Search This Blog

Tuesday 20 March 2018

भारत माता की जय का सत्य (पुराना लेख)

भारत माता की जय का सत्य
बच्चा जीवन भर माँ के अंचल में अपने को सुरक्षित पाता है। वो माँ से खेलता भी है, कभी नाराज़ भी होता है, उसको माँ को जय माँ की जय नहीं बोलना पड़ता क्योंकि वो तो माँ की गोद में ही है। यकायक भारत माता की जय की बात ऐसी लग रही है कि जैसे लोग अचानक नींद से जागे और कुछ भूला याद आगया। जैसे माँ को 24 घंटे जय नहीं करना पड़ता क्योंकि उसके अंचल में ही तो है सब। बल्कि जो दूर  रहता है, उसको बार बार याद करना होता ही।  आदमी ने भारत माता की याद न की होती तो देश के कभी के टुकड़े हो जाते। याद उसे करते है ,जिसे भूले हो।  कैसे माँ का ख्याल किया जाता है, माँ की सेहत, उसके कपडे लत्ते, उसका ख्याल । ठीक ऐसे ही भारत माता का ख्याल करो। भारत माता का शरीर पूरा देश है। नदी, नाले, सागर पहाड़, हिमालय और जल , जंगल जमीन। कभी सोचा है , हमने अपनी माता के पवित्र शरीर के साथ कितना अन्याय किया है।  उसका निर्ममता से दोहन किया है। उसकी धमनियों को जो नदी के रूप  में है, गन्दा किया है।माँ भी बच्चे को स्तन में दूध न होने पर प्रेम से हटा  देती है। पहला निवाला बच्चे को देती है। बच्चा शैतानी करे तो भी वो उसको दुलार करती है। क्या हमने माँ का सम्मान किया है और कर रहे है। माँ तो अपने शरीर और मन को बच्चे के लिए हमेशा  न्योछावर करती है। लेकिन हमने उसके प्रेम और दुलार को कभी सम्मानित नहीं किया। उसको दुखी करके उसकी जय जय करना क्या उसके दुःख और पीड़ा को भर पायेगा , जो उसके बच्चों ने दी है। माँ छोटी छोटी बातें कहती और समझती है ताकि बच्चा सेहत मंद हो। जब उसको लगता ही कि अब बालक को दूध नहीं कुछ ठोस देना है, वो दूध भी छुड़वा देती है। ठीक वैसे ही देश की माँ रूपी  शरीर के प्रति वहां के नागरिक का कर्तव्य है कि देश के कानून और नियमो का पालन करे ताकि  भारत माता का शरीर सेहत मंद और खुश रहे। इतना कुछ , दोहन के बाद भी वो ममता में चूर बच्चे को आशीर्वाद ही देती है। इसलिए उसकी जयकरने से पहले उसका सम्मान और उसकी ममता का गाला न घोटो उसका ख्याल करो । उसको जयकार नहीं प्रेम की आस होती है, वो अपने बालक से दो मीठे शब्द सुनना चाहती है।क्या हम ऐसा कर पा रहे है? ये हम सब को सोचना है इसलिए देश के संविधान, जल , जंगल , जमीन और सभी नागरिको का आपस में ख्याल करे और कानून का पालन करे ताकि माँ की गोद भी सुरक्षित रहे ताकि उसकी गोद में हम सब सुरक्षित रहे। उसे उसकी जय कार से नहीं , दो शब्द प्रेम के बोलने है। क्या हम दो शब्द प्रेम के बोल पा रहे है? ये हम सब को सोचना है। भारत माता की जय, जननी जन्म भूमि की जय, वंदे मातम , सलाम , नमस्ते , राम राम ,हेल्लो हुड मॉर्निंग क्या अंतर है। अगर हम माँ की सेवा और प्रेमो के दो  शब्द बोल गए , इतना ही चाहिये माँ को।
रमेश मुमुक्षु

(गांय की आत्मकथा डाबड़ी के कूड़ेदान से)

