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Thursday 15 September 2022

फ्लाइट लेफ्टिनेंट सुमित मोहंती मेमोरियल पार्क की स्थापना

फ्लाइट लेफ्टिनेंट सुमित मोहंती मेमोरियल पार्क की स्थापना
13 सितंबर 2022  को  सेक्टर 7 में एयर फोर्स एंड नेवल ऑफिसर्स (AFNOE) एन्क्लेव के बगल राइज फाउंडेशन के माध्यम से AFNOE , एयर विस्तारा एवं
फ्लाइट लेफ्टिनेंट सुमित मोहंती फाउंडेशन व द्वारका रेसीडेंट्स के आपसी सहयोग से  दो चरणों में 10 सितंबर व 13 सितंबर को मियावाकी  वन लगाया गया। करीब 3000 वर्ग फीट पार्क में 900 सैपलिंग जिसमें 25 स्थनीय प्रजाति भी शामिल थी। 
राइज फाउंडेशन के द्वारा ये बारहवां  मियावाकी प्रोजेक्ट सम्पन्न किया गया।  
अकीरा  मियावाकी ने शहरों में कम जगह पर कम दूरी में विभिन्न प्रजातियों के पेड़ों व झाड़ियों को इस तरह लगाने की तकनीक विकसित की कि कम जगह में कम समय में ही ये जंगल पनप जाता है। 
राइड फाउंडेशन के सह सचिव श्री मधुकर वार्ष्णेय ने अपनी कॉर्पोरेट की नौकरी के समय स्मार्ट सिटी के अध्ययन के दौरान कई देशों की यात्रा में  मियावाकी प्रोजेक्ट की जानकारी ली और उन्होंने अपनी संस्था के सहयोग से एन सी आर में इसको आरम्भ किया। एयरफोर्स एंड नेवल ऑफिसर्स  एन्क्लेव (AFNOE) सोसाइटी की मैनेजमेंट हमेशा ही पर्यावरण के कार्य में बढ़ चढ़ के हिस्सा लेती आई है। कुछ वर्ष पूर्ण इनके ऑडिटोरियम में पर्यावरण पर लेक्चर सीरीज आरम्भ की थी, मुझे भी वहां शामिल होने का अवसर मिला था।
एयर विस्तारा ने अपने सी एस आर द्वारा ये बहुत ही याद रखने वाली मदद की है।  वृक्षारोपण धरती को संरक्षित रखने व मानव द्वारा विनाश की प्रक्रिया को बाधित करने का एक बड़ा कदम है। राइज फाउंडेशन की सचिव श्रीमती माधुरी वार्ष्णेय रावत विगत कई वर्षों से राइज फाउंडेशन के माध्यम से विभिन्न सामाजिक कार्यो  में संलग्न है।
हमारी संस्था हिमालयन इंस्टीटूट ऑफ मल्टीप्ल अल्टरनेटिव लाइवलीहुड (हिमाल) द्वारा एच आई वी अनाथ बच्चों के तहत एक युवा को उसकी पढ़ाई आदि के लिए  आर्थिक मदद भी प्रदान की थी। राइज फाउंडेशन ने हमारी संस्था के द्वारा रूद्राक्ष वन आटी ग्राम, दन्या, अल्मोड़ा का दौरा किया । इस तरह राइज फाउंडेशन द्वारा विविध सामाजिक कार्य के माध्यम से सतत विकास के मार्ग पर चलने का प्रयास है। 
इस  मियावाकी वन को फ्लाइट लेफ्टिनेंट सुमित मोहंती मेमोरियल पार्क के रूप में बनाना वास्तव में सच्चा कदम है।मियावाकी  प्रोजेक्ट के बारें में अब धीरे धीरे लोग जानने लगे है। 2021 में उस वक्त के उपायुक्त एस डी एम सी ,नजफगढ़ जोन के श्री भूपेश चौधुरी ने ग्रीन यात्रा सामाजिक संस्था के माध्यम से इन्द्रप्रस्त एन्क्लेव द्वारका  सेक्टर 17, पॉकेट A2 ,नई दिल्ली में बहुत ही सुंदर  मियावाकी वन की स्थापना की है। वहां पर 90 प्रतिशत से अधिक पेड़ संरक्षित है। वहाँ पर विभिन्न वृक्षों से आने वाली हवा में खुशबू आने लगी है। 
राइज फाउंडेशन ने ब्रह्मा अपार्टमेंट में द्वारका का पहला  मियावाकी वन लगया था। ये पर्यावरण संरक्षण की राह में पॉजिटिव कदम है। 
लेकिन हम सब देश वासियों को देश के सघन वनों को कम से कम क्षति पहुँचाने  की कोशिश करनी चाहिए।  मियावाकी  वनों का तभी लाभ सही अर्थों में होगा, जब देश के सघन वन प्रदेश व जैव विविधता संरक्षित रहेगी।  देश को 33%वन कुल भूभाग में संरक्षित रखने और उसको बढ़ाने का बीड़ा उठाना होगा।  विकास का मॉडल हिमालय समेत पूरे देश के वनों व प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने का हो ऐसी  आवाज उठानी है। विकास आज बहुत सहज हो चला है। लेकिन वन प्रान्तर एक लंबी उद्विकास की  प्रक्रिया के माध्यम से पनपता है। 
इसके लिए हम सब को एक साथ आगे आना है। जितने सघन वन देश में होंगे ,उतना ही वातावरण शुद्ध और स्वछ होगा। प्राकृतिक वैविध्य ही पर्यावरण की असली कुंजी है।
देश तभी विकसित सही अर्थों में होगा, जब देश जल जंगल जमीन संरक्षित रहेंगे। हम सब देश वासियों को हिमालय में 3000 मीटर की ऊंचाई से ऊपर वाले क्षेत्रों को विशेष रूप से संरक्षित रखने और उनमें कम से कम मानव गतिविधियों व निर्माण  के मॉडल को अपनाना ही होगा।   आज हिमालय के हज़ारों प्राकृतिक स्रोत  सूखने के कगार पर है। इस बात को हम हमेशा याद रखे।  इसलिए चिपको आंदोलन का ये नारा सदैव हम सभी को प्रेरणा देता रहेगा। 
क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल 
9810610400
15.9.2022

