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Tuesday 7 August 2018

कचरा हटाओ नही कचरा पैदा न हो मिशन

(कचरा हटाओ नही कचरा पैदा न हो मिशन)
1. मित्रों , माधुरी वार्ष्णेय जी, द्वारका फोरम की पूर्व अध्यक्ष,  ने कितने वर्षों पहले से ही घर से कचरे का अलगाव,  प्रबंधन  अथवा निस्तारण की  वर्कशॉप आरम्भ की थी। ये कोई नई बात नही है। बहुत सी जगह ऐसे सफल प्रयोग हुए है।
एक पॉलिथीन या किसी कंटनेर में कचरे को  एक साथ मिलाकर रखने की जगह अलग अलग कचरा रखना है। पॉलिथीन थैली में कचरा रखने से जानवर, पक्षी मर तक जाते है। इसके अतिरिक्त विषाणु का कारखाना बन जाता है , थैली में रखा कचरा ।
इसको आदत में लाना ही होगा।
2. कचरे से खाद बना सकते है। अपने गमले और जहां पर भी पेड़ दिखे उसकी जड़ों में डाल सकते है।
3. सब्जी ,चाय की पत्ती आदि को भी अगर पानी में धो ले और पानी को गमले में और धुली चाय और सब्जी को खाद तैयार करने में इस्तेमाल कर ले।
5. जो भी फल खाएं उनके बीज एकत्रित कर ले। छिलके खाद के लिए काम आजाते है। बची हुई सब्जी, उसके पत्ते आदि बेशकीमती है। इसका सही उपयोग पर्यावरण के लिए अच्छा है, वरना ये बीमारियों की जड़ है।
5. इसके अतिरिक्त दूसरे कचरे का निस्तारण आसान हो जाता है। जैसे दूध की थैली को साफ रखकर सुखा लें। फिर उसको कितने ही तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है।
6. नेपकिन भी हमेशा अलग ही रखे ताकि बाहर यूं ही फेंकने पर जानवर इसको सड़क और फ्लैट्स के आस पास फैला देते है। कांच के टुकड़े भी अलग ही रखे।
7. मलबा कहाँ पर डालना है, इसके बारे में सरकार उन साइट की डिटेल सबको बताए क्योंकि यहां वहां मलबा पड़ा मिलता है। इसको सकती से रोकना है।
8. पीपल ,बरगद के पेड़ के नीचे टूटी मूर्ति, फूल आदि का अंबार न फैलाये, ये कचरा ही होता है। पूजा के लिए एक पंखुड़ी ही काफी है। लोग पूरी टोकरी भर के फूल मंदिर में चढ़ाते है। उनफूलो से भी खाद बन सकती है।
9. छोटे मोटे फंक्शन में कसम उठा लो कि प्लास्टिक, थर्मोकोल जैसी प्लेट आदि का इस्तेमाल नही करेंगे। इसके स्थान पर पत्तल आदि का प्रयोग शुरू करें।
10.किसी भी पार्टी में उतना ही खाना प्लेट में डालों, जितना खा सको। पार्टी ने इस तरह की सूचना लगी होनी चाहिए। प्लेट साफ हो और उसमें कुछ भी बचा नही होना चाहिए।
11. आजकल कुछ लोग कुत्तों के प्रेमी है, वो आसपास घूमते कुत्तों को यहां वहां खाना दे देते है। उनसे भी आग्रह है ,वो एक स्थान विशेष तय कर ले ताकि सोसाइटी और पॉकेट के अंदर जगह जगह कचरा न रह जाये।
12. जो भी कचरे के डिब्बे रखे गए है, उनके रंग देखकर ही कूड़ा डालने की आदत जरूरी है, जो अभी नही पनप सकी है।
ये छोटी छोटी बातें है।
नोट: SDMC समेत सभी सफाई से जुड़ी एजेंसी को" परमार्थी एक प्रयत्न " ने नक्शा दिखा दिया। उनके सारे बहाने खुल गए । जब परमार्थी वास्तविक सफाई कर सकती है तो SDMC के पास क्या ऐसी कुब्बत नही की सफाई कर सके?  मेरा दावा है, ऐसी सफाई द्वारका में कभी नही हुई। आगे ये कितना कर सकेंगे ,लेकिन श्रीमती कमलजीत सहरावत जी परमार्थी ने एक स्टैण्डर्ड तय कर ही दिया कि सफाई कम से कम इतनी तो हो ही सकती है। सारे बहाने, स्टाफ कम है, फलाना ढिमका सभी धरें रहे गए।
विनम्र प्रार्थना: या तो SDMC परमार्थी जैसी सफाई खुद ही शुरू करें। नही तो उनके साथ मिलकर ये काम शुरू करें।
मित्रों बिना किसी विवाद और पूर्वग्रह के इस विषय पर सारगर्भित चर्चा तो हो ही सकती है।
ये ही एकमात्र सस्ता और टिकाऊ मार्ग है, कूड़े के पहाड़ों से बचने का।
(रमेश मुमुक्षु)
अध्यक्ष , हिमाल
9810610400
ramumukshu@gmail. com