(गांय की आत्मकथा डाबड़ी के कूड़ेदान से)
हम निरीह प्राणी
डाबड़ी का कूड़ा दान
ही
लगता है
हमारा
भाग्य बन चुका है
धूप हो या कोई भी
मौसम
कूड़े से खाना ढूंढना
और कूड़ा ही खाना
बन चुकी हमारी
नियति
वैसे ये नया नही
दशकों से होता आया
है
पॉलिथीन में बंधा
बदबूदार कूड़ा
खाना
कितनी बार कोई
पैनी चीज़ और ब्लेड
भी आ
जाता है
अनाज और घास की खुशबू
हम  भूल चुके है
कितनी बात तो सड़ा हुआ
मांस
भी आ जाता है
और न जाने क्या क्या
ये आदमी विचित्र है
कितनी बार ले आता ही
पूरी और घी लगी रोटी
खिला कर फ़ोन
करेगा कि मिल गई गांय
फिर चला जाएगा
हमारी बुजुर्ग गायें बताती थी
खेतों और गांव की कथाएँ
हरा चारा खाना
खूब मचलाना और घास के
बड़े मैदान पर
घूमकर चरना
ये सब अब ख्याब बन गया
है
सुना है गौशाला बन गई
लेकिन हमारा भाग्य कहाँ
हमें तो डाबड़ी के कूड़े दान में
ही रह कर पेट पालना है
शाम को हमारा पालने वाला आता है
हमारे सूखे थनों से दूध
निकाल लेता है
शरीर में नही ताकत तो क्या
निकले है दूध
ये मानव नही समझता
हमे तो
खेत खलियान ही
भाता है
सूखा चारा घास खली और हरे चारे
के साथ
खेतों और घास के चारागाह
जहा हम पूरे
दिन उछलते कूदते
खाते पीते लौट आते थे
किसान नहलाता
कितना अच्छा लगता
था
कभी पानी
कभी चारा
चलता रहता था
लेकिन अभी
सब कहीं खो गया
बुजुर्ग बताते थे
हमें आवाज़ से डर लगता था
लेकिन हमारा जीवन तो डाबड़ी के कूड़े दान पर ही चलता
है
जहां पर चारो और गाड़ी ही गाड़ी
शोर ही शोर
रोज कुछ बच्चे भी आते
है
जो कूड़ा बीनते है
छोटे छोटे मैले कुचले बालक
फूल से बालक
दिल रोता है
जब वो किसी कूड़े से उठा कर खा लेते है
दुबले पतले कांतिहीन चेहरे
कूड़ा ही इनका जीवन
बन चुका है
कितना झगड़ जाते है
कुछ टूटा फूटा मिल जाता
है
कूड़ा बीनते बीनते
कितनी बार
लोग कहते है कि
गांय तो अभी पूरी भी नही
खाती
ओ अनजान मानव
जिसकी नियति कूड़ा ही हो
वो क्या जाने
पूरी हलवा
हमें कुछ नही चाहिए
बस खेत गांव
लौटा दो
हीरा मोती
दुलारी
कदली
सोनी
जैसे नाम होते थे
गले में घुंघरू
माथे पर तिलक
किसान कितना सहलाता था
अब तो मैले कुचैले बच्चे हमारे बछड़ो को
पीट देते है
हमेशा गाली ही देता है
दिन ढलता है
रात आती है
लेकिन भाग्य नही बदलता
डाबड़ी के कूड़ेदान
पर ही लगता है
जीवन थम गया
बदबू और पॉलीथिन तक ही जीवन सिमट गया
आंतों में अटक कितनी हमारी
बहनें मर जाती है
कहते है
हम पालतू है
लेकिन नही ये सच नही
हमारा भाग्य तो डाबड़ी के कूड़े दान पर ही
कट जाएगा
लो आ गए मैले कुचैले बालक
कचरे का बदबूदार बोरा
छोटी सी पीठ पर लटकाए
ठीक हमारी तरह डाबड़ी के
कूड़ेदान में कूड़ा बीनेंगे और
गली गलौज
कर किसी कूड़े में से निकली बोतल से कुछ पी लेंगे
कभी इनके हाथ सन जाएंगे किसी डायपर से
कभी हाथ कट जाएंगे
फिर वही कूड़े दान
के पास
ये
सिगरेट की चांदनी के
ऊपर रख
जला कर कुछ सूंघेंगे और
झूम उठेंगे
सच डाबड़ी के कूड़े दान
और हम सब
गांय ये सब देखते रहते है
एक कचरे की दुनियां
बदबू से भरी
हमारे भाग्य मे बधी
हमारा घर डाबड़ी का
कूड़े दान .....
रमेश मुमुक्षु

