चलते चलते बिना रुके
जब कोई अपने
पैर जमाने लगता है ,
तो सभी को
शुक्रिया कहता नही
थकता
वो कमीज के टूटू बटन
की भी
तारीफ करेगा
उलझे उलझे बाल और
अस्त व्यस्त हालात को
दर्शन बोल देगा
हर बात को ध्यान से सुनेगा
उसकी गंभीरता
देखते बनती है
याद रहे पैर जमाने के
दौर में
लेकिन पैर जमते ही
वो सब कैसे
काफूर हो जाता है
दर्शन कहीं पीछे
छूट जाता है
टूटू बटन पर
निगाह
टिक जाती है
ध्यान से सुनना
किसी जिन के
चिराग में चला गया
सा लगता है
लेकिन मतवाले और
जीवन को गहराई से
समझने वाले
इसका भी
लेते है आनंद
उन्हें मालूम है
ये जो कभी कभी
तारीफ के
पुल बांध देते है
ये आदतन ऐसा
करते है
उन्हें मालूम है कि
तारीफ का
कितना सिलसिला रहेगा
ये बिचारे ही होते है
चेहरे पर मुस्कुराहट
को दिखाने का
मुखोटा
इन्हें बहुत भाता है
संबंधों की प्रगाढ़ता
ऐसी जैसे सागर की
गहराई
पहाड़ों की
ऊंचाई की तरह
आकाश की उड़ान
जैसे इनका
छदम रूप देखते ही
बनता है
पड़ाव दर पड़ाव यात्रा
पथ में आते रहते है
जाते रहते
और जिनको
एकला चलना है
वो दूर निकल जाते है
चल अकेला
चल अकेला
गुन गुनाते हुए
यात्रा पथ पर
दूर ओझल होने तक
मंजिल की ओर
अनंत पगडंडियों
पर
चलते चलते बिना रुके अनवरत.....
रमेश मुमुक्षु
30.3.2021