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Thursday 31 December 2020

नव वर्ष 2021 की शुभकामना

नव वर्ष 2021 की शुभकामना
2020  वर्तमान पीढ़ी और आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए न भूलने वाला वर्ष रहेगा। 2020 ने विश्व के समक्ष एक यक्ष प्रश्न खड़ा कर दिया कि मानव के ज्ञान,विज्ञान ,आध्यत्म,  भविष्यवाणी समेत सभी कोरोना वैश्विक त्रासदी की पूर्व सूचना एवं चेतावनी देने में पूर्णतः विफल रहे। आगे आने वाले समय में अब तक के समस्त ज्ञान एवं विज्ञान को पुनर्स्थापित करने की ओर आगे जाना ही होगा। लेकिन एक बात तय हो गई कि भविष्य के बारे में कुछ भी कहना प्रायः असंभव ही है, कम से कम वर्तमान तक की मानव ज्ञान विज्ञान यात्रा को देखते हुए। लेकिन मानव की खोज करने की वृत्ति को नए आयाम खोजने ही होंगे और जड़ चेतन से निर्मित सूक्ष्म ,स्थूल , विकराल एवं कालातीत , अदृश्य दुनियां की खोज हो सकता है, भविष्य की गुत्थी को सुलझा सके और मानव और समस्त अस्तित्व और सहअस्तित्व को पुनर्लिखित कर सकें।
2021 में मानव एक नई खोज में निकल सकेगा, इस बात से इनकार करना ,शायद संभव नही। 2020 को न भूलते हुए ,2021 में प्रवेश के लिए सभी को शुभकामना और मानव की सोच और ज्ञान को नया मुकाम मिल सकें ,इस आशा और विश्वास के साथ नया वर्ष 2021 मुबारक हो।
रमेश मुमुक्षु 
अध्यक्ष, हिमाल 
9810610400
31.12.2020
10.01 PM

Friday 18 December 2020

सी सी आर टी के पिछले गेट के सामने सड़क की रेलिंग पर पड़े उपेक्षित गद्दे की आत्मव्यथा

सी सी आर टी के पिछले गेट के सामने सड़क की रेलिंग पर पड़े उपेक्षित गड्ढे की आत्मव्यथा
उपेक्षा का दर्द कितना कचोटा होगा, ये वो ही समझ सकते है, जिन्हें इसका एहसास कभी होता होगा। मैं एक गद्दा हूँ ,गद्दे के बिना मनुष्य का कोई वजूद नही। कितनी हसरत से ये मनुष्य गद्दा खरीदता है। कितना खुश होता है, खरीदते हुए। शादी विवाह में ये गद्दे के बिना शादी भी नही करता। मुझे भी अच्छा लगता है ,जब मनुष्य मुझे इस्तेमाल करता है। थका हुआ , बाहर से आकर जब मुझे पर पसर जाता है तो स्वर्ग का आनंद आता है, इसको। दाम्पत्य जीवन का आधार गद्दा ही होता है। ये जग जाहिर है। 
अपनी शानो शौकत से आदमी गद्दा खरीदता है। गरीब और अमीर सभी किसी न किसी गद्दे पर सोते ही है। 
मैं भी कभी एक खूबसूरत गद्दा था। मुझे भी कोई बड़े शौक से लाया था। मुझे भी बड़े सम्मान से रखा गया था। मुझ पर नई नई चादर डाली जाती थी। मुझे भी बहुत अच्छा लगता था। लेकिन ये मनुष्य कितनी बार जब अपने माँ बाप का भी तिरस्कार कर देता है ,तो मैं तो बेजुबान गद्दा ही हूँ। एक दिन मुझे भी बाहर निकाल दिया गया। एक ताज्जुब की बात है, जब हम गद्दे बाहर कर दिए जाते है, उस समय हमारी बेकद्री शुरू हो जाती है।हर कोई  हमें उपेक्षा और तिरस्कारपूर्ण फेंक देता है। 
मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ , कोई बेदर्दी और नकारा किस्म का आदमी मुझे द्वारका सेक्टर 7 , नई दिल्ली में स्थित सांस्कृतिक संस्थान सी सी आर टी के पिछले गेट के सामने सड़क की रेलिंग पर लटका गया। मुझे लगा था कि जल्दी ही मुझे कही और ले जाया जाएगा। लेकिन महानुभावों  मैं इस रेलिंग पर बेताल की तरह लटका हुआ हूँ।लेकिन अभी तक कोई विक्रमादित्य प्रकट नही हुआ। ऐसे नही की यहां पर कोई आता नही है। कुछ डी डी ए नाम के विभाग से यहां पर लोग कुछ कुछ काम करने आते है। बागवानी विभाग से भी आते है, लेकिन मेरे नीचे कुछ पौधे और खोद कर जाते है,  लेकिन वो मेरी ओर देखते भी नही। इतना ट्रैफिक मेरे को पिछले कई महीनों से देख रहे है, लेकिन किसी का ह्रदय नही पिघला। इतना उपेक्षित तो कूड़ा भी नही होता है। मेरे पुर्वज प्राकृतिक संसाधन से बनाया करते थे। मेरा तर्पण प्राकृतिक तौर हो जाया करता था। मेरे पुरखे जमीन में विलीन हो जाया करते थे। लेकिन मैं कृत्रिम पदार्थों से बना हूँ, न मैं विलीन होता हूँ ,न मेरा शरीर पहले जैसा रहता है।  
कब मेरा तर्पण होगा। बहुत बार मैंने देखा है कि एमसीडी की गाड़ी  बगल से निकल जाती है। उसने भी कभी मेरी ओर नही देखा। कभी कभी द्वारका की सफाई का अभियान भी चला ,रेस्जिडेंट्स मार्च करके ,मेरे बगल से बिना देखे निकल गए।
मेरा सभी डी डी ए ,एमसीडी और सभी द्वारका वासियों से करबद्ध विनती है कि मेरा उद्धार कर दें। मेरे कृत्रिम शरीर में कोई विषाणु और कीटाणु भी नही पनपते है। ये मानव ने अपनी सुविधा के लिए विकास का ऐसा मॉडल चुना की उसके लिए सिरदर्द ही बनता गया है। 
मेरे पुरखे कपास, नारियल , पुराने कपड़े से बनते थे। वो कहीँ न कहीं इस्तेमाल हो जाते थे। लेकिन मेरा शरीर मुक्ति को तरस रहा है। देखते है, कौन मेरा तर्पण करने आएगा। मैं बेताल से विक्रमादित्य के इंतजार में आंखे बिछाए हूँ। मुझे फ़िल्म का एक गाना याद आता है " हुजूर आते आते बहुत देर कर दी....
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल, 
9810610400
17.12.2020

Friday 11 December 2020

शीर्षक : कोई काला धन छुपाएगा

शीर्षक : कोई काला धन छुपाएगा -
कोई काला धन छुपाएगा 
कोई काला धन बनाएगा 
वो कहाँ जाएँ 
जिनके पास ना काला धन 
न सफ़ेद धन 
 उनके पास है 
प्रेम , आपसदारी 
तूफानों से जूझने का जज्बा  
और 
सत्य को स्थापित करने की जिद 
दोस्तों  के दोस्त  
अभाव और फाँकों 
के 
संगी साथी 
मतवाले 
अपनी धुन में चलने वाले 
न लेफ्ट के न राइट के 
 मात्र 
मानवता के 
निपट अकेले 
हमसफर 
प्रेम के प्यासे 
मानवता  के दोस्त 
कौन सा एटीएम उनके भीतर के 
 कोलाहल
को समझ पाएगा 
कौन सा पासवर्ड 
होगा 
जो दोस्तों पर न्योछावर कर देगा 
रंगीन नोट 
प्रेम से भरपूर 
हवा में होगा अर्थशास्त्र  
हवा तो हवा ही है 
किधर बह जाये 
मानव की 
संवेदना 
को भी 
सुना है 
क़ैद कर लिया जाएगा 
मशीनों में 
ताकि उनकी  बगावती
आवाज़ 
किसी पासवर्ड और पिन नंबर 
 से जूझती रहे 
निकलने को क़ैद 
से 
और खोजती रहे 
प्रेम
 और
 दबा दी गई 
 वो चिंगारी 
जो एक फूँक 
के लिए तरसेगी 
एक दिन 
क्रांति की ज्वाला 
भड़काने 
के लिए ....
रमेश मुमुक्षु
2016 नोट बंदी के दिनों कैफ़े द आर्ट मरीना आर्केड कनॉट प्लेस में एकल पेंटिंग प्रदर्शनी के दौरान ए टी एम की लंबी लाइनों के दौरान लिखी।

