020 ने विश्व के समक्ष एक यक्ष प्रश्न खड़ा कर दिया कि मानव के ज्ञान,विज्ञान ,आध्यत्म,  भविष्यवाणी समेत सभी कोरोना वैश्विक त्रासदी की पूर्व सूचना एवं चेतावनी देने में पूर्णतः विफल रहे। आगे आने वाले समय में अब तक के समस्त ज्ञान एवं विज्ञान को पुनर्स्थापित करने की ओर आगे जाना ही होगा। लेकिन एक बात तय हो गई कि भविष्य के बारे में कुछ भी कहना प्रायः असंभव ही है, कम से कम वर्तमान तक की मानव ज्ञान विज्ञान यात्रा को देखते हुए। लेकिन मानव की खोज करने की वृत्ति को नए आयाम खोजने ही होंगे और जड़ चेतन से निर्मित सूक्ष्म ,स्थूल , विकराल एवं कालातीत , अदृश्य दुनियां की खोज हो सकता है, भविष्य की गुत्थी को सुलझा सके और मानव और समस्त अस्तित्व और सहअस्तित्व को पुनर्लिखित कर सकें।
2021 में मानव एक नई खोज में निकल सकेगा, इस बात से इनकार करना ,शायद संभव नही। 2020 को न भूलते हुए ,2021 में प्रवेश के लिए सभी को शुभकामना और मानव की सोच और ज्ञान को नया मुकाम मिल सकें ,इस आशा और विश्वास के साथ नया वर्ष 2021 मुबारक हो।
रमेश मुमुक्षु 
अध्यक्ष, हिमाल 
9810610400
31.12.2020
10.01 PM

Friday 18 December 2020

सी सी आर टी के पिछले गेट के सामने सड़क की रेलिंग पर पड़े उपेक्षित गद्दे की आत्मव्यथा

सी सी आर टी के पिछले गेट के सामने सड़क की रेलिंग पर पड़े उपेक्षित गड्ढे की आत्मव्यथा
उपेक्षा का दर्द कितना कचोटा होगा, ये वो ही समझ सकते है, जिन्हें इसका एहसास कभी होता होगा। मैं एक गद्दा हूँ ,गद्दे के बिना मनुष्य का कोई वजूद नही। कितनी हसरत से ये मनुष्य गद्दा खरीदता है। कितना खुश होता है, खरीदते हुए। शादी विवाह में ये गद्दे के बिना शादी भी नही करता। मुझे भी अच्छा लगता है ,जब मनुष्य मुझे इस्तेमाल करता है। थका हुआ , बाहर से आकर जब मुझे पर पसर जाता है तो स्वर्ग का आनंद आता है, इसको। दाम्पत्य जीवन का आधार गद्दा ही होता है। ये जग जाहिर है। 
अपनी शानो शौकत से आदमी गद्दा खरीदता है। गरीब और अमीर सभी किसी न किसी गद्दे पर सोते ही है। 
मैं भी कभी एक खूबसूरत गद्दा था। मुझे भी कोई बड़े शौक से लाया था। मुझे भी बड़े सम्मान से रखा गया था। मुझ पर नई नई चादर डाली जाती थी। मुझे भी बहुत अच्छा लगता था। लेकिन ये मनुष्य कितनी बार जब अपने माँ बाप का भी तिरस्कार कर देता है ,तो मैं तो बेजुबान गद्दा ही हूँ। एक दिन मुझे भी बाहर निकाल दिया गया। एक ताज्जुब की बात है, जब हम गद्दे बाहर कर दिए जाते है, उस समय हमारी बेकद्री शुरू हो जाती है।हर कोई  हमें उपेक्षा और तिरस्कारपूर्ण फेंक देता है। 
मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ , कोई बेदर्दी और नकारा किस्म का आदमी मुझे द्वारका सेक्टर 7 , नई दिल्ली में स्थित सांस्कृतिक संस्थान सी सी आर टी के पिछले गेट के सामने सड़क की रेलिंग पर लटका गया। मुझे लगा था कि जल्दी ही मुझे कही और ले जाया जाएगा। लेकिन महानुभावों  मैं इस रेलिंग पर बेताल की तरह लटका हुआ हूँ।लेकिन अभी तक कोई विक्रमादित्य प्रकट नही हुआ। ऐसे नही की यहां पर कोई आता नही है। कुछ डी डी ए नाम के विभाग से यहां पर लोग कुछ कुछ काम करने आते है। बागवानी विभाग से भी आते है, लेकिन मेरे नीचे कुछ पौधे और खोद कर जाते है,  लेकिन वो मेरी ओर देखते भी नही। इतना ट्रैफिक मेरे को पिछले कई महीनों से देख रहे है, लेकिन किसी का ह्रदय नही पिघला। इतना उपेक्षित तो कूड़ा भी नही होता है। मेरे पुर्वज प्राकृतिक संसाधन से बनाया करते थे। मेरा तर्पण प्राकृतिक तौर हो जाया करता था। मेरे पुरखे जमीन में विलीन हो जाया करते थे। लेकिन मैं कृत्रिम पदार्थों से बना हूँ, न मैं विलीन होता हूँ ,न मेरा शरीर पहले जैसा रहता है।  
कब मेरा तर्पण होगा। बहुत बार मैंने देखा है कि एमसीडी की गाड़ी  बगल से निकल जाती है। उसने भी कभी मेरी ओर नही देखा। कभी कभी द्वारका की सफाई का अभियान भी चला ,रेस्जिडेंट्स मार्च करके ,मेरे बगल से बिना देखे निकल गए।
मेरा सभी डी डी ए ,एमसीडी और सभी द्वारका वासियों से करबद्ध विनती है कि मेरा उद्धार कर दें। मेरे कृत्रिम शरीर में कोई विषाणु और कीटाणु भी नही पनपते है। ये मानव ने अपनी सुविधा के लिए विकास का ऐसा मॉडल चुना की उसके लिए सिरदर्द ही बनता गया है। 
मेरे पुरखे कपास, नारियल , पुराने कपड़े से बनते थे। वो कहीँ न कहीं इस्तेमाल हो जाते थे। लेकिन मेरा शरीर मुक्ति को तरस रहा है। देखते है, कौन मेरा तर्पण करने आएगा। मैं बेताल से विक्रमादित्य के इंतजार में आंखे बिछाए हूँ। मुझे फ़िल्म का एक गाना याद आता है " हुजूर आते आते बहुत देर कर दी....
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल, 
9810610400
17.12.2020

