Search This Blog

Friday 15 October 2021

रावण की आत्मव्यथा

रावण की आत्मव्यथा
मेरी मृत्यु राम के धनुष से हुई। मैं जानता था कि ये होना ही था। ये वध मेरे तर्पण का आरंभ बिंदु था। मेरा सौभाग्य था कि साक्षात ईश्वर ने मेरे प्राण हरे। मैं  भी सदियों से ये सब भुगत रहा हूँ।सीता के हरण का पाप आजतक मुझे कुरेदता है। राम ने वध के उपरांत मेरा सम्मान किया  ,वो मृत्यु के दर्द को हरने वाला क्षण था। नारायण ने ही प्राण हरे ,ये मेरा सौभाग्य ही था।
लेकिन अभी कुछ वर्ष पूर्व मेरी तंद्रा यकायक टूट गई। पृथ्वी लोक से किसी निर्भया के क्रंदन और दर्द से पूरा ब्रमांड कंपन से हिलने लगा। मेरी भी सदियों बाद आंख खुल गई । इस क्रंदन ने मुझे भी विचलित कर दिया। मैं तो समझे बैठा था कि मेरी मृत्यु के उपरांत  पृथ्वी लोक में स्त्री के प्रति जो अपराध  मैंने किया वो मेरे वध के साथ ही लुप्त हो गया। निर्भया के चीख का सिलसिला जो शुरू हुआ ,आज भी जारी है। मैं 'रावण'  आज ये सब देख बहुत दुःखी हूँ। चारों और  एक के बाद एक निर्भया  के साथ अन्याय देख दिल दहल जाता है। कितने जघन्य अपराध मानव कर रहा है। 
हे राम तुम किस लोक में विरसजमान हो ,देख लो अपने संघर्ष से निर्मित दुनियां की अधोगति और कैसे ये मानव 14 वर्ष की संघर्ष गाथा भी  केवल याद करता है, ह्रदय में अनुभव नही करता। इनके पाप देखकर  मैं खुद भी स्तब्ध हूँ। सदियां मैंने अपनी चिता जलती देखी है। पाप पर  पुण्य की जीत की गाथा सुनते आया हूँ।  लेकिन आज मानव का ये हस्र देख अचरज हो रहा है। ईश्वर से निर्मित सृष्टि को नष्ट करने का पाप तू कर रहा है।   मुझे स्मरण आता है जब मैं मृत्यु शैय्या पर पड़ा था ,उस वक्त राम ने अपने अनुज लक्ष्मण से ज्ञान लेने को कहा ,उस वक्त मैंने तीन बातें बताई , जो आज भी सत्य है, उनका सार था" अपने गूढ़ रहस्य अपने तक रखना, शुभ कर्म में देरी ना करना, गलत काम से परहेज़ करना, और किसी भी शत्रु को कमज़ोर ना समझना , यह अमूल्य पाठ हर एक इंसान को अपने जीवन में उतारना चाहिए।लेकिन आज ये सब नदारद है।अभी ये मानव जो सृष्टि को नष्ट करने में तुला है, ये अदृश्य जीव से डरा हुआ ,मेरे पुतले भी नही जला पाया। ये भी मेरी तरह दम्भ में डूबा जा रहा है। हे राम ये मानव दिन रात जपता रहता है "होइहि सोइ जो राम रचि राखा।" लेकिन करता वही है ,जो उसको लाभकारी लगे , भले वो कहता रहता है कि सबै भूमि गोपाल की" लेकिन  विश्व के सबसे प्राचीन पर्वत अरावली से लेकर हिमालय समेत सब कुछ प्रदूषित और नष्ट भ्रष्ट करने में तुला है। हवा ,पानी , जलथल सब कुछ विकृत कर दिया। मेरे अनुज आई रावण का निवास पाताल लोक भी इस मानव ने भ्रष्ट कर दिया।
ये सब देखने से अच्छा है, पुनः चिरनिद्रा में चले जाएं। 
ये सब बोलकर रावण अंतहीन दिशा की चला गया और हम मानव के लिए  बहुत कुछ चिंतन करने के लिए छोड़ गया। समाज, लोकनीति,राजनीति समेत सब कुछ तहस नहस करने में तुला है।अपनी अपनी ढपली बजाते बजाते हम मानव अपने अस्तित्व को खतरे की ओर ले जा रहा है। अब देखना है कि हम मानव किस दिन एक सच्चा कदम उठाएंगे ,सही दिशा की ओर ....
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
15.10.2021