Saturday 14 November 2020

दीवाली की रात अभी पुलिस बीट वालों के हूटर की हुआ हुआ अभी बजी बज रही थी।

दीवाली की रात अभी पुलिस  बीट वालों के हूटर की हुआ हुआ अभी बजी बज रही थी।
इस बार पूरा विश्व कोरोना के कारण अप्रत्याशित त्रासदी से जूझ रहा है। दिल्ली में वायु प्रदूषण और कोरोना के केस यकायक बढ़ने के कारण किसी भी प्रकार के पटाखे इस बार पूर्णतः वर्जित किये गए है।लेकिन अभी भी फाटक ,धाएँ धाएँ ,सुर्र सुनाई दे रहे है। पुलिस के हूटर आने पर क्षणिक रूक जाते है। बात ये नही कि पटाखे जलाना सही है,या गलत ,लेकिन जब दुनियां में कोरोना से बहुत बड़ी जनसंख्या ग्रसित है और ऐसा अध्ययन से मालूम चला है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण और उसके साथ पटाखे के धुएं से कोरोना पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। 
इस कारण सरकार और स्वास्थ्य विभाग की ओर से आह्वान किया गया कि किसी भी प्रकार के पटाखे न जलाए ताकि वायु प्रदूषण न बढ़ने पाए। 
लेकिन अभी मैं 9.15 रात में  घर पर ये लिखते हुए , पुलिस।का हूटर और पटाखे की आवाज सुन रहा हूँ हालांकि पिछले वर्षों से बहुत कम है। लेकिन हम लोग क्यों नही पूरी तरह ऐसी बातों को नही मानते है। 
सबके अपने अपने तर्क होते है। लेकिन अभी भी कितने लोग होंगे ,जिनको  स्वास संबंधी रोग होंगे। मैं खुद भी अस्थमा से पीड़ित हूँ, बचपन से , इसलिए इसका अहसास मुझे है। 80 के दशक में कितनी बार दीपावली के कारण दमें के अटेक भी हुए। लेकिन उस दौर में वायु प्रदूषण इतना अधिक नही था।हालंकि 1982  एशियाड के बाद चीज़े तेजी से बदलने लगी,जो आज भी जारी  है। कितने बार लगता है कि हम कानून, परम्परा, अध्यात्म सहित दुसरों की तकलीफ को भी कम ही महसूस करते है। बहुत से लोग ये कहते है कि क्यों न पटाखे जलाये। इसकी उसकी कहते है और जम के जलाते हुए ,गौरवान्वित अनुभव करते है। अच्छा हो कि देश के आह्वानों को सुने और देश हित और मानवता के हित में एक दूसरें की परवाह  करने की आदत डालें। अभी रात के 10.44  बज रहे है  लेकिन अभी धड़ाम धड़ाम की आवाज बीच बीच में आ रही है। कुछ देर पहले लड़ी की आवाज आ रही है। 
लॉक डाउन की तरह ये पाठखे बजाने वाले पुलिस के आते  ही चुप हो जाते है। कुछ कहते है,परम्परा है, कुछ कहेंगे कि बच्चों के लिए करना होता है। काश हम लोग कानून और इस तरह के आह्वान पूरी तरह मानना सीख ले तो देश के संविधान और कानून को मानने की आदत ही पड़ जाए। देखते है ,कब ये शुरू होगा। दीपावली की सभी को शुभकामना। 
रमेश मुमुक्षु 
अध्यक्ष ,हिमाल
 9810610400
14.11.2020 
11.12 PM

