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Monday 22 January 2018

(बुलेट ट्रेन से पूर्व)

(बुलेट ट्रेन से पूर्व)
गोआ एक्सप्रेस के एस 1 डिब्बे में कोई चार्जर नही है। खिड़कियों से ठंडी हवा आ रही है। सोना मुश्किल हो हो रहा है। वेस्टर्न टॉयलेट में लाइट नही है। कमोड टूटा फूटा है।
कोई भी सवारी घुस जाती है। टिकट चेकर अभी रात को किसी ac डिब्बे में सो रहे है।
अगर रेलवेज को और भी विकसित करना है तो इन छोटी छोटी बातों का ख्याल करें। सवारी डरी रहती है कि कोई आकर चोरी न कर ले। ये हमेशा रहा है । ये तो कथा आरक्षित डिब्बे की है। जापान में बुलेट ट्रेन से पूर्व क्रमिक विकास हुआ होगा। उनके किसी डिब्बे में खिड़की से हवा नही आती होगी। टॉयलेट में लाइट होगी। कमोड टूटा नही होगा। सबसे पहले ये सब ठीक हुआ होगा। उंसके बाद क्रमिक विकास हुआ। ये तो वो ही हुआ कोट पेंट कीमती जूते फटे हाल जिनका मुँह खुला हुआ होता है। आजकल लोग ऐसे जूते नही जानते होंगे। एक बड़ा वर्ग स्लीपर में सवारी नही करता। एक वर्ग ऐसा भी है, जो ट्रैन में भी सवारी नही करता। ये लोग अगर एतराज करते तो असर होता। ये करते नही , जो करते है, उनकी सुनता कोई नही। ए सी में तो टिकट चेकर भी डरा सा रहता है। आदमी स्लीपर क्लास में निर्मोही और निर्दयी भी बन जाता है। अब किस के चहेरे पर लिखा है कि इसके पास टिकट कन्फर्म है की  नही। डर से बिना कन्फर्म टिकट वाले को आगे जा कहना ही होता है। उसी ट्रैन के ए सी कोच में निश्चिन्त हो कर लंबी तान कर सो जाओ। एक तो ठंड के थपेड़े किसी खिड़की के किनारों से नही आते। कितनी बार तो खिड़की ठीक से लगती भी नही। खटर फटर की तो बात ही नही।
ये हाल है आरक्षित स्लीपर क्लास का। सामान्य डिब्बे के अंदर के हालात कौन बयां करेगा। उनके भीतर की कहानी भीतर ही रहे जाएगी।
सबसे पहले ये सब ठीक दुरस्त होनी चाहिए ताकि बुलेट ट्रेन या कुछ भी लाओ तो मिसफिट नही लगेगा।
आशा है सरकार इन पर ध्यान केंद्रित करेगी। कभी कभी प्रधान मंत्री, रेलवे मंत्री सफर का आनंद के तो सचाई सामने आजाये। ये लोग जाते है लेकिन गाजे बाजे के साथ । जब वी आई पी विजिट होता है तो सामान्य डिब्बा भी चमका देते है। औचक विजिट से ही चीज़े सामने आती है। प्राचीन परंपरा की बात करते है। राजा रात को वेश बदल जाता था। लेकिन अब वेश बदल कर जीवन कटता है। अब वेश उतार कर जाना होगा। अब भला नेता वेश उतार दे तो उसका अस्तित्व ही खत्म हो जाएं।
