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Wednesday 31 March 2021

चलते चलते बिना रुके

चलते चलते बिना रुके
जब कोई अपने 
पैर जमाने लगता है , 
तो सभी को
 शुक्रिया कहता नही 
थकता
वो कमीज के टूटू बटन 
की भी 
तारीफ करेगा
उलझे उलझे बाल और
 अस्त व्यस्त हालात को 
दर्शन बोल देगा
हर बात को ध्यान से सुनेगा 
उसकी गंभीरता
 देखते बनती है
याद रहे पैर जमाने के
 दौर में
लेकिन पैर जमते ही 
वो सब कैसे 
काफूर हो जाता है
दर्शन कहीं पीछे
 छूट जाता है
टूटू बटन पर
  निगाह 
टिक जाती है 
ध्यान से सुनना
 किसी जिन के
 चिराग में चला गया  
सा लगता है
लेकिन मतवाले और 
जीवन को गहराई से 
समझने वाले 
इसका भी 
लेते है आनंद 
उन्हें मालूम है 
ये जो कभी कभी 
तारीफ के 
पुल बांध देते है
ये आदतन ऐसा 
करते है
उन्हें मालूम है कि 
तारीफ का 
कितना सिलसिला रहेगा
ये बिचारे ही होते है
चेहरे पर मुस्कुराहट 
को दिखाने का 
मुखोटा 
इन्हें बहुत भाता है
संबंधों की प्रगाढ़ता 
ऐसी जैसे सागर की
 गहराई 
पहाड़ों की 
ऊंचाई की तरह
आकाश की उड़ान 
जैसे इनका 
छदम रूप देखते ही 
बनता है
पड़ाव दर पड़ाव यात्रा 
पथ में आते रहते है
जाते रहते 
और जिनको 
 एकला चलना है 
वो दूर निकल जाते है 
चल अकेला 
चल अकेला
 गुन गुनाते हुए 
यात्रा पथ पर 
दूर ओझल होने तक
 मंजिल की ओर 
अनंत पगडंडियों 
पर 
चलते चलते बिना रुके अनवरत.....
रमेश मुमुक्षु 
30.3.2021

Tuesday 30 March 2021

कुछ पगडंडियाँ बची है पहाड़ की चोटी कीओर

  कुछ पगडंडियाँ बची है पहाड़ की चोटी कीओर
अभी भी कुछ 
पगडंडियाँ 
बची है पहाड़ की चोटी की
ओर 
जाने के लिए
वर्ना लील गई
 काली सड़क की
 बेतहासा रफ़्तार
विकास का झंडा थामे
देती तो है सुख 
पर ले लेती है 
उन वनों में रहे 
मूक जीव का सब कुछ
घबरा कर दूर चले जाते 
है लुप्त होने से 
पहले
लाखों साल मानव के 
दो पैर नाप गए 
पूरी धरती
आने वाली नस्ल ये
सुन मजाक उड़ाएगी 
कि पैर चलने के लिए होते है
न जाने कितने लोग इस 
धरती को नाप चुके है
लेकिन आज भी 
पगडण्डी जंगलों के बीच
से होती हुई 
अपनी और खींच ही 
लेती है
सड़क सुख है 
सुविधा है 
लेकिन 
पगडण्डी सा खिचाव 
नहीं
पगडण्डी और पैर 
एक ही है
आदिमानव के पदचाप 
पगडण्डी में ही 
मिल सकेंगे
क्या खोज सकेंगे
बुद्ध, महावीर , शंकराचार्य और विवेकानंद समेत असंख्य 
खोजी 
जो दब जायेंगे सड़क के
नीचे 
खो जायेंगे वो सब 
पैरों के निशान 
जिन पे चल कर 
सभ्यता आती और 
जाती गई
निरंतर 
पगडण्डी से ही 
वनवास हो सकता 
है
सड़क  पर केवल
 भागा जा  सकता
जीतने के लिए
एक बात तय है
पगडण्डी 
केवल जंगल , पहाड़, 
गाँव नदी किनारें ही
रह सकती है 
दूर आँखों से ओझल होने 
 तक
अपनी ओर आमंत्रण देती 
टेडी मेडी पगडण्डी 
धरती की भाग्य रेखा 
सी उबड़ खाबड़ 
ऊँची निची
शांत एकाकी 
किसी साधक की 
साधना सी
 और 
कलाकार की
लकीरें सी
मानव के इतिहास की गवाह 
दोस्त और उसके अस्तित्व 
का दस्तावेज सी 
आज भी बुलाती दिखती है अपनों जैसी 
सच अपनों जैसी ही
 रमेश मुमुक्षु
अप्रैल 2018