Sunday 18 March 2018

स्टीफेन हॉकिन्स को समर्पित

💐स्टीफन हॉकिन्स को
समर्पित💐
(यात्रा ब्लैक होल तक)
बचपन से मुझे ब्रह्मांड में
दूर एक बिंदु दिखता था
जो
मुझे लगता था
कि
निगल जाएगा
कायनात को
जो एक ही बिंदु
में सिमट रहा है
मुझे डरा  देता था
किसी बात को समझना
मेरे लिए
कठिन ही था
और
किसी की बात को मैं समझा
नही पाता था
मेरे संगी साथी मुझे दिखते ही नही थे
दिन रात बह्मांड , गुरुत्वाकर्षण, मेग्नेटिक आकर्षण और नाभिकीय बिंदु
मुझे
चैन से बैठने नही देते थे
जब मैं सुनता ईश्वर एक है तो मुझे
लगता की
अनेक
क्या हुआ
क्यों
एक
अधिक बड़ा होता है
एक और अनेक मेरे मस्तिष्क को जैसे
फोड़ ही देंगे
मेरा सिर फोड़ने का मन होता
मेरे साथी खेल में खुश रहते
मुझे खेलना ही नही आता था
बस पूरी
कायनात
मुझे अपनी ओर खींचती लगती
उम्र बड़ी मैंने आइंस्टीन को पढ़ा
तो मुझे लगा की
मैं ही अकेला
नही
सिर फोड़ने वाले मुझे से पहले भी रहे है
मुझे एक और डर सताता रहता
कोई मुझे मार देगा
परन्तु मुझे जीने की बहुत गहरी इच्छा थी
मुझे उस बिंदु को खोजना था
जो मुझे तंग किये था
यकायक मुझे लगने लगा
मेरा सारा शरीर मुझसे
कही छूट रहा है
मैं शरीर को थाम नही पा रहा हूँ
अपनी बीमारी सुन मुझे मौत का अहसास
हमेशा ही रहा
लेकिन मेरे दिमाग में
उथल पुथल
जारी थी
मस्तिष्क के भीतर
भी
एक ब्रह्मांड है
अरबों न्यूरॉन की चक्कर
लगाती
दुनिया जो एक दूसरे
को संदेश देते है
बिग बैंग और ब्लैक होल
मुझे
दिन रात घुमाते
मुझे लगता कैसे हुई ब्रह्मांड की उत्पत्ति
क्या था वो महाविस्फोट
हबल का रेड शिफ्ट कही
रुकेगा
कोई होगा
स्पेस लिमिट का कोई बिंदु
अल्बर्ट आइंस्टीन के प्रकाश की यात्रा का कही अंत होगा
प्रकाश से तेज कुछ चलेगा
क्या हम फैल रहे है
या
किसी बिंदु में सिमटने के लिए फैल है
क्या हमारा ईश्वर इसको संचालित कर रहा है
क्या ये सतत चलने वाला
खेल है
क्यों आइंस्टीन नही मानते थे
कि
कुछ भी केवल बाहर ही छिटक सकता है विस्फोट के बाद
अगर ऐसा ही होता तो
बिग बैंग क्यों होता
महाविस्फोट से पूर्व क्या था
चंद्रशेखर लिमिट के आगे
काले धब्बे  ही होंगे
महाशून्य
निपट काला
मुझे ताज्जुब हुआ
कि उस महाशून्य में प्रकाश भी समा जाता है
मैं ओर भी घबरा जाता
यूरेका यूरेका कहने का मन होता
लेकिन मेरा शरीर जैसे केवल मेरे मस्तिष्क को रखने के लिए
ही बना था
