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Tuesday 16 November 2021

अवैध निर्माण/ नाजायज़ कब्जा और जनप्रतिनिधि द्वारा रुकवाने की पहल: क्या होती है?

अवैध निर्माण/ नाजायज़ कब्जा और जनप्रतिनिधि द्वारा रुकवाने की पहल: क्या होती है?
भारत में जब भी कोई जनप्रतिनिधि चुनाव जीत कर आते है तो वो निम्न शपथ लेता है। 
*'मैं, अमुक, ईश्वर की शपथ लेता/ हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा, मैं संघ ....के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूँगा तथा मैं भय या पक्षपात, या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूँगा।'*
क्या कभी किसी जनप्रतिनिधि ने सरकारी जमीन पर कब्जे, अवैध निर्माण आदि को शुरू से ही रुकवाने का भरसक प्रयास किया है?  जनता जब अवैध निर्माण और कब्जा करती है, क्या वो नेता से पूछते है?  नेता कभी अपने चुनाव क्षेत्र में अधिकारियों से कब्जे और अवैध निर्माण रुकवाने जैसी कोई मीटिंग लेता है। जबकि सरकारी काम, जैसे कोई भी विकास कार्य करने हो तो हम सब नागरिक जनप्रतिनिधियों के पास क्यों जाते है? जनप्रतिनिधि का काम मुख्य तौर पर विधायिका का काम होता है।  क्रियान्वयन का काम कार्यपालिका का होता है। लेकिन हम सफाई जैसे काम के लिए भी पार्षद को कहते है, जबकि एक पूरा विभाग इस काम के लिए है। 
जनप्रतिनिधि कभी कब्जा और अवैध  निर्माण को नही रुकवाते पाए जाते है ,बल्कि अगर अवैध निर्माण तोड़ा जाता है तो बहुत बार उसको रुकवाने का काम जरूर करते देखे  जाते  है। उनके करीबी ये सब आसानी से कर लेते है। जनप्रतिनिधि को भी उनके काम करने ही होते है।  
ये हम सब देखते है। 
अगर आप अधिकारियों से पूछो तो वो इस बात को दबी आवाज में कहते है। लेकिन बहुत से अधिकारी अपनी कार्यकारणी शक्ति का उपयोग करें,  तो जनप्रतिनिधि केवल उसका तबादला करवा सकते  है। इसलिए अगर कोई कनिष्ठ अभियंता अड़ जाए  तो उसका केवल तबादला होगा, या उसको किसी प्रकार का नुकसान किया जा सकता है। लेकिन उसको उसके काम से रोका नही जा सकता है। ये पक्का है।
इसी तरह आर डब्ल्यू ए भी पूर्ण रूप से गैर राजैतिक संस्था होती है, लेकिन अफसोस की बात है , कितनी बार ये किन्ही दलों और नेताओं के अनुसार ही संचालित होते है, जबकि इनकी भी शक्ति बहुत अधिक होती है। लेकिन कुछ छोटी छोटी मदद और पहचान के चलते ये अपनी शक्ति का उपयोग नही कर सकते। 
इसलिए व्यवस्था को मजबूत और  अक्षुण्ण रखना है तो जनप्रतिनिधि का चुनाव बहुत मांयने रखता है। हम देश के नागरिक है और वो हमारे द्वारा चुना प्रतिनिधि होता है। हम उसके नागरिक नही है। 
जिलाधिकारी, निगम के उपायुक्त,  पुलिस के एस पी/ डी सी पी एक आम आदमी और जिस तरह इनके पास शक्ति होती है, आम जन के लिए ये अभी भी बहुत बड़े अधिकारी  , जिनसे वो कभी मिल नही सकते, या मिलना आसान नही होता।  लेकिन वो भी अपनी शक्ति का अधिक उपयोग नही कर पाते। डी एफ ओ/डी एम/ एस पी/ अधिशाषी अभियंता / एस डी एम के पास शक्ति है। लेकिन फिर भी कब्जे और अवैध निर्माण होते है। जनप्रतिनिधि और ये सभी उच्च अधिकारी सभी शपथ लेते है। ग्रामप्रधान भी शक्ति शाली होता है। लेकिन क्या इन सभी की मीटिंग के एजेंडे में कभी उनके कार्यक्षेत्र में नाजायज़ कब्जे और अवैध निर्माण शामिल है? 
लेकिन हम आम नागरिक को भी वो ही अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि पसंद आता है ,जो ये सब करवा लें।
ये समग्र प्रयास से ही ठीक हो सकता है।  शीर्ष पर बैठे जनप्रतिनिधि को सबसे अधिक जिम्मेदार होना होगा और उसके लिए हम नागरिकों को उसके चुनाव से पहले उसका चयन करना होगा कि वो कैसा हो। जिस दिन हम आम नागरिक अपनी संविधान की शक्ति और कर्तव्य  को संतुलन कर लेंगे ,उसी दिन से बहुत कुछ बदलाव और चीज़े ठीक होने लगेंगी।
विधायिका , कार्यपालिका एवं न्यायपालिका की शक्ति को हम सब को समझना है। ये सब नागरिक के लिए है। अंत में नागरिक ही इनको सुचारू रूप से संचालित, नियंत्रित एवं किर्यान्वित कर सकते है। 
क्या कभी हम इस दिशा में सोचते है? ये हम सब नागरिकों को सोचना है। ज्ञात रहे राष्ट्रपति भी प्रथम नागरिक होता है। किसको चुनाव में वोट देना है, ये नागरिक को करना है, लेकिन मजे की बात है कि नेता और दल बताते है कि किसको चुनना है। इसको ही बदलना है। लेकिन ये तब होगा,जब हम नागरिक ये अपने आप से कर सकेंगे।
इस पर हम सब नागरिकों को गहराई से सोचना ही होगा क्योंकि प्रजातंत्र, लोक तंत्र  सब नागरिक के लिए, नागरिक के द्वारा और ही तय होता है। अधिक से अधिक नागरिकों की भागीदारी ही ये सब वास्तविक लोक तंत्र जहां पर सब कुछ जनता एवं संविधान के माध्यम से संचालित हो  सकें।
ये हम सब को  सोचना ही होगा।
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
16.11.2021