लेकिन ऐसा भी नही की सुधार नही हो रहा। धीरे धीरे बहुत कुछ बदल रहा है। क्योंकि अगर हम कहें कुछ भी नही बदला तो जो लोग मेहनत करते है। उनके विरुद्ध अन्याय होगा। ये सब बिन्दु भी जहन में रखे। एक बार  श्री लालू यादव  के समय मैंने सामान्य डिब्बे की आर्थिकी और हाल लिखे थे। लेकिन उसके बाद नही गए तो सचाई मालूम नही हो सकती।इटारसी काफी पहले निकल गया है। अच्छी खासी ठंड है। अभी साइड सीट पर मैं लिख रहा हूँ तो बसंत पांडेय लंबी ताने है। अगर कोई अनजान  RAC में बैठ जाये तो अंदाज़ा भी लगाना कठिन हो जाएं। RAC में सर्दी की रात को खजुराहो की मूर्ति की तरह ही सोया जा सकता है। पैर कही भी लगे इससे ऊपर उठ कर ही सफर हो सकता है।
किसी स्टेशन का इंतजार है ताकि चाय की चुस्की ली जाए अभी तलब लग है।
कुछ भी कहो ट्रैन का सफर रात सोते हुए पटरी से आती आवाज़ मेरे लिए संगीत ही है। रात को पटरी बदलने पर खड़ बड़ खड़ बड़ रोमांच कर देता है। छोटे स्टेशन से गुजरती एक्सप्रेस ट्रैन किसी घमंडी लौंडे सी सरपट निकल जाती हूं।  स्लीपर क्लास की साइड सीट का अपना रोमांच होता है। बाहर झांकते  हुए , कुछ स्केच बनाने और कोई कविता फुट ही पड़ती है। लंबी ट्रैन का सफर आनंद से भरा होता है। मेरा मित्र मास्को से वालादिवोस्टक तक जाता था ,साइबेरियन ट्रैन जिसमे 6 दिन लगते थे, मन में ही रह गई। मेरा मित्र डॉ कुलदीप जुगरान उसमे चीन जाता था ,  1993 की बात है। चादर बदली जाती थी ट्रैन में, यहां तो 2018 में ,  अभी खिड़की से शूल की तरह चुभती हवा रात भर सर्दी की रात को संघर्षमय रात में तब्दील कर लेती है। हम तो कलम घिस्सु और आर्टिस्टिक पेन से उल्टी सीधी लाइन पेपर पर उतार लेते है। नही कुछ चिंतन कर लिया । लेकिन देश में अभी भी बड़ी संख्या है, जिनके लिए ऐसा सफर भी सपना ही है। अभी अंत में इवान तुर्गनेव के उपन्यास रुदिन में रुदिन का दोस्त सर्दी की रात रुदिन के जाने के बाद सोचता है कि वो कितने भाग्यशाली होंगे जिनको सर्दी की कड़कती रात में गरम बिस्तर नसीब होगा। ये लाइन याद आगई। सब आराम से सफर करें और सबको अवसर मिले , ऐसा देश बन सकेगा........?
अभी कोई स्टेशन नही आरहा। चाय की तलब भी बढ़ रही है। आखिरकार 2 घंटे बाद खंडुवा स्टेशन आया और अपने साथ चाय भी लाया। अभी सूर्योदय के सुंदर दृश्य देखते ही बन रहा है।अभी भुसावल स्टेशन पर केले किये। यहां के केले स्वादिष्ट होते है। 1991 में एक रुपये के 12 थे ,अभी 30 रुपये के 10 मिले लेकिन स्वाद अभी भी है। सर्दी से निजात मिल गई। अभी खिड़की खोल ली।
रमेश मुमुक्षु
(गोआ एक्सप्रेस से बसंत पांडेय के साथ RAC में एक सीट में रात भर खिड़की की ठंडी हवा से संघर्ष करते हुए।)