Monday 2 November 2020

सब इंसेक्टर की गिरफ्तारी से आगे करना होगा मानसिकता में बदलाव

सब इंसेक्टर की गिरफ्तारी से आगे करना होगा मानसिकता में बदलाव
21अक्टूबर 2020  को मुझे सोशल मीडिया पर शिरीन का वीडियो मिला ,जिसमें अपनी आपबीती बहुत ही विस्तार और लगभग समझते हुए बताई और  समाज में कैसे महिलाओं के विरुद्ध छेड़छाड़ और महिलाओं की डिग्निटी पर प्रहार किया जाता है। इस वीडियो ने एक बहस ही छेड़ दी।  मैंने भी अपना फर्ज समझ  वीडियो सभी सोशल  मीडिया और  21 अक्टूबर तारीख शाम 6.44 मिनट पर डीसीपी श्री संतोष कुमार मीणा जी को पोस्ट किया और उन्होंने उसी शाम 6.47 मिनट पर कार्यवाही करने की बात लिखी। उसी दिन रेडियो द्वारका के विशाल जी ने भी डीसीपी को वीडियो भेजा और लिखा कि शायद इस बच्ची को पुलिस की मदद चाहिए। 21अक्टूबर  की रात 11.25 पर डीसीपी श्री संतोष मीणा जी ने कार्यवाही आरम्भ कर दी, है , और बच्ची से कांटेक्ट किया जा रहा है ,मैसेज प्रेषित किया ।  22 तारीख को द्वारका की प्रबुद्ध महिला डेलीगेशन ने डीसीपी एवं 23 अक्टूबर को डी एम श्री नवीन अग्रवाल से मुलाकात की। डी एम श्री नवीन अग्रवाल  ने एक विस्तृत पत्र लिखा। 23 नवंबर  8.20 सुबह  हमारा  द्वारका ग्रुप में श्री राजेन्द्र सिंह , भूतपूर्व एसीपी ने "हमारा द्वारका ग्रुप" में सूचित किया कि कार्यवाही शुरू हो गई है, 50 पुलिस कर्मी सीसीटीवी आदि देख रहे है। इससे पहले 17 नवंबर को दो बच्चियों की एफ आर आई की गई थी। द्वारका में  लोगों ने अपने अपने स्तर पर शिरीन के वीडियो के माध्यम से अपनी अपनी बात रखी। महिला ग्रुप जो 22 तारीख को डीसीपी से मिले और 23 तारीख को डी एम से मिले उनके मिलने से व्यापक  असर हुआ। लेकिन पुलिस ने डी एम के लेटर से पहले ही कार्यवाही आरम्भ कर दी थी।  द्वारका पुलिस जैसे अक्सर बहुत से केस जल्दी हल करती है। उसी तरह ये भी सुलझा लिया। भूतपूर्व एसीपी श्री राजेन्द्र सिंह जी जिन्होंने निर्भया केस, धौला कूआँ रैप केस, सुनंदा पुष्कर जैसे बड़े केस सुझाए। पिछले 3 वर्षों में द्वारका पुलिस में प्रहरी, महिला दस्ता, सीसीटीवी लगाने जैसे काम किये।  इसके लिए द्वारका पुलिस का धन्यवाद तो किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त दिल्ली पुलिस के  आयुक्त द्वारा सब इंस्पेक्टर को डिसमिस करने जैसे ठोस कदम के लिए भी धन्यवाद देना चाहिए। इसके अतिरिक्त ट्वीटर और अन्य सोशल मीडिया पर भी ये सब आने से इसको व्यापक आधार मिला।
  टाइम लाइन दिखाने का अर्थ ये नही की इस कारण ही कार्यवाही हुई । वीडियो को डीसीपी समेत सभी ग्रुप में डालने का आशय था कि इस पर कार्यवाही हो। 
शिरीन ने उस समस्या की ओर इशारा किया ,जिस पर समाज जिसने पुरूष और औरत भी शामिल है, आगे आने से कतराते है।  जब मालूम चला कि ये सब इंस्पेक्टर है ,इस केस ने बहुत सवाल उठा दिए। लेकिन दिल्ली के पुलिस आयुक्त ने सब इंस्पेक्टर को डिसमिस कर के एक मिसाल कायम की। 
ये चिंतन का विषय है कि एक व्यक्ति कई दिनों तक लड़कियों के साथ दुर्व्यहार करता रहा, बिना नंबर प्लेट के घूमता रहा। ये बहुत ही गंभीर बात है। ट्रैफिक पुलिस के लिए भी ये चैलेंज है। सम्भव है, पुलिस  क्राइम ब्रांच के कारण कुछ न कहती हो , इस पर व्यपाक कार्य करने की जरूरत है। ये भी चिंतन और सुधार का विषय है। 
लेकिन ऐसी घटना कम हो और इन पर चर्चा और कार्यवाही भी हो, ये जरूरी है। इसके लिए मैंने भी सभी ग्रुप में लिखा था कि एक द्वारका में महिला ग्रुप बनाना चाहिए जिसमें सभी सोसाइटी और पॉकेट की महिलाएं शामिल हो ,ताकि ऐसी बहुत सी घटनाएं सामने आने लगे। मुझे नही लगता ,जिस तरह शिरीन ने  इस  घटना को सविस्तार बताया , कोई बता पाता। एक बात तय है कि बहुत बार महिलाएं सामने नही आती , समाज में गतिरोध के कारण। परिवार की इज्जत और जो ऐसी बात बताए , उस पर भी प्रश्न उठा दिया जाता है, बजाए उसकी बात सुनने और कार्यवाही करने के। अगर शादीशुदा शिकायत कर दे ,तो और भी हतोत्साहित किया जाता है। ये इज्जत का मसला नही होता, बल्कि न्याय दिलवाने की बात होनी चाहिए। इन सब में बदलाव के लिए  सामाजिक तौर पर भी काफी प्रयास करने होंगे। किसी भी युवती, बच्ची और स्त्री को जबरन घूरना भी स्त्री के सम्मान को ठेस पहुंचाना होता है । छेड़छाड़ और उससे आगे तो गंभीर अपराध है। इसके लिए सतत और विस्तृत प्रयास करने पड़ेंगे।  इस घटना में तो सख्त कार्यवाही हो ही गई है। लेकिन पुलिस सुधार और निचले स्तर की पुलिस को  अधिक संवेदशनशील बनाना जरूरी है।  पुलिस के भीतर अक्सर पुलिस की संख्या बल  में  कमी की बात भी आती रहती है। जिसने ड्यूटी का समय तय न होना भी एक समस्या है।  पुलिस को पब्लिक के साथ अधिक मिलकर काम करने की जरूरत है। द्वारका पुलिस ने पोलिसिंग के माध्यम से इसकी शुरुवात तो की है। इस कारण द्वारका में नागरिक और पुलिस  के बीच काफी मेल जोल बड़ा है।ऐप डाउनलोड करना, सुरक्षा के लिए प्रहरी ताकि रात को पार्कों में गार्ड और पुलिस गश्त लगा सकें। इसे कार्य आरंभ किये है। जिनको और भी बढ़ाना होगा। लेकिन इन सभी स्कीम में द्वारका के निवासियों को बढ़चढ़ कर भाग लेना चाहिए, जबकि अभी भी संख्या कम है। ये लगातार ही करना ही होगा। 
  शिरीन ने हालांकि बाद में शिकायत की ,लेकिन  उन्होंने सुधार और व्यवहार पर भी जोर दिया, जिससे वो केवल शिकायत न होकर  सुझाव भी था। 
ये बात भी सही है कि एक आम स्त्री एक दम ऐसे कदम नही उठा सकती। इसी को मजबूत करना है। अधिकांश महिला सामने नही आती। सामाजिक तौर पर उनको ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित नही किया जाता। लेकिन पुरुष भी बहुत अधिक अपने अधिकारों और अपनी बात कहने से  कतराते है। ये सब बदलना ही होगा।31 को  महिला मार्च भी होना था ,शायद वो किन्ही कारणों से पुलिस ने रोका।  हालांकि होने देना चाहिए था।  लेकिन इस मार्च में और भी बेहतर होता कि इसने डीसीपी और डी एम भी शामिल होते और उनके साथ एक नई शुरुआत होती। मार्च का ट्रीटमेंट इस तरह से था कि व्यवस्था ने काम ही नही किया। महिलाओं को सुरक्षित स्पेस चाहिए। ये बात की ही शुरुवात प्रशासन के साथ एक सरल और दीर्घकालीन सोच के साथ आयोजित होती तो पुलिस और जिला प्रशासन के साथ एक लंबी रणनीति जनता के मध्य आरम्भ की जाती। इस केस में प्रशासन का रोल पोसिटिव ही रहा।  लेकिन ये कहीं छूट सा गया। किसी कानून और किसी ऐसी घटना जिसमें पुलिस और प्रशासन ने सुना ही न हो, वहां पर प्रोटेस्ट उचित है। हाथरस में एस पी और डी एम का रोल और इस घटना पर द्वारका पुलिस और  जिला प्रशासन के व्यवहार की तुलना नही हो सकती। किसी भी घटना ,जिसने कार्यवाही न हो ,उसके लिए बड़े स्तर पर मार्च और प्रोटेस्ट बहुत जरूरी है। लेकिन यहां पर 17 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच एफ आई आर दर्ज होने के बाद गिरफ्तारी और सख्त कार्यवाही हुई। इसलिए मार्च की शक्ल प्रशासन के साथ दीर्घकालीन रणनीति और  मानसिक बदलाव के साथ सतत कार्यक्रम की शुरुवात होती तो शायद इसका व्यापक असर होता। इस बारीक से अंतर को हम लोगों को हमेशा ही समझना होगा। लेकिन  मार्च और प्रोटेस्ट  से पूर्व और बाद में   सतत प्रयास और विभिन्न आयामों को एक साथ लेकर आगे बढ़ना होगा।  प्रोटेस्ट और मार्च भी जरूरी है ,लेकिन इनका अधिक लाभ जभी होगा ,तब रूटीन में सतत प्रयास चलते रहे। 
मैं द्वारका पुलिस और डी एम से अनुरोध है कि वो भी एक महिला ग्रुप बनाये ,जिसमें पुलिस और सेल्फ डिफेंस और कानून की जानकारी का कार्यक्रम चलता रहे। इस ग्रुप में जनता ही एडमिन हो ताकि महिलाएं अपनी बात खुल कर रख सकें। ये ग्रुप जो भी ग्रुप बने है , उनके साथ मिलकर भी काम करें।
ट्रैफिक पुलिस और द्वारका पुलिस भी अधिक चौकस होकर ,बिना नंबर, काले शीशे ,शराब पी कर हुड़दंग न मचाये पर कार्यवाही के साथ जागरूकता की शुरुवात करें ताकि  संवेदनशीलता को बढ़ाया जा सकें। 
मेरा स्त्री समेत सभी ग्रुप से अनुरोध है कि पुलिस और सभी विभागों के साथ मिलकर एक दीर्घकालीन और सतत कार्यक्रम के माध्यम से आगे बढ़े। 
अपराध से पहले ही इसको रोकना और आपराधिक प्रवत्तियों को बढ़ने न देना , बहुत जरूरी है।
इसके लिए स्त्री को ही  आगे आना होगा। 
ये मानसिकता बदलने का उपक्रम है, ये मार्च और प्रोटेस्ट मात्र से ही ठीक नही होगा। निर्भया आंदोलन इतने बड़े स्तर पर हुआ। लेकिन रूटीन में सतत काम न होने के कारण इसका असर और प्रभाव धीमे धीमे आता है। जितना अधिक नागरिक विभागों से संपर्क करके काम करेंगे ,उतना ही माहौल बदलेगा। बीच बीच में जागरूकता के कार्यक्रम मार्च होने चाहिए। पुलिस पब्लिक मीटिंग का दौर भी चलता रहे।
इसलिए मानसिकता को बदलना पूरी तरह से पूरी व्यवस्था में बदलाव होता है। 
आप लोगों को शायद ज्ञात  होगा कि भूतपूर्व एससीपी श्री राजेन्द्र सिंह जी ने एक विस्तृत पत्र द्वारका के डार्क स्पॉट को दूर करने के लिए लिखा था, जो पुलिस का काम नही है, लेकिन द्वारका के जागरूक नागरिक और  के साथ मिलकर ये पत्र लिखा गया। कुछ शुरुवात भी हुई थी। लेकिन ये काम धीमे धीमे ही चलते है। दिखते कम है। काम नही हुआ और काम कैसे हो इन दोनों बातों को एक साथ लेकर चलना जरूरी है।
मुझे उम्मीद है, द्वारका  इस ओर पहल करके एक आदर्श उप नगर बनाकर इस मानसिकता को बदलने का अथक प्रयास करेगा। शिरीन के साथ जो हुआ , आगे और न हो सकें। इसके लिए आगे ही बढ़ना ही  होगा।
ये मात्र प्रोटेस्ट , मार्च और बड़े इवेंट ही  बनकर न  रहे,रूटीन में भी चलता रहे, सतत और अनवरत। 
एक बात को नही भूलना है कि निर्भया के इतने व्यपाक आंदोलन के बावजूद हाथरस जैसी घटना अभी भी हो रही है। लेकिन दिल्ली पुलिस ने इस केस में ठोस कदम उठाया लेकिन  अभी सड़क, मोहल्ले, पॉकेट ,सोसाइटी  सभी स्त्री के लिए सुरक्षा और सहजता के साथ आगे बढ़ना है। 
सभी ग्रुप मिलकर इस मुहिम को जारी रहें। सम्भव है, मेरी इस पोस्ट में कोई उतेजना नही लगे क्योंकि मैंने समग्र दृष्टिकोण की बात कहने की कोशिश की है। जिस तरह हम सतत विकास में सतत प्रयास की बात करते है, उसी तरह हम मानसिकता बदलाव में सतत प्रयास करें। गतिरोध होने पर मार्च और प्रोटेस्ट का सहारा भी लेते रहें। सरकार शिकायत और सुझाव दोनों पर बराबर काम करें और आलोचना ,समालोचना भी सुनने को तैयार रहे ,तभी वास्तविक संवाद की स्थापना हो सकेगी। आशा है, द्वारका में हम इसकी शुरुआत कर सकेंगे। 
इस पर प्रतिक्रिया का मैं स्वागत करूंगा। 
विनीत 

(रमेश मुमुक्षु)
अध्यक्ष, हिमाल 
9810610400
2.11. 2020

Thursday 29 October 2020

बहुत हुआ अब बहुत हुआ

बहुत हुआ अब बहुत हुआ
 
बहुत हुआ अब बहुत हुआ 
डर के रहना बहुत हुआ ।

अब न रुकेंगे अब न डरेंगे
बहुत हुआ अब बहुत हुआ ।।

खुद ही लड़ेंगे आगे बढ़ेंगे 
बहुत हुआ अब बहुत हुआ ।।।

बलात्कारियों रुक जाओ अब 
बहुत हुआ अब बहुत हुआ ।v

दया  नही अब न्याय चाहिए
बहुत हुआ अब बहुत हुआ V

कमजोर नही मजबूर नही हम
बहुत हुआ अब बहुत हुआ VI

अब न हम खामोश रहेंगे 
बहुत हुआ अब बहुत हुआ V।।

घूरती आंखेंअब  न सहेंगे 
बहुत हुआ अब बहुत हुआ V।।।

इज्जत का डर अब न सहेंगे 
बहुत हुआ अब बहुत हुआ ।X

अब एक नही सैलाव चलेगा 
बहुत हुआ अब बहुत हुआ X

रुदन नही हुंकार उठेगा
बहुत हुआ अब बहुत हुआ XI
डर के रहना बहुत हुआ 
रमेश मुमुक्षु 
सोशल एक्टिविस्ट 
9810610400 
29.10.2010

Monday 26 October 2020

शिरीन के वीडियो से सेफ द्वारका तक..