Sunday 4 September 2022

यूं तो चांद देखने का उनको शौक था निकला था रात चंद पर वो नींद में रहे

यूं तो चांद देखने का उनको शौक था 
निकला था रात चंद पर वो नींद में रहे
 मेरी पुरानी कविता या ग़ज़ल की लाइन याद आ गई। ये चांद की फ़ोटो आई पी यूनिवर्सिटी के निकट के नाले के पास खड़े होकर खींची  ,नाले में प्रतिबिम्ब दीख रहा था। मोबाइल कैमरा अच्छी क्वालिटी का नही था। लेकिन चांद सूरज महानगर में भी दिखते है। भले वो सागर किनारे व पहाड़ो जैसे न दिखें। टूरिज्म के नाम से कई स्थान चांद सूरज दिखने के लिए प्रसिद्ध हो जाते है। वहां पर विशेषता तो होती ही है। लेकिन लोग ऐसे कैमरे लेकर खड़े हो जाते है कि वो चांद सूरज को देखें बिना नही रह सकते है। कितने लोग ऐसा भी कह देते है कि महानगर आदि में कहां पर चांद ,सूरज, सूर्यास्त फुल मून  दिखते है। उनका कहना पूरी तरह गलत भी नही है। ऊंची मल्टीस्टोरी बिल्डिंग के ग्राउंड फ़्लोर आदि से ये कहाँ देखा जा सकता है। लेकिन बहुत जगह है ,जहां से देखा जा सकता है।
लेकिन हमारे विकास के अनर्गल मॉडल ने आम आदमी को चांद सूरज से भी महरूम कर दिया है। लेकिन मित्रों कभी कभार कही न कही से इनके दर्शन हो ही जाते है। प्रकृति को कही भी निहारना मन को सकून तो देता है है। आजकल एक नया वर्ग बना है ,जिसको पहाड़, नदी का किनारा, पेड़ पौधों से बहुत प्रेम है, ऐसा वो कहते है। लेकिन रोज़मर्रा के जीवन में उनको इन सब से कुछ लेना देना नही । ये वो लोग है ,जिनको घर के आस पास कही भी पेड़ नही चाहिए, ये लोग पार्क में पेड़ बढ़ जाये तो जंगल बढ़ रहा है ,कहने लगते है। कोशिश भी करते है कि ये हट ही जाए। लेकिन पहाड़ो में इनको जंगल के पास जमीन चाहिए। महानगर तो पानी के स्रोत लील ही गया है।  लेकिन नदी किनारे जमीन चाहिए । 
लेकिन चांद सूरज और प्रकृति कभी भेद नहीं करती , अभी पिछली पूनम की रात मैं पहाड़ो में था, कल पैदल आते आते चंद्रमा और नीचे गंदे नाले में चांद में चांद का प्रतिबिंब दिखा तो फ़ोटो लेने का मन हो गया। अगर रूटीन में प्रकृति के किसी भी रूप में हम करीब रहे। भीड़ भाड़ वाली सड़क से भी खूबसूरत सूर्यास्त के दर्शन हो ही जाते है।लेकिन वो पहाड़ो और सागर जितना सुंदर न भी हो लेकिन आनंद तो देता है है। दिल्ली जैसे महानगरों में भी हर सीजन में पेड़ों पर फूल, नए पत्ते, पतझड़ आते जाते ही है। उसकी खूबसूरती का लुत्फ उठाया जा सकता है। द्वारका जैसे उपनगर में तो पार्कों और पेड़ो की कतारें और कैनोपी बहुत खूब सूरत लगती है। अमलतास और अन्य पेड़ों पर फूल दिख ही जाते है। प्रकृति के दर्शन करने की आदत वाले पर्यटन के नाम पर बवाल और  उतावलापन नही  करते है।  मनुष्य ने ही अनाप शनाप विकास से खुद को प्रकृति से दूर कर लिया। बस नज़र उठाने भर की बात है , बहुत कुछ दिख जाता है , नजरिया ही तो बदलना है। 
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
4.9.2022