Wednesday 17 January 2018

द्वारका सोलर सिटी मिशन-2018

(द्वारका सोलर सिटी मिशन-2018)
अभी हाल फिलहाल में सेक्टर 21 स्थित विवांता होटल में BSES एवं दिल्ली सरकार ने द्वारका सब सिटी को सोलर सिटी के रूप में विकसित करने की पहल की है। ज्ञात रहे देश में सोलर ऊर्जा की क्षमता 1लाख मेगावाट है, जिसमे 40 मेगावाट रूफटॉप सोलर की है।
पर्यावरण संरक्षण में सोलर और विंड एनर्जी एक ससक्त विकल्प है। अगर द्वारका जैसे सारे नगर अपनी छतों पर सोलर को ग्रिड से जोड़ दें तो भारत के प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित किया जा सकता है। वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में सोलर और विंड करीब 2 लाख मेगावाट बिजली पैदा कर सकती है।
सरकार की इस पहल का पुरजोर तरीके से स्वागत करना चाहिए। हमने पहले ही सरकार को आग्रह किया था कि सरकार ही इसमे पहल करें। विवांता होटल में टेरी से आये श्री शिशिर जी ने अपने लेक्चर में स्पष्ट कहा था कि ऊर्जा के स्रोत कोयला , पानी अथवा परमाणु के कम इस्तेमाल की और जाने का एक मात्र उपाए है। ये एक ऐतिहासिक कदम होगा । द्वारका निवासी होने के नाते ये हम सब का सौभाग्य है कि ये महान काम द्वारका से शुरू होगा। अभी वर्तमान में मौसम के बदलते
मिज़ाज़ को हम सब देख ही रहे है।
इस कारण ये हमारी जिम्मेदारी बन जाती है कि आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्यावरण संरक्षण का फर्ज पूरा कर सके।
उपरोक्त विषय पर लगातार चर्चा और विचार विमर्श करना श्रेष्ठकर कर होगा।
जल्दी ही सोलर मित्र इस मिशन के  लिए  उपलब्ध होंगे। आशा है , हम सब पॉजिटिव दृष्टिकोण से आगे आएंगे।
धन्यवाद
(रमेश मुमुक्षु)
हिमाल एवं राइज फाउंडेशन
9810610400