Saturday 20 March 2021

गौरैया की आत्म कथा

गौरैया की आत्म कथा
मैं गौरैया , स्पैरो और घरेलू चिड़िया के नाम से मानव समाज में जानी जाती हूँ। लंबा कालखंड मैंने मनुष्यों के घर में उनके साथ ही बिताया था। उनके घर भी उनके दिलों से खुले थे। घर के रोशनदान , खिड़की ,पंखें के ऊपर, घर और बाहर लगे ड्रेन पाइप , टॉयलेट के ऊपर टंकी मेरा घर होता था। उस वक्त हमारे घोंसले ये मानव हमेशा नही तोड़ता था। इनके बच्चे जो छोटे होते थे,वो हमारे अंडे कई बार छेड़ दिया करते थे। घर के आंगन में भी हमारा हो साम्राज्य होता था। पेड़ पौधे, फलों के वृक्ष, तोरी आदि की बेल सब हमारे आश्रयस्थल हुआ करते थे। लेकिन धीमे - धीमे ये आदमी तरक्की करने लगे।  इनके घर बंद होने लगे । लंबे समय तक ये मानव बाहर ही रहता था। लेकिन अब ये घर के भीतर ही बन्द होने लगा। घर की खिड़की कूलर और एयर कंडीशन से पटने लगी। दरवाजे एयर टाइट होने लगे। 
अब न जाने ये मानव जो पहले घर के बाहर भी कम निकलता है।
अब मुझे पुराने छुटे हुए बस स्टैंड पर घोंसला बनाना पड़ता है। लेकिन ये मानव हमारे आश्रयस्थल को कभी भी हटा देता है। कितने आश्रयस्थल हमारे खत्म हो चुके है। 
लेकिन कुछ प्रेमी लोग है, जो हमारे लिए आश्रयस्थल बना रहे है। आजकल हम उनमें भी अपने घोंसले बनाने लगे है। उन प्रेमी लोगों को हम हमेशा याद करते है। हम भी सुनते है कि ये आदमी विश्व स्पैरो दिवस मनाता है। लेकिन पर्यावरण को संरक्षण के लिए उसका ध्यान नही है।  जब भी उसको अपने लिए विकास की बात जरूरत होती है, वो कुछ भी उजाड़ देता है।  उसको कोई लेना देना नही कि कोई भी पक्षी, पशु और वृक्ष बचे और न बचे, उसको विकास करना है, भले किसी भी हद तक विनाश हो । 
लेकिन अब हमने जगह जगह मेट्रो समेत नए स्थान देख लिए अपने घोंसले के लिए। देखना है कि कब तक ये मनुष्य पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करता रहेगा और अपने विनाश का रास्ता छोटा करेगा। हमको बच्चे याद आते है, जो हमारे साथ खेलते रहते थे। नुकसान भी करते थे, लेकिन प्रेम के साथ रहते है। काश ये आदमी दुबारा से वो सब याद करके दुबारा से वो प्रेम भाव पैदा कर सकें। देखते है कि क्या कुछ हो सकेगा, आगे प्रकृति के साथ।
रमेश मुमुक्षु 
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
20.3.2021