Tuesday 30 August 2022

श्रीमती सिसली कोडीयान से अंतरंग मुलाकात: हमेशा याद रहेगी।

श्रीमती सिसली कोडीयान से अंतरंग मुलाकात: हमेशा याद रहेगी।
कल श्री उमेश काला , गंगोत्री अपार्टमेंट की RWA के 4 बार अध्यक्ष रहे है, ने किसी बुजुर्ग समाज सेविका से मिलना है कि बात कही । मैंने उनका नाम पुछा तो उमेश ने कहा कि कोई कोड़ीयान  मैडम है। मैंने तुरंत कहा कि सिसली  कोडीयान होंगी ,जिनको अधिकांश द्वारका के लोग जानते ही है।
उनकी संस्था  का नाम ANHLGT  (Association of Neighbourhood Ladies Get-,Together ) वर्षों से लोगों ने सुना ही है। बड़ी तादाद में महिलाएं ANHLGT की मेंबर है।
   ANHLGT का मिशन रहा है , ग्रीन , क्लीन, ब्यूटीफुल, सेफ एंड हेल्थी सोसाइटी , जिसके अनुसार ये सब विशेषकर बच्चों के साथ काम में लगे हुए है। 
सिसली कोडीयान मूलतः केरल राज्य की है।  उनका जन्म कोडनाड जिला एरुंगला , kadanad, district Erangla , हुआ था।  वयोवृद्ध होने के बाद भी उनका उत्साह देखते ही बनता है। आरंभिक शिक्षा उन्होंने संस्कृत में ली थी। बचपन से ही उनके भीतर समाज के लिए कुछ करने की ललक उनके माता पिता से मिली। इनके पिता भी समाज सुधार के विभिन्न कार्यो से जुड़े हुए थे।
पढ़ना पढ़ाना उनके लिए एक मिशन ही था। उन्होंने काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर और बाद में रूस के कल्चरल सेंटर में सहायक पुस्कालयाध्यक्ष के रूप में काम किया।
उन्होंने बातों बातों में बताया कि विवाह से पूर्व उनको भारत के प्रथम राष्ट्रपति स्व. राजेन्द्र प्रसाद जी के पोते व उनके भाई के बच्चों को गणित व इंग्लिश की ट्यूशन पढ़ाने का अवसर मिला , उस समय उनको सब लोग  मास्टरनी कहा करते थे। उनका विवाह स्व. पी के कोडीयान  से हुआ, जो एर्नाकुलम में वायपिन vypeen आइलैंड के रहने वाले थे ।  ये सुन मुझे रोमांच हुआ क्योंकि मैं  वायपिन आइलैंड 1985 अपने मित्र अजय के साथ एक रात रहा था । उनके पति  तीन बार दूसरी, छटी व सातवी संसद में सांसद रहे। उनके पति ने ही खेत मजदूर संघ की स्थापना की ओर 1968 में देश भर से 5 लाख  मजदूरों को दिल्ली बुलाकर न्यूनतम मजदूरी जैसी मांग की। वो भी बहुत ही ईमानदार व्यक्ति थे।
उनके पति सामाजिक कार्य में लगे रहते थे।  सिसली कोडीयान ने बताया कि कितनी बार उनको अपने पति को उनके कामों के लिए पैसा देना होता था। ऐसे नेताओं को उन्होंने देखा , जो आज एक सपना ही लगता है, जो गुजर गया। 
लेकिन सिसली कोडीयान जी ने अपने बच्चों की पढ़ाई और उनकी प्रगति के लिए भी एक मिशन की तरह काम किया। लंबे समय उनका सम्बंध नेताओं से रहा ,लेकिन वो ह्रदय से   समाज सेवा में ही रही।
इसी कारण उनके बच्चों ने जीवन में बहुत तरक्की भी की।
नार्थ एवेन्यू में रह कर उन्होंने संसदीय शिशु विद्यालय की स्थापना भी की। भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी उनके विभिन्न सामाजिक  कार्यों में मदद की। 
उन्होंने बताया कि एम पी कैंटीन का भी उन्होंने संचालन किया। 
उनका मिशन रहा कि बच्चों में वैज्ञानिक सोच का प्रचार हो , इसलिए उन्होंने भारत व विदेशी वैज्ञानिकों की जीवनी भी लिखी कि वो बचपन में कैसे थे और उनके भीतर विज्ञान कैसे पनपा। उन्होंने करीब 12 पुस्तक लिखी है, अभी भी लिख रही है।
जैसा होता ही है, उनके साथ बहुत संख्या में मेंबर जुड़े हुए है, लेकिन अधिकांश सभी विभिन्न कार्यों में व्यस्त रहते है। 
उनका मिशन है कि द्वारका के पॉकेट व सोसाइटी के बच्चें छोटे छोटे पौधे स्वयं से लगाये ताकि उनके प्रति उनके भीतर अनुराग व भाव पैदा हो सकें।
सरकार ने उनको सेक्टर 23 के सामुदायिक केंद्र में एक कमरा भी प्रदान किया है ,जहां पर उन्होंने आफिस के साथ पुस्तकालय भी खोला हुआ है। उनका कहना है कि वर्तमान रक्षा मंत्री श्री  राजनाथ सिंह ने उनको ये आफिस सौंपा था।
उमेश काला जी जो बहुत ही जुझारू व्यक्ति है, उन्होंने वहीं बैठकर कितनी ही पॉकेट में वृक्षारोपण के बारें में बात कर ली।
उनके साथ विभिन्न विषयों पर चर्चा हुई। उनका लम्बा समय नार्थ, साउथ एवेन्यू व वी पी हाउस में ही बीता, 2001 अपने पति की मृत्यु के उपरांत वो वहां से बाहर गई। उपरोक्त जगहों पर वो लोग एक साथ मिलकर रहते थे, सभी त्यौहार मिलकर मानते थे। लेकिन जब वो द्वारका आईं तो एक दम नए माहौल में उन्होंने खुद को पाया। उनकी इच्छा है कि सभी लोग आपस में प्रेम व भाई चारे से रहे। पर्यावरण के प्रति सजग रहे और बच्चों में इन सब बातों की बचपन से ही डालना जरूरी है। 
उनके साथ इस तरह उनके घर में फॉर्मल बात चीत में आनंद आया और उम्र कभी काम में बाधा नही होती, 93वे वर्ष होने के बावजूद उनकी उनकी आंखों की चमक ने स्वयं ही कह डाला।
लंबे समय तक ये मुलाकात याद रहेगी। जल्दी ही किसी पॉकेट में उनके साथ वृक्षारोपण,  उनके द्वारा शपथ 
OATH
Let there be always peaceful Earth
Let there be always cheerful Earth
Let us protect our mother Earth
Let us make Dwarka clean and beautiful
Let us make Dwarka safe and healthy 
Let us live in social solidarity
Let us live with community responsibility
Let us live in unity without hatred against cast creed or religion
 व सर्टिफिकेट बच्चों को प्रदान करते हुए कुछ समय दिया जा सकता है। उनसे बात करने के बाद मन समाज में समर्पण, फक्कड़ की तरह लगे रहना का अहसास स्मरण हो उठा, जो आज सपने की तरह लगने लगा है। समाज के प्रति ईमानदारी से लगे रहना , किसी भी व्यक्ति को अकेला कर सकता है।  लोग तारीफ करेंगे और लेकिन कब एक किनारा कर ले, ये कह कठिन है । जब विवेकानद जैसे महान संत ऐसा अनुभव करते थे, तो ये ही प्रसाद होता है और ये ही होता है, परितोष। तनिक मन करुणामय होता है, फिर यात्रा पथ पर निकल जाता है, रविन्द्र नाथ टैगोर की कविता  "जदि तोर डाक शुने केउ ना आसे तबे एकला चलो रे"......कहीं भीतर से यकायक उभर आई।

रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
30.8.2022

Friday 19 August 2022

कृष्णजन्मष्टमी : संत कवियों के मुख से।

कृष्णजन्मष्टमी : संत कवियों के मुख से।
"सेस महेस, गनेस, दिनेस, सुरेसहु जाहिं निरन्तर गावैं
जाहि अनादि, अनन्त अखंड, अछेद, अभेद सुवेद बतावैं
नारद से सुक व्यास रटैं, पचि हारे तऊ पुनि पार न पावैं
ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भर छाछ पे नाच नचावैं ":रसखान द्वारा रचित काव्यपंक्ति श्री कृष्ण के होने का पूरा विवरण प्रस्तुत करती है। 
 सूरदास की काव्यपंक्तियों का आनंद ले:
मैया! मैं नहिं माखन खायो।
ख्याल परै ये सखा सबै मिलि मेरैं मुख लपटायो॥
मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।
मो सों कहत मोल को लीन्हों तू जसुमति कब जायो॥
कबहुं चितै प्रतिबिंब खंभ मैं लोनी लिए खवावत॥
दुरि देखति जसुमति यह लीला हरष आनंद बढ़ावत।
सूरदास के पदों का आनंद ले ,उनके बारें में कहां जाता है कि वो सबसे महान कवि थे ।
बिहारी ने लिखा है: 
भक्ति या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोइ। 
ज्यौं-ज्यौं बूड़ै स्याम रँग, त्यौं-त्यौं उज्जलु होई॥ 
मनुष्य के अनुरागी हृदय की वास्तविक गति और स्थिति को कोई भी नहीं समझ सकता है। जैसे-जैसे मन कृष्ण-भक्ति के रंग में डूबता जाता है, वैसे-वैसे वह अधिक उज्ज्वल से उज्ज्वलतर होता जाता है।
"सूर सुर तुलसी शशि ।,उडगन केशव दास।
अबके कवि खद्योत सम ,जहँ तहँ करहिं प्रकाश ।।"
गोपियों की तरह कान्हा को दूर से स्मरण  करें और पढ़े ऊधव गोपियाँ संवाद : 
"ऊधौ मन ना भये दस-बीस
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, कौ आराधे ईस ।"
राधे कॄष्ण राधे कृष्ण
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष हिमाल
9810610400
18.8.2022

