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Tuesday 18 February 2020

(सीख ले इन पेड़ों से ) 24 जुलाई 2019

( सीख ले इन पेड़ों से)
अरावली पर्वत श्रृंखला जैसे कितने पहाड़ मिट  गए जमीन में
सभ्यतायें धूल में मिट गई
अवतार और पैगम्बर भी आये और गए
दुनियां में महायुद्ध हुए और
इतिहास में गुम हो गए
बड़े बड़े खूंखार दरिंदे आये और
खो गए
महायोद्धा आये और जीत कर 
चलते बने
धरती ने कितने ही रूप बदल लिए
आदमी के आने से पहले क्या क्या गया बदल
विशालकाय जीव भी धरती में समा गए
अभी वर्तमान दौर में अदनी सी जान लिए 
हाथ में खुद की मौत का
रिमोट लिए आदमी एक दूसरे डरा रहा है
समझता है सारी कायनात उसकी मुट्ठी में आ जाये
सबको अपनी औकात मालूम है
लेकिन माने कौन
आदमी के विकास की बानगी देखें जिस पानी से जिंदा है
उसको ही दूषित कर रहा है
अपनी शांति भंग करने को शहर बना लिया और अब अपने शहर 
से दूर जाकर उसको भी बर्बाद करने ही होड़ लगा है
इसको मार उसको मार 
इसको दबा , उसको खोल, उसको पटक , उसको उठा
इसी तरह जीवन ये सब चलता है
सांस भीख की
जिंदगी उधार की
एक पल का भरोसा नही 
ऐंठ आकाश पाताल की 
कही तो रुक 
उँगलीमाल भी रुक गया था
माना अभी तथागत नही है
लेकिन अनुभव तो है ही
सीख ले कुछ घांस और पेड़ों से
आज भी हरे भरे है।
मानव से पहले थे और आगे भी रहेंगे 
ये तय है
इसलिए अपनी औकात में रह
पीर पगम्बरऔर देवी देवता भी 
भी गए
मानव तो बुलबुला है
फूटना ही है
लेकिन इसने पूरी धरती आकाश 
नीचे ऊपर तबाही मचा रखी है
होश में आजा
टूट गया विशाल बर्फ़ का पहाड़ 
अंटार्टिका से
भूकम्प के ऊपर  रहती है 
पूरी दुनियां
इसलिए अब भी जान लो 
समझ लो 
इन  पेड़ो और जंगल से सीख 
जो आज भी तमाम मानव की 
गंदगी झेल कर
भी खड़े है
उसकी बेवकूफी और नादानी पर
हंसते है
मालूम होते हुए भी 
वो प्रकृति का विनाश करता है
विकास के नाम पर
मौत का सामान जोड़ रहा है
पटाखे से परहेज करता है
और एटम बम बनाता है
धुंए से डरता है
युद्ध में झोंक देता है
दुनियां को
खुद बनाता है
बिगड़ता है
रोता है 
रुलाता है
पछताता है
तुलसी को पूजेगा
जंगल को उजाड़ देगा
चींटी को दाना देगा 
वन्य प्राणी को
खत्म करेगा
खुद की झोपड़ी 
को बचाने पर मर मिटेगा
प्राणी के परिवेश को उजाड़ देगा
कब रुकेगा ये गड़बड़ झाला 
एक हाथ में बंदूक और दूसरे हाथ में कबूतर लिए शांति दूत बना 
घूमता है
दिन रात प्रलय का सामान लिए 
रिमोट के साथ
चिप में बंद अपनी मौत का 
प्रोग्राम थामे ।
रमेश मुमुक्षु