शिरीन  के वीडियो से सेफ द्वारका तक...
(छेड़छाड़ करने वाला पुलिस का सब इंस्पेक्टर निकला)
17 अक्टूबर 2020 की घटना की वीडियो शिरीन ने बनाकर सोशल मीडिया में पोस्ट करने से यकायक इस बात पर सभी लोग सक्रिय हो गए। ऊपर से देखने पर ये एक छेड़छाड़ की घटना थी ,जिस पर हम लोग बहुत ध्यान नही देते। लेकिन ऐसे कोई कैसे किसी भी स्त्री की डिग्निटी को चैलेंज कर सकता है। द्वारका जैसे उपनगर में जहां पर इतनी जागरूक जनता है। लेकिन यहां पर भी सड़क पर बहुत बार  काले शीशे वाले व्हीकल, तेज फर्राटा से चलते बिना हेलमेट के बाइकर्स दिखाई पड़ते है। ये इतनी तेजी से चलते है कि हादसा हो जाये।
वैसे भी बड़ी गाड़ी वालों को पुलिस का डर नही रहता। उनको बहुत बार रोका भी नही जाता। ये सामाजिक दायरे और कानून दोनों को इग्नोर करते है। जब कोई बिना हेलमेट और कानून तोड़ कर आता जाता है। वो कानून सम्मान नही करता और दूसरी ओर समाज का लिहाज नही करता। 
लड़को को भी बचपन से लड़कियों के साथ कैसा व्यवहार करें और क्या न करें सहजता से समझाना जरूरी है। बहुत सी बातें उम्र के साथ जुड़ी होती है। उनको एक चैनेल  प्रदान करना होगा। बच्चों की एनर्जी का सही उपयोग और रूटीन में उनको सही दिशा में लगाना होगा। घर वालों को बच्चों के रूटीन को सहजता से चेक करना ही होगा। सहज व्यवहार और आपराधिक वृति को भी रेखांकित करना होगा। अभी द्वारका समेत बहुत जगहों पर लॉक डाउन के दिनों में साईकल ग्रुप प्रतिदिन साइकिलिंग  करते पाएं गए। प्रतिदिन घंटों उन्होंने साईकल और विभिन्न खेलों के माध्यम से अपनी ऊर्जा उपयोग पॉजिटिव तरीके से लगाया। 
जब तक समाज में देख लेंगे, चलता है, कोई नही ले देकर काम कर लेंगे, क्या हो गया, लड़के तो ऐसा करते ही है, लड़कियों को वहां से नही जाना चाहिए ,जहां पर उनके साथ छेड़छाड़ हो सकती है, इग्नोर कर लिया करो। ये  चलता दृष्टिकोण कानून और सामाजिक फ्रेमवर्क को डिस्टर्ब करता रहता है। 
शिरीन के वीडियो ने इस सबसे इग्नोर मामले को समाज के सामने एक दम ला दिया। जहां पर रेप के जघन्य अपराध भी दरकिनार कर दिए जाते है, लेकिन इस घटना ने एक आम समझने वाली आदत जिसको हम इग्नोर कर देते है, पर सबको सोचने पर सक्रिय कर दिया। 
महिलायों के डेलीगेशन ने डीसीपी और डी एम के सामने इस घटना की शिकायत के साथ विभिन्न मुद्दों पर ध्यान खींचा। डी एम ने बहुत ही विस्तृत लेटर भी लिखा ,जिसनें विभिन्न विभागों को निर्देश दिए। उसके बाद पुलिस ने भी सक्रियता दिखाई और सफलता पाई।  एफ आई आर के बाद केस का अपना एक तौर तरीका होता है, वो आगे चलेगा।
लेकिन द्वारका में महिलाओं ने इस पर तेजी से आगे बढ़कर सक्रियता दिखाई और तुरंत 23 अक्टूबर 2020 को रात 10 बजे ज़ूम मीटिंग के माध्यम से द्वारका का एक ग्रुप भी तैयार कर लिया ,जिसमें 35 महिलाओं ने भाग लिया।ये बड़ा और ठोस कदम है। 
महिलाओं का एक साथ आगे आना ,ये दर्शाता है कि ये सबसे इग्नोर की जाने वाली घटना को अब नियंत्रित करना होगा। इस समस्या का समाधान अब महिलाएं खुद ही खोजेंगी। 
हम सब को इस दिशा में गंभीरता से सोचना ही होगा। 
अब उम्मीद की जा सकती है कि द्वारका में बिना हेलमेट, तीन सवार ,बिना मास्क, काले शीशे वाली गाड़ी  में चलने वाले सावधान हो जाएंगे,गाड़ी में शराब पीने वाले सावधान  हो जाने चाहिए। 
सरकार से आह्वान है, सीसीटीवी का जाल बिछना चाहिए ताकि अपराधी पकड़ा जा सकें।
अगर ऐसी छेड़छाड़ वाली घटनाओं पर शिकंजा कसा जाएगा तो जघन्य अपराधों को भी रोका जा सकता है। महिलाओं की ये पहल परिवर्तन की ओर एक ठोस कदम सिद्ध होगा,ये तय है।
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
26.10.2020

Saturday 24 October 2020

श्री राजेन्द्र सिंह ,एसीपी को समर्पित कुछ पंक्तियां

श्री राजेन्द्र सिंह ,एसीपी को समर्पित कुछ पंक्तियां 
💐सहज उपलब्ध सरल भावयुक्त 
चेहरे पर भीतर तक देख सकने वाली 
अचूक आंखें 
जो दोस्त को देख मुकरा देती है,
लेकिन अपराधी को अंधरे में खोज लेने वाला पैनापन घेर लेता है 
यकायक पलक झपकतें ही 
इससे पहले कोई पलक झपके
अपने पाश में जकड़ने की ताकत और जोश
 जो हमेशा होशयुक्त ही रहा।
निर्भया को न्याय दिलाने को आतुर 
उसके दर्द को महसूस कर 
दरिंदों को अंजाम तक पहुचाने का जज्बा देखते ही बनता है
जिसकी आंखें किसी को भेदने को हो आतुर 
 फर्ज के लिए तल्लीन व्यक्तित्व हमेशा अपना सा ही लगता है
यूं नही कोई सबका अपना 
बन सकता है
कर्तव्य अधिकार समर्पण ही किसी को अपनेपन तक ले आता है
ताकत का डर
 किसी को भयातुर कर सकता है
लेकिन ताकत का सदुयोग डर को दूर भगाकर भयमुक्त वातावरण बना सकें 
इसको ही  ताकत और अनुसाशन का होना कहा जा सकता है।
ये ही अहसास तुमको दोस्तों का दोस्त और अपराधी का कहर बना देता है
कानून के दायरे में
एक बात कहूँ धीमें से 
मेरा दावा है, तुमको दुश्मन भी भूल नही सकता
क्योंकि वो जानता है उसको ईमानदारी से पकड़ा गया था
ये ही अहसास आदमी को अपना बना देता है ,
वरना पैरों से कुचलने वाले निपट अकेले ही गुम हो गए भवसागर में अनगिनत चेहरे और उनपर टिकी आंखें कहां  रहती है याद 
लेकिन तुम्हारी चौकस आंखों 
को भूल जाना कहा होगा संभव 
ये तय है......💐
रमेश मुमुक्षु 
अध्यक्ष ,हिमाल
9810610400
27.5.2020/24.10.2020 