Tuesday 12 October 2021

पुरानी कविता (चलो घूम आओ घड़ी दो घडी)

पुरानी कविता 
(चलो घूम आओ घड़ी दो घडी)

न वाद न विवाद 
न आपस में झगड़ा
न तू तू 
न मैं मैं
न इसकी 
न उसकी 
न लेना 
न देना
क्यों आपस में 
मुँह फेर रहे है
बचपन से खेले
सभी संगी साथी
गुस्से से त्योरी 
तनी हुई क्यों है
कभी सुना 
और पढ़ा था
मतभेद बढ़ाना 
सबसे आसान है
हमको भी लगता 
था 
ये सच नहीं है
आपस में 
विरोधी तो भिड़ते रहे है
पर अपनों में दीवारें 
खड़ी हो रही हैं
ये कैसा अजब और गजब 
हो रहा है
गुस्से में राजा गुस्से में
प्रजा
लोकतंत्र कहीं 
दुबक सा गया है
बोलना बुलाना 
बहलना बहलाना 
कृष्ण के किस्से राधा 
कहा अब सुना ही सकेगी
कविता तो होगी
भाव न होगा
न होगा प्रेम 
न होगा आँखों की 
झीलों में 
जाना 
न होगा  बिहारी की 
कविता का उत्सव 
आँखों के इशारे 
सुना है
गुनहा है
चलो दिलदार चलो 
चाँद के पार चलो
पर मौत की सजा होगी
श्रृंगार रस सुना है
 गैर कानूनी और देशद्रोह 
होगा
कामदेव छुप कर
डरा सा हुआ है
न अब उड़ेगी जुल्फें
किसी की
सुना है आँखों
में चश्मे लगेंगे
बिल्डिंग बनेंगी
सड़के बनेंगी
नदियों को जोड़ो 
भले ही उनको मोड़ों
अब कोई न गा सकेगा
वो शाम कुछ अज़ीब थी
न अब साजन उस पार
होंगे
न शाम ही ढलेगी
न हवाएं चलेगी मदमस्त मदमस्त
न होगा गर
इन्तजार किस का
तो पत्थर बनेगा 
कोमल सा दिल अब
जिसमे न होगी कल की
कोई आशा 
भला ऐसे दिल को 
कर सकेगा कोई कैद
मज़ाल है किसी की
उसको झुका दे
ये उलटी धारा न 
बहने अब देना
दिलों को 
जोड़ों 
न तोड़ों 
वो धागा 
रहीम की ही सुन लो
न तोड़ो वो धागा 
फिर कभी ये जुड़ ही न
सकेगा
टुटा हुआ दिल
एटम पे भारा
भय से परे क्या मरना 
क्या जीना
सबको मिलकर 
बनेगा  बगीचा
नवरस बिना 
क्या जीवन का मतलब
बच्चे भी होंगे 
जवानी भी होगी
बुढ़ापा भी होगा
भाषा भी होगी
मज़हब भी होंगे
साधु भी होंगे 
सन्यासी भी होंगे
होंगे ये सब 
जब सारे 
ही होंगे 
सारे न होंगे तो 
अकेला कहाँ होगा
वैविध्य है जीवन और
कुदरत है सब कुछ 
सब कुछ है कुदरत
फिर क्या है मसला 
फिर क्या बहस है
चलो घूम आये 
चलो टहल आये 
मसले तो आते जाते 
रहेंगे 
हम फिर न होंगे
न होगा ये मंज़र
चलो लुफ्त ले लो 
घडी दो घडी 
चलो घूम आएं 
घडी दो घडी....
रमेश मुमुक्षु
(29.3.2017 ट्रैन में लिखी)