Monday 8 August 2022

पढ़ाई से दूर : वो करता है काम

पढ़ाई से दूर : वो करता है काम
एक दिन मैं काम करते बालक को देख रहा था
काम में तल्लीन 
एकाग्रचित जैसे किसी मिशन में
लगा हो
उम्र कम ही प्रतीत हो रही थी
आखिरकार मैंने पूछ ही 
लिया उसकी उम्र
16  साल मुस्कुराते हुए उसने कहा
पढ़ाई नही की
सहसा मैंने पूछ लिया
आठ तक 
वो तपाक से बोला
आगे क्यों नही पढ़ा 
उसने कहा कि पैसा कहा से लाते
पढ़ाई फ्री होती है , मैंने कहा
पढ़ाई से नौकरी कहाँ मिलती है
पैसा तो चाहिए ही जीवन के लिए
पढ़ाई से नौकरी
पढ़ाई से ज्ञान व जानकारी
ये सारे तर्क जैसे छू मंतर हो गए
लेकिन निगाहे उस पर टिकी रही
16 साल का बच्चा 
घरों में कितने लालन पालन से रहता है
उसके पीछे परिवार रहता है
उसके खाने पीने और कपड़े की फरमाइश खत्म ही नही होती
यूनिफार्म पहन वो कितना सुंदर दिखता है
लेकिन निगाहे पुनः उस लड़के की ओर चली गई
फिर अवसर मिलते ही 
पूछ लिया कि भाई बहन है
वो पढ़ते है
वो उनको पढ़ाना चाहता है
अद्भुत बच्चा बच्चे को पढ़ाना चाहता है
बात होती है
हर रोज करता हूँ
वीडियो कॉल भी होती है
उस वक्त मुझे मोबाइल 
का महत्व समझ आया
उसके लिए मोबाइल 
घर पर परिवार से बात करने के लिए था
लेकिन फिर मैं सोचने लगा कि हमेशा इसी काम में रहेगा
मिस्त्री से अगर बन सका तो राज मिस्त्री
इस उम्र में इतनी मेहनत और अपने काम में बहुत कुछ सीखने का जज्बा मैं देखता रहा
संगीत, कला, हुनर ,संस्कार की नींव बचपन में ही रखी जाती है...
फिर घर के बच्चें दिखने लगे
उनका लालन पालन
तभी स्मरण आ गया आदि शंकराचार्य, संत ज्ञानेश्वर, बाबा अलाउद्दीन खान ऐसे कितने नाम जहन में तैरने लगे जो बचपन से ही अलग अलग राह पकड़ निकल गए असीम दुनियां में, 
हालांकि कभी इनका भी बचपन होगा,जब किसी ने मेरी तरह इनको देखा होगा, और उनके बारें में सोचा ही होगा
लेकिन आदमी परिणाम से ही देखता और किसी को तोलता है
यात्रा कौन देख पाता है
केवल यात्री ही समझ सकते है
यात्रा का ठंडा गरम ऊंच नीच,....
लेकिन फिर सामान्य अवस्था की ओर ध्यान लौट गया
ये व्यवस्था , देश ,कानून से परे की बात है
ये बच्चा काम सीखने और करने में तल्लीन था
ऐसे कितने बच्चें होंगे जो बहकाकर ,उठा कर कही गुम हो जाते होंगे
अपराध, नशा, और न जाने किन किन गलत से बहुत गलत ग़ैरमानूनी कामों में लगा दिए जाते है
उनके अंगभग कर भीख तक के लिए  दरिंदे लगे है
कौन होते है,ये दरिंदे संभव है ,वो भी कम उम्र में हुए हो गायब या समाज की इस घिनौनी दुनियां में फंसे हुए गंदी नाली के कीड़ों की तरह जीवन जी रहें हो
भाव से रहित , इनके भीतर नफ़रत बहुत गहरी पैठ जाती है , उनके विवेक को हर लेती है
विवेक पर अंधकार छाया तो ज्ञान व समझदारी कही दुबक जाते है
विवेकहीन व्यक्ति और ताकत सर्वनाश की ओर ही जा सकता है,ये तय है...
लेकिन फिर मेरा ध्यान इस बच्चें पर केंद्रित हो गया
यकायक उसने अंकल जी चाय ले लो कहा 
तो मैं फिर पहले की अवस्था में उस बच्चें की मुस्कराहट को देख कुछ क्षण पूर्व समाज  की घिनौनी दुनियां से बाहर आया
समाज, शिक्षा, रोजगार, दर्शन, कला, साहित्य, राजनीति, चुनाव, कोर्ट, संसद धर्म,जाति ,क्षेत्र , दुनियां, युद्ध, परमाणु ताकत , व्यापार,  शेयर मार्केट, शराब व नशा माफिया, कच्ची शराब के पनपते तस्कर  की बहस में उलझा समाज और मेरे सामने काम करता बच्चा ,उसके चेहरे  पर सच्चाई, उसकी हंसी को देखता सोचता चाय की चुस्की लेने लगा, तभी दूर पहाड़ पर बादलों ने अपना वितान तान लिया
प्रकृति शाश्वत और सत्य है
इसके नज़ारे अनंत और असीम है
यकायक वर्षा की बूंदों ने तंद्रा तोड़ी चाय का गिलास लिए भीतर जा कर बूंदों को निहारता हुआ
उस प्रकृति के आनंद को लेने लगा जो सत्य और अनादि है
हम तो केवल यात्री है
सच में यात्री जो यकायक लोप हो जाएंगे जड़ चेतन से ये ही अटल सत्य है और सतत ...
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
8.8.2022
4.47
 रमिया काफल