Saturday 5 September 2020

अध्यापक दिवस : सर्वपल्ली राधा कृष्णन के जन्म दिन की याद में।

अध्यापक दिवस : सर्वपल्ली राधा कृष्णन के जन्म दिन की याद में।
जीवन में चाहे कोई कितना बड़ा हो जाये और चाहे कितना आगे निकल जाए ,लेकिन कोई न कोई अध्यापक जरूर  याद होता होगा, जिनसे परोक्ष या अपरोक्ष रुप कोई एक बात ने व्यक्तित्व में कुछ जोड़ा होगा। हम जैसे बच्चे जो इसलिए स्कूल जाते थे क्योंकि घर वाले रास्ता लगा देते थे। बस्ता उठाये चल दिये बिना मन स्कूल में केवल गप्प और आपस में बहस । इतना जरूर है कि टीचर अभी भी पूरी तरह आंखों के सामने रहते है।  उस वक्त तो सबका नामकरण करते थे। आज कभी मिलते है तो उनको दूसरी नज़र से देखते है। प्राइमरी स्कूल के हेड मास्टर की दो बातें मुझे आज भी याद है।।उनकी शक्ल और नाम बिल्कुल भी याद नही। वो एक गाना बच्चों को सुनाते थे, जो मुझे हमेशा याद रहा। मन्ना डे का गाना"  खुदगर्ज़ दुनिया में ये इंसान की पहचान है 
जो पराई आग में जल जाए ,वो इंसान है"
अपने लिये जिये तो क्या जिये , 
तू जी ऐ दिल जमाने के लिए" ये गाना शायद ये पहली कक्षा में सुना था ,वो अभी भी आंखों के सामने तैरता है। जीवन उसी के रास्ते आज भी चल रहा है, दुनियां के हिसाब से बिल्कुल नाकामयाब। उसी हेड मास्टर की एक बात भी मुझे याद है। उन्होंने एक बार बाल सभा , जो सरकारी स्कूल में पढ़े होंगे, उन्हें ये अचानक याद आ जायेगा , में बच्चों को एक किस्सा बताया कि जापान के प्राइम मिनिस्टर ने हमारे प्रधामंत्री  स्व. नेहरू को बताया कि आप मानव अपशिष्ठ को व्यर्थ करते है ,जबकि जापान तो बिजली और खाद भी बनाता है। आजतक हमारी वो ही स्थिति है। ये दो बातें आजतक याद है। बाकी खेलना कूदना और सरकारी एन डी एम सी का स्कूल था , तो दलिया, बिस्किट , मीठी ब्रेड का इंतजार सबसे अधिक रहता था। अभी लिखते हुए,वो स्वाद रसना ने ले लिया। नाकामयाबी का एक बड़ा फायदा रहता है क्योंकि उनको पुरानी चीज़े हमेशा याद रहती है। संभव है, नाकामयाबी का भी ये ही कारण हो। लेकिन मेरा दावा है, इसको पढ़ कर सब बचपन में स्कूल के समय पहुँच जाएंगे। हम जैसों को पढ़ाई के अतिरिक्त सब कुछ याद है। पढ़ाई इसलिए नहीं क्योंकि पढ़ता कौन चाहता  था। पढ़ना उतना ही ताकि आगे खिसक जाए। लेकिन जो बच्चें प्रथम आते थे, वो हम जैसों से डरते जरूर थे। कोर्स की दुनियां से परे हम बादशाह हुआ करते थे। जिन जानकारी को बच्चों को दूर रखा जाता था ,हमें वो ही प्रिय थी। पांचवी कक्षा तक हम लोग धर्म, सच झूट और न जाने कितनी बहसों में लगे रहते थे। बहस और गप्प में हम लोगों को महारत हासिल थी। खेलना, बेर तोड़ना, अमरूद,जामुन पर हाथ साफ करना, आम पापड़, टाटरी , बर्फ का गोला, गटारे , अमर्क , बेर, पकड़म पकड़ाई, पिट्ठू, लट्टू, गुल्ली डंडा, कंचे , चोर सिपाई, दोस्तों के कंधे पर हाथ टिकाये, निक्कर को ऊपर खींचते हए , सभी अपने अपने पिताजी के आने और उनके आफिस जाने तक शरीफ और आज्ञाकारी बने रहते थे। बात बात पर चांटा रसीद हो जाता था। रात को भूत प्रेत की कहानी सुनना और डर डर के घर भागना। ये कुल जीवन चर्या थी। 
मुझे खुद का तो बहुत याद नही की किसी टीचर ने जीवन बदल डाला ,लेकिन दोस्तों के जीवन में बदलाव याद है। 
सीनियर सेकेंडरी स्कूल जैसे प्रिंसिपल शायद कोई दूसरा भी होगा। उनका नाम स्व. अयोध्या दास था। उनका अनुशासन डेडिकेशन और एक एक बच्चे पर नज़र रखना गज़ब का था। अभी 5 वर्ष पूर्व ही उनका देहांत हुआ। एक एक टीचर आंखों के सामने आते जा रहे है। एक एक टीचर की कुछ बातें, उनका तरीका, किसी दिन किसी बात ने जरूर कुछ हरकत की होगी। जब सब को जोड़ लगाते है तो बहुत कुछ निकल कर आता है। जो बच्चे गंभीर और पढ़ाई को ध्यान से करते है, उनको बहुत कुछ याद होगा ,शायद ,हम जैसे बच्चे जो हमेशा बिना छुट्टी स्कूल गए ,कभी  फुटके भी नही ,लेकिन ताज्जुब है,कभी दिल नही लगा पढ़ाई में। लेकिन किताबों की दुनियां सर्दी की ठंड, गर्मी की लूं का लुफ्त, बरसात में नहाने का आनंद , तितली, चिड़िया पेड़ पौधे ही साथी थे। एक मित्र है ,मेरा राकेश गुप्ता वो तीन घंटे तक फ़िल्म की स्टोरी सुनाया करता था। स्टोरी में टेन टेना तक याद होता था।  लेकिन ये सब खूबी बच्चो की आज तक रेखांकित नही की जातीं। हम जैसे बच्चे जो बैठेते स्कूल में थे,लेकिन उनका फ़ोकस कहीं बाहर रहता था। ऐसे बच्चों के लिए,  उनकी जिज्ञासा के लिए आज भी कोई स्थान नही है। बच्चे के भीतर  मौजूद वास्तविक बच्चे को निकालना ही शिक्षा और शिक्षक का सबसे बड़ा रोल होता है। शिक्षा प्रणली में  इस बात को शामिल करना सबसे पहली शर्त होगी। आप में बहुत से लोगों ने तोतो चान पुस्तक जिसके लेखक तेत्सुकों कुरोयानागी पढ़ी होगी। रेल के डिब्बे में स्कूल और तोतो चान का लंबा इंटरव्यू प्रिंसिपल के साथ । इसके अतिरिक्त पहला अध्यापक , चिंगीज एत्मातोव का लघु उपन्यास के अध्यापक का जुनून और बच्चों के प्रति अध्यापक का अगाध प्रेम और जज्बे की कहानी है। स्टेपी के क़ुरकेव गांव के टीले पर दो पॉप्लर के पेड़ों का बढ़ना और स्कूल की पहली बच्ची का   वैज्ञानिक  बनने की कथा भूलना कठिन है। हमारे देश में तो एक लंबी परम्परा है,गुरु शिष्य परम्परा की। आचार्य चाणक्य, द्रोणाचार्य समेत लंबी लिस्ट है। लेकिन मैं आचार्य चाणक्य को सबसे आगे रखता हूँ क्योंकि उन्होंने एक साधारण बालक में भारत का सम्राट खोज लिया ही नही लिया बल्कि बना ही डाला। जबकि द्रोणाचार्य  एकलव्य को शिष्य न बनाकर बड़े अवसर से चूक गए। गुरु मजबूर हो तो वो महान गुरु नही हो सकता। लेकिन अर्जुन ने उनको ऊंचा स्थान प्रदान किया। राजवंश  के बच्चों को कुछ बनाना कोई बड़ी उपलब्धि नही मानी जा सकती है। फिर भी गुरु के रूप में उनका ऊंचा स्थान रहेगा ही। आधुनिक समय में परमहंस रामकृष्ण और उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद का अद्भुत योग था।  बच्चे के भीतर कला, संगीत, बहस, तर्क,गणित, भाषा, उच्चारण , चिंतन, खेल प्रतिभा, दार्शनिक चेतना, समाज सेवा ,कृषि के प्रति रुचि, अन्वेषण के गुण , शारीरिक लोच और ताकत न जाने कितने गुण विद्यमान होते है। उनको ही सहज रूप से पहचानना और निकाल कर परिष्कृत करना ही गुरु और अध्यापक का भी विशेष गुण होता है। अध्यापक और गुरु, वो ही श्रेष्ठ होता है, जो स्वयं का भी परिष्कार करता रहे और समयानुकूल चीज़ों को  अपनाता रहे। गुरु चूंकि अंधकार से शिष्य को प्रकाश की ओर ले जाता है,इसलिए गुरु का स्वयं का प्रकाशमान होना पहली शर्त है।लेकिन बहुत से पेरेंट्स गुरु और मास्टर को ऐसा समझते है कि इसका तो काम ही है,कोई एहसान नही कर रहा। ये सोच बच्चे में कृतज्ञता  की जगह कृतध्नता का भाव उपन्न करता है। जो सामाजिक ताने बाने और स्वयं के जीवन के लिए ठीक नही होता। 
अंत में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक दार्शनिक राष्ट्रपति थे। ये हम सब के लिए गौरव की बात है। उनके जन्मदिन को अध्यापक दिवस के रुप में मनाना ,अध्यापक के प्रति अगाध प्रेम और सम्मान का  परिचयक ही है। उनकी कुछ पुस्तक आज भी प्रचलित है ,जिनमे The World Treasure of Modern Religion, Idealistic view of Life , The Hindu view of life, Indian Philosophy ,East and West Religion & Religion and Society समेत बहुत सी पुस्तक आज भी पढ़ी और पढ़ाई जाती है। प्लेटो ने सही कहा था कि राजा दार्शनिक होना चाहिए। उनके राष्ट्रपति बनने पर महान आधुनिक दार्शनिक  ,गणितज्ञ बर्ट्रैंड रसल ने डॉ राधाकृष्णन के राष्ट्रपति बनने पर दर्शन शास्त्र का सम्मान बताया था। विडंबना है कि ये सब केवल 5 सितंबर को ही रस्मअदायगी हो जाती है।। दर्शन से परे जाता समाज केवल भटक सकता है,  विवेक से परे हो जाता है। जिसको आज अनुभव किया जा सकता है, इस बात से इनकार नही किया जा सकता है।

(रमेश मुमुक्षु )
अध्यक्ष, हिमाल 
सेक्टर 16 बी द्वारका 
नई दिल्ली 78
9810610400 
ramesh_mumukshu@yahoo.com
5.9.2020