खबर निष्पक्ष होनी चाहिए

(खबर निष्पक्ष होनी चाहिए)

दैनिक जागरण की ये खबर जिस पत्रकार ने लिखी है ,ये साफ है , उसने पहले ही सोच लिया था कि मुख्यमंत्री की जनसुनवाही की कैसे बखिया उधेरी जाए।

सबसे पहले लिखा कि जनसुनवाही केवल अपने लाभ के लिए थी। इसका अर्थ है कि मुख्यमंत्री को नही आना चाहिए था। इसी खबर में लिखा था कि सोसाइटीज के लोग मिलना चाह रहे थे, लेकिन मुलाकात नही हुई।
उस सभागार में माइक लेने की होड़ ,साबित कर रही थी कि मुख्यमंत्री का आगमन कितना सार्थक था।

पत्रकार ने गलत लिखते हुए जोश में समय का हिसाब नही लगाया और लिख मारा कि 45 मिनट मंच पर सम्मानित करने में लगे। सवा घंटे में 45 मिनट सम्मानित करने में, मेरा दावा है ,दुनियां में ऐसी कोई सभा नही होगी,जो सम्मानित करने में इतना समय ले।

फिर उसने लिखा कि इससे खफा होकर फेडरेशन की सचिव श्रीमती सुधा सिन्हा ने माइक लिया तो आप के लोग एतराज करने लगे।

ये भी पत्रकार भूल गया कि सम्मानित करने  द्वारका की एक दूसरी फेडरेशन के प्रेजिडेंट श्री भट्टाचार्य जी एक फोटो लेकर मुख्यमंत्री को भेंट करने गए थे , मतलब 45 मिनट में द्वारका की फेडरेशन भी शामिल है।

नाराज़ भी रहो और फ़ोटो भी खिंचवा लो फेडरेशन का ये अंदाज मुझे पसंद आया। ये बात पत्रकार नही सोच सका। ऐसा ही होता है, जब कोई बात हम पहले से ही सोचकर  लिखे ।

जहां तक माइक की बात है, सबसे पहले मैंने एतराज किया क्योंकि मैंने सबसे पहले हाथ उठाया ,लेकिन माइक लेफ्ट साइड ही जा रहा था। माइक वाले को लोग इशारा करके माइक मर्जी से दे रहे थे। जो गलत और अनुशासनहीनता है।

इसलिए पत्रकार का फर्ज होता है कि खबर लिखते समय निष्पक्ष और तथ्यों के आधार पर ही खबर लिखे।

पानी को लेकर लोकल विधायक और अधिकारियों से लगातार मीटिंग चल रही थी।

बाकी काले झंडे और मुख्यमंत्री आप का नही जैसी बातों पर मैं कमेंट नही करूँगा। उस दिन इनका कोई महत्व नही था।
जहां तक बोलने वालों की संख्या को ले । कम से कम  12 से 15 लोग  बोले होंगे। मुख्यमंत्री, विधायक, जल बोर्ड के अधिकारी सभी ने बोला।

सवा घंटे का हिसाब आप लगा ले। कुल समय पत्रकार के हिसाब दे 75 मिनट। 45 मिनट सम्मानित किया तो बचे 30 मिनट। अब कोई भी हिसाब लगा ले क्या  30 मिनट में सब अपनी बात बोल गए ?