Saturday 2 October 2021

महात्मा गांधी : सतत परम्परा के वाहक

महात्मा गांधी :  सतत परम्परा के  वाहक  
महात्मा गांधी एक नाम ही नही अपितु एक सतत परम्परा का वाहक कहूँ तो गलत न होगा। गांधी के विभिन्न आयाम एक साथ  चलते दिखाई देते है। गांधी प्रार्थना, रोजमर्रा की सफाई, लिखना, बोलना, सेवा, प्रकृति से जुड़ा हुआ जीवन, सतत ग्रामीण विकास , ग्राम स्वराज्य एक समग्र चिंतन और अहिंसा और साहस को स्थापित करने की पहल करने वाला एक व्यक्ति जो जीवन भर नया नूतन खोजता रहा ,बहुत ही सहज और सुगम मार्ग को बनाता गया। 
गांधी में समग्रता का उद्विकास  काल से आरम्भ होता है ,जब उनको अपनी गलती का अहसास और गलती स्वीकार करने का साहस गांधी को एक लंबी यात्रा की ओर ले जा रहा था। एक खोज जो निरंतर चल रही थी गांधी के भीतर। गांधी के भीतर जो पनप रहा था, उसकी पुष्टि गांधी पढ़ने की आदत से पूरी कर लेते थे। उनकी चिंतन यात्रा के दौरान उन्होंने लेव टॉलस्टॉय , जॉन रस्किन, डेविड हेनरी थोरो एवं गोपाल कृष्ण गोखले को जानकर अपने भीतर हो रही उथल पुथल को एक व्यवस्थित मार्ग की दिशा में आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुआ। इन महान विभूतियों को उन्होंने अपने गुरुओं के रूप में ही हमेशा माना, क्योंकि जो मोहनदास के मन में भविष्य की कल्पना आकार ले रही थीं, इन सब को पढ़ कर , उनको लग गया कि उनका रास्ता और लक्ष्य सही दिशा में जा रहे है।
इसी कारण ट्रैन से नीचे फेंके जाने के कारण ही उन्होंने जो किया , वो अचानक से हो गया था, ऐसा नही उनके भीतर सत्य और अहिंसा का मार्ग प्रशस्त हो रहा था। इस घटना से उनको धरातल पर उतारने का अवसर मिला और सफल भी रहे। साउथ अफ्रीका का प्रयोग शायद मोहन दास को गांधी और महात्मा के मार्ग पर ले गया। विदेश जहां पर अंग्रेजों का शासन था। बाहर के देशवासी दोयम दर्जे के माने जाते थे। रंगभेद के अनुसार भारत के लोग भी काले ही माने जाते थे। उनके भीतर सत्य अहिंसा के आधार पर सफलता ने टॉलस्टॉय की बात को  सिद्ध कर दिया  कि इस युवा से सत्य , अहिंसा और शांति के विचार को प्रतिपादन करने की आशा ही नही विश्वास है। इसके अतिरिक्त अफ्रीका में उनके प्रयोग सफल हुआ और उनकी आहट भारत में भी सुनी जाने लगी।
भारत आने पर गोपाल कृष्ण गोखले ने उनका स्वागत और आशीर्वाद दिया। गांधी ने आज़ादी के आंदोलन में गांव की आवाज़ को जोड़ने का विलक्षण कार्य किया , जिसकी शुरुआत चंपारण से हुई। चंपारण ने ग्रामीण अंचल को मुख्य धारा में लाने का काम भी किया। 
गांधी को किसी भी रूप में इग्नोर नही किया जा सकता है क्योंकि गांधी समग्र और सतत परम्परा के वाहक कहे जा सकते है। गांधी के लिए सफाई ,स्वच्छता दैनंदिन का  अनिवार्य कर्म था, जो सहज और स्वाभाविक ही था।