Tuesday 1 September 2020

भुला बिसरा फुटपाथ हूँ: डी डी ए मुझे भूल गई।

मैं भुला बिसरा फुटपाथ हूँ: डी डी ए मुझे भूल गई।
मैं भारत अपार्टमेंट सेक्टर 16 बी के साथ का ही अभागा फुटपाथ हूँ। मेरे जन्म के बाद से ही मुझे एक तरह से बिसरा दिया गया। मेरे बदन पर झाड़ झंकार पनपने लगे और इतने पनप गए कि मेरी पहचान ही लगभग मिट गई। मेरे शरीर के कितने हिस्से निकाल दिए गए ,आज तक उनको  भरा नही गया। एक दशक से ऊपर हो गया ,लेकिन विभाग ने मुझे भुला ही दिया । 
लेकिन अभी 2018 के सितंबर के महीने में मेरे शरीर की सफाई आरम्भ की । कोई परमार्थी वाले थे, ऑरेंज  रंग की यूनिफार्म पहले युवा आये और उन्होंने ऐसी सफाई की कि मेरा उद्धार हो गया। मेरे ऊपर लोग आने जाने लगे। मेरे बदन में जो गड्ढे थे ,अब वो उभर कर दिखने  लगें। मुझे उम्मीद थी कि वो डी डी ए ठीक कर देगी। लेकिन मैं तो अभिशिप्त हूँ, एक साल के लगभग मुझे परमार्थी वाले मेरे को प्रेम से साफ करते रहे। मुझे भी खुला खुला लग रहा था। आपस में बात करते हुए लोग बोला करते थे कि की परमार्थी को छोटा छोटा अंशदान दे दो ,जिससे सफाई होती रहे। 
मेरे बगल में ही पुलिस अपार्टमेंट का पार्क था। मुझ से भी झाड़ झाड़ झाँकड से पटा हुआ। उसको भी साफ किया गया। साफ होने के बाद खुश।होकर सभी बच्चे और परिवार आने लगे। परमार्थी न जाने कितने ट्रक भर कर लंबे समय से पड़े कचरे को उठा लिया था। मैं भी सोचता था कि ये सब क्यों हो रहा है? लेकिन कुछ भी मेरे बदन की काया पलट हो गई थी। 
मुझे याद है कि किस तरह सभी बच्चों और बड़ों ने मिलकर मेरे बगल की दीवारों पर पेटिंग भी की सभी ओर उजला हो गया था। लेकिन अभी फिर वो ही सब होता गया। फिर झाड़ झंखाड़ उग गए। फिर उस पर चलने वालों ने चलना बन्द कर दिया। फिर मुझे लगता है , लोग मुझे भूल जाएंगे। पुलिस अपार्टमेंट का पार्क फिर वीरान हो जाएगा। दीवार की पेंटिंग भी धूमिल हो गई है। डी डी ए फिर मुझे चिरस्थाई काल के लिए भूल गई है।  
फिर भरत अपार्टमेंट से पुलिस अपार्टमेंट सेक्टर 16 बी के फुटपाथ और पार्क वीरान हो चले है। एक कहावत याद आ गई।" *चार दिनों की चांदनी फिर अंधेरी रात*"
*नोट:* मुझे व्यक्तिगत तौर पर परमार्थी विशेषकर रवि जी के सफाई के मॉडल की बदहाली देख दुःख होता है। मुझे भी लगता था कि रवि जी और उनका सामाजिक संघटन,  परमार्थी,  द्वारका की काया पलट कर सकता था। लेकिन जनभागीदारी जितनी ,उपकेक्षित , थी, कम हुई। एक व्यक्ति ने तन ,मन धन   से अपना समय और उर्जा झोंक दी ,एक सपना लेकर की द्वारका को एक पहचान दिलवाने के लिए। मुझे भी ये मॉडल बहुत ही पसंद आया। मैं माननीय श्रीमती मृदुला सिन्हा जी को इस मॉडल की जानकारी दी ,तो उन्होंने गोआ सदन में बुलाकर परमार्थी को स्वच्छ्ता दूत मनोनीत कर लिया। लेकिन , लॉक डाउन से पहले ही डेढ़ साल तक जिन रास्तों को साफ रखा और खूबसूरत बना डाला  आज वो सब वापस अपनी बदहाली की  लौट चले है। ये सब देख मन उचाट तो हो ही जाता। 
रमेश मुमुक्षु 
अध्यक्ष हिमाल 
9810610400
28.8.2020

Saturday 29 August 2020

श्री एंटो अल्फोन्स : सह्रदय डीसीपी

श्री एंटो अल्फोन्स : सह्रदय डीसीपी 
संत तिरुवल्लुवर के महान ग्रंथ तिरुक्कुरल के वचन : 
Quote 2 : इंसान भीतर से जितना मजबूत होगा उतना ही उसका कद ऊंचा होगा
Quote  21 : नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं।
श्री एंटो अल्फोन्स जी पर ये दोनों वचन पूर्ण रूप से देखे जा सकते है। अक्सर देखा जाता है कि कुछ अधिकारी जनता के लिए  ठीक होते है और अपने विभाग के लिए उतने ठीक नही होते। हालांकि द्वारका को अभी तक अच्छे व्यवहार के ही डीसीपी मिले है। लेकिन एंटो जी जनता एवं अपने विभाग दोनों का ख्याल रखने वाले व्यक्ति है।सरल स्वभाव और हमेशा हंसता हुआ ,चेहरा उनकी सरलता को इंगित करता है। 
पिछले वर्ष मेरी इच्छा थी कि जन्माष्ठमी में भाग लेने वालों  बच्चों को उनके हाथों पुरस्कार दिलवाए जाएं , मैंने केवल एस एम एस ही किया। उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। ये उनकी सरलता और जनता के प्रति  उनका प्रेमल  स्वभाव ही है।
मैंने अभी करीब दो दिन पूर्व उनसे व्हाटसअप पर लिखा कि मैं आपके ऊपर एक छोटी सी स्टोरी लिखना चाह रहा हूँ ,एक छोटा सा प्रोफाइल भेज दीजियेगा। लेकिन उन्होंने तुरंत दो लाइन लिखकर भेजी की वो पुलिस के कल्याण और जनता की सेवा करते है। ये उनके व्यक्तित्व की सरलता ही थी। 
उनके  नेतृत्व और कार्यकाल में  पुलिस और पब्लिक  के बीच बहुत करीबी रिश्ता कायम हुआ। विभिन्न जनोपयोगी योजनाएं आरम्भ की जिससे जनता विशेषकर  बुजुर्ग स्त्री ,बच्चे लाभान्वित हुए। अपराध होने के बाद तुरंत गिरफ्तारी का सिलसिला द्वारका जिले की बड़ी उपलब्धि है,  मैं कह सकता हूँ।अभी 15 अगस्त 2020 को द्वारका जिला सामुदायिक प्रकोष्ठ में तैनात हेड कांस्टेबल श्री मनीष मधुकर को राष्ट्रपति ने कोरोना योद्धा का सम्मान दिया, ये श्री एंटो जी द्वारा अपने विभाग में ईमानदारी से काम करने वालों को प्रोत्साहन प्रदान का परिचायक ही है। उनके नेतृव में लॉक डाउन के दौरान द्वारका पुलिस का एक साथ पूरी तल्लीनता से जन सेवा एवं कानून लागू करवाने का अथक प्रयास प्रशंसनीय और द्वारका वासियों को गर्वान्वित करने का उपक्रम ही था। एक बात से उनकी सरलता एवं उनका लोगों के प्रति  प्रेम एक बात से दीख पड़ता है, श्री एंटो जी मेरे पॉकेट में मुझे कोरोना से बचने के लिए  दस्ताने देने के लिए आएं, ये उनकी सादगी और जनसरोकार की झलक ही है। किसी अधिकारी की उपलब्धियां बहुत हो सकती है, लेकिन जनता के साथ  व्यवहार एवं न्याय प्रदान करने का जाज्बा ही किसी अधिकारी को सबसे अलग कर देता है। इस रूप में श्री एंटो अल्फोन्स जी हमारी स्मृतियों में रहेंगे। उनके अच्छे और समृद्धिपूर्ण कैरियर एवं जीवन की कामना तो द्वारका के रेसिडेंट्स करेंगे ही। बेस्ट सुरक्षित सोसाइटी की स्क्रीइनिंग कमेटी के मेंबर होने के नाते उनके साथ काम करके उनके व्यक्तित्व में सरलता और समर्पण का भाव मैंने सर्वप्रथम अनुभव किया था। मेरा दावा है, श्री एंटो अल्फोन्स जी भी द्वारका वासियों को नही भूल सकेंगे । 
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष हिमाल 
सेक्टए 16 बी द्वारका
9810610400
29.8.2020

