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Sunday 12 November 2017

जनता का पैसा सरकार संचालित करेगी कि जनता : एक विचार

जनता का पैसा सरकार संचालित करेगी कि जनता : एक विचार ।
एक बहस लगातार चल रही है कि डिजिटल व्यवस्था से सरकार के खजाने में अधिक पैसा आएगा जिससे देश में विकास कार्यों में तेजी आएगी।
ऊपर से देखने में ये बात ठोस और  सही लगती है। लेकिन एक बात को भी ध्यान में रखना होगा कि ये सब विकास के विभिन्न काम उसी सिस्टम के द्वारा ही संचालित किए जाएंगे जो लगभग पूरे देश में लचर हो चुका है। करप्शन से लिप्त सारा सिस्टम जिसके तहत छोटी छोटी योजना और परियोजना में 40 से 60 प्रतिशत कमीशन खोरी देश का कड़वा सत्य है। टेंडर की कहानी  जगजाहिर है। मेरा दावा है कि   इस लचर व्यवस्था में कोई भी अंतर दीख नही पड़ता। करप्शन के रूप बदल रहे है। पटवारी , क्लर्क, राजस्व, पुलिस, निगम समेत उच्च अधिकारी और नेता अथवा उनके गुर्गे आदि सभी की कहानी लोग स्वयं सुनाते रहते है। दुनिया में अधिकांश देश अभी भी नकद व्यवस्था के तहत संचालित होते है। जॉन रस्किन ने कहा था कि सरकार जनता के कर से मौज लेती है। पिछले लोक सभा चुनाव में बेसुमार पैसा खर्च हुआ। अभी भी इसपर कोई रोक टोक नही। सरकारी बैंकों के एन पी ए की खबरें आती ही रहती है। सरकार के करीबी देश हित में परियोजना बनाते है और मोटा पैसा कमा लेते है। छोटे छोटे प्रोजेक्ट में भी कमीशन खोरी आम बात है। अभी ध्यान से देखों तो लगभग सभी चीजों के रेट बढ़ने में ही है। दिल्ली की मेट्रो में अधिक से अधिक किराया 60 रुपये हो गया है। आने जाने के लिए 120 रुपये पहले ये किराया 60 रुपये से कम लगता था।
ऐसा कितने मदों में है। सरकार ध्यान बांटने में जी जान से जुटी है। करप्शन दो तरह का होता है , एक बेतरतीव और दूसरा पूरी तरह अनुशासित । जब सिस्टम में पकड़ कम होती है तो करप्शन भी फोकस्ड नही रहता। सरकार में कोई भी करप्शन कर लेता है। दूसरा करप्शन फोकस्ड होता है, जिसमे सरकार उसको पूरी तरह से नियंत्रित करके करती है। इसको हम ऐसे समझ सकते है। सबसे पहले फोकस्ड सरकार और व्यवस्था जनता की सोच और उसके विवेक को नियंत्रित कर लेती है। केवल एक उदहारण से समझा जा सकता है। सेना के लिए वन रैंक वन पेंशन का सरकार ने पूरा क्रेडिट ले लिया। देश सेना और सैनिक की बातों में मगन है। लेकिन जंतर मंतर में लंबे समय से इस मुद्दे पर सेना के रिटायर्ड उच्च अधिकारी और सैनिक धरने पर बैठे है। उनकी चर्चा ही नही है। एक फार्मूला चल रहा है , कुछ भी कर लो। सैनिक बॉर्डर पर खड़ा है ,कह कर किसी को चुप कर दो। ऐसा लगता है , सेना के प्रति हमारा प्रेम उमड़ गया। जबकि सच ये है कि आजकल आर्मी अधिकारियों के बच्चे तक सेना में भर्ती नही होना चाहते। ऐसा सरकारें करती आई है। सबसे पहले लोगों की सोच पर पूरा नियंत्रण करके उनको रिमोट की तरह संचालित करना।
जब ऐसा होता है तो सरकार अपने पैसों का उपयोग अपने फैलाव और अपने अस्तित्व के लिए करती है। इसलिए सरकार सोचती है कि देश का सारा खजाना उसके नियंत्रण में ही रहे ताकि सब लोग उसके ही द्वारा संचालित रहे। लेकिन सिद्धान्त रूप से ये सही होता है। जब सिस्टम पूरी तरह सरकार के नही जानता के नियंत्रण में रहता है। एक बात नही भूलनी चाहिए कि प्रजातंत्र जब तक ससक्त और इंक्लूसिव नही हो सकता , जब तक सरकार के नियंत्रण में रहेगा। कोई भी देश और प्रजातांत्रिक राष्ट्र जनता द्वारा चुना जाता है । जनता के लिए । इसका अर्थ हुआ सरकार राज करने के लिए नही है। वो जनता की व्यवस्था के लिए है। लेकिन क्या ये सत्य है?  कदापि नही लेकिन आम आदमी चुप चाप ये देखता और सेहता । एक पुरातन सीख है पाप करने से पाप सहना अधिक घातक है। अब इस बात से हम अंदाजा लगा सकते है। किसी भी देश का सिस्टम जब ईमानदार और जिम्मेदार हो जाता है तो सबसे नीचे की व्यवस्था में वो स्वयं दिखने लगता है। लिटमस टेस्ट में वो साफ बच जाता है। लेकिन ये पूरा देश जानता है क्योंकि 'ले देकर सुल्टा ले ', ये देश का नंगा सत्य है। आज भी पूरी तरह नामक के दरोगा चुपड़ी रोटी खाते है। ये सब हम समाज में आस पास देख सकते है।
अब जब सरकार के पास सब कुछ आ जाये और सिस्टम में आधारभूत परिवर्तन न हो और दलाल पूरी तरह चुस्त दुरस्त रहे , तो परिणाम क्या होगा ? इस पर अधिक बोलना समय की बर्बादी है।
इसलिए सो बातों की एक बात सरकार कोई भी हो अगर जनता सरकार पर नियंत्रण रखने की कोशिश नही करेगी और पार्टी पॉलिटिक्स में व्यस्त रहेगी। बहस में एक दूसरे का सिर फोड़ेगी तो मान लो सरकार और नेता के प्रचार का खर्च जनता बिना मतलब कम करेगी। जब हम किसी पर आस्था के स्तर तक विश्वास कर लेते है , तो उसकी गलती पर भी चुप रहते है और चुप रहने को बाध्य होते है। इसलिए सरकार आस्था नही व्यवस्था है और व्यवस्था का नियंत्रण जनता के हाथ में होना ही वास्तविक प्रजातंत्र होता है। इन सब के बिना सरकार कैसे काम करेगी , ये जगजाहिर है। इसलिए छोटी इकाई से नियंत्रण करना ही एक मात्र उपाय है। ग्राम पंचायत की सभी मीटिंग में जाना और जानकारी प्राप्त करने से शुरुवात हो सकती है। निगम आदि की सबसे छोटी इकाई की जानकारी सूचना अधिकार आदि से प्राप्त कर सरकार और व्यवस्था पर जनता की निगरानी बढ़ सकती है। ये एक मात्र विकल्प है। एक ब्रह्म सत्य है , जब कोई सरकार और नेता कहे कि जनता को सिस्टम से उलझने की जरूरत नही होगी। मैं और हमारी सरकार स्वयं सब कुछ देख लेंगे , तो मान लो जनता पर शिकंजा कसने की तैयारी है। अगर नेता और व्यवस्था कहे कि जनता सवाल पूछे और सिस्टम को नियंत्रण में रखे तो समझ लीजिए सुशासन और इंक्लूसिव प्रजातंत्र की शुरुवात हो गई।
इन बातों पर ठोस कदम जनता को उठाने ही होंगे। नही तो कहीं पे निगाहे कही पे निशाना व्यवस्था का आधार होगा और सरकार जनता को अपनी मुट्ठी में रखने की कोशिश करेगी। चुनाव जनता को करना करना है।
रमेश मुमुक्षु

