Search This Blog

Saturday 29 January 2022

💐निगाहें दूर घाटी तक चली जाती है💐

💐निगाहें दूर घाटी तक चली 
जाती है💐

कमरे का किनारा 
जो राह 
देखता है कोई 
आयेगा 
झुरमुटों  से होता रास्ता 
रुका हुआ सा लगता है 
अभी अभी हवा के झोंको ने पेड़ो को 
तड़पा  दिया है 
वहीँ लाल मुहँ वाली चिड़िया ठीक 
समय पर पेड़ के तने से निकली 
सूखी डाली पर कुछ गा रही हैं 
संभव है वह कुछ याद दिल रही हो 
निगाहें दूर घाटी तक चली 
जाती हैं 
सीढ़ीनुमा खेत नीचे चले जाते 
छोटी नदी तक 
नीचे नदी तक 
लेकिन पानी संगीत सुनाता रहता है 
बादल  आसमान 
में धीमे धीमे 
हिमालय की ओर जा रहें  है 
जैसे कोई संदेशा ले जा रहें  हैं
यकायक ढांप लिया 
सूरज को जिसमे कम ही सही
धुप की तपिस अचानक कहीं दुबक गई 
ठण्ड का अहसास होने लगा है 
सिहरन सी हो जाती है बदन में
तभी बादल ने फिर से सूरज को छोड़ दिया 
सारी घाटी धूप से रोशन हो गई 
दूर पहाड़ी रास्तों पर बोझा
उठाये स्त्रियाँ 
जीवन का सच्चा चित्र
 उपस्थित  करती हैं 
जंगलों में 
लकड़ियाँ बीनती
 स्त्रियों के गले से 
झरते गीत प्रकृति का सच्चा राग ही तो है 
दूर घाटी  में स्थित गाँव से 
कुत्तों के भोंकने के आवाज़ किसी अजनबी 
के आने को संकेत होती है 
शाम के  
के धुंधलके
 में जानवरों
 को हांकते बालक 
सूरज की पीली
 धूंप और  उड़ती 
 धूल में कितने 
 खूबसूरती लगते है 
दूर पर्वतों के 
ढालों पर कोई 
बूढा कमर
 में छतरी लटकाए  
हाथ में डंडा 
लिए बकरियों 
को चराते
 आज भी दीख
 पड़ता है
मानव के सबसे
 पुरातन उद्योग को
जारी रखते हुए 
पहाड़ो में स्थित 
मंदिरों में 
ढोल और दुदुम्भी की 
आवाज़ संगीत की 
पराकाष्टा ही तो है 
अचानक पर्वत
 की चोटियों
 पर पहुँचते ही 
सामने कोई झरना 
दीख पड़ता है 
जो सच स्वप्न सा 
लगता है. 
फूलो पर मंडराती 
तितलियाँ , मधुमखियाँ
 सुमधुर संगीत छेड
देती है 
दूर तक फैले जंगलों की 
चादर में 
छितराए रंग 
आँखों को 
स्थिर कर देते है
ठंडी हवाएं 
धीमे धीमे 
बहने लगती है 
तन को छु
 निकल जाती है 
दूर विस्तार की 
यात्रा पर 
दोपहर होते ही 
झींगुर अपनी 
तान छेड
देता है 
अभी अभी 
पक्षियों का झुण्ड कोलाहल 
करता जंगल में इधर उधर उड़ता 
दूर निकल गया है 
चांदनी रात में 
सब कुछ चांदनी  से भर 
जाता है 
उस वक्त चाँद पर 
कही कोई 
भुला भटका 
बादल का 
टुकड़ा उसकी 
खूबसूरती को बडा
देता है 
फिर निगाहे कमरे के किनारे 
में अटक जाती है 
जहाँ झुरमुटों के बीच से 
सुना रास्ता गुजरता है 
जो आज कुछ
ज्यादा  सुना लग
 रहा है….
रमेश कुमार मुमुक्षु 
1999  धरमघर, हिमदर्शन कुटीर , पिथौरागढ़, उत्तर प्रदेश (उत्तराखंड)

Wednesday 26 January 2022

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 गणतंत्र दिवस के दिन आत्मचिंतन

