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Sunday 24 June 2018

18000 पेड़ बचाने है।

सेवा में
1. माननीय प्रधानमंत्री महोदय
2. माननीय केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय
3. माननीय केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय
3. माननीय मुख्यमंत्री , दिल्ली
4. माननीय केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय

विषय: दिल्ली का अपना जल नहीं ,बिजली अपनी नही  18000 पेड़ जो है , उनको काट दिया  जाएगा। ये क्या गड़बड़ झाला है, कौन सा विकास है ,किस के लिए,  सरकार जबाव दे।
मान्यवर महोदय,
अंधाधुंध विकास पहले ही देश के प्राकृतिक संसाधनों को लील चुका है। पर्यावरण परफॉरमेंस रिपोर्ट में 177 नंबर है, प्रदूषण में भी सबसे नीचे पायदान पर खड़े है। हज़ारों किलोमीटर नदियां प्रदूषित हो चुकी है। चारधाम में आल्वेदर रोड के नाम पर लाख पेड़ काटे जाने का सिलसिला शुरू हो चुका है। देश के हिमालयी क्षेत्रों में वर्षा और बर्फ का नैसर्गिक सिलसिला पिछले दो दशकों से बुरी तरह प्रभावित है। उच्च हिमालय पर ठंड कम और कचरा अधिक होता जा रहा है।
एवरेस्ट पर भी अमरनाथ और जम्मू की तरह भीड़ जाने लगी है। धर्म के नाम पर भी पूरी प्रकृति को रौंदने में कोई कसर नही। केदारनाथ समेत सभी पहाड़ों में दर्शन करने के लिए भले पहाड़ नष्ट हो जाये ,कोई लेना देना नही।  पवित्र स्थल जहां केवल देवता वास करते थे ,अब लोगों के पाखाने और कचरे से पाट दिए जाने की होड़ है। गंगोत्री की भैरों घाटी में हज़ारों अमूल्य देवदारु के जंगल काटने की जिद ने सरकार की आंखों में पट्टी बांध दी।
दिल्ली की स्थिति और भी खरनाक होती जा रही है। दिल्ली हिमालय को भष्मासुर की तरह निगल जाएगी। दिल्ली का अपना  जल नही है। टिहरी बांध के बाद अब पंचेश्वर की ओर निगह है। बिजली और पानी की जरूरत और भी बढ़ेगी और पहाड़ को लील लिया जाएगा। 
दिल्ली की लगभग 700 वाटर बॉडीज लगभग खत्म हो चुकी है और खत्म होने के कगार पर है। गांव समेत सभी बिल्डर्स, नेता, माफिया केवल बिल्डिंग बनाने में लगे है।
इसके अतिरिक्त पानी के रूप में एक बहुत बड़ा स्रोत नजफगढ़ झील को भी हरियाणा और दिल्ली सरकार स्वीकार करने को राजी नही। दिल्ली का सारा सीवर वापस यमुना में गिरता है। जल शोधन का काम जो पूरी दिल्ली में हो जाना चाहिए था, अभी तक नही हो सका।
सरोजिनी नगर, नेताजी नगर समय पुरानी सरकारी कॉलोनी पेड़ो से ढकी थी। उसको उजाड़ कर दिल्ली के प्रदूषण को और बढ़ाने की जिद दिल्ली ही नही आसपास के प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ने ही होगा। इसलिए समय आगया है कि सरकार की सतत विकास विरोधी नीतियों से सरकार चेता दिया जाए।
प्रार्थना एवं चेतावनी:
सर्वप्रथम रिडेवलपमेंट के नाम पर काटे जा रहे ,18000 पेड़ किसी भी सूरत में न काटे जाए, इस बारे में शीघ्र ही एक पत्र जारी करें। इसके अतिरिक्त निम्न बिंदु है ,जिनपर कार्यवाही करनी है।
1. सबसे पहले दिल्ली के सारे पानी के स्रोत  वाटर बॉडीज और झील सभी युद्ध स्तर पर पुनर्जीवित किये जायें। नज़फगढ़ झील को पूरी तरह वेट लैंड घोषित किया जाए। उसके लिए ग्रामीणों को भारी मुवावजा भी देने पड़े तो देना चाहिए। कितनी ऐतिहासिक
2. दिल्ली के एक एक बूंद पानी का का इस्तेमाल किया जाए। सभी कॉलोनी के सीवर के पानी को पुनः साफ करके वापस उपयोग लाया जाए। STP जल शोधन संयत्र युद्ध स्तर पर लगाये जाए।
3. पानी की व्यवस्था करने के बाद ही नए प्रोजेक्ट की बात सोची जाए।
4. सतत विकास के तहत सभी बड़े पेड़ बचाये जाए। जब तक नए पेड़ बड़े नही होते तब तक कोई भी पेड़ न काटा जाए।
5. इन पुरानी कॉलोनी को ग्रीन क्षेत्र भी बनाये जा सकते है। जिनमे पानी रिचार्ज और दिल्ली के प्रदूषण को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
एक बड़ा ग्रीन क्षेत्र पूरी दिल्ली के लिए लाभ करी होगा।
6. केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार किसी भी नए प्रोजेक्ट से पहले एक स्वेत पत्र जारी करें , जिसमे दिल्ली में पानी की उपलब्धता की पूरी जानकारी दी जाए।
7. पानी और ऊर्जा के स्रोत माने जाने वाले राज्य उत्तराखंड और हिमाचल पर भी पर्यावरणीय संकट करीब 2 दशक से छाया है। इस बात को भी गंभीतापूर्ण लेना होगा।
8. यमुना और बगल में हिंडन नदी को देख शर्म से डूबना चाहिए। गंदे नाले के रूप में सब कुछ परिवर्तित हो गया है।
9. देश की राजधानी दिल्ली को देश का  मॉडल होना चाहिए।
सभी मौजूद जल स्रोत और पर्यावरण की स्तिथि  आदर्श होनी चाहिए। 
10. दिल्ली के सभी 5 सितारा होटल, धार्मिक स्थल और सभी स्थान , कॉलोनी जहाँ पर जल का उपयोग अधिक है । वहां पर जल शोधन संयंत्र लगाकर पानी को पुनः उपयोग में लाने का काम युद्ध स्तर पर किया जाए।
11. बिजली की कमी को पूरा करने के लिए पूरी दिल्ली की स्ट्रीट लाइट , मार्किट की लाइट, कॉलोनी जो व्यवस्थित है , उनको सोलर से युक्त करना ही पड़ेगा ।