Friday 19 March 2021

आना दबे पांव धीमे धीमे

आना दबे पांव धीमे धीमे 
कविता ह्रदय के गहरे कुहासे में
छिपा स्पंदन है जो यकायक धीमे धीमे 
अकस्मात ही कुहासे से बाहर 
आ जाता है
उसको आने दो 
कालिदास के मेघदूत सा
जयदेव के मिलन सा
तुलसी के राम सा
सुर के कृष्ण सा
मीरा के दर्द सा
कबीर के दोहे सा
बिहारी की तड़प सा
रामधारी की ललकार सा
महादेवी के वियोग सा
पंत के प्रकृति प्रेम सा 
निराला की जूही सा
अ ज्ञे य के दर्शन सा
मुक्तिबोध के अंधकार सा
आने दो 
आना जरुरी है
भले वो बिखरा हुआ 
छितराया सा 
कुछ खोया सा ही 
क्यों ना हो
अहसास की गहराई
उसके रूप रंग 
को संवार देगी
अनुभव और संवेदना
जब पीड़ा और करुणा में सराबोर
होगा 
तो छंद ,कविता ,अकविता
 और
 नाना रूप
के साथ उभर आएगा
जो उभर आऐ
वो ही कविता है
पहरेदार को देख 
अहसास 
कही
दुबक न जाये
तनिक आहट 
उसको कुहासे में पुनः
धकेल देती है
उसका आना 
जरुरी है
आना दबे पांव 
धीमे धीमे
- रमेश मुमुक्षु
10.10.2018

Wednesday 17 March 2021

तारक हॉस्पिटल द्वारका मोड़ का मेरे गुम हुए मोबाइल को लौटाने के लिए ह्रदय से धन्यवाद।

तारक हॉस्पिटल द्वारका मोड़ का मेरे  गुम हुए मोबाइल को लौटाने के लिए ह्रदय से धन्यवाद।
आज 17.3.2021 करीब रात्रि  8.30 बजे मैं तारक हॉस्पिटल द्वारका मोड से अपनी चोटिल उँगकी का  ट्रीटमेंट करवा कर बाहर सड़क के उस पर तक पहुँच गया था । तभी अचानक आदतन मेरा हाथ मोबाइल पर गया तो मालूम पड़ा ,जेब में नही है। मुझे लगा कि शायद आपातकालीन वार्ड में छूट न गया हो। मैं तुरंत तारक हॉस्पिटल की ओर लौट गया। फोन छूटने का अर्थ मोटे तौर पर फ़ोन का जाना ही होता है। लेकिन जैसे ही मैं गेट तक पहुंचा ,तभी एक नर्स ने बोला कि  ये ही अंकल थे, शायद। मैंने बोला कि मेरा मोबाइल छूट गया है। उनके हाथ में मोबाइल था। लेकिन मैंने अपने दूसरे मोबाइल से कॉल की और कॉल लगते ही उन्होंने  मुझे मोबाइल दे दिया।कॉल मैंने इसलिए की ताकि उनको भी कन्फर्म हो जाये कि जो मोबाइल छूट गया था, वो मेरा ही था।
तारक हॉस्पिटल की नर्स और स्टाफ़ को मैं दिल से धन्यवाद और आशीर्वाद देता हूँ। उन्होंने ईमानदारी और जिम्मेदारी का परिचय देकर अस्पताल का नाम ऊंचा किया और मरीज़ों के प्रति उत्तरदायी सोच से हम सब के दिल में जगह बना दी। डॉ समीर ,जो फिजियोथेरेपी विभाग के मुख्य  डॉक्टर है। उनके माध्यम से हमने तारक हॉस्पिटल को जाना है। मैं पुनः तारक हॉस्पिटल विशेषकर श्री सोमबीर जी और उसके सहयोगी स्टाफ का आभार व्यक्त करता हूँ। इसके अतिरिक्त तारक हॉस्पिटल की  मैनेजमेंट से आग्रह है कि वो भी इन ईमानदार स्टाफ का सम्मान करें।  (नर्स और स्टाफ का नाम मुझे मालूम नही, कल कर लूंगा।)
धन्यवाद
रमेश मुमुक्षु 
अध्यक्ष ,हिमाल
रेजिडेंट द्वारका उपनगर।
9810610400