जो भी पत्रकार था । खबर को तोड़ मरोड़ कर लिखनी भी हो तो भाई समय और तथ्यों का सही से आंकलन तो कर ही लिया करो।
जब हम जीवन में पूर्वागृहपूर्ण कार्य करते है तो ऐसी गलती होगी ही।

पत्रकार चौथा स्तम्भ है, वो कैसे की एक पक्ष की बात ही कहे और लिखते समय क्योंकर उसका अंतर्मन ऐसा करने की इजाज़त दे सकता है।

पत्रकार से विनती है, उपरोक्त बातों पर ध्यान दें और अपनी गलती में सुधार करें।

गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे पत्रकारों की जिंदगी का कुछ तो अध्यनन कर प्रेणना लेने की चेष्टा तुम्हारे भीतर निष्पक्ष और जिम्मेदार पत्रकार बनाने में मदद करेगा। कभी जीवन में उलझन लगे तो मेरे पास आ जाना। मैं तुम्हारी उलझन को सुलझाने का प्रयास करूंगा।

रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष , हिमाल
9810610400

Sunday 14 January 2018

(द्वारका जल विवाद और समाधान)

(द्वारका जल विवाद और समाधान)
तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा । इसकी झलक आज द्वारका में मुख्यमंत्री , दिल्ली जल बोर्ड , द्वारका रेसिडेंट्स के जनसंपर्क कार्यक्रम में पानी पर विवाद और पानी के प्रति असंवेदनशीलता को देख अनुभव हुआ। मजे का विषय है कि सबसे अधिक पढ़े लिखे लोगों में लामबंद कर के माइक अपने कब्जे में करने की कोशिश से बड़ा अफसोस हुआ। पानी की समस्या से द्वारका के रेसिडेंट्स वर्षों परेशान रहे। लेकिन वर्तमान सरकार ने आते ही द्वारका समेत पूरी दिल्ली को साफ पानी उपलब्ध करवा दिया। 20000 लीटर फ्री जल के बाद भी जल बोर्ड को नुकसान नही हो रहा। द्वारका की सोसाइटी में बोरवेल , वर्षा जल प्रबंधन आदि की शिकायत आती रही है। साफ पानी के बाद भी जमीन का भूजल निकालना जारी है। भारी बिलों का मसला भी चर्चा के लिए जरूरी था। खेर ,ये सब एक हैप्पी एंडिंग में समाप्त हुआ। लोगों के बिल माफ हो गए और भूजल का इस्तेमाल भी प्रतिबंध के साथ स्वीकार कर लिया गया।
ये सब जल प्रबंधन की बात ही थी। सबको अपने पानी की पड़ी थी। पानी के बिल मॉफ कर दो की बात थी। चूंकि जल बोर्ड ने कुछ जल्दबाजी भी की थी।
लेकिन कुछ लोग कह रहे थे कि अगर पानी कम होगा तो हरियाली कम हो जाएगी। ये वो लोग है जिनको टेहरी बांध का पानी और बिजली दिखती है, बेशकीमती घाटियां और जल,जंगल,जमीन की बर्बादी नही दिखती। सोसाइटी के भीतर घांस और कुछ पेड़ ही इनकी दुनियां है।
अभी सर्दी का मौसम है, लेकिन अभी हाल फिलहाल उत्तराखंड के वनों की आग इनको प्रभावित नही करती। हाइड्रो और रोड़ प्रोजेक्ट जिनमे पंचेश्वर बांध और चारधाम आल वेदर रोड में हज़ारों बेशकीमती वन संपदा का खत्म हो जाना इनके लिए न तो मुद्दा है और न ही उनको इसकी चिंता है। उनको केवल अपनी घांस बचाने की बनावटी चिंता है।
सरकारें भी कोई पुख्ता इंतजाम नही कर पा रही है। भूजल के उपयोग की जगह जल को पुनः साफ करके भेजने का प्रयास नही हुआ।  सरकार को जितना जल्दी हो भूजल का इस्तेमाल पूरे तरह रोक देना चाहिए क्योंकि भूजल का स्रोत  acquifer जलभृत एक बार खत्म हो जाये तो विनाश की स्थिति ही मानी है जा सकती है।