कचरे से भरी दिल्ली का आलम ये है कि नार्थ ब्लॉक के पिछवाड़े वित्त मंत्री जहां बैठते है और प्रधान मंत्री कार्यालय से करीब 80 मीटर दूर वर्षों से गंदगी का ढेर ज्यों का त्यों पड़ा है।
ये हमारे देश की विडंबना है और कड़वी सच्चाई।
धूल से भरी दिल्ली में पेड़ो की इतनी बड़ी कटाई के लिए  सभी दिल्ली वासी के लिए गंभीर सोच का विषय है। पार्टी लाइन से ऊपर उठ कर पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास के बारे में सबको सोचना ही होगा । अभी समय कम रह गया है। विश्व पर्यावरण में हो रहे प्रभाव से हम सब परिचित ही होंगे। दिल्ली की गहमा गहमी से दूर पर्वतीय प्रदेश में घूमने जाने वाले अगर नही चेते तो पहाड़ भी संकट में आजायेंगे । अभी संकट और गहरा रहा है। गंगा पार जो बांध रोके गए थे , उत्तराखंड उनको पुनः बनवाने का प्रयास कर रही है। ये गंगा प्रेम के छलावे का परिचायक है।
प्राकृतिक संसाधनो का उपयोग सविंधान के नीति निर्देश " Article 39 (b) that the ownership and control of material resources of the community are so distributed as best to subserve the common good" जनता का ही है। इस तथ्य से हम देश के नागरिकों को सोचना ही होगा , ये निर्णय मात्र मंत्री, अफसरशाही और उद्योगपति का ही नही होना चाहिए। भारत के नागरिक इस में पहल करें। सरकार जनता से है , जनता सरकार से नही ,इस बात को अब समय आगया है अपनाने का।
दिल्ली की इस विनाश लीला को रोकना ही होगा।

विनीत

(रमेश मुमुक्षु)
सामाजिक कार्यकर्ता
अध्यक्ष , हिमाल
पी यू सी एल ,
सदस्य, राइज फाउंडेशन
ग्रीन सर्किल , द्वारका
9810610400
मेल ramumukshu@gmail. com