(बुलेट ट्रेन से पूर्व)
गोआ एक्सप्रेस के एस 1 डिब्बे में कोई चार्जर नही है। खिड़कियों से ठंडी हवा आ रही है। सोना मुश्किल हो हो रहा है। वेस्टर्न टॉयलेट में लाइट नही है। कमोड टूटा फूटा है।
कोई भी सवारी घुस जाती है। टिकट चेकर अभी रात को किसी ac डिब्बे में सो रहे है।
अगर रेलवेज को और भी विकसित करना है तो इन छोटी छोटी बातों का ख्याल करें। सवारी डरी रहती है कि कोई आकर चोरी न कर ले। ये हमेशा रहा है । ये तो कथा आरक्षित डिब्बे की है। जापान में बुलेट ट्रेन से पूर्व क्रमिक विकास हुआ होगा। उनके किसी डिब्बे में खिड़की से हवा नही आती होगी। टॉयलेट में लाइट होगी। कमोड टूटा नही होगा। सबसे पहले ये सब ठीक हुआ होगा। उंसके बाद क्रमिक विकास हुआ। ये तो वो ही हुआ कोट पेंट कीमती जूते फटे हाल जिनका मुँह खुला हुआ होता है। आजकल लोग ऐसे जूते नही जानते होंगे। एक बड़ा वर्ग स्लीपर में सवारी नही करता। एक वर्ग ऐसा भी है, जो ट्रैन में भी सवारी नही करता। ये लोग अगर एतराज करते तो असर होता। ये करते नही , जो करते है, उनकी सुनता कोई नही। ए सी में तो टिकट चेकर भी डरा सा रहता है। आदमी स्लीपर क्लास में निर्मोही और निर्दयी भी बन जाता है। अब किस के चहेरे पर लिखा है कि इसके पास टिकट कन्फर्म है की नही। डर से बिना कन्फर्म टिकट वाले को आगे जा कहना ही होता है। उसी ट्रैन के ए सी कोच में निश्चिन्त हो कर लंबी तान कर सो जाओ। एक तो ठंड के थपेड़े किसी खिड़की के किनारों से नही आते। कितनी बार तो खिड़की ठीक से लगती भी नही। खटर फटर की तो बात ही नही।
ये हाल है आरक्षित स्लीपर क्लास का। सामान्य डिब्बे के अंदर के हालात कौन बयां करेगा। उनके भीतर की कहानी भीतर ही रहे जाएगी।
सबसे पहले ये सब ठीक दुरस्त होनी चाहिए ताकि बुलेट ट्रेन या कुछ भी लाओ तो मिसफिट नही लगेगा।
आशा है सरकार इन पर ध्यान केंद्रित करेगी। कभी कभी प्रधान मंत्री, रेलवे मंत्री सफर का आनंद के तो सचाई सामने आजाये। ये लोग जाते है लेकिन गाजे बाजे के साथ । जब वी आई पी विजिट होता है तो सामान्य डिब्बा भी चमका देते है। औचक विजिट से ही चीज़े सामने आती है। प्राचीन परंपरा की बात करते है। राजा रात को वेश बदल जाता था। लेकिन अब वेश बदल कर जीवन कटता है। अब वेश उतार कर जाना होगा। अब भला नेता वेश उतार दे तो उसका अस्तित्व ही खत्म हो जाएं।
लेकिन ऐसा भी नही की सुधार नही हो रहा। धीरे धीरे बहुत कुछ बदल रहा है। क्योंकि अगर हम कहें कुछ भी नही बदला तो जो लोग मेहनत करते है। उनके विरुद्ध अन्याय होगा। ये सब बिन्दु भी जहन में रखे। एक बार श्री लालू यादव के समय मैंने सामान्य डिब्बे की आर्थिकी और हाल लिखे थे। लेकिन उसके बाद नही गए तो सचाई मालूम नही हो सकती।इटारसी काफी पहले निकल गया है। अच्छी खासी ठंड है। अभी साइड सीट पर मैं लिख रहा हूँ तो बसंत पांडेय लंबी ताने है। अगर कोई अनजान RAC में बैठ जाये तो अंदाज़ा भी लगाना कठिन हो जाएं। RAC में सर्दी की रात को खजुराहो की मूर्ति की तरह ही सोया जा सकता है। पैर कही भी लगे इससे ऊपर उठ कर ही सफर हो सकता है।
किसी स्टेशन का इंतजार है ताकि चाय की चुस्की ली जाए अभी तलब लग है।
कुछ भी कहो ट्रैन का सफर रात सोते हुए पटरी से आती आवाज़ मेरे लिए संगीत ही है। रात को पटरी बदलने पर खड़ बड़ खड़ बड़ रोमांच कर देता है। छोटे स्टेशन से गुजरती एक्सप्रेस ट्रैन किसी घमंडी लौंडे सी सरपट निकल जाती हूं। स्लीपर क्लास की साइड सीट का अपना रोमांच होता है। बाहर झांकते हुए , कुछ स्केच बनाने और कोई कविता फुट ही पड़ती है। लंबी ट्रैन का सफर आनंद से भरा होता है। मेरा मित्र मास्को से वालादिवोस्टक तक जाता था ,साइबेरियन ट्रैन जिसमे 6 दिन लगते थे, मन में ही रह गई। मेरा मित्र डॉ कुलदीप जुगरान उसमे चीन जाता था , 1993 की बात है। चादर बदली जाती थी ट्रैन में, यहां तो 2018 में , अभी खिड़की से शूल की तरह चुभती हवा रात भर सर्दी की रात को संघर्षमय रात में तब्दील कर लेती है। हम तो कलम घिस्सु और आर्टिस्टिक पेन से उल्टी सीधी लाइन पेपर पर उतार लेते है। नही कुछ चिंतन कर लिया । लेकिन देश में अभी भी बड़ी संख्या है, जिनके लिए ऐसा सफर भी सपना ही है। अभी अंत में इवान तुर्गनेव के उपन्यास रुदिन में रुदिन का दोस्त सर्दी की रात रुदिन के जाने के बाद सोचता है कि वो कितने भाग्यशाली होंगे जिनको सर्दी की कड़कती रात में गरम बिस्तर नसीब होगा। ये लाइन याद आगई। सब आराम से सफर करें और सबको अवसर मिले , ऐसा देश बन सकेगा........?
अभी कोई स्टेशन नही आरहा। चाय की तलब भी बढ़ रही है। आखिरकार 2 घंटे बाद खंडुवा स्टेशन आया और अपने साथ चाय भी लाया। अभी सूर्योदय के सुंदर दृश्य देखते ही बन रहा है।अभी भुसावल स्टेशन पर केले किये। यहां के केले स्वादिष्ट होते है। 1991 में एक रुपये के 12 थे ,अभी 30 रुपये के 10 मिले लेकिन स्वाद अभी भी है। सर्दी से निजात मिल गई। अभी खिड़की खोल ली।
रमेश मुमुक्षु
(गोआ एक्सप्रेस से बसंत पांडेय के साथ RAC में एक सीट में रात भर खिड़की की ठंडी हवा से संघर्ष करते हुए।)
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Monday, 22 January 2018
(बुलेट ट्रेन से पूर्व)
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