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Sunday 8 March 2020

होली मुबारक

(होली मुबारक )
2.3.2018 
यमुना मैली गंगा मैली 
मैली सबरी नदियां
मैले पोखर जोहड़ मैले
मैले होते सागर  सबरे 
मैला होता सागर तट
पिघल रहा हिमालय 
भैया पिघल रहे है 
दोनों पोल 
मैली कुचैली 
यमुना जल में 
 कैसे कान्हा खेले 
होली 
कैसे मारे भर पिचकारी 
काला काला पानी 
राधा है जाएगी कारी
कान्हा के रंग में डूबे बिना 
है जाएगी राधा कारी 
राधा है जाएगी कारी
रूठ गई राधा कान्हा से 
दूर रहो यमुना के तट 
से 
बदबू से भरी बयार बहे
कैसे जाए यमुना के पार
पहले कान्हा साफ करो 
द्वापर की यमुना को लाओ 
निर्मल जल शीशे सा दमके 
फिर खेलूंगी होली 
फिर से उठाओ अपनी उंगली
 सुदर्शन चक्र फिर से चलाओ
 यमुना गंगा स्वछ बनाओ
फिर खेलेंगे जल संग होली 
पिचकारी भर भर मारेंगे 
भिगो भिगो के खेले होली
नीले जल को देखे कान्हा
 बीत गया एक पूरा युग 
बहुत हुआ अब नही चलेगा 
ठान लिया मैंने मन में
नीले जल में खेलेंगे होली 
भिगो भिगो के खेले होली 
होली होली होली होली 
नीले रंग की आई होली 
यमुना गंगा झांक रही है
नभ को देखो निहार रही है
अब खेलेंगे होली कान्हा 
अब खेलेंगे होली ।
रमेश मुमुक्षु

मुझे होना है औरत

(विश्व महिला दिवस )
8.3.2018 
(मुझे होना है औरत)
हाँ वो घूरता है 
जिस्मखोरों की तरह 
आंख में उसके शैतानी 
झांकती है
बस हो गया अब घूरना और 
छेड़ने का सिलसिला औरतों 
का जिस्म 
किसी की जागीर नहीं 
उसका भी अपने पर पूरा 
हक है
मना करना उसको भी आता 
है 
लेकिन अब तक उसने 
केवल चुप्पी ही साधी
अब बहुत हुआ 
चुप चाप रहने की सजा 
अब नहीं सह सकेंगे
हम छुना चाहते है
आकाश को 
स्वयं और बेरोकटोक
नुक्कड़ पर खड़े 
होकर बात करने का 
मज़ा अब हम भी लेंगे
मन करेगा तो अकेले दूर तक 
चलने का 
तो चलेंगे 
अकेले 
डर ही रोकता है
मंजिल तक जाने को
ठिठक जाने का सिलसिला अब 
तोडना है
बिंदासपन और 
घूमने का मज़ा अब आएगा।
रात के चाँद का मज़ा 
लेना हमारा भी हक है
बालकनी पर खड़े रहने 
का मज़ा हम क्यों न लें
छत पर घूमने को तरसना 
अब नहीं होगा
चाय के नुक्कड़ पर
करेगे गप शप और 
राजनीति पर बहस
क्योंकि अब मर्ज़ी से 
डालेंगे वोट
ऐसा भी नहीं कि
हम औरत होना छोड़ 
दे लेकिन केवल औरत 
ही बने किसी की 
मोहताज़ नहीं
प्रेम से कोई बोल ले 
चल ले साथ
केवल साथ
सहज और स्वभाविक 
जो औरत को औरत
और मर्द को मर्द बनाता है
औरत को गुलाम और मर्द को 
मालिक बनाने का 
घेरा तोडना है
हाँ  तोडना है 
अपने चारों और 
का घेरा जो 
हमें गुलाम बनाता खुद का 
चलों अब खुली हवा में
घूम आये 
देख ले दुनिया का फेलाव 
और आगोश में भर ले
आज़ादी के पल 
जो केवल एक कदम दूर है
केवल एक कदम दूर
रमेश मुमुक्षु