Sunday 10 April 2022

प्रकृति का दर्द: सुनेगा मानव

प्रकृति का दर्द: सुनेगा मानव

हम जंगली वन्य जीव, वृक्ष ,
जिन्हें इस मानव ने
 जब मर्जी हुई अपने रास्ते और सुविधा के लिए बेरहमी से हटा दिया।
ये इसकी किस्मत है कि 
ये हमारे पूर्वज सरिसृप के बहुत बाद में अवतरित हुआ, 
वरना उनके सामने ये चींटी सा लगता
हम इस पृथ्वी में मानव से पहले आये
लेकिन इसने धीमे धीमे सब कुछ लील लिया
उजाड़ दिया जहाँ इसका मन हुआ
ये भूलता है कि पेड़ों के नीचे 
प्रकृति के बीच जाकर ही इसके भगवानों को ज्ञान प्राप्त हुआ 
और इसने उनके शिवालय और स्मारक बनाने के लिए पेड़ और जंगल भी जब चाह नष्ट किये
हज़ारों वर्षो तक जीवित रहने वाले हमारे वृक्ष 
सिकोया, बाओबाब ,एस्पन के जंगल भी नष्ट कर दिए
जो हज़ारों साल जीवित रह सकते है,
एस्पन का जड़तन्त्र लाखोँ साल तक चेतन अवस्था में रह सकता है 
सागर के डेल्टा में मौजूद हमारे रिश्तेदार मैन्ग्रोव के को भी इसने नही छोड़ा ,ये डेल्टा भी नही छोड़ेगा
इसने केवल गंदगी ही पैदा की है, सागर के जल को भी नही छोड़ा
लेकिन ये मानव कंकरीट के जंगलों के निर्माण में लगा है ,
जो सौ साल भी रह सकेंगे खड़े
हाँ मानव के पूर्वज सैकड़ो साल तक मौजूद रहने वाले निर्माण करता था
इसको हर जगह जल्दी और बेरोकटोक जो जाना है
भले हम प्राणी और वृक्ष खत्म होते रहे
ऐसा मूर्ख है कि लौट लौट पुनः वन की ओर जाता है 
और वहां पर भी अपनी सुविधा के अनुसार हमको दूर करता रहता है
हज़ारों साल से बना हमारा आपसी रिश्ता इसने दो सदियों में ही लील लिया
जल,थल ,नभ इसके लिए केवल 
उसकी सुविधा के लिए मार्ग ही है
जिन ज्ञान ग्रंथो व चिंतन की ये बात करता है, उनके मनीषी सहस्रों किलोमीटर पैदल ही 
भूमि पर चलते चलते इतिहास रच गए
शंकर, नानक समेत  लंबी फेहरिस्त है, ज्ञान साधक और ज्ञान स्थापकों की 
जो विवेकानंद को सागर की  ओर खींच लेती है, ज्ञान के चक्षु खोल देती है
लेकिन हम उनके हर स्थान को लील रहे है
शांति को उजाड़ कर उनके नाम से ध्यान के ढोंग में तल्लीन है
सघन वनों की बलि चढ़ा कर धार्मिक यात्रा पथ को सुगम करने की होड़ प्रकृति में व्याप्त सुमधुर संगीत को बेसुरा करने की जिद मानव के पूर्वजों द्वारा दीक्षित ज्ञान को स्वाहा कर न जाने किस दिशा की ओर बेसुध सा  भागा जा रहा है
खगचर की नाना कलरव , झींगुर की आवाज़, हवा का सर सर बहना, कल कल करती दूर घाटी से उठती नदी का कर्णप्रिय संगीत, जलप्रपात का सघन नाद जो अपनी ओर आकर्षित करता है
उच्च हिमालय क्षेत्र में व्याप्त बर्फ का पिघलता साम्राज्य जो भय उत्पन्न करने लगा है
मौसम का  बेतरतीव बदलता रूप प्रलय की आहट ही तो है
धुंध के बीच चलना अब जाता रहा है।
देवदार के जंगल के बीच जाने से ही उसके होने को महसूस किया जा सकता है
भोजपत्र की चर्चा हमेशा करता रहा, लेकिन वो भी अब कही खो गए। इसको अभी तक समझ नही आया है कि ये रास्ते सुंदर और लंबे तो बना लेगा, लेकिन जाएगा कहाँ और कहां पहुँचना चाहता है??
हम जंगली समझे जाने वाले प्राणी कैसे अपनी बात कहे 
प्रकृति का विलाप  सुनाए ,
लेकिन 
ह्रदय हीन मानव  कुछ प्रकृति प्रेमी  ही है,  कला से ओतप्रोत कुछ पंक्तियां स्मरण हो चली
महाकवि  स्व: शंकर  कुरूप की मलयालम के काव्य संग्रह ' ओटक्कुषल (बांसुरी) 
"यह वनस्थली खड़ी है
विविध पुष्पचीन्हों से सज्जित 
हरित साड़ी पहनकर अपने कोमल शरीर पर अकारण अंकुरित पुलक से सिहरी
पक्षियों के कलरव से बारंबार कलहास करती हुई"  
मानव के इसी रूप को देख कविवर सुमित्रनंदन पंत ने लिखा 
"सुंदर है, विहग ,सुमन सुंदर 
मानव तुम सबसे सुंदरतम "
सुन कर ये पंक्तियां  मानव के प्रति आदर होने लगता है। काश इसको ये अपने जीवन में उतार लें तो हम सभी प्राणी ,वृक्ष, खगचर मिलकर रह सकें, क्या ये हो सकेगा , भविष्य में.....???
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
9.4.2022

Tuesday 1 March 2022

मानव कर सकेगा शिव की अर्चना

*मानव कर सकेगा शिव की अर्चना*
कैलाश पर बैठे ध्यानस्थ 
सर्पों को गले में धारण 
किये भभूत मले शरीर 
में 
जटाओं में 
भागीरथी की स्वच्छ धारा 
को बर्फीले साम्राज्य 
के घमंड रहित 
सम्राट 
गण , भूत , पिचास 
से घिरे 
डर भय जिनके 
पैरों पर गिर कर
अपने को लोप 
कर देते है
त्रिशूल  गाढे 
तीसरी आंख 
को बन्द 
किये 
अर्द्ध नेत्रों से  संसार 
के जड़ चेतन के ज्ञाता
डमरू 
के स्वामी
आकाश पाताल
समेत सम्पूर्ण सृष्टि
के रक्षक 
को क्या हमारे जैसे
तुच्छ 
स्वार्थी प्रकृति के भक्षक 
शिव की जटाओं से 
निकली स्वच्छ 
जल की 
धारा 
से बनी गंगा 
को भी अपनी 
निकृष्ट 
स्वार्थी 
नियत और सीरत से 
लील कर 
अपनी कलुषित 
मानसिकता
के अनुसार 
मैला कर देने
वाले
बर्फ के साम्राज्य 
को भी खत्म करने 
को आतुर 
अपने को शिव भक्त 
कह कर
गर्वान्वित अनुभव करते
शिवरात्रि 
पर
आडम्बर कर
प्रसन्न करने 
का ढोंग करते
नहीं थकते
झूट स्वार्थ
लालच 
से भरा 
क्या शिव की अर्चना कर सकेगा
भोले को भोला समझ 
भांग धतुरा सुल्फा 
शिव का भोग समझ 
अपनी स्वार्थ की 
पूर्ति करता है
जो 
अपने आराध्य 
के सिर से 
निकली जल धार 
को नहीं साफ़ रख 
सका 
वो क्या शिव की अर्चना करेगा
अब तो वो शिव की तीसरी आंख से भी डरता नहीं
क्या शिव खोलेंगे अपनी
तीसरी आंख 
नहीं 
क्योंकि
आदमी ने स्वयं अपनी
मौत का 
सामान जुटा 
जो लिया है
जल जंगल जमीन 
समेत सब कुछ लील 
कर 
क्या हो सकेगी 
शिव अर्चना
हाँ अभी भी 
किसान , मजदूर 
वनवासी समेत वो सभी जो 
मानव और प्रकृति 
की सेवा में
लगे है
शिव की मूर्ति 
नहीं 
उनके 
पास प्रतिक 
को ही शिव 
समझ 
पूरी तन्मयता 
से सजीव को करते है
स्मरण
उनके निश्चल प्रेम 
को भी देख नहीं 
खोलता शिव 
अपनी तीसरी आंख
मानव की 
नीचता को देख
वो तांडव करने को तैयार 
है
लेकिन वो शिव है
अवसर देना
क्षमा करना 
उनका स्वाभाव है
वो भोले है 
लेकिन भोले नहीं
कुछ ऐसा करें की 
न खुले उनकी 
तीसरी आंख
एक क्षण 
में स्वाहा हो 
जायेगा 
हमारे स्वार्थ का
साम्राज्य
शिव की अर्चना 
उसकी जटा 
से निकली  
धारा अविरल 
निर्बाध 
बहने दो
शिव नहीं कहता
की उनकी तरह कैलाश 
पर रहो 
लेकिन 
ऐसा मत करों की 
कैलाश 
पर ही संकट 
आजाये
संभव है 
कुछ इस तरह 
उसकी अर्चना 
हो सकती
है
शायद......
रमेश मुमुक्षु
2.2.2018 
Old poem

