Search This Blog

Saturday 26 June 2021

कोरोना खत्म नही हुआ है

कोरोना खत्म नही हुआ है
मास्क लगा ले मास्क लगा ले 
मास्क लगा रे ।
जब जब भी तू भीड़ में जाये
 मास्क लगा रे ।।
आफिस , दुकान किसी का घर हो
मास्क लगा रे ।।।
दो ग़ज दूर ही रहना सब से 
मास्क लगा र v।
हाथों को नित साफ ही रखना 
मास्क लगा रे v
बाहर तू खाना कम कर दे  अब 
मास्क लगा रे vi
इम्युनिटी का जाप किये जा 
मास्क लगा रे vii
दोनों वैक्सीन जल्द लगा ले 
मास्क लगा रे viii
कोई जन भी  छूट न जाये  
मास्क लगा रे xv
दूजी लहर को कभी न भूलो 
मास्क लगा रे x
कोरोना खत्म नही हुआ है
मास्क लगा रे xi
तीसरी लहर को न आने दे 
मास्क लगा रे xii
अब तो सुधर ले कुछ तो डर ले
मास्क लगा रे 
मास्क लगा ले मास्क लगा ले
मास्क लगा रे 
मास्क लगा ले मास्क लगा ले 
मास्क लगा रे ।
रमेश मुमुक्षु 
अध्यक्ष हिमाल,
9810610400
25.6.2021

Tuesday 22 June 2021

कोविड की दूसरी लहर के बाद : मंजर ऐसा की कुछ हुआ ही नही

कोविड की दूसरी लहर के बाद : मंजर ऐसा की कुछ हुआ ही नही
पिछले दिनों किसी जरूरी काम से तिलक नगर जाना हुआ और आज सेक्टर 12 की ओर जाने पर लगा कि जैसे अप्रैल और मई की मेमोरी सभी के दिमाग़ से डिलीट हो गई हो। उसके बाद सेक्टर 14 मेट्रो स्टेशन के पास इरोज़ मॉल में दारू का ठेका । भीड़ ही भीड़ , डर मुक्त और उन्मुक्त लोग इधर उधर बिना किसी डर के दिखाई पड़ रहे है। अप्रैल और मई के महीने में मजाल है, कोई एक मास्क लगाकर बाहर निकल जाए, दो दो मास्क लगाते थे। दिन रात फ़ोन बजते थे, ऑक्सीजन, बेड, दवा, प्लाज़्मा, आई सी यू, वेंटीलेटर और शमशान घाट में लंबी लाइन, किसी परिचित और पहचान वाले की खबर, किसी के अस्पताल में जूझते हुए की चिंता और न जाने कितनी खबर। लॉक डाउन में चारों ओर सन्नाटा। 
एक बात से इंकार नही किया जा सकता है कि लोग उकता गए, कहीं दूर जाना चाहते है। लेकिन हम सब सुरक्षित रहे और सबसे पहले कोरोना के लिए नियत व्यवहार को जीवन का अंग बना ले , जब तक हम इस को अपने जीवन से दूर न कर दें। जैसे अभी मास्क पहनने वाले बड़े है। 
लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर निर्देश का पालन हो। ऐसा लगता है, हम सब थक गए या भविष्य की चिंता छोड़ दी।क्या ये सही है?
इस तरह उन्मुक्त होना उचित है?
कोरोना अनुशासन को जीवन में उतारना ही होगा, क्या ये सच बात है? 
पिछले दिनों द्वारका पुलिस के अतिरिक्त डीसीपी 1 श्री शंकर चौधरी ,ने एक आदेश / निर्देश जारी किया । उनका काम करने का तरीका भिन्न है। मुझे लगता नही कि उसपर कुछ बहुत चर्चा भी हो रही है। शुक्रवार 3 बजे तक एस एच ओ को पूरे सप्ताह की रिपोर्ट देनी है। लेकिन हम अलमस्त हो गए लगते है। 
आदेश और निर्देश से बेहतर है, हम खुद ही इन बातों का पालन करना सीख लें। कितनी आर डब्ल्यू ए है, जो सर्विस प्रोवाइडर की वैक्सीन की बात कर रहे है। हम लोग कम से कम वैक्सीन के लिए प्रयास तेज कर सकते है। निर्माण से जुड़े लोगों को वैक्सीन के लिए तैयार कर सकते है।।उनके लिए वैक्सीन लगवाने की पुख्ता व्यवस्था कर लें तो कम से कम वैक्सीन से ख़तरा तो कम हो जाएगा। बिना वैक्सीन के पॉकेट और सोसाइटी में न आने देने की बात को लागू करने का प्रयास किया जा सकता है। 
असल में निर्देश और आदेश केवल कागज़ और ऑनलाइन तक ही सिमट हो गए है। कहीं भी कोरोना संबंधी निर्देशों का पालन तो दूर पूरी तरह मानये भी नही जा रहे है, ऐसा लगता है।
जब मेट्रो को छोड़ सभी जगह खुली छूट हो गई, नियम पालन नही हो रहे। मेट्रो में कम से कम कुछ तो पालन हो ही रहा है। तीसरी लहर की चर्चा होती रहती है। अगर इस तरह बिना किसी निर्देश के चलता रहा तो अंजाम हम देख ही चुके है। लेकिन इतना जल्दी भूल गए, ये गंभीर सोच का विषय है।
चिंतन तो कर ही सकते है।
रमेश मुमुक्षु 
अध्यक्ष हिमाल 
9810610400
22.6.2021