Tuesday 3 March 2020

संवाद को बचाना है । 3 मार्च 2017 फेसबुक की पोस्ट

(संवाद को बचाना है) 3 march 2017 facebook ki post.
पिछले  वर्षो से यकायक देश के  आम नागरिक  इतना अधिक सजग हो गया कि अब लोग ही सब फेंसले स्वयं ही कर लेने को आतुर है। युवा का गुस्सा जब किसी के द्वारा संचालित होता है तो वो कुछ भी कर गुजरने को आतुर होता है। ये आज तक दुनियां के सामने मजबूरी है कि सीमा , सेना  दुश्मन और सुरक्षा एक साथ रहते है। मानवता ने अभी भी एक साथ रहना पूरी तरह नहीं सीखा इसलिए अपने को बचाना और दुश्मन को मारने की दुधारू तलवार की नौक पर जीवन चल रहा है। पूरी मानवता इस न ख़त्म होने वाले मानव के संघर्ष को आज तक झेल रही है । आजतक सम्राट अशोक के कलिंग युद्ध और उससे उपजी घृणा और संताप को मानव कभी नहीं भुला सका। लेकिन उसी वक्त बुद्ध की निर्मल बयार ने उस भयानक त्रासदी को लम्बे कालखंड के लिए शांति की धारा की और मोड़ दिया। दुनियां ने इतिहास में युद्धों का शोर और चीत्कार सुनी और आकाश के विस्तार में उनकों गुम होते देखा है। विश्व युद्ध की याद अभी भी लोगो के जहन में है ही। इन विश्व युद्धों में केवल मानवता की हार ही हुई थी। हिटलर का पागलपन लोगो को याद ही है   मानव मूल रूप से अपने अस्तित्व की रक्षा के प्रति सजग रहा है। लेकिन मानव ने अपने उद्विकास की यात्रा में एक साथ रहना भी सीखा लिया है।
मानव ने विभिन्न विचारों को सुनना भी सीख लिया है। जो मानव की बड़ी उपलब्धि है। लेकिन मानव में  समय समय पर विभिन्न विचारो के प्रति दुश्मनी का भाव आता रहता है। एक मानव की कमजोरी है की किसी एक बात से ही हम पुरे देश जाति और धर्म के दुश्मन बन सकते है। विगत में ऐसे उद्धरण हमारी यादों में है। इसलिए आदमी ने संवाद का आपस में बात करने का एक माध्यम बनाया। संवाद और किसी बात पर आपस में विरोध के बावजूद भी बात करना। इसी तरह विभिन्न संसथान मानव ने खड़े किये ताकि व्यक्तिगत रूप से निर्णय न लेकर संस्थान अपने नियम के अनुसार आगे बड़े। अभी एक लड़की ने अपने विचार व्यक्त किये चारों और ऐसा माहौल बन गया की कोई भी अपनी समझ में गलत सही है का निर्णय लेकर आम आदमी ही कुछ कर देने को तैयार है ।  देश में अफरातफरी का माहौल ऐसे ही बन जाता है। आज़ादी की इतनी गहन बहस की अचानक जरुरत आन पड़ी। अचानक हम केवल नेशनल और एंटी नेशनल में बंट गए लगते है। अभी जनरल रावत ने किसी सैनिक के द्वारा कोई शिकायत की बात पर सोशल मीडिया पर कुछ कहने पर रोक की बात कही वही गृह राज्य मंत्री की सैनिक का विडियो अपलोड कर देता है। उस लड़की को क्या क्या कहा दिया। अगर कोई भी कुछ कहता है तो उसके लिए हमने प्रावधान रखे है। उसके तहत कार्यवाही करें और बहस करें। 
इन बातों से देश कमजोर होता है। सबसे बड़ी बात है की हम लोग किसी भी घटना को कैसे समझ कर उसपर क्या प्रतिक्रिया दें, ये जरुरी बात है। हम अगर संवाद को ही ख़त्म कर देंगे तो क्या रहेगा शेष। अचरज का विषय है कि हमारी सोच और विवेक किसी एक विचार और घटना के आधार पर ही संचालित हो सकती है। हम सब जानते है , देश में वोट की राजनीति हमेशा ही रही है। बहुत कुछ हमेशा ही अच्छा हुआ हो ऐसा भी नहीं। लेकिन ये सब उद्विकास की प्रक्रिया है। ऐसा हमेशा ही होगा। लेकिन संवादहीनता किसी भी काल के लिए सबसे खतरनाक स्थिति हो सकती है। इससे ही देश को बचाना है। भावना भड़काना मानव की कमजोरी है  किसी एक बात को इतना ऊँचा ले जाया सकता है की आपस में संवाद हीनता की स्थिति पैदा हो जाये।
सारे मुद्दे कही छिप जाते है। हालाँकि हमारे देश में लोकतंत्र की ताकत है ही। हम सबका फर्ज है की संवाद को खत्म करने के किसी भी प्रयास का विरोध करें। अपनी बात रखे। उस लडकी को जिसने भी नुक्सान पहुचानें की बात कही उसका विरोध करना हम सबका फ़र्ज़ है। बात होने दो। केवल प्रचार और सोशल मीडिया और मीडिया के माध्यम से ऐसा माहौल न बन जाये जिससे आपस में ही संवादहीनता पैदा हो जाये। देश केवल सेना से ही सुरक्षित नहीं होता । वो सुरक्षित होता है संवाद और आपसदारी से । विभिन्न विचार को स्वीकार करके आगे जाने में। देश  द्रोह की परिभाषा सड़कों पर तय मत होने दो। वर्ना मौका परस्त ऐसी परिस्तिथियों से लाभ उठा सकते है। ऐसा एक बार नहीं बार बार हुआ है।
किसी भी देश की ताकत उसका संवाद ही है। देश इतना कमजोर नहीं है कि हम संवाद को ही ख़त्म करने को अमादा हो जाये। 
नफरत को दिमाग में हावी मत होने दो। नफरत आदमी को स्वयं ही नष्ट कर सकती है। आदमी ने इतिहास में कितनी बार इस घृणा और नफरत से मानवता का नुक्सान किया है । ऐसा करने से पहले हमेशा संवाद को रोकने का प्रयास किया गया है। 
बाकी देश मजबूत संवाद से बनता है। ये आदमी ने अपनी लम्बी यात्रा में सीखा है। 
रमेश मुमुक्षु