श्रीमती सिसली कोडीयान से अंतरंग मुलाकात: हमेशा याद रहेगी।
कल श्री उमेश काला , गंगोत्री अपार्टमेंट की RWA के 4 बार अध्यक्ष रहे है, ने किसी बुजुर्ग समाज सेविका से मिलना है कि बात कही । मैंने उनका नाम पुछा तो उमेश ने कहा कि कोई कोड़ीयान मैडम है। मैंने तुरंत कहा कि सिसली कोडीयान होंगी ,जिनको अधिकांश द्वारका के लोग जानते ही है।
उनकी संस्था का नाम ANHLGT (Association of Neighbourhood Ladies Get-,Together ) वर्षों से लोगों ने सुना ही है। बड़ी तादाद में महिलाएं ANHLGT की मेंबर है।
ANHLGT का मिशन रहा है , ग्रीन , क्लीन, ब्यूटीफुल, सेफ एंड हेल्थी सोसाइटी , जिसके अनुसार ये सब विशेषकर बच्चों के साथ काम में लगे हुए है।
सिसली कोडीयान मूलतः केरल राज्य की है। उनका जन्म कोडनाड जिला एरुंगला , kadanad, district Erangla , हुआ था। वयोवृद्ध होने के बाद भी उनका उत्साह देखते ही बनता है। आरंभिक शिक्षा उन्होंने संस्कृत में ली थी। बचपन से ही उनके भीतर समाज के लिए कुछ करने की ललक उनके माता पिता से मिली। इनके पिता भी समाज सुधार के विभिन्न कार्यो से जुड़े हुए थे।
पढ़ना पढ़ाना उनके लिए एक मिशन ही था। उन्होंने काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर और बाद में रूस के कल्चरल सेंटर में सहायक पुस्कालयाध्यक्ष के रूप में काम किया।
उन्होंने बातों बातों में बताया कि विवाह से पूर्व उनको भारत के प्रथम राष्ट्रपति स्व. राजेन्द्र प्रसाद जी के पोते व उनके भाई के बच्चों को गणित व इंग्लिश की ट्यूशन पढ़ाने का अवसर मिला , उस समय उनको सब लोग मास्टरनी कहा करते थे। उनका विवाह स्व. पी के कोडीयान से हुआ, जो एर्नाकुलम में वायपिन vypeen आइलैंड के रहने वाले थे । ये सुन मुझे रोमांच हुआ क्योंकि मैं वायपिन आइलैंड 1985 अपने मित्र अजय के साथ एक रात रहा था । उनके पति तीन बार दूसरी, छटी व सातवी संसद में सांसद रहे। उनके पति ने ही खेत मजदूर संघ की स्थापना की ओर 1968 में देश भर से 5 लाख मजदूरों को दिल्ली बुलाकर न्यूनतम मजदूरी जैसी मांग की। वो भी बहुत ही ईमानदार व्यक्ति थे।
उनके पति सामाजिक कार्य में लगे रहते थे। सिसली कोडीयान ने बताया कि कितनी बार उनको अपने पति को उनके कामों के लिए पैसा देना होता था। ऐसे नेताओं को उन्होंने देखा , जो आज एक सपना ही लगता है, जो गुजर गया।
लेकिन सिसली कोडीयान जी ने अपने बच्चों की पढ़ाई और उनकी प्रगति के लिए भी एक मिशन की तरह काम किया। लंबे समय उनका सम्बंध नेताओं से रहा ,लेकिन वो ह्रदय से समाज सेवा में ही रही।
इसी कारण उनके बच्चों ने जीवन में बहुत तरक्की भी की।
नार्थ एवेन्यू में रह कर उन्होंने संसदीय शिशु विद्यालय की स्थापना भी की। भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी उनके विभिन्न सामाजिक कार्यों में मदद की।
उन्होंने बताया कि एम पी कैंटीन का भी उन्होंने संचालन किया।
उनका मिशन रहा कि बच्चों में वैज्ञानिक सोच का प्रचार हो , इसलिए उन्होंने भारत व विदेशी वैज्ञानिकों की जीवनी भी लिखी कि वो बचपन में कैसे थे और उनके भीतर विज्ञान कैसे पनपा। उन्होंने करीब 12 पुस्तक लिखी है, अभी भी लिख रही है।
जैसा होता ही है, उनके साथ बहुत संख्या में मेंबर जुड़े हुए है, लेकिन अधिकांश सभी विभिन्न कार्यों में व्यस्त रहते है।
उनका मिशन है कि द्वारका के पॉकेट व सोसाइटी के बच्चें छोटे छोटे पौधे स्वयं से लगाये ताकि उनके प्रति उनके भीतर अनुराग व भाव पैदा हो सकें।
सरकार ने उनको सेक्टर 23 के सामुदायिक केंद्र में एक कमरा भी प्रदान किया है ,जहां पर उन्होंने आफिस के साथ पुस्तकालय भी खोला हुआ है। उनका कहना है कि वर्तमान रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने उनको ये आफिस सौंपा था।
उमेश काला जी जो बहुत ही जुझारू व्यक्ति है, उन्होंने वहीं बैठकर कितनी ही पॉकेट में वृक्षारोपण के बारें में बात कर ली।
उनके साथ विभिन्न विषयों पर चर्चा हुई। उनका लम्बा समय नार्थ, साउथ एवेन्यू व वी पी हाउस में ही बीता, 2001 अपने पति की मृत्यु के उपरांत वो वहां से बाहर गई। उपरोक्त जगहों पर वो लोग एक साथ मिलकर रहते थे, सभी त्यौहार मिलकर मानते थे। लेकिन जब वो द्वारका आईं तो एक दम नए माहौल में उन्होंने खुद को पाया। उनकी इच्छा है कि सभी लोग आपस में प्रेम व भाई चारे से रहे। पर्यावरण के प्रति सजग रहे और बच्चों में इन सब बातों की बचपन से ही डालना जरूरी है।
उनके साथ इस तरह उनके घर में फॉर्मल बात चीत में आनंद आया और उम्र कभी काम में बाधा नही होती, 93वे वर्ष होने के बावजूद उनकी उनकी आंखों की चमक ने स्वयं ही कह डाला।
लंबे समय तक ये मुलाकात याद रहेगी। जल्दी ही किसी पॉकेट में उनके साथ वृक्षारोपण, उनके द्वारा शपथ
OATH
Let there be always peaceful Earth
Let there be always cheerful Earth
Let us protect our mother Earth
Let us make Dwarka clean and beautiful
Let us make Dwarka safe and healthy
Let us live in social solidarity
Let us live with community responsibility
Let us live in unity without hatred against cast creed or religion
व सर्टिफिकेट बच्चों को प्रदान करते हुए कुछ समय दिया जा सकता है। उनसे बात करने के बाद मन समाज में समर्पण, फक्कड़ की तरह लगे रहना का अहसास स्मरण हो उठा, जो आज सपने की तरह लगने लगा है। समाज के प्रति ईमानदारी से लगे रहना , किसी भी व्यक्ति को अकेला कर सकता है। लोग तारीफ करेंगे और लेकिन कब एक किनारा कर ले, ये कह कठिन है ।
जब विवेकानद जैसे महान संत ऐसा अनुभव करते थे, तो ये ही प्रसाद होता है और ये ही होता है, परितोष। तनिक मन करुणामय होता है, फिर यात्रा पथ पर निकल जाता है, रविन्द्र नाथ टैगोर की कविता "जदि तोर डाक शुने केउ ना आसे तबे एकला चलो रे"......कहीं भीतर से यकायक उभर आई।
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
30.8.2022