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Thursday 23 November 2023

ऐसा ही ठहरा मेरा कमरा

🛖 ऐसा ही ठहरा मेरा कमरा
👉👉मेरा  कमरा अस्त व्यस्त
रहता है,
ठीक मेरे जैसे
🪑 कुर्सी पर कपड़े लिपटे रहते है, बेतरतीव से 
खूंटी पर टंगे रहते है
झुरमुट बनाए हुए 
कपड़े 
जो कह रहे है कि कभी 
हिला भी दिया कर
बिस्तर पर कंबल का 
अलमस्त पड़े रहना,
 बिस्तर के किनारे पर 
कुछ कुछ पड़ा देख वास्तव में
  किसी को
भी अच्छा न लगे
मेरे छोटे कमरे में बिना 
टकराए 
चलना कहां होता है, 
संभव
कभी कभी महीनों में 
एक बार बदलती है, 
मेरे कमरे की सूरत 
ठीक 
मेरे जैसे
लेकिन इस बेतरतीब 
अस्त व्यस्त कमरे में 
🕊️ सकून, 😘 प्रेम और अपनेपन 
 का 
साम्राज्य है, 
कमरे के एक किनारे में रसोई है
जहां पर
रामकृष्ण परमहंस  
के अहसास जैसे 
 प्रेमल सरल
 पकवान बनते है
उनकी तरह खाना परोसना
कमरे में कहीं भी बैठने पर
सीधी सादी बिना किसी 
टेबल के
प्लेट आनंद  😊 भर ही देती है
इसी उटपटांग कमरे में  संगीत 🎶 की सुरलहरी का आनंद लेकर
मेरी  🤞 उंगली पेपर पर 🖋️ पेन, रंग और 📱 मोबाइल से क्रेटिविटी को सराबोर कर देती है
सरस्वती का अहसास 
होता रहता है, 
सौंदर्य देव अपने दस्तक
 रंगों में दे ही जाते है, 
यदा कदा कभी कभार 
सत्यं शिवम सुंदरम के
 पदार्पण होते रहते है
सुबह सूर्य की पहली  किरण और रात में चंद्रमा की चांदनी 
मेरे बेतरतीब कमरे के रोजमर्रा के 
मेहमान है
रात के 😶 सन्नाटे में  झींगुर का स्वर खामोशी में  🎵 संगीत भरना ही है
🌧️ बरसात में बादलों का वितान तना ही रहता है
रात पाथर की छत में वर्षा का टिप टिप करना 
सच में संगीत का आनंद  दे देता हैं 
कहीं दूर  🐆 गुलदार की दहाड़, से 
 🦌 काकड़ का बोलना, 
जंगली सुअर का चिल्लाना 
जंगल का अहसास करवा देता है
शाम होते ही  जंगली मुर्गी के इधर उधर भागना मेरे प्रतिदिन के दृश्य  ही है
जंगली फल, काफल, 
किलमोडी,हिसालू, 
 वन जीरा मेरे 
ऋतुओं के मेहमान है
ठीक सामने सीढ़ीनुमा खेतों का सौन्दर्य पुरखों की मेहनत और कौशल का प्रतिफल ही  है
🐄 गाएं , 🐐 बकरी, को चराते ग्वाला मेरे संगी साथी है
असोज में घास काटने वाले 
मेरे कमरे से गुजरते है, मेहनतकश ,कर्मठ ग्रामीण विशेषकर स्त्रियां, 
इस फक्कड़नुमा कमरे में
चाय की चुस्की 
चलती रहती है
बिना ये देखे कि कौन 
 इसका आनंद ले रहा है
बड़ा सकून है कि 
किसे के आने से पहले   
सफाई और कमरे को सजाने की अच्छी आदत से दूर
मेरा कमरा 
 सभी का  प्रेम से 
स्वागत करता है, 
सुबह पक्षी मेरे से बात करते है
कीट पतंग, तितली, रंग बिरंगे पक्षी अपनी दस्तक दे ही जाते है
पूरे वर्ष फूलों से परिपूर्ण है
कमरे के आसपास का जंगल
बुरांश से पयां तक रंग बिरंगी चादर ओढ़े
 हिमालय की पंचाचुली बर्फ से भरी चोटियां अपनी ओर निहारने को आतुर कर देती है,
 🌞 सूर्योदय और सूर्यास्त के बदलते रंग
रात को 🌙 चांदनी और ☁️ मेघों का 
एक दूसरे में लिपटना और 
अपनी छटा से 
प्रकृति को सुंदर बनाना
मेरे कमरे के आकर्षण है
शुद्ध प्रकृति से ओत प्रोत
ऐसा ही ठहरा मेरा कमरा.....
रमेश मुमुक्षु
9810610400
21.11.2023

Friday 10 November 2023

घर के मंदिर की मूर्ति से कचरा बनी मूर्ति की आत्मकथा: कब सुधरेगा हे मानव ( द्वारका नई दिल्ली एशिया की सबसे बड़ी और हाई प्रोफाइल सब्सिडी)

घर के मंदिर की मूर्ति से कचरा बनी मूर्ति की आत्मकथा: कब सुधरेगा हे मानव ( द्वारका नही दिल्ली एशिया की सबसे बड़ी और हाई प्रोफाइल सबसिटी )
 कितना अद्भुत है, हे मानव कैसे  तू मुझे खरीद कर लाया था। कपड़े से मुझे साफ करता था। कितनी बार मुझ को छूकर उल्टे सीधे  सभी काम भी करता था। कितनी बार तो मिठाई भी मुझे लगा देता था। ॐ जै जगदीश से लेकर गायत्री,महामृत्यंजय मंत्र और न जाने क्या क्या करता रहा है। "मैं पापी हूं, खलगामी, पतित , और अधर्मी हूं"। हे प्रभु मेरा तर्पण करें। मुझे छू कर मुझ पर गंगा  की बूंदें भी छिड़कता रहा है। लेकिन अभी दीवाली आने से पूर्व मुझे घर से ऐसे निकाल कर पीपल के पेड़ के नीचे डाल गया, जैसे मैं इसके लिए केवल कचरा बन गई।इसको किंचित मात्र भी अंतर नही पड़ता कि वो क्या कर रहा है। एक वर्ष तक ये मुझे मूर्ति मात्र नही, बल्कि  साक्षात ईश्वर ही समझता रहा। लेकिन अभी मेरे साथ मिट्टी के गणेश, शिव ,दुर्गा सभी की मूर्तियां को भी फेंक दिया। हम सभी
मंदिर की  मूर्ति से कचरा रूप धारण कर चुके है। 
हे ! हे  त्रिमूर्ति इस मानव को सद्बुद्धि प्रदान कर और जो इसके पास है, उसको जाग्रत कर, उसकी चेतना को सुप्तावस्था से उठा दे ताकि ये धर्म, अध्यात्म और भक्ति के सच्चे अर्थों को समझ सके और वातावरण को स्वच्छ रखने का व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास आरंभ करें।
रमेश मुमुक्षु
9810610400
10.11.2023