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Saturday 14 November 2020

दीवाली की रात अभी पुलिस बीट वालों के हूटर की हुआ हुआ अभी बजी बज रही थी।

दीवाली की रात अभी पुलिस  बीट वालों के हूटर की हुआ हुआ अभी बजी बज रही थी।
इस बार पूरा विश्व कोरोना के कारण अप्रत्याशित त्रासदी से जूझ रहा है। दिल्ली में वायु प्रदूषण और कोरोना के केस यकायक बढ़ने के कारण किसी भी प्रकार के पटाखे इस बार पूर्णतः वर्जित किये गए है।लेकिन अभी भी फाटक ,धाएँ धाएँ ,सुर्र सुनाई दे रहे है। पुलिस के हूटर आने पर क्षणिक रूक जाते है। बात ये नही कि पटाखे जलाना सही है,या गलत ,लेकिन जब दुनियां में कोरोना से बहुत बड़ी जनसंख्या ग्रसित है और ऐसा अध्ययन से मालूम चला है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण और उसके साथ पटाखे के धुएं से कोरोना पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। 
इस कारण सरकार और स्वास्थ्य विभाग की ओर से आह्वान किया गया कि किसी भी प्रकार के पटाखे न जलाए ताकि वायु प्रदूषण न बढ़ने पाए। 
लेकिन अभी मैं 9.15 रात में  घर पर ये लिखते हुए , पुलिस।का हूटर और पटाखे की आवाज सुन रहा हूँ हालांकि पिछले वर्षों से बहुत कम है। लेकिन हम लोग क्यों नही पूरी तरह ऐसी बातों को नही मानते है। 
सबके अपने अपने तर्क होते है। लेकिन अभी भी कितने लोग होंगे ,जिनको  स्वास संबंधी रोग होंगे। मैं खुद भी अस्थमा से पीड़ित हूँ, बचपन से , इसलिए इसका अहसास मुझे है। 80 के दशक में कितनी बार दीपावली के कारण दमें के अटेक भी हुए। लेकिन उस दौर में वायु प्रदूषण इतना अधिक नही था।हालंकि 1982  एशियाड के बाद चीज़े तेजी से बदलने लगी,जो आज भी जारी  है। कितने बार लगता है कि हम कानून, परम्परा, अध्यात्म सहित दुसरों की तकलीफ को भी कम ही महसूस करते है। बहुत से लोग ये कहते है कि क्यों न पटाखे जलाये। इसकी उसकी कहते है और जम के जलाते हुए ,गौरवान्वित अनुभव करते है। अच्छा हो कि देश के आह्वानों को सुने और देश हित और मानवता के हित में एक दूसरें की परवाह  करने की आदत डालें। अभी रात के 10.44  बज रहे है  लेकिन अभी धड़ाम धड़ाम की आवाज बीच बीच में आ रही है। कुछ देर पहले लड़ी की आवाज आ रही है। 
लॉक डाउन की तरह ये पाठखे बजाने वाले पुलिस के आते  ही चुप हो जाते है। कुछ कहते है,परम्परा है, कुछ कहेंगे कि बच्चों के लिए करना होता है। काश हम लोग कानून और इस तरह के आह्वान पूरी तरह मानना सीख ले तो देश के संविधान और कानून को मानने की आदत ही पड़ जाए। देखते है ,कब ये शुरू होगा। दीपावली की सभी को शुभकामना। 
रमेश मुमुक्षु 
अध्यक्ष ,हिमाल
 9810610400
14.11.2020 
11.12 PM

Monday 2 November 2020

सब इंसेक्टर की गिरफ्तारी से आगे करना होगा मानसिकता में बदलाव

सब इंसेक्टर की गिरफ्तारी से आगे करना होगा मानसिकता में बदलाव