Friday 25 February 2022

विश्व शांति और आणविक हथियार: क्या कुछ बदला है?

विश्व शांति और आणविक हथियार: क्या कुछ बदला है?
रूस : 6225 आणविक हथियार
अमेरिका: 5550
चीन: 350
फ्रांस: 290
यू के : 225
पाकिस्तान: 165
भारत:  160
इजराइल : 90
नार्थ कोरिया : 40
रूस की जनसंख्या करीब 14 करोड़ , देश का क्षेत्रफल 1 करोड़ 71 लाख वर्ग किलोमीटर , 
अमेरिका की जनसंख्या 32 करोड़ देश का क्षेत्रफल 98 लाख वर्ग किलोमीटर , 
चीन की 1 अरब 40 करोड़ , क्षेत्रफल 95 लाख वर्ग किलोमीटर,
भारत जनसंख्या 1 अरब 35 करोड़ ,क्षेत्रफल 32 लाख वर्ग किलोमीटर 
पहले तीन देशों का क्षेत्रफल , जनसंख्या आणविक हथियार बहुत ही अधिक है।
रूस और अमेरिका के पास विश्व के सबसे अधिक आणविक हथियार है।
इनके बाद चीन आता है  , जिसके पास 350 ही है। इतने आणविक हथियार वर्तमान दुनियां के पास है।  जापान में दो बम छोड़े गए, वो थे ,लिटिल बॉय और फेट बॉय ,जिस कारण करीब 2 लाख जनसंख्या मारी गई।
लिटिल बॉय एटम बम 15 किलोटन था। अभी  अमेरिका के ट्राइडेंट 455 kt Submarine Launch Ballistic Missiles 
रूस के पास एस एस , 800 kt Intercontinental Ballistic Missile . सामान्य भाषा में कहें तो विश्व एक बटन दबाने से ही नष्ट हो सकता है । जब 15 और 22 किलोटन बमों ने 2 लाख तक लोगों को मार दिया और अब इनकी मारक क्षमता  की तुलना ही नही की जा सकती है। लेकिन आज भी मनुष्य मनुष्य के विरुद्ध कुछ कुछ करता है।  आदिम प्रवृति अपनी बेसिक स्टिंक्ट आजतक  नही बदल सका है। स्वाभाविक प्रवृति/ प्रकृति में आज भी संघर्ष पाया जाता है। इसी का उद्विकास पत्थर के हथियार से आणविक हथियारों तक पहुँच गया। पत्थर मार कर दुश्मन को भागना या हराना और आणविक हथियार से दुश्मन को परास्त करना मूलतः एक ही है। हम लोग अगर हिसाब लगाएं तो आपस में मनमुटाव, मतभेद , बुराई आदि में लगे रहते है। आजकल चुनाव का सीजन है, हम सब देख सकते है। होड़ लगी रहती है कि किसकी कितनी बुराई करें। ये हम जैसे आम लोगो से लेकर सभी मनुष्यों में पाया जाता है।  कभी जानवरों को लड़ते, घुर्राते हुए देखों और मनुष्यों को लड़ते देखों तो एक जैसा ही लगता है। विश्व की सभी इतिहास, कहानी और सभी मीडिया में हिंसा का अपना अपना पक्ष ही दिखता है। 
लेकिन मानव विकास में इसकी उद्विकास की यात्रा में धर्म, आध्यत्म,  संगीत, कला,
 के समस्त रूप दर्शन और आत्मचिंतन जैसे मार्ग खोजे ताकि मानव के भीतर संघर्ष और दुश्मनी जैसी प्रवृति को कम करके अहिंसा, शान्ति एवं सहअस्तित्व व सतत विकास के मार्ग पर अनंतकाल तक मानव यात्रा करता रहे। लेकिन उसके संघर्ष के बीज अब पेड़ बन चुके है। 
एक बटन पूरी मानव जाति को नष्ट कर सकता है। ये विकास और मानव विकास की  कुल पूंजी है। आश्चर्य की बात है कि मनुष्य हिंसा नही करना चाहता। लेकिन आपसी विश्वास आजतक पूरी तरह नही पनप सका। अचानक डर जाना, अचानक हाथ उठ जाना ,ये आदिम भय और वृति आज भी हमारे भीतर मौजूद है।इसी की पराकाष्ठा आणविक हथियार है। 
एक विचार ऐसा भी है कि आणविक हथियार है,  तो तीसरा विश्व युद्ध नही होगा। इस विचार के कारण आणविक हथियार दुनियां में बढ़ते ही  जा रहे है।  शांति हथियार के बिना संभव नही। ये विचार और अवधारणा विश्व को आणविक खतरे में धकेल रहा है। आजतक हम युद्ध से हुए जान माल का नुकसान लगाते  है, लेकिन  युद्ध से पर्यावरण पर कितना घातक असर होगा, इसका आकलन नही करते। 
आणविक हथियार मानव में मौजूद बुराई या उसकी प्रवृति का का परिणाम है।  अंगुलिमाल ने  बुद्ध को बोला कि ठहर ,बुद्ध ने प्रत्युत्तर में बोला कि मैं तो ठहर गया तो  तू कब ठहरेगा । मानव जाति कब ये स्वयं से कहेगी ? देखना हैं , ये कब होगा।
रमेश मुमुक्षु 
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
25.2.2022