Saturday 4 August 2018

पेड़ और विकास

(पेड़ और विकास )
अभी सुबह मोर  और पक्षियों के कलरव ने  नींद खोल दी। बाहर देखा तो गुडगांव फेज 3 के पीछे अरावली के अवशेष और दूर जहां तक नज़रें जाती हूं , जंगल का वितान तना है। सच शहरों की बालकनी में खड़े होकर ऐसा दृश्य देखते ही बनता है। जंगल प्रकृति के सबसे खूबसूरत उपहार है। व्यक्तिगत रूप से मुझे मुगल गार्डन भी पसंद नही आता। शुद्ध रूप से उगे पेड़ और उन के साथ इधर उधर पनप गई ,झाड़ियां जंगल को जंगल बना देती है। उसने यहाँ वहाँ उड़ते खगचर ,झींगुर समेत कीटपतंग उसके श्रृंगार ही है। कोई भी मौसम हो जंगल अपना रूप बदलता है। कभी पतझड़ तो कभी बरसात में गाड़े हरे रंग की चादर ओढ़ लेता है ,जंगल। जंगल के भीतर सांप की तरह पगडंडी को दूर से देखने का अहसास ही कुछ और है। सड़क भी अच्छी लगती है , लेकिन सड़क को निहारा नही जा सकता। सड़क पुरातन नही ,पगडंडी पुरातन है, जो मानव के बहुत भीतर तक अवचेतन मन और जीन में मानव की यात्रा के असंख्य दस्तावेज के रूप में समाविष्ट है।
विभिन्न पेड़ जंगल की एकता और सुखी जीवन का दर्शन है। पेड़ वास्तव में मानव के अनुरूप नही बने है। मानव को केवल उससे गिरा ही खा सकता है। ये बने है ,पक्षी ,कीटपतंग और जानवरों के लिए जो उसकी गोद में बैठकर अपनी भूख और  थकान दूर करते है।
ये पेड़ कितने ही जीवों के घर और आश्रयस्थल होते है। शायद हम इसकी चिंता और सुध नही लेते। पेड़ बढ़ने में समय लगता है। पेड़ अपने पूरे जीवन में उपयोगी रहता है। पेड़ जब ठूंठ का रूप लेता है ,उसमे भी जीव रहते है। जंगल का अपना एक संगीत रहता है। हवा चलती है , तो नाद होता है। कितनी ही वर्षा हो पेड़ अपने शरीर से उसको फैला देता है। पेड़ जमीन को पानी देते है। नदी को पैदा करता है। वायुमंडल को वायु ,जो जीवन के लिए उपयोगी है। धूप में चलते एक छोटा सा ठूंठ भी राहत दे जाता है। उच्च हिमालय के जंगल दिन में भी अंधेरा ओढ़े रहते है क्योंकि उनमें जीव पनपते है। जंगल के रंग जैसा कोई चित्र नही हो सकता। नाना रंग से सुज्जजित रन बिरंगी चादर जैसा सूंदर दृश्य क्या बना सकता है ,कोई मानव? मानव की सबसे खूबसूरत बिल्डिंग भी तभी सूंदर लगती है ,जब उसके चारों ओर पेड़ होते है। बिना पेड़ और हरियाली को उजाड़ कहा जाता है। लेकिन प्रकृति के स्वयं के वृक्षविहीन स्थल भी खूबसूरत होते है। दुनिया का कोल्ड डेजर्ट स्पीति का क्षेत्र खूबसूरत है। क्योंकि उसमें बर्फ से प्रकृति चित्रकारी करती है।
रेगिस्थान के टीले सागर की लहरों से लगते है। एक वक्त था ,मानव ने सभी जगह जीना सीखा और प्रकृति के साथ एकात्म और समरसता रखते हुए।
लेकिन अभी विकास का मॉडल केवल विकास ही देखता है। पेड़ उसके लिए DPR के किसी चेप्टर का हिस्सा है। कलम चला दो वो भी अब कंप्यूटर के कीपैड पर उंगली दौड़ेंगी कि 100 पेड़ काटेंगे 1000 लगा देंगे। मानव की जमीन का एक इंच भी कट जाए तो मार काट तक हो जाती है। लेकिन पेड़ और उसमें रह रहे ,जीव की कौन सुने। लेकिन मानव कबूतर को दाना देकर और चींटियों को आटा डाल अपना धर्म पूरा कर लेता है। क्या किसी विकास के मॉडल में इसकी चिंता होती है कि उपसर रहने वाले जीव कहाँ जाएंगे? उनका क्या होगा? अभी तो इसपर चर्चा भी करना बेमानी हो गया है। एक तरफा विकास और विचार संपन्नता लाता है ,लेकिन एकाकी और निपट अकेला बना देता है। विकास का हरेक मॉडल आदमी को एकाकी बना रहा है। प्रकृति में एकाकी कुछ भी नही , समग्रता ही है। भारत का पुरातन ज्ञान भी ये ही कहता है। लेकिन विकास की ज़िद्द और हठधर्मिता मानव को क्रूर बना देती है। जो आज हम झेल रहे है।
इसलिए विकास के चाहने वालों कम से कम पेड़ काटकर कर विकास करों।
जंगल की आवाज़ हमेशा जिंदा रहे, इसको नही भूलना। ये वो जान सकते है ,जिन्होंने जंगल के बीच उसको महसूस किया होगा।
जल,जंगल ,जमीन और वायु सत्य और जीवन का आधार है। इसको संरक्षित करने का मॉडल ही सतत है और चिरस्थाई है।
अभी भी बाहर जंगल अपनी और बुलाता है। उसमें थोड़ा चल कर किसी चट्टान पर बैठना आकर्षित करता है। जंगल में बहती नदी का नाद संगीत की पराकाष्ठा ही है।
सोचना तो होगा ही ,अगर ये सब न हों, तो क्या करेगा मानव का विकास और उसका एकाकी जीवन।
इसलिए एक नारा और बात हमेशा याद रखनी है "
जंगल के है क्या उपकार
मिट्टी पानी और बयार
मिट्टी पानी और बयार
जिंदा रहने के आधार।
(रमेश मुमुक्षु)
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
ramumukshu@gmail.com