Thursday 9 November 2017

स्थापना दिवस और एच आई वी एड्स

(स्थापना दिवस और एच आई वी एड्स )
9 नवंबर 2000 आज ही के दिन मैंने डिग्री कॉलेज बेरीनाग में HIV/एड्स के बारे में लेक्चर दिया था। उस समय इस बीमारी के बारे में लोगों की जानकारी कम थी और लोग बात तक करने से कतराते थे। आज 2017 में भी हालात बहुत नही बदले।अभी हाल फिलहाल में कुछ बच्चों की सूचना मुझे मिली जिनको  को अलग रखा गया है। ये केवल उत्तराखंड की नही बल्कि दिल्ली में भी ऐसा देखने और सुनने को मिल जाता है।
दिल्ली में एक पीढ़ित को आपरेशन करवाना था। बड़ा ताज्जुब हुआ , लगभग सभी अस्पताल वालों ने कुछ बहाना बनाकर आपरेशन से इनकार किया।
लेकिन उत्तराखंड में अभी लोग कतराते जरूर है। लेकिन नुकसान नही पहुंचाते हैं। असल में इसका कारण जानकारी न होना भी है। असल में जानकारी और मरीज़ की सेवा संबंधी सावधानी,  जी किसी भी बीमारी के साथ होता है , को ध्यान में रखकर आगे आना चाहिए।
लेकिन मेरी अपील है कि अगर कोई बीमार और प्रभावित हो तो उसके साथ मिलजुल कर रहे। उसके इलाज और देखभाल से पीछे न हटे।
पिछले तीन वर्षों के दौरान सभी केअर होम अब काम नही कर रहे है। पहले कोई बीमार मिलता था , तो उसको मैं कहीं कहीं भेज दिया करता था।। अब दिक्कत हो चली है। लगता है स्वयं ही कोई केअर होम खोलना पड़ सकता है।
बाकी बहुत कुछ वैसा का वैसा ही है, ये लोग जानते ही है। जब कोई अनाथ बच्चे वो भी hiv प्रभावित हो की सूचना मिल जाये , तो कुछ ठोस करना ही होगा। 17 साल हो गए राज्य को बने इस क्षेत्र में प्रगति नाम मात्र ही है। इसके अतिरिक्त अन्य बीमारी की भी यही स्थिति है। अभी कैंसर के मरीज और शुगर की संख्या बढ़ने लगी है।
सब लोग इस बारे में सजग रहे और जानकारी प्राप्त  कर पीढ़ित को प्रेम प्रदान करें ।
रमेश मुमुक्षु
9810610400