Friday 21 August 2020

अजब कहानी शहरों के विकास की

अजब कहानी शहरों के विकास की
पहले पहले शहर धीमें धीमें बिना आहट बढ़ता है। खेत, खलियान, जलस्रोत, जोहड़, तालाब , झील  निगलता है, उनकी गाड़ी सरपट दौड़े कोशिश करता है। एक बार शहर सुंदर हो गया ,तो उसको पर्यावरण की याद आने लगती है । अपने आस पास सब ठीक रहे ,जगत भले विनाश की ओर जाए। वो मैप देखता है और वहीं जाता है,जहां पर सिक्स लेन और चार लेन की सड़क सरपट एसयूवी को ले जाये और किसी बड़े मोटल में रेस्ट कर के आगे सरपट हो जाये। मेरे घर के पास नही , इसको दूसरे के घर ले जाओ।मुझे नही चाहिए पुल ,कारखाना मेरे घर के बाजू में लेकिन चाहिए किसी ओर के घर के बाहर कुछ भी हो। जिसकी चलती है, वो रास्ते बदल देता है। एक फार्म हाउस के लिए सरकारी सड़क बदल जाती है। समग्रता से सोचना हम छोड़ चुके है। लेकिन हम केवल अपने लिए ही सोचते है। हज़ारों गंगोत्री के रास्ते देवदार कटे ,कोई अंतर नही, हमारी गाड़ी सरपट दौड़नी चाहिए। देवदार 100 साल में बढ़ता है। पिलखन नही है, जो दूसरे दशक में ही विशालकाय हो जाता है।  21 किलोमीटर लंबे मानेसर तक लंबाई और 6 किलोमीटर चौड़ाई वाले कंक्रीट और ऊंची मंजिलों से भरपूर द्वारका एक्सप्रेस वे उस दिन देखा तो मुझे लगा ,ये जिन के दीपक की तरह कहाँ से अवतरित हो गया। खेत खलियान और न जाने कितने जल स्रोत स्वाहा हो गए ,इस विकास की यात्रा में, ताज्जुब है, किसी की उफ तक नही आई। जिन्होंने वहां पर फ्लैट लिए वो कहते आ रहे है कि जल्दी ही कनेक्टिविटी हो जाएगी। खेती की सदियों से पुरखों द्वारा तैयार की गई ,जमीन कांक्रीट में तब्दील हो गई। 
ये सब महानगर की त्रासदी है, ये सच्चाई अथवा अनिवार्यतया ,ये कौन तय करेगा? कौन द्वारका आना चाहता था, मेट्रो बनी तो डीलर की भाषा में कनेक्टिविटी से रेट बढ़ गए। अब कहते है, द्वारका एक्सप्रेस वे की कनेक्टिविटी बनी तो फिर क्या है?  पानी का एक बहुत विशाल और न ख़त्म होने वाला स्रोत नजफगढ़ झील है और हो सकता था, लेकिन विकास और अदूरदर्शिता से वो भी संकट में है। विकास की बेतरतीव रफ्तार ने साहिबी/साबी नदी को रेवाड़ी के मसानी बैराज तक ही सीमित कर दिया। अभी नजफगढ़ झील में सारा पानी विश्वप्रसिद्ध गुरुग्राम के सीवर का पानी आकर इकट्ठा होता है। हालांकि अभी झील में रिचार्ज भी होने लगा है। लेकिन किसी को कुछ लेना देना नही। विदेशी पक्षी यहाँ पर बहुत बड़ी तादाद में आते रहे। ये प्राकृतिक अवसाद , नेचुरल डिप्रेशन है। ये खादर का इलाका है। वर्षा में जलभराव होता है और धीमे धीमे वो चेनल के द्वारा यमुना  नदी में जाता है, जिसको खोद कर गहरा और चौड़ा कर के नजफगढ़ नाला कहलाया है। जिसके अंदर वजीराबाद तक करीब 35 से ऊपर गंदे नाले गिरते है, जो यमुना नदी को दूषित करते है।  लेकिन हम सब भूल गए। हम को केवल 4 बी एच के ,पेंटहाउस, डुप्लेक्स जैसे शब्द ही याद रहे गए। पानी कहाँ से आयेगा, कोई परवाह नही। गुरुग्राम के लगभग सभी प्राकृतिक स्रोत खत्म हो चुके है। यमुना और गंगा के पानी पर निगाहें है। जबकि हिमालय के 285 ब्लॉक पानी की कमी को झेल रहे है। जब प्राकृतिक स्रोत पर संकट आता है ,तो नदी में पानी कैसे बढ सकेगा। लेकिन इतना कौन सोचे। अपना घर बचे दूसरा जाता है, तो हमें क्या लेना देना?
 कब आएगी ये आवाज की हमें नही चाहिए हिमालय में कोई और बड़ा बांध, नही चाहिए कोई बड़ी माइंस, नही चाहिए बड़े कारखाने और एयरपोर्ट ,नही फोड़ना है, पर्वत के सीने को, नही घेरना है, सागर तट, नही चाहिए मुझे , उच्च हिमालय पर पर्यटन और नही चाहिए मुझे सारे संसाधन मेरे घर पर। विकास हो प्राकृतिक संवर्धन के साथ और सतत विकास ही एक मात्र उद्देश्य हो।मेरा घर , मोहल्ला, शहर भी बचे और दूसरे की भी हम सोचे ,ये माइंड सेट होना है। समग्रता से चिंतन करना है।द्वारका के विकास का असर कहाँ पर होगा। हम पानी किस नदी से लेंगे, उस नदी के उदगम से सागर तक जाने के क्या हाल है? नदी के किनारों पर कब्जे तो नही, सागर के किनारों को हम घेर तो नही रहे।उच्च हिमालय को हम छेड़ तो नही रहे,जहां पर सिटी मारने से ही पत्थर भरभरा के गिरने लगते है। 
कही और विकास को  देख हम खुश होते है, लेकिन मेरे घर के पास कुछ हुआ तो मैं दुःखी हो उठता हूँ। ये होलिस्टिक सोच नही है। हम तो जड़ चेतन,सूक्ष्म अति सूक्ष्म की भी कामना करते है। समस्त पृथ्वी एवं ब्रह्मांड की चिंता और स्तुति करते है ,तो हम संकुचित क्यों सोचे? नागरिक और सरकार को इस संकुचित सोच से  उभरना है। किसी भी विकास परियोजना को जनता के सामने रखे और खुलके चर्चा हो ,तो प्रोटेस्ट की जरूरत ही न हो।  विकास के साथ प्राकृतिक स्रोत का संरक्षण ,संवर्धन पहली शर्त होनी चाहिए। कूड़े का निस्तारण कैसे होगा। दूषित जल का प्रबंध कैसे होगा। जल का अनुकूलतम एवं अधिकतम उपयोग कैसे होगा। ऐसी सोच के बिना समग्र एवं सतत ,सस्टेनेबल ,टिकाऊ विकास संभव ही नही है। अभी ई आई ए EIA 2020 ,  Environment Impact Assessment Rule 2020  ,जैसे का तैसा लागू हुआ तो शिकायत भी नही हो सकेगी, ये भी हम सब को सोचना ही होगा । एक बात याद रखें कि कोई भी परियोजना पुब्लिक इंटरेस्ट के नाम पर बनती है। जबकि पब्लिक ने तो नही बोला और न ही पब्लिक से पूछा। इसपर हम सब को आगे मिलकर काम करना है। मुझे पुल नही चाहिए, सड़क नही चाहिये , दूसरी ओर ले जाओ, मुझे बख्सों ,ये सोच अधूरी है। जहां ले जाओ, उसके बारें में भी सोचों की वहां पर क्या होगा? लेकिन मेरी बला से कहीं भी जाए। 
कोई  ही प्रोटेस्ट हो ,जो पर्यावरण के संरक्षण के लिए हो उसका स्वागत तो होना ही चाहिए ,लेकिन हमारा  दृष्टिकोण समग्र और सतत विकास की अवधारणा पर टिका हुआ हो। 
 सरकार ,ठेकेदार और विकास के पुरोधा इसी हमारी संकुचित सोच का लाभ उठाते है। हमें विभिन्न प्रकार के प्रलोभन दे दें है। जब तक हम छोटा सोचेंगे ,उतना ही हम को इग्नोर किया जाएगा। मेरे घर के पास नही, मेरे घर से दूर ले जाओ क्योंकि आखिर ये मेरा ही है, लेकिन मुझे शांति चाहिए, सफाई चाहिए और चाहिए कि ये सब विकास कहीं और करों ,मेरे घर पर नही, भले वहां के लोगों के साथ कुछ भी करों।
चले जाओ ,मुझे अपना पेड़  बचाना है,भले दूसरों के जंगल साफ हो जाए। बस मैं बचूं और मुझे सभी ओर सरपट दौड़ने वाली  सड़क चाहिए, पुल चाहिए और चाहिए  ऊंचे पर्वतों पर रहने के लिए आराम गाह । सरकार पहले सपना दिखाती है, सब सपने में मग्न हो जाते है।।जब तक सपना किसी और के विनाश का होता है, तो कोई एतराज नही लेकिन जब गाज अपने सिर पर गिरने लगती है तो बरबस सब कुछ याद आने लगता है । बस मैं ही बचूं, मेरा पेड़, मेरा गांव, मेरा शहर, मेरी शांति , ये सब चलता है। बस मैं ही बचूं।
रमेश मुमुक्षु 
अध्यक्ष, हिमाल 
20.8.2020

Thursday 20 August 2020

वर्षा के आने पर कभी खुश होते थे ,अब होते दुःखी: विकास की यात्रा की एक बानगी देखें