इस कारण सरकार भी इस विषय पर अधिक संवेदनशील नही है। सरकार को कमरकस कर जल शोधन कार्यक्रम को शुरू करके बागवानी के लिए अलग से सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करवाना ही पड़ेगा। जितना पानी घरों में इस्तेमाल होता है, उसको साफ करके हरियाली बचाई जा सकती है।
जल,  जैसा हम जानते ही है, हिमानी और ग़ैरहिमानी नदियों से ही आता है। जब हम पानी का इस्तेमाल करते  है तो एक बात नही भूलनी चाहिए कि जल ही जीवन है और इसको उपयोग करते हुए हमें सदैव इसके स्रोत को स्मरण करना चाहिए।
लेकिन द्वारका के रेडिडेंट्स भी जल के संदर्भ में नुकसान क्यों कर उठाये। इसका भी ख्याल रखना चाहिए।
कुछ लोग ऐसे भी है ,जो सरकार विशेषकर दिल्ली सरकार को कोसते हुए कहते है कि सारी सुविधा केवल झुगी झोपड़ी वालों को हो मिलती है। इस तरह की तुलना हमारे बौद्धिक छोटेपन की ओर इशारा करता है। झुगी झोपड़ी बस्ती का जीवन और द्वारका की सोसाइटी के जीवन में कोई तुलना नही हो सकती। लोग भूल जाते है, इस बस्तियों में बहुत छोटी आय वाले लोग भी जीवन बसर करते है। इस तरह हम को द्वारका में रहने और दिल्ली सरकार के पानी के कार्य की सराहना करनी ही चाहिए।
अभी कुछ दिनों पूर्व  द्वारका को सोलर सिटी बनाने का ऐलान और अब जल संकट की चर्चा जिसमे दिल्ली के मुख्यमंत्री को भी जनता के सामने समाधान हेतु आना पड़ा। ये दोनों बहुत बड़े कार्य है।
मुझे व्यक्तिगत तौर पर ऐसा लगा जैसे बहुत से लोग आप पार्टी और मुख्यमंत्री को दिमाग़ से स्वीकार नही करते। लेकिन दिल में उनको दिल्ली सरकार के कामों की हलचल तो रहती ही है।
अंत में हम सब की कोशिश रहे कि बिजली और पानी का उपयोग किफायत से हो ताकि बेतहाशा मांग बढ़ने से कहीं और बड़े बांध और कोयले के नाम पर प्राकृतिक संपदा नष्ट न हो सकें। हमारी अधिक मांग जल जंगल जमीन के लिए विनाश का कारण न बन सके, इस मिशन के साथ हमें देश को आगे ले जाना है।
भले हम दिल्ली सरकार को माने या न माने लेकिन उनके स्वास्थ्य, शिक्षा, जल प्रबंधन एवं उपलब्धता और बिजली में सुधार तथा बिल न बढ़ना कल्याणकारी सरकार की अवधारणा में सफल प्रयास ही है। ये एक मिशन ही हो सकता है। द्वारका के लिए इससे अधिक गर्व का विषय क्या होगा कि द्वारका को प्रथम सोलर सिटी के रूप में विकसित करने की मंसा द्वारका के रेसिडेंट्स के लिए गर्व का विषय होना चाहिए। राजनीति से उठकर इन सब कदमों का दिल से धन्यवाद देना चाहिए। केवल स्वार्थपूर्ण ओछी राजनीति से हम सब को बचना है। द्वारका को भारत की सोलर, जल संरक्षण  और जीरो वेस्ट मैनेजमेंट अथवा पूर्ण कचरा निस्तारण सिटी आओ सब मिलकर बनाये और भूल जाये कि हम किस दल से जुड़े है, याद रहे कि द्वारका के रेसिडेंट्स है। हमारा ये मिशन सतत विकास की अवधारणा को स्थापित करेगा और पर्यावरण संरक्षण में योगदान देगा ,  ये तय है।
(रमेश मुमुक्षु)
हिमाल एवं राइज फाउंडेशन से सम्बद्ध।