ब्लैक हाल के करीब
में जितना जाता उतना ही
मुझे आदमी ही हेंकड़ी पर तरस आता
आदमी मुझे केवल एक चूहे सा लगता
जो गड्डा खोद कर रहने के लिए स्पेस बनाता है
लेकिन मिट्टी से एक छोटा पहाड़ बना देता है
पहाड़ खोदता है तो गड्डा बना डालता है
एक दिन ये सिलसिला रुकेगा
क्या मैं थ्योरी ऑफ एवरीथिंग का सूत्र खोज सकूँगा
मानव एक यात्रा पथ पर
है
मानव  कछुए की पीठ
पर सवार
पृथ्वी से बहुत आगे निकल गया है
क्या एक ही महाशून्य होगा कि अनगिनत
तारे की मौत क्योंकर होती है
सूर्य का भी अंत होगा
तारे की मौत उसके कोर का ठंडा होना होता है
घनत्व का अंतहीन बढ़ना ब्लैक होल की शर्त है
सब कुछ इतनी तेजी से
भीतर और भीतर
सघनता से एक बिंदु में समाहित होना
किसी
महाविस्फोट की पूर्व स्थिति ही तो है
थ्योरी ऑफ एवरीथिंग ही समझा सकती है
ब्रह्मांड की उत्पत्ति के राज
मानव की ताकत
उसके गोले की और आने
और टकराने वाले
उल्का पिंड से अधिक नही है
क्या होगा पृथ्वी का अंत
क्या छोड़ना होगा इस गोले को
क्या होगा ऐसा कोई गोला जहां जीवन होगा
क्या  ब्रह्मांड की उत्पत्ति का रहस्य जान सकेगा
मानव
नैनो तकनीक से खोज सकेंगे
इन उलझे सवाल
पृथ्वी को अगर हम संभाल नही सकें
तो बढ़ता तापमान मानव का अंत कर देगा
ये तय है
क्या महाविस्फोट से  बड़ा है
हमारा एटम बम
पृथ्वी को मानव अपने हाथ से खत्म करने को तुला है
घर तो बदल सकेंगे
लेकिन क्या बदल सकेंगे
अपनी पृथ्वी  को
जी सकेंगे
किसी और ग्रह और तारे पर
मानव की सारी खोज
और
विकास का एक ही सूत्र है
गड्डा खोद कर वो पहाड़ बनाता है
और पहाड़ खोद कर गड्डा बनाता है
अब तय करना है
पृथ्वी पर रहना है
कि
कहीं अंतहीन ब्रह्मण्ड के किसी गोले पर जाना है
फिर ब्लैक होल मुझे घूर रहा है
अपने भीतर समाने को
इतना भीतर की
प्रकाश भी घनत्व में
लोप हो जाएगा
आदमी की हेंकड़ी और उसकी ताकत सूक्ष्म अति सूक्ष्म ब्लैक होल के सामने नगण्य है
या है ही नही
इसलिए चूहा बनना है
कि
कायनात की चाल
के साथ
उसके संगीत
रिदम का आनंद लेना
है
अभी महाविस्फोट से
उत्पन्न लहर की खोज
भी मानव को करनी है
लेकिन ये चूहे के
विकास से नही होगा
पृथ्वी के संसाधन स्वच्छ
और
निर्मल है
सतत है
निरंतर है
इसकी चाल के साथ
ही दूर तक
यात्रा संभव है
महाविस्फोट
से पहले
ब्लैक होल में
अस्तित्व
हीन होने से पहले
ये तय है
ये सोचना ही होगा .....
रमेश मुमुक्षु