21अक्टूबर 2020  को मुझे सोशल मीडिया पर शिरीन का वीडियो मिला ,जिसमें अपनी आपबीती बहुत ही विस्तार और लगभग समझते हुए बताई और  समाज में कैसे महिलाओं के विरुद्ध छेड़छाड़ और महिलाओं की डिग्निटी पर प्रहार किया जाता है। इस वीडियो ने एक बहस ही छेड़ दी।  मैंने भी अपना फर्ज समझ  वीडियो सभी सोशल  मीडिया और  21 अक्टूबर तारीख शाम 6.44 मिनट पर डीसीपी श्री संतोष कुमार मीणा जी को पोस्ट किया और उन्होंने उसी शाम 6.47 मिनट पर कार्यवाही करने की बात लिखी। उसी दिन रेडियो द्वारका के विशाल जी ने भी डीसीपी को वीडियो भेजा और लिखा कि शायद इस बच्ची को पुलिस की मदद चाहिए। 21अक्टूबर  की रात 11.25 पर डीसीपी श्री संतोष मीणा जी ने कार्यवाही आरम्भ कर दी, है , और बच्ची से कांटेक्ट किया जा रहा है ,मैसेज प्रेषित किया ।  22 तारीख को द्वारका की प्रबुद्ध महिला डेलीगेशन ने डीसीपी एवं 23 अक्टूबर को डी एम श्री नवीन अग्रवाल से मुलाकात की। डी एम श्री नवीन अग्रवाल  ने एक विस्तृत पत्र लिखा। 23 नवंबर  8.20 सुबह  हमारा  द्वारका ग्रुप में श्री राजेन्द्र सिंह , भूतपूर्व एसीपी ने "हमारा द्वारका ग्रुप" में सूचित किया कि कार्यवाही शुरू हो गई है, 50 पुलिस कर्मी सीसीटीवी आदि देख रहे है। इससे पहले 17 नवंबर को दो बच्चियों की एफ आर आई की गई थी। द्वारका में  लोगों ने अपने अपने स्तर पर शिरीन के वीडियो के माध्यम से अपनी अपनी बात रखी। महिला ग्रुप जो 22 तारीख को डीसीपी से मिले और 23 तारीख को डी एम से मिले उनके मिलने से व्यापक  असर हुआ। लेकिन पुलिस ने डी एम के लेटर से पहले ही कार्यवाही आरम्भ कर दी थी।  द्वारका पुलिस जैसे अक्सर बहुत से केस जल्दी हल करती है। उसी तरह ये भी सुलझा लिया। भूतपूर्व एसीपी श्री राजेन्द्र सिंह जी जिन्होंने निर्भया केस, धौला कूआँ रैप केस, सुनंदा पुष्कर जैसे बड़े केस सुझाए। पिछले 3 वर्षों में द्वारका पुलिस में प्रहरी, महिला दस्ता, सीसीटीवी लगाने जैसे काम किये।  इसके लिए द्वारका पुलिस का धन्यवाद तो किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त दिल्ली पुलिस के  आयुक्त द्वारा सब इंस्पेक्टर को डिसमिस करने जैसे ठोस कदम के लिए भी धन्यवाद देना चाहिए। इसके अतिरिक्त ट्वीटर और अन्य सोशल मीडिया पर भी ये सब आने से इसको व्यापक आधार मिला।
  टाइम लाइन दिखाने का अर्थ ये नही की इस कारण ही कार्यवाही हुई । वीडियो को डीसीपी समेत सभी ग्रुप में डालने का आशय था कि इस पर कार्यवाही हो। 
शिरीन ने उस समस्या की ओर इशारा किया ,जिस पर समाज जिसने पुरूष और औरत भी शामिल है, आगे आने से कतराते है।  जब मालूम चला कि ये सब इंस्पेक्टर है ,इस केस ने बहुत सवाल उठा दिए। लेकिन दिल्ली के पुलिस आयुक्त ने सब इंस्पेक्टर को डिसमिस कर के एक मिसाल कायम की। 
ये चिंतन का विषय है कि एक व्यक्ति कई दिनों तक लड़कियों के साथ दुर्व्यहार करता रहा, बिना नंबर प्लेट के घूमता रहा। ये बहुत ही गंभीर बात है। ट्रैफिक पुलिस के लिए भी ये चैलेंज है। सम्भव है, पुलिस  क्राइम ब्रांच के कारण कुछ न कहती हो , इस पर व्यपाक कार्य करने की जरूरत है। ये भी चिंतन और सुधार का विषय है। 
लेकिन ऐसी घटना कम हो और इन पर चर्चा और कार्यवाही भी हो, ये जरूरी है। इसके लिए मैंने भी सभी ग्रुप में लिखा था कि एक द्वारका में महिला ग्रुप बनाना चाहिए जिसमें सभी सोसाइटी और पॉकेट की महिलाएं शामिल हो ,ताकि ऐसी बहुत सी घटनाएं सामने आने लगे। मुझे नही लगता ,जिस तरह शिरीन ने  इस  घटना को सविस्तार बताया , कोई बता पाता। एक बात तय है कि बहुत बार महिलाएं सामने नही आती , समाज में गतिरोध के कारण। परिवार की इज्जत और जो ऐसी बात बताए , उस पर भी प्रश्न उठा दिया जाता है, बजाए उसकी बात सुनने और कार्यवाही करने के। अगर शादीशुदा शिकायत कर दे ,तो और भी हतोत्साहित किया जाता है। ये इज्जत का मसला नही होता, बल्कि न्याय दिलवाने की बात होनी चाहिए। इन सब में बदलाव के लिए  सामाजिक तौर पर भी काफी प्रयास करने होंगे। किसी भी युवती, बच्ची और स्त्री को जबरन घूरना भी स्त्री के सम्मान को ठेस पहुंचाना होता है । छेड़छाड़ और उससे आगे तो गंभीर अपराध है। इसके लिए सतत और विस्तृत प्रयास करने पड़ेंगे।  