(द्वारका जल विवाद और समाधान)

(द्वारका जल विवाद और समाधान)
तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा । इसकी झलक आज द्वारका में मुख्यमंत्री , दिल्ली जल बोर्ड , द्वारका रेसिडेंट्स के जनसंपर्क कार्यक्रम में पानी पर विवाद और पानी के प्रति असंवेदनशीलता को देख अनुभव हुआ। मजे का विषय है कि सबसे अधिक पढ़े लिखे लोगों में लामबंद कर के माइक अपने कब्जे में करने की कोशिश से बड़ा अफसोस हुआ। पानी की समस्या से द्वारका के रेसिडेंट्स वर्षों परेशान रहे। लेकिन वर्तमान सरकार ने आते ही द्वारका समेत पूरी दिल्ली को साफ पानी उपलब्ध करवा दिया। 20000 लीटर फ्री जल के बाद भी जल बोर्ड को नुकसान नही हो रहा। द्वारका की सोसाइटी में बोरवेल , वर्षा जल प्रबंधन आदि की शिकायत आती रही है। साफ पानी के बाद भी जमीन का भूजल निकालना जारी है। भारी बिलों का मसला भी चर्चा के लिए जरूरी था। खेर ,ये सब एक हैप्पी एंडिंग में समाप्त हुआ। लोगों के बिल माफ हो गए और भूजल का इस्तेमाल भी प्रतिबंध के साथ स्वीकार कर लिया गया।
ये सब जल प्रबंधन की बात ही थी। सबको अपने पानी की पड़ी थी। पानी के बिल मॉफ कर दो की बात थी। चूंकि जल बोर्ड ने कुछ जल्दबाजी भी की थी।
लेकिन कुछ लोग कह रहे थे कि अगर पानी कम होगा तो हरियाली कम हो जाएगी। ये वो लोग है जिनको टेहरी बांध का पानी और बिजली दिखती है, बेशकीमती घाटियां और जल,जंगल,जमीन की बर्बादी नही दिखती। सोसाइटी के भीतर घांस और कुछ पेड़ ही इनकी दुनियां है।
अभी सर्दी का मौसम है, लेकिन अभी हाल फिलहाल उत्तराखंड के वनों की आग इनको प्रभावित नही करती। हाइड्रो और रोड़ प्रोजेक्ट जिनमे पंचेश्वर बांध और चारधाम आल वेदर रोड में हज़ारों बेशकीमती वन संपदा का खत्म हो जाना इनके लिए न तो मुद्दा है और न ही उनको इसकी चिंता है। उनको केवल अपनी घांस बचाने की बनावटी चिंता है।
सरकारें भी कोई पुख्ता इंतजाम नही कर पा रही है। भूजल के उपयोग की जगह जल को पुनः साफ करके भेजने का प्रयास नही हुआ।  सरकार को जितना जल्दी हो भूजल का इस्तेमाल पूरे तरह रोक देना चाहिए क्योंकि भूजल का स्रोत  acquifer जलभृत एक बार खत्म हो जाये तो विनाश की स्थिति ही मानी है जा सकती है।
इस कारण सरकार भी इस विषय पर अधिक संवेदनशील नही है। सरकार को कमरकस कर जल शोधन कार्यक्रम को शुरू करके बागवानी के लिए अलग से सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करवाना ही पड़ेगा। जितना पानी घरों में इस्तेमाल होता है, उसको साफ करके हरियाली बचाई जा सकती है।
जल,  जैसा हम जानते ही है, हिमानी और ग़ैरहिमानी नदियों से ही आता है। जब हम पानी का इस्तेमाल करते  है तो एक बात नही भूलनी चाहिए कि जल ही जीवन है और इसको उपयोग करते हुए हमें सदैव इसके स्रोत को स्मरण करना चाहिए।
लेकिन द्वारका के रेडिडेंट्स भी जल के संदर्भ में नुकसान क्यों कर उठाये। इसका भी ख्याल रखना चाहिए।
कुछ लोग ऐसे भी है ,जो सरकार विशेषकर दिल्ली सरकार को कोसते हुए कहते है कि सारी सुविधा केवल झुगी झोपड़ी वालों को हो मिलती है। इस तरह की तुलना हमारे बौद्धिक छोटेपन की ओर इशारा करता है। झुगी झोपड़ी बस्ती का जीवन और द्वारका की सोसाइटी के जीवन में कोई तुलना नही हो सकती। लोग भूल जाते है, इस बस्तियों में बहुत छोटी आय वाले लोग भी जीवन बसर करते है। इस तरह हम को द्वारका में रहने और दिल्ली सरकार के पानी के कार्य की सराहना करनी ही चाहिए।
अभी कुछ दिनों पूर्व  द्वारका को सोलर सिटी बनाने का ऐलान और अब जल संकट की चर्चा जिसमे दिल्ली के मुख्यमंत्री को भी जनता के सामने समाधान हेतु आना पड़ा। ये दोनों बहुत बड़े कार्य है।
मुझे व्यक्तिगत तौर पर ऐसा लगा जैसे बहुत से लोग आप पार्टी और मुख्यमंत्री को दिमाग़ से स्वीकार नही करते। लेकिन दिल में उनको दिल्ली सरकार के कामों की हलचल तो रहती ही है।
अंत में हम सब की कोशिश रहे कि बिजली और पानी का उपयोग किफायत से हो ताकि बेतहाशा मांग बढ़ने से कहीं और बड़े बांध और कोयले के नाम पर प्राकृतिक संपदा नष्ट न हो सकें। हमारी अधिक मांग जल जंगल जमीन के लिए विनाश का कारण न बन सके, इस मिशन के साथ हमें देश को आगे ले जाना है।
भले हम दिल्ली सरकार को माने या न माने लेकिन उनके स्वास्थ्य, शिक्षा, जल प्रबंधन एवं उपलब्धता और बिजली में सुधार तथा बिल न बढ़ना कल्याणकारी सरकार की अवधारणा में सफल प्रयास ही है। ये एक मिशन ही हो सकता है। द्वारका के लिए इससे अधिक गर्व का विषय क्या होगा कि द्वारका को प्रथम सोलर सिटी के रूप में विकसित करने की मंसा द्वारका के रेसिडेंट्स के लिए गर्व का विषय होना चाहिए। राजनीति से उठकर इन सब कदमों का दिल से धन्यवाद देना चाहिए। केवल स्वार्थपूर्ण ओछी राजनीति से हम सब को बचना है। द्वारका को भारत की सोलर, जल संरक्षण  और जीरो वेस्ट मैनेजमेंट अथवा पूर्ण कचरा निस्तारण सिटी आओ सब मिलकर बनाये और भूल जाये कि हम किस दल से जुड़े है, याद रहे कि द्वारका के रेसिडेंट्स है। हमारा ये मिशन सतत विकास की अवधारणा को स्थापित करेगा और पर्यावरण संरक्षण में योगदान देगा ,  ये तय है।
(रमेश मुमुक्षु)
हिमाल एवं राइज फाउंडेशन से सम्बद्ध।