Thursday 1 March 2018

भारत में पर्यावरण की बदहाली

(भारत में  पर्यावरण की बदहाली )
भारत विश्व पर्यावरण परफॉरमेंस में 180 राष्ट्रों में  177 वे स्थान पर लुढ़का , केवल बंगला देश और दो छोटे देश ही भारत से नीचे है। पाकिस्तान , नेपाल और श्रीलंका भी भारत से ऊपर के पायदान पर टिके है। चीन तो बहुत ही ऊपर है।
इतना नीचे होने की जिम्मेदारी केवल किसी सरकार की अकेली नही हो सकती। इसके लिए पूरा देश ही जिम्मेदार है ।
भारत महान देश है, इसका इतिहास गौरवपूर्ण था, भारत विश्व गुरु था और रहेगा , गंगा की एक बूंद मरते हुए व्यक्ति का तर्पण कर देती है, यमुना किनारे कृष्ण और गोपियों के रास भारत के इतिहास गौरव है, गीता समस्त ज्ञान का  एक मात्र अंतिम ग्रन्थ है, वेदों में विश्व का सम्पूर्ण ज्ञान निहित है। शांति मंत्र पढ़ते पढ़ते युग बीत गए । भारत ने ही पूरे विश्व को ज्ञान दिया ।
भारत में गंदगी को देख घृणा होती है। गंदा उठाने वाले भी तय कर दिए। सफाई की पराकाष्ठा वाले विश्वगुरु देश में आदमी की परछाई से भी हम अस्पृश्य हो जाते थे । छुआछूत ये ऊंचा वो नीचा हमारी विशेषता है।
एक दूसरे पर दोषारोपण करना हमारा राष्ट्रीय चरित्र है। पर निंदा और अपने मुंह मिट्ठू बनने में हम माहिर है। कोई 70 साल का , कोई 1000 साल का , कोई जाति का , कोई धर्म का  , कोई अंग्रेज़ का, सबसे बड़ा पश्चिमी सभ्यता का । अपने को ऐसा दिखाना की सब कुछ हमसे निकला है। इन सब पर मैं टिप्पणी नही करूँगा।
इन सब का कुल जोड़ है कि भारत के पर्यावरण की बदहाली दुनिया में 180 देशों की सूची में 177 नंबर पर है। शुक्र है बांग्लादेश हम से नीचे है। पाकिस्तान  और नेपाल भी  हम से ऊपर है। चीन तो बहुत ही ऊपर है।
ये सरकारों का नही ,क्योंकि सरकार हमारी होती है और हमसे होती है। हम लोग कानून तोड़ने के मास्टर है। कब्जा करना, अवैध निर्माण, अवैध माइनिंग, कहीं भी आग लगा देते है। उद्योग धंधों में निकलने वाले कचरे का कोई पुख्ता इंतजाम हमने नही किया। घुस और ले देकर कर लो हमारा राष्ट्रीय चरित्र है। इसमें पूरा देश जिम्मेदार होता है। ईमानदार की कद्र नही। आज ध्यान से देखने पर कड़वी सच्चाई सामने आती है कि समाज में ईमानदार लोगों की हालत ठीक नही। उनको आदर्श के रूप में नही देखा जाता। ये बात अपने आस पास ध्यान से देखो। जो लोग ले दे कर की संस्कृति पर विश्वास करते है ,  उनकी सेटिंग ऐसी होती है कि उनको पूरा सिस्टम सलाम करता है। दिल से न भी करे, लेकिन दिखावे में सही। मैं नही कहता कि अपने ईमानदारी के जज्बे को बदलो , क्योंकि ईमानदारी जज्बा है जो सिर उठा कर जीना सिखाता है।  लेकिन कानून तोड़ने वाले पूरी व्यवस्था को प्रभावित कर देते है। इसका प्रभाव बुरा होता है। हम केवल मौके का लाभ उठाते है। कानून को ले दे कर चलाने में विश्वास करते है तो सब कुछ कभी ठीक नही चल सकता। कहीं मकान बना लो , कैसा भी निर्माण कर लो। निकासी हो ,या न हो , बस कर लो देख लेंगे। ये हम सबका स्वभाव बन गया । चूंकि एक बड़ी जनसंख्या ऐसा सोचती और करती है ,तो व्यवस्था कहाँ से पनप सकती है।
