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Thursday 15 September 2022

फ्लाइट लेफ्टिनेंट सुमित मोहंती मेमोरियल पार्क की स्थापना

फ्लाइट लेफ्टिनेंट सुमित मोहंती मेमोरियल पार्क की स्थापना
13 सितंबर 2022  को  सेक्टर 7 में एयर फोर्स एंड नेवल ऑफिसर्स (AFNOE) एन्क्लेव के बगल राइज फाउंडेशन के माध्यम से AFNOE , एयर विस्तारा एवं
फ्लाइट लेफ्टिनेंट सुमित मोहंती फाउंडेशन व द्वारका रेसीडेंट्स के आपसी सहयोग से  दो चरणों में 10 सितंबर व 13 सितंबर को मियावाकी  वन लगाया गया। करीब 3000 वर्ग फीट पार्क में 900 सैपलिंग जिसमें 25 स्थनीय प्रजाति भी शामिल थी। 
राइज फाउंडेशन के द्वारा ये बारहवां  मियावाकी प्रोजेक्ट सम्पन्न किया गया।  
अकीरा  मियावाकी ने शहरों में कम जगह पर कम दूरी में विभिन्न प्रजातियों के पेड़ों व झाड़ियों को इस तरह लगाने की तकनीक विकसित की कि कम जगह में कम समय में ही ये जंगल पनप जाता है। 
राइड फाउंडेशन के सह सचिव श्री मधुकर वार्ष्णेय ने अपनी कॉर्पोरेट की नौकरी के समय स्मार्ट सिटी के अध्ययन के दौरान कई देशों की यात्रा में  मियावाकी प्रोजेक्ट की जानकारी ली और उन्होंने अपनी संस्था के सहयोग से एन सी आर में इसको आरम्भ किया। एयरफोर्स एंड नेवल ऑफिसर्स  एन्क्लेव (AFNOE) सोसाइटी की मैनेजमेंट हमेशा ही पर्यावरण के कार्य में बढ़ चढ़ के हिस्सा लेती आई है। कुछ वर्ष पूर्ण इनके ऑडिटोरियम में पर्यावरण पर लेक्चर सीरीज आरम्भ की थी, मुझे भी वहां शामिल होने का अवसर मिला था।
एयर विस्तारा ने अपने सी एस आर द्वारा ये बहुत ही याद रखने वाली मदद की है।  वृक्षारोपण धरती को संरक्षित रखने व मानव द्वारा विनाश की प्रक्रिया को बाधित करने का एक बड़ा कदम है। राइज फाउंडेशन की सचिव श्रीमती माधुरी वार्ष्णेय रावत विगत कई वर्षों से राइज फाउंडेशन के माध्यम से विभिन्न सामाजिक कार्यो  में संलग्न है।
हमारी संस्था हिमालयन इंस्टीटूट ऑफ मल्टीप्ल अल्टरनेटिव लाइवलीहुड (हिमाल) द्वारा एच आई वी अनाथ बच्चों के तहत एक युवा को उसकी पढ़ाई आदि के लिए  आर्थिक मदद भी प्रदान की थी। राइज फाउंडेशन ने हमारी संस्था के द्वारा रूद्राक्ष वन आटी ग्राम, दन्या, अल्मोड़ा का दौरा किया । इस तरह राइज फाउंडेशन द्वारा विविध सामाजिक कार्य के माध्यम से सतत विकास के मार्ग पर चलने का प्रयास है। 
इस  मियावाकी वन को फ्लाइट लेफ्टिनेंट सुमित मोहंती मेमोरियल पार्क के रूप में बनाना वास्तव में सच्चा कदम है।मियावाकी  प्रोजेक्ट के बारें में अब धीरे धीरे लोग जानने लगे है। 2021 में उस वक्त के उपायुक्त एस डी एम सी ,नजफगढ़ जोन के श्री भूपेश चौधुरी ने ग्रीन यात्रा सामाजिक संस्था के माध्यम से इन्द्रप्रस्त एन्क्लेव द्वारका  सेक्टर 17, पॉकेट A2 ,नई दिल्ली में बहुत ही सुंदर  मियावाकी वन की स्थापना की है। वहां पर 90 प्रतिशत से अधिक पेड़ संरक्षित है। वहाँ पर विभिन्न वृक्षों से आने वाली हवा में खुशबू आने लगी है। 
राइज फाउंडेशन ने ब्रह्मा अपार्टमेंट में द्वारका का पहला  मियावाकी वन लगया था। ये पर्यावरण संरक्षण की राह में पॉजिटिव कदम है। 
लेकिन हम सब देश वासियों को देश के सघन वनों को कम से कम क्षति पहुँचाने  की कोशिश करनी चाहिए।  मियावाकी  वनों का तभी लाभ सही अर्थों में होगा, जब देश के सघन वन प्रदेश व जैव विविधता संरक्षित रहेगी।  देश को 33%वन कुल भूभाग में संरक्षित रखने और उसको बढ़ाने का बीड़ा उठाना होगा।  विकास का मॉडल हिमालय समेत पूरे देश के वनों व प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने का हो ऐसी  आवाज उठानी है। विकास आज बहुत सहज हो चला है। लेकिन वन प्रान्तर एक लंबी उद्विकास की  प्रक्रिया के माध्यम से पनपता है। 
इसके लिए हम सब को एक साथ आगे आना है। जितने सघन वन देश में होंगे ,उतना ही वातावरण शुद्ध और स्वछ होगा। प्राकृतिक वैविध्य ही पर्यावरण की असली कुंजी है।
देश तभी विकसित सही अर्थों में होगा, जब देश जल जंगल जमीन संरक्षित रहेंगे। हम सब देश वासियों को हिमालय में 3000 मीटर की ऊंचाई से ऊपर वाले क्षेत्रों को विशेष रूप से संरक्षित रखने और उनमें कम से कम मानव गतिविधियों व निर्माण  के मॉडल को अपनाना ही होगा।   आज हिमालय के हज़ारों प्राकृतिक स्रोत  सूखने के कगार पर है। इस बात को हम हमेशा याद रखे।  इसलिए चिपको आंदोलन का ये नारा सदैव हम सभी को प्रेरणा देता रहेगा। 
क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल 
9810610400
15.9.2022