(द्वारका जल विवाद और समाधान)

(द्वारका जल विवाद और समाधान)
तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा । इसकी झलक आज द्वारका में मुख्यमंत्री , दिल्ली जल बोर्ड , द्वारका रेसिडेंट्स के जनसंपर्क कार्यक्रम में पानी पर विवाद और पानी के प्रति असंवेदनशीलता को देख अनुभव हुआ। मजे का विषय है कि सबसे अधिक पढ़े लिखे लोगों में लामबंद कर के माइक अपने कब्जे में करने की कोशिश से बड़ा अफसोस हुआ। पानी की समस्या से द्वारका के रेसिडेंट्स वर्षों परेशान रहे। लेकिन वर्तमान सरकार ने आते ही द्वारका समेत पूरी दिल्ली को साफ पानी उपलब्ध करवा दिया। 20000 लीटर फ्री जल के बाद भी जल बोर्ड को नुकसान नही हो रहा। द्वारका की सोसाइटी में बोरवेल , वर्षा जल प्रबंधन आदि की शिकायत आती रही है। साफ पानी के बाद भी जमीन का भूजल निकालना जारी है। भारी बिलों का मसला भी चर्चा के लिए जरूरी था। खेर ,ये सब एक हैप्पी एंडिंग में समाप्त हुआ। लोगों के बिल माफ हो गए और भूजल का इस्तेमाल भी प्रतिबंध के साथ स्वीकार कर लिया गया।
ये सब जल प्रबंधन की बात ही थी। सबको अपने पानी की पड़ी थी। पानी के बिल मॉफ कर दो की बात थी। चूंकि जल बोर्ड ने कुछ जल्दबाजी भी की थी।
लेकिन कुछ लोग कह रहे थे कि अगर पानी कम होगा तो हरियाली कम हो जाएगी। ये वो लोग है जिनको टेहरी बांध का पानी और बिजली दिखती है, बेशकीमती घाटियां और जल,जंगल,जमीन की बर्बादी नही दिखती। सोसाइटी के भीतर घांस और कुछ पेड़ ही इनकी दुनियां है।
अभी सर्दी का मौसम है, लेकिन अभी हाल फिलहाल उत्तराखंड के वनों की आग इनको प्रभावित नही करती। हाइड्रो और रोड़ प्रोजेक्ट जिनमे पंचेश्वर बांध और चारधाम आल वेदर रोड में हज़ारों बेशकीमती वन संपदा का खत्म हो जाना इनके लिए न तो मुद्दा है और न ही उनको इसकी चिंता है। उनको केवल अपनी घांस बचाने की बनावटी चिंता है।
सरकारें भी कोई पुख्ता इंतजाम नही कर पा रही है। भूजल के उपयोग की जगह जल को पुनः साफ करके भेजने का प्रयास नही हुआ।  सरकार को जितना जल्दी हो भूजल का इस्तेमाल पूरे तरह रोक देना चाहिए क्योंकि भूजल का स्रोत  acquifer जलभृत एक बार खत्म हो जाये तो विनाश की स्थिति ही मानी है जा सकती है।
इस कारण सरकार भी इस विषय पर अधिक संवेदनशील नही है। सरकार को कमरकस कर जल शोधन कार्यक्रम को शुरू करके बागवानी के लिए अलग से सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करवाना ही पड़ेगा। जितना पानी घरों में इस्तेमाल होता है, उसको साफ करके हरियाली बचाई जा सकती है।
जल,  जैसा हम जानते ही है, हिमानी और ग़ैरहिमानी नदियों से ही आता है। जब हम पानी का इस्तेमाल करते  है तो एक बात नही भूलनी चाहिए कि जल ही जीवन है और इसको उपयोग करते हुए हमें सदैव इसके स्रोत को स्मरण करना चाहिए।
लेकिन द्वारका के रेडिडेंट्स भी जल के संदर्भ में नुकसान क्यों कर उठाये। इसका भी ख्याल रखना चाहिए।
कुछ लोग ऐसे भी है ,जो सरकार विशेषकर दिल्ली सरकार को कोसते हुए कहते है कि सारी सुविधा केवल झुगी झोपड़ी वालों को हो मिलती है। इस तरह की तुलना हमारे बौद्धिक छोटेपन की ओर इशारा करता है। झुगी झोपड़ी बस्ती का जीवन और द्वारका की सोसाइटी के जीवन में कोई तुलना नही हो सकती। लोग भूल जाते है, इस बस्तियों में बहुत छोटी आय वाले लोग भी जीवन बसर करते है। इस तरह हम को द्वारका में रहने और दिल्ली सरकार के पानी के कार्य की सराहना करनी ही चाहिए।
अभी कुछ दिनों पूर्व  द्वारका को सोलर सिटी बनाने का ऐलान और अब जल संकट की चर्चा जिसमे दिल्ली के मुख्यमंत्री को भी जनता के सामने समाधान हेतु आना पड़ा। ये दोनों बहुत बड़े कार्य है।
मुझे व्यक्तिगत तौर पर ऐसा लगा जैसे बहुत से लोग आप पार्टी और मुख्यमंत्री को दिमाग़ से स्वीकार नही करते। लेकिन दिल में उनको दिल्ली सरकार के कामों की हलचल तो रहती ही है।
अंत में हम सब की कोशिश रहे कि बिजली और पानी का उपयोग किफायत से हो ताकि बेतहाशा मांग बढ़ने से कहीं और बड़े बांध और कोयले के नाम पर प्राकृतिक संपदा नष्ट न हो सकें। हमारी अधिक मांग जल जंगल जमीन के लिए विनाश का कारण न बन सके, इस मिशन के साथ हमें देश को आगे ले जाना है।
भले हम दिल्ली सरकार को माने या न माने लेकिन उनके स्वास्थ्य, शिक्षा, जल प्रबंधन एवं उपलब्धता और बिजली में सुधार तथा बिल न बढ़ना कल्याणकारी सरकार की अवधारणा में सफल प्रयास ही है। ये एक मिशन ही हो सकता है। द्वारका के लिए इससे अधिक गर्व का विषय क्या होगा कि द्वारका को प्रथम सोलर सिटी के रूप में विकसित करने की मंसा द्वारका के रेसिडेंट्स के लिए गर्व का विषय होना चाहिए। राजनीति से उठकर इन सब कदमों का दिल से धन्यवाद देना चाहिए। केवल स्वार्थपूर्ण ओछी राजनीति से हम सब को बचना है। द्वारका को भारत की सोलर, जल संरक्षण  और जीरो वेस्ट मैनेजमेंट अथवा पूर्ण कचरा निस्तारण सिटी आओ सब मिलकर बनाये और भूल जाये कि हम किस दल से जुड़े है, याद रहे कि द्वारका के रेसिडेंट्स है। हमारा ये मिशन सतत विकास की अवधारणा को स्थापित करेगा और पर्यावरण संरक्षण में योगदान देगा ,  ये तय है।
(रमेश मुमुक्षु)
हिमाल एवं राइज फाउंडेशन से सम्बद्ध।