इन सब के कारण हम दुनियां में इतने नीचे का पायदान पर है। अभी भी कोई अगर छाती पीटता है तो बहस का मुद्दा नही , यमुना किनारे खड़े हो कर यमुना को निहार ले । ऋषिकेश के वानप्रस्थ आश्रम जो राम झूला में स्थित है, उंसके बगल में एक नाला बहता है, जो पवित्र नदी ,जो कैलाश की जटाओं से निकलती है, मिल जाता है। कुछ दूर ही शाम को आरती भी होती है।
बस ऐसा ही सब और है। दिल्ली को हो ले , दिल्ली के पास अपना कोई पानी नही है। लेकिन निर्माण पर जोर है। दिल्ली में ऊर्जा की खपत पड़ती जा रही है। इसका दुष्प्रभाव हिमालय और उसकी नदियों पर ही पड़ेगा।
अभी वर्षों से बर्फ पानी कम होता जा रहा हैं , इस वर्ष तो ऊँचाई वाले क्षेत्र बिना बर्फ रह गए। लेकिन कोई चर्चा नही। जिनके पास  मोटा जुगाड़ वो तो हजारों रुपए देकर पानी भी पी लेते है। फ़ोन किया पानी हाज़िर। ये लोग शुद्ध खाना भी लेते है।
लेकिन एक आम आदमी खतरनाक केमिकल का सेवन कर रहा है। मिलावट भी हमारा राष्ट्रीय चरित्र बनाता आया है।
नेता और बुद्धिजीवी  उल्टे सीधे आंकड़े देकर कुछ भी कहते है। लोग जिस बात से खुश वो ही कहेंगे।
नदी साफ नदी से ही  नही होती अपितु पूरी कचरा निस्तारण की पुख्ता व्यवस्था से ही होती । अपने आस पास नज़र घुमा कर स्वयं ही अवलोकन कर ले ,हकीकत सामने आ जायेगी। देश की नदी की सफाई उस देश की सच्चाई स्वयं बोलती है। दिल्ली में यमुना एक गंदे नाले के रूप में बह रही है। साफ हवा केवल ईमानदार व्यवस्था से ही संभव है। सतत और सबको एक सूत में पिरो कर ही विकास आगे बढ़ेगा तो ही हमारा स्थान ऊंचा होगा , नही तो बांग्लादेश से भी नीचे लुढक सकते है, वो दिन दूर नही । देश  भाषण , दुष्प्रचार , भ्रामक आंकड़ों, दोषारोपण से नही साफ होगा। इस मिशन में कानून की स्थापना से शुरुवात करनी है। अगर कानून कब्जे को गैरकानूनी कहता है , तो इसका पालन होना ही चाहिए। ये एक बिंदु है , इसके अतिरिक्त कितनी चीज़े है , जिनके कारण देश गंदगी और वायु प्रदूषण से बुरी तरह प्रभावित है।
उपरोक्त बातों में कोई गलत नही है , ये सब सच्ची बात है। बस इनकी और फोकस करने मात्र से शुरुवात हो सकेगी। प्राकृतिक संसाधन संरक्षित रहे , केवल इस मिशन से ही देश आगे बढ़ सकता है। नदी और सभी स्रोत साफ और स्वच्छ रहे , ये राष्टीय मिशन होना चाहिए। जब कोई हमारा बड़बोलापन सुनकर यमुना और अन्य नदियों को देखता होगा , तो कथनी और करनी सामने आ जाती है। इस गैप को ही दूर करने का सबसे पहले मिशन लेकर आगे बढ़ना ही।
अगर देश को साफ रखना है तो।
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400