Friday 4 June 2021

बरगद की आत्म व्यथा भाग -2 मुझ पर धागा बाधने वाले दो पैर के प्राणी : मुझ में भी प्राण है

बरगद की आत्म व्यथा भाग -2
मुझ पर धागा बाधने वाले दो पैर के प्राणी : मुझ में भी प्राण है। 
मेरे शरीर को सीमेंट से पूरी तरह दबा दिया गया है। मैं द्वारका उपनगर नई दिल्ली की सेक्टर 6 की मार्किट में शनिमंदिर के पास ही स्थित हूँ, या सजायाफ्ता हूँ। मेरे कुछ साथी भी। जो मेरे आस  पास मेरे जैसे ही तकलीफ में है। मेरे एक ओर सड़क और दूसरी ओर मार्किट ,ये तय है कि मेरी वृद्धि सदैव बाधित रहेगी। मैं अपनी एरियल रूट्स को जमीन तक कैसे ला सकूंगा। मेरा वजन बढेगा और एक दिन तय है कि मैं गिर ही जाऊं। 
मुझ पर धागा बांधने वाले केवल अपने स्वार्थ के लिए आते है। किसी को मेरी सुध नही कि मेरे भीतर भी प्राण है। मुझे भी अपने शरीर को खुल कर पोषक तत्व और प्रकृति का आनंद चाहिए।काश,  अगर हम खुद यहाँ से वहां चल सकते तो हमेशा इस मनुष्य से दूर ही जाकर बसते।
जब मेरे बीज से अंकुर फूटा था,उस वक्त ही मुझे किसी खुले स्थान पर यहां से हटा कर उगा दिया जाता तो बहुत ही अच्छा रहता। लेकिन ये मनुष्य ठीक मेरे सामने शनिवार को मंदिर में अपने कष्ट निवारण के लिए आता है ,लेकिन किसी को आज तक मेरा दर्द नही सुना। ऐसे ही मेरा भाई पीपल और सभी फाइकस परिवार के पेड़ जिनके बीज पक्षी खाकर यहाँ बिखेर देते है ।जब मनुष्य ने अपने घर नही बनाये थे ,तो हम जंगल अथवा खुले स्थान पर ही उगते थे। लेकिन अभी हम शहरीकरण के दंश और अभिशाप को झेलने के लिए छत, पाइप, दीवार कही भी उग जाते है। 
कब ये मनुष्य मेरी सुध लेगा और कम से कम मेरे शरीर को सीमेंट से मुक्त करेगा। मेरा भार बढेगा तो मेरे शरीर को हल्का करना ही होगा ,वरना मैं अपने भार से गिर जाऊंगा। कल ये मनुष्य 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाएगा  और बड़ी बड़ी बातें करेगा ,लेकिन मुझे कोई नही देखेगा। बस मेरे नीचे अपनी गाड़ी खड़ी करने की सोचता है ताकि धूप से बच सकें।
देखता हूँ ,कौन मेरी फरियाद सुनेगा और कब तक। 
हे प्रकृति ये  बुद्धिहीन ,स्वार्थी, पढ़े लिखे अल्पज्ञानी को कब  मेरी तकलीफ  का अहसास होगा। मुझे मालूम है  कि कुछ लोगों को वास्तव में इसका ज्ञान और जानकारी  नही है,वो मेरे शरीर में निर्दोष भाव से धागा बांधते है, मुझे उनसे कभी तकलीफ नही होती।  लेकिन जो जानते और समझते है, उनके ऊपर  मैं क्षुब्ध रहता हूँ। सरकारी विभाग वाले जो समझते है ,वो भी मेरी सुध नही लेते। कुछ लोग है, जिनके भीतर संवेदना है ,लेकिन वो कम ही है। अभी मेरे अग्रज को, जो गिर गया था ,उसको लगा दिया है।  अब  देखता हूँ ,कब तक मेरा और मेरे परिवार का शरीर सीमेंट से मुक्त होता है। कब तक मनुष्य के भीतर संवेदना का संचार होता है , कब तक.....?
रमेश मुमुक्षु 
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
4.6.2021