रावण की आत्मव्यथा
मेरी मृत्यु राम के धनुष से हुई। मैं जानता था कि ये होना ही था। ये वध मेरे तर्पण का आरंभ बिंदु था। मेरा सौभाग्य था कि साक्षात ईश्वर ने मेरे प्राण हरे। मैं भी सदियों से ये सब भुगत रहा हूँ।सीता के हरण का पाप आजतक मुझे कुरेदता है। राम ने वध के उपरांत मेरा सम्मान किया ,वो मृत्यु के दर्द को हरने वाला क्षण था। नारायण ने ही प्राण हरे ,ये मेरा सौभाग्य ही था।
लेकिन अभी कुछ वर्ष पूर्व मेरी तंद्रा यकायक टूट गई। पृथ्वी लोक से किसी निर्भया के क्रंदन और दर्द से पूरा ब्रमांड कंपन से हिलने लगा। मेरी भी सदियों बाद आंख खुल गई । इस क्रंदन ने मुझे भी विचलित कर दिया। मैं तो समझे बैठा था कि मेरी मृत्यु के उपरांत पृथ्वी लोक में स्त्री के प्रति जो अपराध मैंने किया वो मेरे वध के साथ ही लुप्त हो गया। निर्भया के चीख का सिलसिला जो शुरू हुआ ,आज भी जारी है। मैं 'रावण' आज ये सब देख बहुत दुःखी हूँ। चारों और एक के बाद एक निर्भया के साथ अन्याय देख दिल दहल जाता है। कितने जघन्य अपराध मानव कर रहा है।
हे राम तुम किस लोक में विरसजमान हो ,देख लो अपने संघर्ष से निर्मित दुनियां की अधोगति और कैसे ये मानव 14 वर्ष की संघर्ष गाथा भी केवल याद करता है, ह्रदय में अनुभव नही करता। इनके पाप देखकर मैं खुद भी स्तब्ध हूँ। सदियां मैंने अपनी चिता जलती देखी है। पाप पर पुण्य की जीत की गाथा सुनते आया हूँ। लेकिन आज मानव का ये हस्र देख अचरज हो रहा है। ईश्वर से निर्मित सृष्टि को नष्ट करने का पाप तू कर रहा है। मुझे स्मरण आता है जब मैं मृत्यु शैय्या पर पड़ा था ,उस वक्त राम ने अपने अनुज लक्ष्मण से ज्ञान लेने को कहा ,उस वक्त मैंने तीन बातें बताई , जो आज भी सत्य है, उनका सार था" अपने गूढ़ रहस्य अपने तक रखना, शुभ कर्म में देरी ना करना, गलत काम से परहेज़ करना, और किसी भी शत्रु को कमज़ोर ना समझना , यह अमूल्य पाठ हर एक इंसान को अपने जीवन में उतारना चाहिए।लेकिन आज ये सब नदारद है।अभी ये मानव जो सृष्टि को नष्ट करने में तुला है, ये अदृश्य जीव से डरा हुआ ,मेरे पुतले भी नही जला पाया। ये भी मेरी तरह दम्भ में डूबा जा रहा है। हे राम ये मानव दिन रात जपता रहता है "होइहि सोइ जो राम रचि राखा।" लेकिन करता वही है ,जो उसको लाभकारी लगे , भले वो कहता रहता है कि सबै भूमि गोपाल की" लेकिन विश्व के सबसे प्राचीन पर्वत अरावली से लेकर हिमालय समेत सब कुछ प्रदूषित और नष्ट भ्रष्ट करने में तुला है। हवा ,पानी , जलथल सब कुछ विकृत कर दिया। मेरे अनुज आई रावण का निवास पाताल लोक भी इस मानव ने भ्रष्ट कर दिया।
ये सब देखने से अच्छा है, पुनः चिरनिद्रा में चले जाएं।
ये सब बोलकर रावण अंतहीन दिशा की चला गया और हम मानव के लिए बहुत कुछ चिंतन करने के लिए छोड़ गया। समाज, लोकनीति,राजनीति समेत सब कुछ तहस नहस करने में तुला है।अपनी अपनी ढपली बजाते बजाते हम मानव अपने अस्तित्व को खतरे की ओर ले जा रहा है। अब देखना है कि हम मानव किस दिन एक सच्चा कदम उठाएंगे ,सही दिशा की ओर ....
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
15.10.2021