इस घटना में तो सख्त कार्यवाही हो ही गई है। लेकिन पुलिस सुधार और निचले स्तर की पुलिस को  अधिक संवेदशनशील बनाना जरूरी है।  पुलिस के भीतर अक्सर पुलिस की संख्या बल  में  कमी की बात भी आती रहती है। जिसने ड्यूटी का समय तय न होना भी एक समस्या है।  पुलिस को पब्लिक के साथ अधिक मिलकर काम करने की जरूरत है। द्वारका पुलिस ने पोलिसिंग के माध्यम से इसकी शुरुवात तो की है। इस कारण द्वारका में नागरिक और पुलिस  के बीच काफी मेल जोल बड़ा है।ऐप डाउनलोड करना, सुरक्षा के लिए प्रहरी ताकि रात को पार्कों में गार्ड और पुलिस गश्त लगा सकें। इसे कार्य आरंभ किये है। जिनको और भी बढ़ाना होगा। लेकिन इन सभी स्कीम में द्वारका के निवासियों को बढ़चढ़ कर भाग लेना चाहिए, जबकि अभी भी संख्या कम है। ये लगातार ही करना ही होगा। 
  शिरीन ने हालांकि बाद में शिकायत की ,लेकिन  उन्होंने सुधार और व्यवहार पर भी जोर दिया, जिससे वो केवल शिकायत न होकर  सुझाव भी था। 
ये बात भी सही है कि एक आम स्त्री एक दम ऐसे कदम नही उठा सकती। इसी को मजबूत करना है। अधिकांश महिला सामने नही आती। सामाजिक तौर पर उनको ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित नही किया जाता। लेकिन पुरुष भी बहुत अधिक अपने अधिकारों और अपनी बात कहने से  कतराते है। ये सब बदलना ही होगा।31 को  महिला मार्च भी होना था ,शायद वो किन्ही कारणों से पुलिस ने रोका।  हालांकि होने देना चाहिए था।  लेकिन इस मार्च में और भी बेहतर होता कि इसने डीसीपी और डी एम भी शामिल होते और उनके साथ एक नई शुरुआत होती। मार्च का ट्रीटमेंट इस तरह से था कि व्यवस्था ने काम ही नही किया। महिलाओं को सुरक्षित स्पेस चाहिए। ये बात की ही शुरुवात प्रशासन के साथ एक सरल और दीर्घकालीन सोच के साथ आयोजित होती तो पुलिस और जिला प्रशासन के साथ एक लंबी रणनीति जनता के मध्य आरम्भ की जाती। इस केस में प्रशासन का रोल पोसिटिव ही रहा।  लेकिन ये कहीं छूट सा गया। किसी कानून और किसी ऐसी घटना जिसमें पुलिस और प्रशासन ने सुना ही न हो, वहां पर प्रोटेस्ट उचित है। हाथरस में एस पी और डी एम का रोल और इस घटना पर द्वारका पुलिस और  जिला प्रशासन के व्यवहार की तुलना नही हो सकती। किसी भी घटना ,जिसने कार्यवाही न हो ,उसके लिए बड़े स्तर पर मार्च और प्रोटेस्ट बहुत जरूरी है। लेकिन यहां पर 17 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच एफ आई आर दर्ज होने के बाद गिरफ्तारी और सख्त कार्यवाही हुई। इसलिए मार्च की शक्ल प्रशासन के साथ दीर्घकालीन रणनीति और  मानसिक बदलाव के साथ सतत कार्यक्रम की शुरुवात होती तो शायद इसका व्यापक असर होता। इस बारीक से अंतर को हम लोगों को हमेशा ही समझना होगा। लेकिन  मार्च और प्रोटेस्ट  से पूर्व और बाद में   सतत प्रयास और विभिन्न आयामों को एक साथ लेकर आगे बढ़ना होगा।  प्रोटेस्ट और मार्च भी जरूरी है ,लेकिन इनका अधिक लाभ जभी होगा ,तब रूटीन में सतत प्रयास चलते रहे। 
