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Tuesday 7 January 2020

डी डी ए की उपेक्षा का शिकार: लाल पत्थर से बने स्ट्रक्चर की आत्म व्यथा। सेक्टर 16 बी द्वारका मेरा डी डी ए द्वारा कभी निर्माण हुआ होगा। लाल पत्थर से मुझे सजाया गया था। प्रेसिडियम स्कूल , अभी प्रूडेंस स्कूल का नाम हो गया और भारत अपार्टमेंट सेक्टर 16 बी के पास मैं पूर्णतः उपेक्षित और तिरस्कारपूर्ण जीवन जीने को बाध्य हूँ। करीब 2006 से पहले मेरा निर्माण हुआ होगा। मौसम के तफेडे खाते खाते मैं खुद ही भूल गया कि मेरा वास्तव में अस्तित्व क्या है? मुझे क्योंकर निर्मित किया गया होगा ? सुनने में आता था कि मुझे तहबाजारी के लिए बनाया गया था। लेकिन अब तक प्रतीक्षा करते करते मैं उकता गया हूँ। अब झाड़ झंकार ही मेरे संगी साथी है। कभी कभी बरसात में सांप भी मेरे साथ रहते है। कुछ वर्षों तक कभी कभार सफाई हो जाती थी। अब तो वो भी नही हो रही है। अभी मेरे बगल में क़ुछ खाने पीने की रेहड़ी लगने से कुछ रौनक सी लग गई है। लेकिन मेरी इस वीरान जगह पर अपराधी भी आराम से छिप सकते है। कुछ गलत चीज़ भी छिपा सकते है। परंतु मेरी सुध कौन ले? ओ ! मेरे जन्मदाता डी डी ए इतना निर्मोही क्यों हो गया ? कभी तो मुझे फाइलों में खोज ले। कभी तो तनिक देख ले कि मुझे क्यों कर बनाया गया था ? मेरा जीवन अनारकली के गीत जैसा होगा और दिन रात रोता और उम्मीद से गाता है।"आ जा आ तो आ जा मेरे किस्मत के खरीदार अब तो अब तो आज " कर्ण अर्जुन फ़िल्म की तरह गाता हूँ" DDA के JE AE आएंगे मुझे बचाएंगे । बस अब ये ही रह गया है, मेरे जीवन में एक व्यक्ति मुझे हमेशा याद करता है, रमेश मुमुक्षु , लेकिन वो भी क्या करें, लगता है, वो भी मुख्य अभियंता ,द्वारका को कहते कहते थक गया। उस दिन फोटो ले रहा था, मुझे हंसी आ रही थी ,क्या होगा ,मुमुक्षु भाई, जब मेरा जमदाता ही मुझे भूल गया ,अब कौन याद करेगा। लेकिन अभी डी डी ए के उपाध्यक्ष श्री तरुण कपूर जी बहुत ही कर्मठ एवं काम करने वाले आएं है। हो सकता है, मुमुक्षु को मति आ जाए और उनको लिख दे। इस तरह मेरा तर्पण हो सकेगा, लगने लगा है। अब दिल गाने लगा है " दुःख भरे दिन बीते रे भैया अब सुख आयो रे रंग जीवन मे नया लायो रे दुःख भरे दिन बीते रे भैया"देखना है,अब कब और कितनी जल्दी मेरा तर्पण होता है। श्री तरुण कपूर जी से आस बंधी है। रमेश मुमुक्षु 5.1.2020

मेरा डी डी ए द्वारा कभी निर्माण हुआ होगा। लाल पत्थर से मुझे सजाया गया था। प्रेसिडियम स्कूल और भारत अपार्टमेंट सेक्टर 16 बी के पास मैं पूर्णतः उपेक्षित और तिरस्कारपूर्ण जीवन जीने को बाध्य हूँ। करीब 2006 से पहले मेरा निर्माण हुआ होगा। मौसम के तफेडे खाते खाते मैं खुद ही भूल गया कि मेरा वास्तव में अस्तित्व क्या है?मुझे क्योंकर निर्मित किया गया होगा। 
सुनने में आता था कि मुझे तहबाजारी के लिए बनाया गया था। लेकिन अब तक प्रतीक्षा करते करते मैं उकता गया हूँ। अब झाड़ झंकार ही मेरे संगी साथी है। कभी कभी बरसात में सांप भी मेरे साथ रहता है। कुछ वर्षों से का कभी कभार सफाई हो जाती थी। अब तो वो   भी नही हो रही है। 
अभी मेरे बगल में क़ुछ खाने पीने
 की रेहड़ी लगने से कुछ रौनक सी लग गई है। 
लेकिन मेरी इस वीरान जगह पर अपराधी भी आराम से छिप सकते है। कुछ गलत चीज़ भी छिपा सकते है। परंतु मेरी सुध कौन ले?
ओ ! मेरे जन्मदाता डी डी ए इतना निर्मोही क्यों  हो गया? कभी तो मुझे फाइलों में खोज ले। कभी तो तनिक देख ले कि मुझे क्योंकर बनाया गया था? 
मेरा जीवन अनारकली के गीत जैसा होगा और दिन रात रोता और  उम्मीद से गाता है।
"आ जा आ  तो आ जा मेरे किस्मत के खरीदार अब तो अब तो आज " कर्ण अर्जुन फ़िल्म की तरह गाता हूँ" जे ई ,ऐ ई आएंगे मुझे बचाएंगे । बस अब ये ही रह गया है, मेरे जीवन में। एक व्यक्ति मुझे हमेशा याद करता है, रमेश मुमुक्षु , लेकिन वो भी क्या करें, लगता है,वो भी मुख्य अभियंता ,द्वारका को कहते कहते थक गया। उस दिन फोटो ले रहा था, मुझे हंसी आ रही थी ,क्या होगा ,मुमुक्षु भाई, जब मेरा जमदाता ही मुझे भूल गया ,अब कौन याद करेगा। लेकिन अभी डी डी ए के उपाध्यक्ष श्री तरुण कपूर जी बहुत ही कर्मठ एवं काम करने वाले आएं है। हो सकता है, मुमुक्षु को मति आ जाए और उनको लिख दे। इस तरह मेरा तर्पण हो सकेगा लगने लगा है। अब दिल गाने लगा है
 " दुःख भरे दिन बीते रे भैया
अब सुख आयो रे
रंग जीवन मे नया लायो रे
दुःख भरे दिन बीते रे भैया"
देखना है,अब कब और कितनी जल्दी मेरा तर्पण होता है। श्री तरुण कपूर जी दे आस बंधी है। 
रमेश मुमुक्षु
5.1.2020