( सीख ले इन पेड़ों से)
अरावली पर्वत श्रृंखला जैसे कितने पहाड़ मिट गए जमीन में
सभ्यतायें धूल में मिट गई
अवतार और पैगम्बर भी आये और गए
दुनियां में महायुद्ध हुए और
इतिहास में गुम हो गए
बड़े बड़े खूंखार दरिंदे आये और
खो गए
महायोद्धा आये और जीत कर
चलते बने
धरती ने कितने ही रूप बदल लिए
आदमी के आने से पहले क्या क्या गया बदल
विशालकाय जीव भी धरती में समा गए
अभी वर्तमान दौर में अदनी सी जान लिए
हाथ में खुद की मौत का
रिमोट लिए आदमी एक दूसरे डरा रहा है
समझता है सारी कायनात उसकी मुट्ठी में आ जाये
सबको अपनी औकात मालूम है
लेकिन माने कौन
आदमी के विकास की बानगी देखें जिस पानी से जिंदा है
उसको ही दूषित कर रहा है
अपनी शांति भंग करने को शहर बना लिया और अब अपने शहर
से दूर जाकर उसको भी बर्बाद करने ही होड़ लगा है
इसको मार उसको मार
इसको दबा , उसको खोल, उसको पटक , उसको उठा
इसी तरह जीवन ये सब चलता है
सांस भीख की
जिंदगी उधार की
एक पल का भरोसा नही
ऐंठ आकाश पाताल की
कही तो रुक
उँगलीमाल भी रुक गया था
माना अभी तथागत नही है
लेकिन अनुभव तो है ही
सीख ले कुछ घांस और पेड़ों से
आज भी हरे भरे है।
मानव से पहले थे और आगे भी रहेंगे
ये तय है
इसलिए अपनी औकात में रह
पीर पगम्बरऔर देवी देवता भी
भी गए
मानव तो बुलबुला है
फूटना ही है
लेकिन इसने पूरी धरती आकाश
नीचे ऊपर तबाही मचा रखी है
होश में आजा
टूट गया विशाल बर्फ़ का पहाड़
अंटार्टिका से
भूकम्प के ऊपर रहती है
पूरी दुनियां
इसलिए अब भी जान लो
समझ लो
इन पेड़ो और जंगल से सीख
जो आज भी तमाम मानव की
गंदगी झेल कर
भी खड़े है
उसकी बेवकूफी और नादानी पर
हंसते है
मालूम होते हुए भी
वो प्रकृति का विनाश करता है
विकास के नाम पर
मौत का सामान जोड़ रहा है
पटाखे से परहेज करता है
और एटम बम बनाता है
धुंए से डरता है
युद्ध में झोंक देता है
दुनियां को
खुद बनाता है
बिगड़ता है
रोता है
रुलाता है
पछताता है
तुलसी को पूजेगा
जंगल को उजाड़ देगा
चींटी को दाना देगा
वन्य प्राणी को
खत्म करेगा
खुद की झोपड़ी
को बचाने पर मर मिटेगा
प्राणी के परिवेश को उजाड़ देगा
कब रुकेगा ये गड़बड़ झाला
एक हाथ में बंदूक और दूसरे हाथ में कबूतर लिए शांति दूत बना
घूमता है
दिन रात प्रलय का सामान लिए
रिमोट के साथ
चिप में बंद अपनी मौत का
प्रोग्राम थामे ।
रमेश मुमुक्षु