Friday 11 December 2020

शीर्षक : कोई काला धन छुपाएगा

शीर्षक : कोई काला धन छुपाएगा -
कोई काला धन छुपाएगा 
कोई काला धन बनाएगा 
वो कहाँ जाएँ 
जिनके पास ना काला धन 
न सफ़ेद धन 
 उनके पास है 
प्रेम , आपसदारी 
तूफानों से जूझने का जज्बा  
और 
सत्य को स्थापित करने की जिद 
दोस्तों  के दोस्त  
अभाव और फाँकों 
के 
संगी साथी 
मतवाले 
अपनी धुन में चलने वाले 
न लेफ्ट के न राइट के 
 मात्र 
मानवता के 
निपट अकेले 
हमसफर 
प्रेम के प्यासे 
मानवता  के दोस्त 
कौन सा एटीएम उनके भीतर के 
 कोलाहल
को समझ पाएगा 
कौन सा पासवर्ड 
होगा 
जो दोस्तों पर न्योछावर कर देगा 
रंगीन नोट 
प्रेम से भरपूर 
हवा में होगा अर्थशास्त्र  
हवा तो हवा ही है 
किधर बह जाये 
मानव की 
संवेदना 
को भी 
सुना है 
क़ैद कर लिया जाएगा 
मशीनों में 
ताकि उनकी  बगावती
आवाज़ 
किसी पासवर्ड और पिन नंबर 
 से जूझती रहे 
निकलने को क़ैद 
से 
और खोजती रहे 
प्रेम
 और
 दबा दी गई 
 वो चिंगारी 
जो एक फूँक 
के लिए तरसेगी 
एक दिन 
क्रांति की ज्वाला 
भड़काने 
के लिए ....
रमेश मुमुक्षु
2016 नोट बंदी के दिनों कैफ़े द आर्ट मरीना आर्केड कनॉट प्लेस में एकल पेंटिंग प्रदर्शनी के दौरान ए टी एम की लंबी लाइनों के दौरान लिखी।