Sunday 4 September 2022

यूं तो चांद देखने का उनको शौक था निकला था रात चंद पर वो नींद में रहे

यूं तो चांद देखने का उनको शौक था 
निकला था रात चंद पर वो नींद में रहे
 मेरी पुरानी कविता या ग़ज़ल की लाइन याद आ गई। ये चांद की फ़ोटो आई पी यूनिवर्सिटी के निकट के नाले के पास खड़े होकर खींची  ,नाले में प्रतिबिम्ब दीख रहा था। मोबाइल कैमरा अच्छी क्वालिटी का नही था। लेकिन चांद सूरज महानगर में भी दिखते है। भले वो सागर किनारे व पहाड़ो जैसे न दिखें। टूरिज्म के नाम से कई स्थान चांद सूरज दिखने के लिए प्रसिद्ध हो जाते है। वहां पर विशेषता तो होती ही है। लेकिन लोग ऐसे कैमरे लेकर खड़े हो जाते है कि वो चांद सूरज को देखें बिना नही रह सकते है। कितने लोग ऐसा भी कह देते है कि महानगर आदि में कहां पर चांद ,सूरज, सूर्यास्त फुल मून  दिखते है। उनका कहना पूरी तरह गलत भी नही है। ऊंची मल्टीस्टोरी बिल्डिंग के ग्राउंड फ़्लोर आदि से ये कहाँ देखा जा सकता है। लेकिन बहुत जगह है ,जहां से देखा जा सकता है।
लेकिन हमारे विकास के अनर्गल मॉडल ने आम आदमी को चांद सूरज से भी महरूम कर दिया है। लेकिन मित्रों कभी कभार कही न कही से इनके दर्शन हो ही जाते है। प्रकृति को कही भी निहारना मन को सकून तो देता है है। आजकल एक नया वर्ग बना है ,जिसको पहाड़, नदी का किनारा, पेड़ पौधों से बहुत प्रेम है, ऐसा वो कहते है। लेकिन रोज़मर्रा के जीवन में उनको इन सब से कुछ लेना देना नही । ये वो लोग है ,जिनको घर के आस पास कही भी पेड़ नही चाहिए, ये लोग पार्क में पेड़ बढ़ जाये तो जंगल बढ़ रहा है ,कहने लगते है। कोशिश भी करते है कि ये हट ही जाए। लेकिन पहाड़ो में इनको जंगल के पास जमीन चाहिए। महानगर तो पानी के स्रोत लील ही गया है।  लेकिन नदी किनारे जमीन चाहिए । 
लेकिन चांद सूरज और प्रकृति कभी भेद नहीं करती , अभी पिछली पूनम की रात मैं पहाड़ो में था, कल पैदल आते आते चंद्रमा और नीचे गंदे नाले में चांद में चांद का प्रतिबिंब दिखा तो फ़ोटो लेने का मन हो गया। अगर रूटीन में प्रकृति के किसी भी रूप में हम करीब रहे। भीड़ भाड़ वाली सड़क से भी खूबसूरत सूर्यास्त के दर्शन हो ही जाते है।लेकिन वो पहाड़ो और सागर जितना सुंदर न भी हो लेकिन आनंद तो देता है है। दिल्ली जैसे महानगरों में भी हर सीजन में पेड़ों पर फूल, नए पत्ते, पतझड़ आते जाते ही है। उसकी खूबसूरती का लुत्फ उठाया जा सकता है। द्वारका जैसे उपनगर में तो पार्कों और पेड़ो की कतारें और कैनोपी बहुत खूब सूरत लगती है। अमलतास और अन्य पेड़ों पर फूल दिख ही जाते है। प्रकृति के दर्शन करने की आदत वाले पर्यटन के नाम पर बवाल और  उतावलापन नही  करते है।  मनुष्य ने ही अनाप शनाप विकास से खुद को प्रकृति से दूर कर लिया। बस नज़र उठाने भर की बात है , बहुत कुछ दिख जाता है , नजरिया ही तो बदलना है। 
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
4.9.2022