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
गणतंत्र दिवस के दिन आत्मचिंतन
26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ और हम सब भारत के नागरिक घोषित हुए । एक आदमी भले  भूमिहीन मजदूर हो उसके पास किसी भी नेता , जो भले बाहुबली हो, चुनाव में हराने की ताकत है।  
*लेकिन मैं भारत का नागरिक हूँ , मैँ किसी को वोट दूँ, ये मेरा अधिकार है। मेरी मर्जी , लेकिन  क्या मैं वास्तव में देश, संविधान, धर्म, जाति, धन की ताकत, शराब , घोड़ा गाड़ी, प्रलोभन  की परवाह न करने अपने विवेक  और पूरी समझ से मत का प्रयोग करता हूँ?* 
 अगर ऐसा है कि राजनैतिक दलों को इतना बेतहासा खर्च क्यों करना पड़ता है? 
 चुनाव खर्च की बानगी देखें। लोक सभा का पार्टी का खर्च ,जो चुनाव आयोग की वेब साइट पर दिया गया है। मैं केवल कांग्रेस और बीजेपी का ही खर्च दे रहा हूँ।
2009            
कांग्रेस  : 3 अरब 69 करोड़ 
बीजेपी : 2 अरब 80 करोड़
2014
कांग्रेस : 5 अरब 14 करोड़
बीजेपी : 7 अरब 14 करोड़
2019  
कांग्रेस : 8 अरब 20 करोड़ 
बीजेपी :  12 अरब 64 करोड़
 ये वो खर्च है, जो पार्टी ने चुनाव आयोग में  लिखित दिया है। 
*नोट: रोड शो, विभिन्न रैली , पैसा, शराब, टिकट खरीदने के लेन देन,  का खर्च चुनाव खर्च नही माने जाते।*
आज तक भी सभी राजनैतिक दलों ने अपने खर्च का ब्यौरे  जमा ही नही किये है।
*चुनाव आयोग चुनाव करवाने  का सरकारी खर्च बहुत बड़े स्तर पर होता है।*
73 साल बाद भी वोटर को लैपटॉप, मोबाइल, साईकल, स्कूटी, पीछे के दरवाजे से भी प्रलोभन दिया जाता है। मतदान से पूर्व काल रात्रि के खेल हम सब जानते है।
ये हमारा रिपोर्ट कार्ड है। 
आज 26 जनवरी 2022 के दिन हम वोटर अपने अधिकार , जो संविधान ने आज़ादी मिलते ही हम भारत के नागरिक होने के नाते प्रदान,  उसका सदुयोग करना हमारे शुद्ध रूप से अधिकार में है।
" *डॉ अंबेडकर की चेतावनी* 
*मैं* संविधान की अच्छाईयां गिनाने नहीं जाऊंगा क्योंकि मेरा मानना है कि 'संविधान कितना भी अच्छा क्यों ना हो वह अंतत: खराब सिद्ध होगा, यदि उसे अमल / इस्तेमाल में लाने वाले लोग खराब होंगे। वहीं संविधान कितना भी खराब क्यों ना हो, वह अंतत: अच्छा सिद्ध होगा यदि उसे अमल / इस्तेमाल में लाने वाले लोग अच्छे *होंगे*"
लेकिन हम सब स्वतंत्र एवं गणतंत्र भारत के नागरिक है, लंबे संघर्ष के बाद हमने ये सब हासिल किया और आगे हम देश को और उसके समस्त प्राकृतिक संसाधनों को अक्षुण्ण रखते हुए , देश को आगे ले जाएंगे। 
सभी को गणतंत्र दिवस की बधाई।
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
👏 *( कुछ लोग मेरे लंबा लिखने से नाराज़ हो जाते है,लेकिन वो भी मेरे प्रिय है)*

Thursday 13 January 2022

लोहड़ी दो भइ लोहड़ी दो

लोहड़ी दो भइ लोहड़ी दो
70 के दशक में हम लोग पांचवी से आठ में पढ़ने वाले और कुछ छोटे भी करीब 8 से 10 बच्चें घर घर जाते थे , गाना गाते थे:-
सुंदर मुंदरिये हो, तेरा कौन बेचारा हो
दुल्ला भट्टी वाला हो, दुल्ले ती विआई हो,
शेर शकर पाई हो, कुड़ी दे जेबे पाई हो,
कुड़ी कौन समेटे हो, चाचा गाली देसे हो
चाचे चुरी कुटी हो, जिम्मीदारा लूटी हो,
जिम्मीदार सुधाये हो, कुड़ी डा लाल दुपटा हो, 
कुड़ी डा सालू पाटा हो, सालू कौन समेटे हो,
आखो मुंडियों ताना ‘ताना’, बाग़ तमाशे जाना ‘ताना’,
लोहड़ी दो लोहड़ी
उस वक्त कोई पांच पैसे , दो पैसे दे दिया करते थे।बच्चें मिशन की तरह सब के घर जाते थे, क्या जोश होता था, उमंग से भरे घूमते थे ।  पैसा मिलने पर  रेवड़ी, ग़जक, गुड़ की पट्टी और मूंगफली खरीद कर  लेकर आनंद लेते थे। ये सब खरीद कर बच्चे चुंगा भी लेते थे। चुंगा सबसे आकर्षित होता था।
कोई शर्म नही, जिझक नही। जब कोई कुछ नही देता ,तो बच्चें खीझ में बोलकर कर रफू चक्कर हो जाते थे हुक्का जी हुक्का, ये घर बुख्खा
कोई झगड़ा नही, बस ये वर्षो चला।  उस वक्त बड़े स्तर पर पंजाब के लोग  ही आग जलाकर लोहड़ी मानते थे, लेकिन आनंद सब लिया करते थे।  बचपन के दिन यकायक याद आ गए। दोस्त अब नाती पोते वाले हो चले है। शायद उनको याद है कि नही, कुछ इन खूबसूरत यादों को छिपाने भी चाहते ,लेकिन ये पत्थर की लकीर पर अंकित यादें है, इन पर समय की परत चढ़ सकती है, लेकिन मिट नही सकती। मुझे विश्वास है,ये पढ़ कर  वो मंजर याद आ ही जायेगा। बेतरतीब स्वेटर, जूतों में झांकते झरोखे, रंग बिरंगी चप्पल , कई बार नंगे पैर सड़क पर ऐसे चलते थे कि बादशाह हो , मित्रों एक क्षण के किये बचपन के निकट जाने का आनंद ये चंद शब्द दे ही देंगे, ये तय है।
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
13.1.2022