मैं द्वारका पुलिस और डी एम से अनुरोध है कि वो भी एक महिला ग्रुप बनाये ,जिसमें पुलिस और सेल्फ डिफेंस और कानून की जानकारी का कार्यक्रम चलता रहे। इस ग्रुप में जनता ही एडमिन हो ताकि महिलाएं अपनी बात खुल कर रख सकें। ये ग्रुप जो भी ग्रुप बने है , उनके साथ मिलकर भी काम करें।
ट्रैफिक पुलिस और द्वारका पुलिस भी अधिक चौकस होकर ,बिना नंबर, काले शीशे ,शराब पी कर हुड़दंग न मचाये पर कार्यवाही के साथ जागरूकता की शुरुवात करें ताकि  संवेदनशीलता को बढ़ाया जा सकें। 
मेरा स्त्री समेत सभी ग्रुप से अनुरोध है कि पुलिस और सभी विभागों के साथ मिलकर एक दीर्घकालीन और सतत कार्यक्रम के माध्यम से आगे बढ़े। 
अपराध से पहले ही इसको रोकना और आपराधिक प्रवत्तियों को बढ़ने न देना , बहुत जरूरी है।
इसके लिए स्त्री को ही  आगे आना होगा। 
ये मानसिकता बदलने का उपक्रम है, ये मार्च और प्रोटेस्ट मात्र से ही ठीक नही होगा। निर्भया आंदोलन इतने बड़े स्तर पर हुआ। लेकिन रूटीन में सतत काम न होने के कारण इसका असर और प्रभाव धीमे धीमे आता है। जितना अधिक नागरिक विभागों से संपर्क करके काम करेंगे ,उतना ही माहौल बदलेगा। बीच बीच में जागरूकता के कार्यक्रम मार्च होने चाहिए। पुलिस पब्लिक मीटिंग का दौर भी चलता रहे।
इसलिए मानसिकता को बदलना पूरी तरह से पूरी व्यवस्था में बदलाव होता है। 
आप लोगों को शायद ज्ञात  होगा कि भूतपूर्व एससीपी श्री राजेन्द्र सिंह जी ने एक विस्तृत पत्र द्वारका के डार्क स्पॉट को दूर करने के लिए लिखा था, जो पुलिस का काम नही है, लेकिन द्वारका के जागरूक नागरिक और  के साथ मिलकर ये पत्र लिखा गया। कुछ शुरुवात भी हुई थी। लेकिन ये काम धीमे धीमे ही चलते है। दिखते कम है। काम नही हुआ और काम कैसे हो इन दोनों बातों को एक साथ लेकर चलना जरूरी है।
मुझे उम्मीद है, द्वारका  इस ओर पहल करके एक आदर्श उप नगर बनाकर इस मानसिकता को बदलने का अथक प्रयास करेगा। शिरीन के साथ जो हुआ , आगे और न हो सकें। इसके लिए आगे ही बढ़ना ही  होगा।
ये मात्र प्रोटेस्ट , मार्च और बड़े इवेंट ही  बनकर न  रहे,रूटीन में भी चलता रहे, सतत और अनवरत। 
एक बात को नही भूलना है कि निर्भया के इतने व्यपाक आंदोलन के बावजूद हाथरस जैसी घटना अभी भी हो रही है। लेकिन दिल्ली पुलिस ने इस केस में ठोस कदम उठाया लेकिन  अभी सड़क, मोहल्ले, पॉकेट ,सोसाइटी  सभी स्त्री के लिए सुरक्षा और सहजता के साथ आगे बढ़ना है। 
सभी ग्रुप मिलकर इस मुहिम को जारी रहें। सम्भव है, मेरी इस पोस्ट में कोई उतेजना नही लगे क्योंकि मैंने समग्र दृष्टिकोण की बात कहने की कोशिश की है। जिस तरह हम सतत विकास में सतत प्रयास की बात करते है, उसी तरह हम मानसिकता बदलाव में सतत प्रयास करें। गतिरोध होने पर मार्च और प्रोटेस्ट का सहारा भी लेते रहें। सरकार शिकायत और सुझाव दोनों पर बराबर काम करें और आलोचना ,समालोचना भी सुनने को तैयार रहे ,तभी वास्तविक संवाद की स्थापना हो सकेगी। आशा है, द्वारका में हम इसकी शुरुआत कर सकेंगे। 
इस पर प्रतिक्रिया का मैं स्वागत करूंगा। 
विनीत 

(रमेश मुमुक्षु)
अध्यक्ष, हिमाल 
9810610400
2.11. 2020