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Sunday, 14 January 2018

(द्वारका जल विवाद और समाधान)

(द्वारका जल विवाद और समाधान)
तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा । इसकी झलक आज द्वारका में मुख्यमंत्री , दिल्ली जल बोर्ड , द्वारका रेसिडेंट्स के जनसंपर्क कार्यक्रम में पानी पर विवाद और पानी के प्रति असंवेदनशीलता को देख अनुभव हुआ। मजे का विषय है कि सबसे अधिक पढ़े लिखे लोगों में लामबंद कर के माइक अपने कब्जे में करने की कोशिश से बड़ा अफसोस हुआ। पानी की समस्या से द्वारका के रेसिडेंट्स वर्षों परेशान रहे। लेकिन वर्तमान सरकार ने आते ही द्वारका समेत पूरी दिल्ली को साफ पानी उपलब्ध करवा दिया। 20000 लीटर फ्री जल के बाद भी जल बोर्ड को नुकसान नही हो रहा। द्वारका की सोसाइटी में बोरवेल , वर्षा जल प्रबंधन आदि की शिकायत आती रही है। साफ पानी के बाद भी जमीन का भूजल निकालना जारी है। भारी बिलों का मसला भी चर्चा के लिए जरूरी था। खेर ,ये सब एक हैप्पी एंडिंग में समाप्त हुआ। लोगों के बिल माफ हो गए और भूजल का इस्तेमाल भी प्रतिबंध के साथ स्वीकार कर लिया गया।
ये सब जल प्रबंधन की बात ही थी। सबको अपने पानी की पड़ी थी। पानी के बिल मॉफ कर दो की बात थी। चूंकि जल बोर्ड ने कुछ जल्दबाजी भी की थी।
लेकिन कुछ लोग कह रहे थे कि अगर पानी कम होगा तो हरियाली कम हो जाएगी। ये वो लोग है जिनको टेहरी बांध का पानी और बिजली दिखती है, बेशकीमती घाटियां और जल,जंगल,जमीन की बर्बादी नही दिखती। सोसाइटी के भीतर घांस और कुछ पेड़ ही इनकी दुनियां है।
अभी सर्दी का मौसम है, लेकिन अभी हाल फिलहाल उत्तराखंड के वनों की आग इनको प्रभावित नही करती। हाइड्रो और रोड़ प्रोजेक्ट जिनमे पंचेश्वर बांध और चारधाम आल वेदर रोड में हज़ारों बेशकीमती वन संपदा का खत्म हो जाना इनके लिए न तो मुद्दा है और न ही उनको इसकी चिंता है। उनको केवल अपनी घांस बचाने की बनावटी चिंता है।
सरकारें भी कोई पुख्ता इंतजाम नही कर पा रही है। भूजल के उपयोग की जगह जल को पुनः साफ करके भेजने का प्रयास नही हुआ।  सरकार को जितना जल्दी हो भूजल का इस्तेमाल पूरे तरह रोक देना चाहिए क्योंकि भूजल का स्रोत  acquifer जलभृत एक बार खत्म हो जाये तो विनाश की स्थिति ही मानी है जा सकती है।
इस कारण सरकार भी इस विषय पर अधिक संवेदनशील नही है। सरकार को कमरकस कर जल शोधन कार्यक्रम को शुरू करके बागवानी के लिए अलग से सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करवाना ही पड़ेगा। जितना पानी घरों में इस्तेमाल होता है, उसको साफ करके हरियाली बचाई जा सकती है।
जल,  जैसा हम जानते ही है, हिमानी और ग़ैरहिमानी नदियों से ही आता है। जब हम पानी का इस्तेमाल करते  है तो एक बात नही भूलनी चाहिए कि जल ही जीवन है और इसको उपयोग करते हुए हमें सदैव इसके स्रोत को स्मरण करना चाहिए।
लेकिन द्वारका के रेडिडेंट्स भी जल के संदर्भ में नुकसान क्यों कर उठाये। इसका भी ख्याल रखना चाहिए।
कुछ लोग ऐसे भी है ,जो सरकार विशेषकर दिल्ली सरकार को कोसते हुए कहते है कि सारी सुविधा केवल झुगी झोपड़ी वालों को हो मिलती है। इस तरह की तुलना हमारे बौद्धिक छोटेपन की ओर इशारा करता है। झुगी झोपड़ी बस्ती का जीवन और द्वारका की सोसाइटी के जीवन में कोई तुलना नही हो सकती। लोग भूल जाते है, इस बस्तियों में बहुत छोटी आय वाले लोग भी जीवन बसर करते है। इस तरह हम को द्वारका में रहने और दिल्ली सरकार के पानी के कार्य की सराहना करनी ही चाहिए।
अभी कुछ दिनों पूर्व  द्वारका को सोलर सिटी बनाने का ऐलान और अब जल संकट की चर्चा जिसमे दिल्ली के मुख्यमंत्री को भी जनता के सामने समाधान हेतु आना पड़ा। ये दोनों बहुत बड़े कार्य है।
मुझे व्यक्तिगत तौर पर ऐसा लगा जैसे बहुत से लोग आप पार्टी और मुख्यमंत्री को दिमाग़ से स्वीकार नही करते। लेकिन दिल में उनको दिल्ली सरकार के कामों की हलचल तो रहती ही है।
अंत में हम सब की कोशिश रहे कि बिजली और पानी का उपयोग किफायत से हो ताकि बेतहाशा मांग बढ़ने से कहीं और बड़े बांध और कोयले के नाम पर प्राकृतिक संपदा नष्ट न हो सकें। हमारी अधिक मांग जल जंगल जमीन के लिए विनाश का कारण न बन सके, इस मिशन के साथ हमें देश को आगे ले जाना है।
भले हम दिल्ली सरकार को माने या न माने लेकिन उनके स्वास्थ्य, शिक्षा, जल प्रबंधन एवं उपलब्धता और बिजली में सुधार तथा बिल न बढ़ना कल्याणकारी सरकार की अवधारणा में सफल प्रयास ही है। ये एक मिशन ही हो सकता है। द्वारका के लिए इससे अधिक गर्व का विषय क्या होगा कि द्वारका को प्रथम सोलर सिटी के रूप में विकसित करने की मंसा द्वारका के रेसिडेंट्स के लिए गर्व का विषय होना चाहिए। राजनीति से उठकर इन सब कदमों का दिल से धन्यवाद देना चाहिए। केवल स्वार्थपूर्ण ओछी राजनीति से हम सब को बचना है। द्वारका को भारत की सोलर, जल संरक्षण  और जीरो वेस्ट मैनेजमेंट अथवा पूर्ण कचरा निस्तारण सिटी आओ सब मिलकर बनाये और भूल जाये कि हम किस दल से जुड़े है, याद रहे कि द्वारका के रेसिडेंट्स है। हमारा ये मिशन सतत विकास की अवधारणा को स्थापित करेगा और पर्यावरण संरक्षण में योगदान देगा ,  ये तय है।
(रमेश मुमुक्षु)
हिमाल एवं राइज फाउंडेशन से सम्बद्ध।

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