Saturday 8 January 2022

कोरोना और मानव का दम्भ

कोरोना और मानव का दम्भ
कर लो दुनियां मुट्ठी में, सारी दुनियां मेरे कदमों पर झुकती है, मैं चाहूं तो दुनियां को झुका सकता हूँ , जैसी बातें और भड़के मानव का स्वभाव है। 
पत्थर के हथियार से  पृथ्वी को नष्ट करने वाले शस्त्र मानव ने मानव को मारने के लिए बना लिए  है।
पृथ्वी को अपने आधीन करने की जिद उसको और  भी दम्भी बना देती है। लेकिन मानव में पैदा हुए ,कुछ लोग जो प्रकृति के इतना करीब खुद को पाते थे, वो उसकी लय और स्पंदन को महसूस कर लिया करते थे। उन्होंने मानव को चेताया कि तू सब कुछ कर सकता है ,लेकिन प्रकृति को जीत नही सकता। जीतने के बाद भी तू केवल हारेगा ,ये तय है। 
आज मानव के पास जानकारी, ताकत, तकनीक सभी है, लेकिन अदृश्य सूक्ष्म या अतिसूक्ष्म जीव से वो सहमा ही नही, बल्कि भयभीत है। कोविड नाम दिया है, उसका, पिछले वर्ष तो पूरा विश्व बिल्कुल एक तरह से दुबक ही गया था। उस वक्त मानव को यकायक ज्ञान हुआ कि उसने सुंदर और स्वच्छ प्रकृति को अपने विकास के दंश से कितना दूषित कर दिया है।
जब 21 दिन में विषाक्त हवा साफ हो गई थी, आकाश साहस नीला हो चला था। पेड़ों के पत्ते साफ और अपने वास्तविक रंग में दिखने लगे थे।
उस वक्त मानव की सारी विकास की यात्रा जैसे ठहर ही गई,लगती थी। कोविड ने मानव को दिखा दिया कि डर और अनुशासन क्या होता है।  कोविड को केवल अनुशासन और खास व्यवहार से जीता जा सकता है। लेकिन मानव की जिद और हठधर्मिता उसको हारा हुआ स्वीकार  नही करती है। कितने लोग दुनियां को  छोड कर चले गए है। लेकिन उसके बावजूद मानव सब कर रहा है, जिसके कारण उसको जान से भी हाथ धोना पड़ रहा है। कोविड ही नही ,बल्कि प्रदूषण से भी वो जूझ रहा है। केवल इसलिए की  मानव प्रकृति की लय को अपने अनुसार मोड़ना  चाहता है।  लेकिन ये केवल उसका भ्रम है।  सूक्ष्म जीव ने फिर उसको स्मरण दिला दिया कि  प्रकृति से वो बड़ा नही, उसका एक हिस्सा मात्र है।  
कोविड को जीतना बहुत आसान है, मास्क, दूरी और संक्रमण से बचाव। ये आदत में डालना ही होगा। कोविड पुनः याद करवा रहा है कि विकास की यात्रा हो, लेकिन नीला आकाश, शुद्ध हवा, शीशे की तरह पारदर्शी बहता जल, कचरा रहित विश्व, शांति और आनंद के साथ सहअस्तित्व को अपने भीतर जीवित रखने का अहसास , मानव को चिरायु बना सकता है। हालांकि मानव ने खुद को तबाह करने के सारे इंतजाम कर लिए है।
इसलिए कोविड निर्देश और  व्यवहार को आदत बना ले और उपरोक्त बातों को अपने जीवन में उतार लें अगर प्रकृति की आगोश में सदा रहना है तो.....
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
8.1.2021