Saturday 29 January 2022

💐निगाहें दूर घाटी तक चली जाती है💐

💐निगाहें दूर घाटी तक चली 
जाती है💐

कमरे का किनारा 
जो राह 
देखता है कोई 
आयेगा 
झुरमुटों  से होता रास्ता 
रुका हुआ सा लगता है 
अभी अभी हवा के झोंको ने पेड़ो को 
तड़पा  दिया है 
वहीँ लाल मुहँ वाली चिड़िया ठीक 
समय पर पेड़ के तने से निकली 
सूखी डाली पर कुछ गा रही हैं 
संभव है वह कुछ याद दिल रही हो 
निगाहें दूर घाटी तक चली 
जाती हैं 
सीढ़ीनुमा खेत नीचे चले जाते 
छोटी नदी तक 
नीचे नदी तक 
लेकिन पानी संगीत सुनाता रहता है 
बादल  आसमान 
में धीमे धीमे 
हिमालय की ओर जा रहें  है 
जैसे कोई संदेशा ले जा रहें  हैं
यकायक ढांप लिया 
सूरज को जिसमे कम ही सही
धुप की तपिस अचानक कहीं दुबक गई 
ठण्ड का अहसास होने लगा है 
सिहरन सी हो जाती है बदन में
तभी बादल ने फिर से सूरज को छोड़ दिया 
सारी घाटी धूप से रोशन हो गई 
दूर पहाड़ी रास्तों पर बोझा
उठाये स्त्रियाँ 
जीवन का सच्चा चित्र
 उपस्थित  करती हैं 
जंगलों में 
लकड़ियाँ बीनती
 स्त्रियों के गले से 
झरते गीत प्रकृति का सच्चा राग ही तो है 
दूर घाटी  में स्थित गाँव से 
कुत्तों के भोंकने के आवाज़ किसी अजनबी 
के आने को संकेत होती है 
शाम के  
के धुंधलके
 में जानवरों
 को हांकते बालक 
सूरज की पीली
 धूंप और  उड़ती 
 धूल में कितने 
 खूबसूरती लगते है 
दूर पर्वतों के 
ढालों पर कोई 
बूढा कमर
 में छतरी लटकाए  
हाथ में डंडा 
लिए बकरियों 
को चराते
 आज भी दीख
 पड़ता है
मानव के सबसे
 पुरातन उद्योग को
जारी रखते हुए 
पहाड़ो में स्थित 
मंदिरों में 
ढोल और दुदुम्भी की 
आवाज़ संगीत की 
पराकाष्टा ही तो है 
अचानक पर्वत
 की चोटियों
 पर पहुँचते ही 
सामने कोई झरना 
दीख पड़ता है 
जो सच स्वप्न सा 
लगता है. 
फूलो पर मंडराती 
तितलियाँ , मधुमखियाँ
 सुमधुर संगीत छेड
देती है 
दूर तक फैले जंगलों की 
चादर में 
छितराए रंग 
आँखों को 
स्थिर कर देते है
ठंडी हवाएं 
धीमे धीमे 
बहने लगती है 
तन को छु
 निकल जाती है 
दूर विस्तार की 
यात्रा पर 
दोपहर होते ही 
झींगुर अपनी 
तान छेड
देता है 
अभी अभी 
पक्षियों का झुण्ड कोलाहल 
करता जंगल में इधर उधर उड़ता 
दूर निकल गया है 
चांदनी रात में 
सब कुछ चांदनी  से भर 
जाता है 
उस वक्त चाँद पर 
कही कोई 
भुला भटका 
बादल का 
टुकड़ा उसकी 
खूबसूरती को बडा
देता है 
फिर निगाहे कमरे के किनारे 
में अटक जाती है 
जहाँ झुरमुटों के बीच से 
सुना रास्ता गुजरता है 
जो आज कुछ
ज्यादा  सुना लग
 रहा है….
रमेश कुमार मुमुक्षु 
1999  धरमघर, हिमदर्शन कुटीर , पिथौरागढ़, उत्तर प्रदेश (उत्तराखंड)

Wednesday 26 January 2022

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 गणतंत्र दिवस के दिन आत्मचिंतन

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
गणतंत्र दिवस के दिन आत्मचिंतन
26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ और हम सब भारत के नागरिक घोषित हुए । एक आदमी भले  भूमिहीन मजदूर हो उसके पास किसी भी नेता , जो भले बाहुबली हो, चुनाव में हराने की ताकत है।  
*लेकिन मैं भारत का नागरिक हूँ , मैँ किसी को वोट दूँ, ये मेरा अधिकार है। मेरी मर्जी , लेकिन  क्या मैं वास्तव में देश, संविधान, धर्म, जाति, धन की ताकत, शराब , घोड़ा गाड़ी, प्रलोभन  की परवाह न करने अपने विवेक  और पूरी समझ से मत का प्रयोग करता हूँ?* 
 अगर ऐसा है कि राजनैतिक दलों को इतना बेतहासा खर्च क्यों करना पड़ता है? 
 चुनाव खर्च की बानगी देखें। लोक सभा का पार्टी का खर्च ,जो चुनाव आयोग की वेब साइट पर दिया गया है। मैं केवल कांग्रेस और बीजेपी का ही खर्च दे रहा हूँ।
2009            
कांग्रेस  : 3 अरब 69 करोड़ 
बीजेपी : 2 अरब 80 करोड़
2014
कांग्रेस : 5 अरब 14 करोड़
बीजेपी : 7 अरब 14 करोड़
2019  
कांग्रेस : 8 अरब 20 करोड़ 
बीजेपी :  12 अरब 64 करोड़
 ये वो खर्च है, जो पार्टी ने चुनाव आयोग में  लिखित दिया है। 
*नोट: रोड शो, विभिन्न रैली , पैसा, शराब, टिकट खरीदने के लेन देन,  का खर्च चुनाव खर्च नही माने जाते।*
आज तक भी सभी राजनैतिक दलों ने अपने खर्च का ब्यौरे  जमा ही नही किये है।
*चुनाव आयोग चुनाव करवाने  का सरकारी खर्च बहुत बड़े स्तर पर होता है।*
73 साल बाद भी वोटर को लैपटॉप, मोबाइल, साईकल, स्कूटी, पीछे के दरवाजे से भी प्रलोभन दिया जाता है। मतदान से पूर्व काल रात्रि के खेल हम सब जानते है।
ये हमारा रिपोर्ट कार्ड है। 
आज 26 जनवरी 2022 के दिन हम वोटर अपने अधिकार , जो संविधान ने आज़ादी मिलते ही हम भारत के नागरिक होने के नाते प्रदान,  उसका सदुयोग करना हमारे शुद्ध रूप से अधिकार में है।
" *डॉ अंबेडकर की चेतावनी* 
*मैं* संविधान की अच्छाईयां गिनाने नहीं जाऊंगा क्योंकि मेरा मानना है कि 'संविधान कितना भी अच्छा क्यों ना हो वह अंतत: खराब सिद्ध होगा, यदि उसे अमल / इस्तेमाल में लाने वाले लोग खराब होंगे। वहीं संविधान कितना भी खराब क्यों ना हो, वह अंतत: अच्छा सिद्ध होगा यदि उसे अमल / इस्तेमाल में लाने वाले लोग अच्छे *होंगे*"
लेकिन हम सब स्वतंत्र एवं गणतंत्र भारत के नागरिक है, लंबे संघर्ष के बाद हमने ये सब हासिल किया और आगे हम देश को और उसके समस्त प्राकृतिक संसाधनों को अक्षुण्ण रखते हुए , देश को आगे ले जाएंगे। 
सभी को गणतंत्र दिवस की बधाई।
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
👏 *( कुछ लोग मेरे लंबा लिखने से नाराज़ हो जाते है,लेकिन वो भी मेरे प्रिय है)*