गांधी ने आज़ादी के आंदोलन के साथ रचनात्मक कार्य की श्रृंखला आरंभ कर समग्रता का परिचय दिया। आज़ादी की लड़ाई में चंपारण के बाद नामक आंदोलन, विदेशी कपड़ों की होली और भारत छोड़ो के साथ रचनात्मक कार्यों में साबरमती आश्रम, गांधी विद्यापीठ , सेवा ग्राम समेत एक लंबी श्रखंला का प्रतिपादन भी किया। सेवा ग्राम में परचुरे शास्त्री कुटी में उन्होंने कुष्ठ होने के बाद भी सेवा की और उन्होंने कहा कि सेवा का संबंध ह्रदय से होता है, सेवा दिल से ही की जा सकती है। इसके बाद कुष्ठ निवारण के कार्य आरंभ हुए। 
नई तालीम के माध्यम से समग्र शिक्षा की बात कही और उनका प्रयोग भी  किया। स्त्री शिक्षा पर उनका बहुत जोर था। 
गांधी ने ग्राम स्वराज्य की कल्पना की जो भारत की महती परम्परा का परिचायक ही था। विदेशी हुकूमत के कारण ग्रामीण सहज परंपरा पर जो विपरीत असर पड़ा ,उसको पुनर्स्थापित करने का ही समग्र और सतत प्रयोग था । ग्राम स्वराज्य आज भी ग्रामीण जीवन और ग्रामीण जीवन को अक्षुण्ण रखने का कारगर उपाय है। ग्राम स्वराज्य जल,जंगल,जमीन,समेत स्थानीय संसाधन का सदुपयोग जो सतत विकास की अवधारणा का वाहक ही है। आज भी ग्राम स्वराज्य ही ग्रामीण स्वावलंबन का एक मात्र उपाए है, भले वो विभिन्न रास्ते से आये। ग्राम स्वराज्य का सबसे बड़ा पहलू है कि ग्रामीण अपने विकास की सही दिशा स्वयं ही खोजे और उसी के आधार पर आगे बढ़े। कृषि एवं पशुपालन एक सिक्के के दो पहलू है। प्राकृतिक एवं जैविक कृषि और जीवन गांधी जी के दो मजबूत 
सत्य व  अहिंसा की ओर जाना तो मानव के सहज स्वभाव में आता गया है। मानव और प्रकृति समेत सम्पूर्ण प्रकृति को एक समग्र दृष्टि से देखना ही जीवन के संरक्षण के लिए बहुत जरूरी है।
गांधी एक निरन्तर चलती आ रही सतत समग्र परम्परा का वाहक कहे तो गलत न होगा। 
गांधी का रामराज्य सर्व धर्म प्रार्थना से सराबोर था। इसलिए उनके हाथों में गीता रही , और मरते समय ह्रदय से राम कितना ये गांधी के द्वारा ही  होना था।
उनके जीवन दर्शन का आधार हिन्द स्वराज्य में गांधी लिखते है कि देश  को अंग्रेजों ने गुलाम कैसे बनाया  ,जबकि अंग्रेज  तो संख्या में कम थे। गांधी उत्तर देते है कि हम खुद ही गुलाम बने है। अगर हम उनकी जीवन शैली अपनाते रहे, धीमे धीमे स्वयं ही गुलाम होते चले गए। ये बात आज भी प्रासंगिक है। 
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधी जी के बारे में कहा था कि “भविष्य की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था।” ... गांधी अपने में एक विचार थे, गांधी युवा पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत  है।"

रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष ,गांधी शांति प्रतिष्ठान 
दन्या , उत्तराखंड 
9810610400