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Tuesday 6 July 2021

क्या मानव फूल सृजित कर सकता है

क्या मानव फूल सृजित कर सकता है
मानव ने खूब प्रगति की  है ,लगभग सभी क्षेत्रों में , वनस्पति के जीन में भी वो कुछ कुछ कर देता है। उसके दावे है कि वो किसी ग्रह पर बस्ती बनाएंगे।ये हो भी सकता है । लेकिन वंसुधरा में बिखरे अनगिनत फूल हम बना पाएं है।हम मानव जब जब प्रगति के शिखर पर पहुंचें हमने मानव का संहार किया। मानव द्वारा मानव का संहार हमारे मानव इतिहास का सबसे मुख्य विषय रहा है। लेकिन एक छोटे से फूल को बना देना हमारे बस में नही है। उच्च हिमालय पर भी प्रकृति कमल उगा देती है। हमारे लिए वर्षा का आना कभी सुखद और कभी विषाक्त होता है। लेकिन प्रकृति का ये नियम है । वर्षा में ही सुदुर हिमालय  समेत सभी जगह पर पुष्प उगते है। लेकिन हम मानव को चैन नही। एक फोटो के लिए पहाड़ खोदने को आतुर भूखें भेड़ियों की तरह जो स्टेपी के मैदान में बर्फानी रातों को शिकार खोजता है। जबकि उसके आस पास भी सैकड़ों पुष्प खिलते है। लेकिन वो पुष्प नही  देखने जाता ,बस निरुद्देश्य ही जाता है। इस सूरज मुखी फूल ने बता दिया कि चाहे लूं भी चले , लेकिन प्रकृति सृजन करती रहती है, हर क्षण , बस नज़र को उसके पास तक ले जाना होता है। जॉन रस्किन सही कहते थे, मानव क्यों रिक्रिएशन के लिए जाता है , जब ये कुछ क्रिएट नही करता है। बदहवास सा केवल भीड़ करता है। प्रकृति की आगोश में खोने वाले आज भी है। लेकिन हमारी जिद है कि  सभी जगह पर हम जाए , उन स्थानों को देखने भी जाएं ,जो  शांत और सुदूर है ,  लेकिन वहां पर भी भीड़ में जाये और शोर मचाकर कर उसकी शांति का बखान करें।  पिछले लॉक डाउन में ये सिद्ध हो गया कि केवल मानव ही प्रकृति को नष्ट कर रहा है। ये रुकेगा तो सब ठीक चलेगा।घाटी, दून, नदी, नदी का उद्गगम, बुग्याल, बर्फ की चोटी सब लील लेगा। अभी तरक्की के नए नए तरीक़े सीख लिए है, अब तेजी से सब कुछ देखने को आतुर मानव अपने आस पड़ोस को कभी नही देखता, सूर्यास्त की ओर नज़र नही भी नही उठाता ,लेकिन दुनियां के नक्शे में खोजता रहता है कि कहां पर सूर्यास्त अच्छा होता है। केवल अपनी हवस को दूर करने के लिए  ये टिड्डियों के दल की तरह हम भागते है। अभी पर्वत को घंटो निहारने वाले पटाक्षेप में गुम हो गए होंगे। "अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है।"ऐसे हिमालय को देखने वाले नागार्जुन अब नही मिलेंगे और आएंगे। अलका पूरी की यात्रा वृतांत सुनने वाले कालिदास किस पहाड़ की चोटी पर बैठकर ये सोच पाएंगे और मेघदूत लिखेंगे। एवरेस्ट को भी नही बक्शा।पिछले दिनों अंटार्टिका में बहुत बड़े आइसबर्ग का टूटना केवल एक छोटी सी किसी अखबार के कोने में छपी छपी घटना थी ,एक फिलर की तरह। कनाडा में 49 डिग्री भी एक दिन सुर्खी बटोरने के लिए थी। 
1992 में रोहतांग ट्रेक की यात्रा के समय एक प्रोफेसर मिले ,पैर में प्लास्टिक के जूते, एक बोरी लपेटी हुई,एक पिट्ठू बेग , ने हमें बताया कि घूमने के लिए " एक निरंजन, दो सुखी ,तीन में झगड़ा ,चार दुखी" अब तो भीड़ ही भीड़ है। हिमालय में कौसानी  और कन्याकुमारी के विवेकानंद केंद्र के पास बैठकर सूर्यास्त की याद आ गई , लेकिन सूर्यास्त को केवल देखने के इतर खामोशी से निहारना होता है, तनिक शांत बैठकर महसूस करने से ही  प्रकृति से एकाकार हुआ जा सकता है, ये तय है।
रमेश मुमुक्षु 
अध्यक्ष , हिमाल 
9810610400
6.7.2021