Sunday 9 February 2020

बचपन के स्मृतिशेष

बचपन के स्मृतिशेष
बचपन की यादें आदमी के संग उसकी मौत तक साथ रहती है।।हटाने सेऔर बलबती हो उठती है।  दो तरह के आदमी होते है ,एक वो जो बचपन की यादोँ से दूर भागता है क्योंकि वर्तमान के रंग बिरंगे पैबंद जो लगा रखे है, लेकिन एक बात दीगर है कि शतप्रतिशत तो कोई भी कह नही सकता। लेकिन कुछ अपने तरीके से लिखने का मन कलम चलवा ही देता है। 70 के दशक के बच्चे  उस समय ग्रामीण परिवेश को कुछ कुछ जी रहें थे। हाफ पैंट जिसको  निक्कर बोलते थे , टल्ली से ढकी रहती थी। एक दो कपड़ो के बादशाह होते थे ,बच्चे जो पढ़ाई में बीच वाले होते थे। पढ़ाई का  अर्थ जो पास हो जाया करते थे। मोती बाग का जिक्र करके बहुत कुछ स्मृति के सागर से लहर बन कलम पर टकरा रहा है। मोती बाग प्राइमरी स्कूल और उसके बाहर बैठने वाले टोकरी में इमली, लाल इमली, टाटरी, आमपापड़, अभ्रक, चूरन की गोली, संतरें की गोली, गटारे , लालबेर, बर्फ का गोला बिकता था। बद्री, चुलबुली दो मोटे तौर पर टोकरी लिए बैठते थे। दोनों एक दूसरे को कुछ कुछ बोलते थे। बिज़नेस में प्रतिस्पर्धा ही थी वो छोटे स्तर की। आधी छुट्टी हुई बच्चे  एक पैसे से लेकर 5 पैसे लेकर निकल पड़ते थे ,इन हॉकर्स के पास। भैय्या मुझे..... दे दो। कुछ उस्तादी भी करते थे ,एक आध गोली गोल कर लेते थे , भीड़ का फायदा उठा, चोरी कम खेल अधिक रहता था। जिस दिन बर्फ का गोला खा लिया और घर पर खांसी हो गई तो शामत समझों, पिटाई ,जो एक रूटीन ही था। पिताजी के सामने बच्चे भटकते भी नही थे। एक तो लगभग सभी आखिरी औलाद थी, कितने तो पैदा होते ही , मर जाते थे। हालांकि आज भी कितनी बार पेरेंट्स और बच्चों की उम्र में अंतर हो ही जाता है। 
जो कुछ पिताजी को कहना होता तो माँ के पीछे लग जाओ। स्कूल से भी कभी कोई पर्ची नही आती थी। शायद 13  पैसे या कुछ अधिक फीस फीस होती थी। 
किताबे पुरानी ही चलती थी। कॉपियां राशन की दुकान से आती थी। उस समय लकड़ी की तख्ती का इस्तेमाल होता था। स्लेट और चौक से रफ़ काम हो जाता था। स्लेट भी पत्थर की और टिन की होती थी। पत्थर बच्चे बोलते थे वो एक तरह से टाइल्स की तरह होती थी। 
जितना लिखो और मिटा दो। कपड़ो की शामत होती थी। नाक का निकलना भी खूब होता था। नाक बही और हथेली और कोहनी के बीच से लपेट देते थे या सुड़क लेते थे, नाक का निकलना और सुड़क लेने का सिलसिला कितनी बात पिटाई तक जाता था। रुमाल कम ही होते थे। बच्चों के गंदे होने में कलम दावत भी शामिल थे। इसके अतिरिक्त होल्डर भी हाथ और कपड़े नीले करता था। बॉलपेन होते नही थे, जो थे, वो जेब के दुश्मन थे। चलते ठीक नही थे। बच्चे उसकी निब निकाल कर फूँक ही मरते रहते थे। एक तो बच्चे पढ़ते नही थे, दूसरी और ये सब समान बच्चों का समय खराब  भी करते थे। बच्चे भी खुश ही रहते थे। फाउंटेन पेन की निब ठीक नही चलती थी ,तो फर्श पर मार के तोड़ देते थे। कॉपी किताबो का अल्लाह मालिक होता था।......
शेष आगे....
रमेश मुमुक्षु