Thursday 13 January 2022

लोहड़ी दो भइ लोहड़ी दो

लोहड़ी दो भइ लोहड़ी दो
70 के दशक में हम लोग पांचवी से आठ में पढ़ने वाले और कुछ छोटे भी करीब 8 से 10 बच्चें घर घर जाते थे , गाना गाते थे:-
सुंदर मुंदरिये हो, तेरा कौन बेचारा हो
दुल्ला भट्टी वाला हो, दुल्ले ती विआई हो,
शेर शकर पाई हो, कुड़ी दे जेबे पाई हो,
कुड़ी कौन समेटे हो, चाचा गाली देसे हो
चाचे चुरी कुटी हो, जिम्मीदारा लूटी हो,
जिम्मीदार सुधाये हो, कुड़ी डा लाल दुपटा हो, 
कुड़ी डा सालू पाटा हो, सालू कौन समेटे हो,
आखो मुंडियों ताना ‘ताना’, बाग़ तमाशे जाना ‘ताना’,
लोहड़ी दो लोहड़ी
उस वक्त कोई पांच पैसे , दो पैसे दे दिया करते थे।बच्चें मिशन की तरह सब के घर जाते थे, क्या जोश होता था, उमंग से भरे घूमते थे ।  पैसा मिलने पर  रेवड़ी, ग़जक, गुड़ की पट्टी और मूंगफली खरीद कर  लेकर आनंद लेते थे। ये सब खरीद कर बच्चे चुंगा भी लेते थे। चुंगा सबसे आकर्षित होता था।
कोई शर्म नही, जिझक नही। जब कोई कुछ नही देता ,तो बच्चें खीझ में बोलकर कर रफू चक्कर हो जाते थे हुक्का जी हुक्का, ये घर बुख्खा
कोई झगड़ा नही, बस ये वर्षो चला।  उस वक्त बड़े स्तर पर पंजाब के लोग  ही आग जलाकर लोहड़ी मानते थे, लेकिन आनंद सब लिया करते थे।  बचपन के दिन यकायक याद आ गए। दोस्त अब नाती पोते वाले हो चले है। शायद उनको याद है कि नही, कुछ इन खूबसूरत यादों को छिपाने भी चाहते ,लेकिन ये पत्थर की लकीर पर अंकित यादें है, इन पर समय की परत चढ़ सकती है, लेकिन मिट नही सकती। मुझे विश्वास है,ये पढ़ कर  वो मंजर याद आ ही जायेगा। बेतरतीब स्वेटर, जूतों में झांकते झरोखे, रंग बिरंगी चप्पल , कई बार नंगे पैर सड़क पर ऐसे चलते थे कि बादशाह हो , मित्रों एक क्षण के किये बचपन के निकट जाने का आनंद ये चंद शब्द दे ही देंगे, ये तय है।
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
13.1.2022

Saturday 8 January 2022

कोरोना और मानव का दम्भ

कोरोना और मानव का दम्भ
कर लो दुनियां मुट्ठी में, सारी दुनियां मेरे कदमों पर झुकती है, मैं चाहूं तो दुनियां को झुका सकता हूँ , जैसी बातें और भड़के मानव का स्वभाव है। 
पत्थर के हथियार से  पृथ्वी को नष्ट करने वाले शस्त्र मानव ने मानव को मारने के लिए बना लिए  है।
पृथ्वी को अपने आधीन करने की जिद उसको और  भी दम्भी बना देती है। लेकिन मानव में पैदा हुए ,कुछ लोग जो प्रकृति के इतना करीब खुद को पाते थे, वो उसकी लय और स्पंदन को महसूस कर लिया करते थे। उन्होंने मानव को चेताया कि तू सब कुछ कर सकता है ,लेकिन प्रकृति को जीत नही सकता। जीतने के बाद भी तू केवल हारेगा ,ये तय है। 
आज मानव के पास जानकारी, ताकत, तकनीक सभी है, लेकिन अदृश्य सूक्ष्म या अतिसूक्ष्म जीव से वो सहमा ही नही, बल्कि भयभीत है। कोविड नाम दिया है, उसका, पिछले वर्ष तो पूरा विश्व बिल्कुल एक तरह से दुबक ही गया था। उस वक्त मानव को यकायक ज्ञान हुआ कि उसने सुंदर और स्वच्छ प्रकृति को अपने विकास के दंश से कितना दूषित कर दिया है।
जब 21 दिन में विषाक्त हवा साफ हो गई थी, आकाश साहस नीला हो चला था। पेड़ों के पत्ते साफ और अपने वास्तविक रंग में दिखने लगे थे।
उस वक्त मानव की सारी विकास की यात्रा जैसे ठहर ही गई,लगती थी। कोविड ने मानव को दिखा दिया कि डर और अनुशासन क्या होता है।  कोविड को केवल अनुशासन और खास व्यवहार से जीता जा सकता है। लेकिन मानव की जिद और हठधर्मिता उसको हारा हुआ स्वीकार  नही करती है। कितने लोग दुनियां को  छोड कर चले गए है। लेकिन उसके बावजूद मानव सब कर रहा है, जिसके कारण उसको जान से भी हाथ धोना पड़ रहा है। कोविड ही नही ,बल्कि प्रदूषण से भी वो जूझ रहा है। केवल इसलिए की  मानव प्रकृति की लय को अपने अनुसार मोड़ना  चाहता है।  लेकिन ये केवल उसका भ्रम है।  सूक्ष्म जीव ने फिर उसको स्मरण दिला दिया कि  प्रकृति से वो बड़ा नही, उसका एक हिस्सा मात्र है।  
कोविड को जीतना बहुत आसान है, मास्क, दूरी और संक्रमण से बचाव। ये आदत में डालना ही होगा। कोविड पुनः याद करवा रहा है कि विकास की यात्रा हो, लेकिन नीला आकाश, शुद्ध हवा, शीशे की तरह पारदर्शी बहता जल, कचरा रहित विश्व, शांति और आनंद के साथ सहअस्तित्व को अपने भीतर जीवित रखने का अहसास , मानव को चिरायु बना सकता है। हालांकि मानव ने खुद को तबाह करने के सारे इंतजाम कर लिए है।
इसलिए कोविड निर्देश और  व्यवहार को आदत बना ले और उपरोक्त बातों को अपने जीवन में उतार लें अगर प्रकृति की आगोश में सदा रहना है तो.....
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
8.1.2021