वर्षा के आने पर कभी खुश होते थे ,अब होते दुःखी: विकास की यात्रा की एक बानगी देखें
करीब 70 के दशक में वर्षा आते है ,निकल पड़ते थे ,हम जैसे सभी बच्चे, न पैरों में चप्पल न जूते , जिसको आज पानी का भरना कहते है, उस जल भराव में बच्चे छपाक से कूद फांद करते थे, खुली बरसाती नालियां होती थी। हां,  एक बात है, उन नालियों में बह जाने का भय जरूर था।।कभी कभी उन तेज बहती बरसाती नालियों में चप्पल फेंक कर उसको दूसरी जगह पकड़ने का एक खेल बच्चों में प्रचलित था।। कागज की नौकाओं के बच्चे कारीगर ही होते थे। नाव बनाकर पानी में डाल कर जब वो हिचकोले खाती चलती थी,उसका अलग आनंद होता था।। घटों हम बच्चों का वाटर स्पोर्ट चलता था। मोती बाग ,नई दिल्ली 21  एन डी एम सी प्राइमरी स्कूल के सामने एक छोटा सा गोल चक्कर ,जिसे आज राउंड अबाउट कहते है, उसके ठीक सामने पानी इकठ्ठा हो कर बहता था।वर्षा हुई और सभी बच्चे ,निकल गए ,फटी पुरानी  निक्कर पहन , हाफ पैर और शार्ट का पुराना नाम, बस फिर क्या था ,कूद फांद, छपाक और चिल्लम चिल्ली , उठा पटक , हाथों से छपाक छपाक का आनंद कुछ और ही था। ये रोड पर ही होता था। बच्चों को मालूम था कि घर जा कर मां ने पिटाई करनी है। उस वक्त थप्पड़, चिकोटी, डंडे से पिटाई आम बात थी। घर वाले स्कूल के मास्टर को बोलते थे ,मास्टर जी अगर ये न  पढ़े तो  थींस देना , सूत देना , रुई की धुनाई जैसे बच्चे ठुकते थे, लेकिन किसे इसकी परवाह होती थी। 
मज़े की बात अब बचपन की याद आती है, वो सारे खुले नालों में केवल बरसात का पानी बहता था। उस समय पॉलिथीन भी नही था, उसको लोकल भाषा में मोमजामा कहते थे। वो मोड़ा बनाने में काम आता था, मोड़ा जो एक तरह का रेन कोट । अगर खुदा न खस्ता पिताजी का बेंत की डंडी वाला बड़ा छाता हाथ लग गया ,तो कितने ही छोटे मोटे हम एक साथ कंधें पर हाथ टिका कर  घूमते थे, उसका भी आनंद अलग था। हवा में वो छाते खुलकर उल्टे हो जाते थे, उस वक्त सांस अटक जाती थी। बाप की ठुकाई जो खानी पड़ती थी। बच्चों का एक और शौक था, नालियों के अगल बगल आम के पौधें उखाड़ कर उसकी उसकी घुठली निकाल कर ,थोडा घिसकर पी पी करते डोलते रहो। उसको  पप्पियाँ कहते थे। ये कुछ शब्द केवल चलन में होते थे। 
पानी में तेरते केंचुए पकड़ना भी एक खेल ही था।आज वर्मी कंपोस्ट की चर्चा करते है। इसके इलावा एक रेंगने वाला भूरा और सफेद धारी वाला जीव भी हमारे खेल का हिस्सा होता था। बरसात के बाद मिट्टी की ऊपर की चिकनी परत को हम बच्चे मलाई कहते थे। 
पैसा जेब में होता नही था। बरसात के मौसम में जामुन खाने के लिए कुछ पेड़ थे, मजाल है, नीचे कोई जामुन गिरे और वो बच्चों के हाथ से बच जाए, आजकल जामुन के पेड़ को इसलिए नही उगाते क्योंकि वो गंदगी करता है। फल के गिरने को गंदगी तक हमारा विकास आ गया है। पहले बच्चे पत्थर से जामुन गिराकर खाते थे। उस वक्त कार तो दूर ,स्कूटर भी एक आध के पास ही होता था। केवल सरकारी मकान के शीशे टूट जाते थे, जो लग जाते थे। आम का चूसना उस वक्त के हम बच्चें ही जानते थे, जब तक आम का आखिरी रेसा रहता था, चूसते रहते थे। हम  बच्चे कड़की के बादशाह होते थे। कितने ही पत्ते और उनकी कोंपले खाते थे। आम, जामुन, नीम, घास भी, एक खरपतवार होती थी, उसके हरे काले फल होते थे,वो बहुत प्रिय थे। इमली के पत्ते, एक घास में उगता था, वो भी खट्टा होता था, लपेट लेते थे। नीम की निबोलियाँ तो बहुत प्रिय थी। उसी दौरान चाणक्य सिनेमा घर के पास एक अंडर पास बना था,वो बरसात में  भर गया, एक डी टी सी की बस फंस गई,ये अजूबा था ,उस समय का। यमुना में बाढ़ खतरे के निशान से ऊपर बह रही है,ये आम खबर होती थी। 1978 में ढांसा बांध टूटने से सब और पानी भर गया ,सब कुछ डूब गया था। उस समय स्कूलों में शरणार्थी आये हुए थे। हमारे लिए वो दिन आनंद के दिन थे, क्योंकि छुट्टी होती थी। लेकिन अब पता चला कि वो साहिबी नदी का पानी था, जो नजफगढ़ झील बनाता था ,अब केवल सीवर का पानी ही रह गया। 
घरों में पकोड़े, फुलवड़ियाँ, पापड़ जैसी खाने की चीज़ें बनती थी। आलू के चिप्स उनपर लाल मिर्च की खुशबू और स्वाद से लिखते लिखते मुहँ में पानी आ गया। जुखाम हो जाये तो चांटा रसीद और तुलसी के पत्तों की चाय या काढ़ा मिलता था।ये समय आम के अचार का भी होता था, बच्चे अचार खाने के जुगाड़ खोजते रहते थे। उस  वक्त चीनी मिट्टी के बर्तन जिसको ,मर्तबान कहते थे, अचार डाला जाता था। घर पर ही बड़े बड़े मर्तबान में आचार डालता था। उस अचार की खुश्बू आज भी स्मृति में जीवित है।  बरसात में बच्चों के फोड़े और फुंसी आम बात थी। उनपर लाल और नीली दवा अक्सर बच्चों के लगी रहती थी। चौलाई, गोकुरु का साग बच्चे तोड़ते थे। 
बरसात में स्कूल की छुट्टी भी हो जाती थी। हमें याद है,पांचवी से छटी में गए तो ,उस वक्त स्कूल की नई बिल्डिंग का काम हो रहा था।  हम बच्चे पैरों में कीचड़ ला कर जूतों से फर्स पर लगा देते थे तो कितनी बार छुट्टी हो जाती थी। छोटे बच्चे कितने उस्ताद होते है, या अब सोच कर महसूस होता है।जिन दिनों बारिस की झड़ लगती थी, रात दिन हल्की ,तेज बारिश होती रहती थी। कई बार सात दिन तक झड़ लगती थी। उस समय का आनंद क्या होता था। हर घर में तोरी की बेल होती थी। उसके पीले फूल और उनपर मंडराते भवरें और एक लाल और काली धारी वाला कीट बच्चों का प्रिय होता था। उससे भी खेलते थे। 
रात को मेडक की टर्र टर्र आज भी याद है। उसको हम डडू बोलते थे, शायद पंजाबी शब्द होगा। बरसात का आना एक आनंद देता था। पानी का नालियों में बहना बच्चों के रोमांचकारी खेल होते थे। ये सब खेल प्राइमरी स्कूल तक के लिख रहा हूँ।कितने छोटे छोटे बच्चे घंटों पानी में खेलते थे।हमारा  वो ही वाटर स्पोर्ट ही होता था। किस्ती बनाना और चलाना हमारी नन्ही दुनियाँ के खेल थे। इंद्रधनुष का भी इंतजार होता था। टटीरिहि की टी टी टी टियूँ  सुनने का  इंतजार रहता था। मेडक की टर्र टर्र , मोर की आवाज, केंचुए का पानी में बहना, पानी का बहना ,उसकी किस्ती की रेस अब न जाने कितनी आगे निकल गई। बड़े शहर और महानगर गंदगी के साम्राज्य बन चले है। आज पानी का भराव डराता है, पानी में पैर टच न हो जाये। बरसात में नहाने तो कहीं दूर निकल गया। किस्ती  मोबाइल के खेल में तब्दील हो गई।लेकिन बच्चों में आज भी बरसात को देख उमंग होती है। नैसर्गिक उमंग , आज भी  उनका भी मन होता है। लेकिन बीमारी और गंदगी के कारण खेल नही पाते । पढ़ाई का बोझ भी कारण ही है। लेकिन बच्चों को बरसात में भीगना जरूरी है। छोड़ दो कुछ समय के लिए , उसके आनंद को मत रोको। अपनी नज़र के सामने ही रखो भले। खुद भी भीग लो और प्रकृति का आनंद खुद भी लो   और बच्चों को भी लेने दो। ये ही जीवन के मूल आनंद है। इनको जीवन से दूर मत करो , इनको अपने आगोस में समेट लो और डूब जाओ कुछ पलों के लिए ,ये आनंद से भर देगा , कुछ लम्हों को,  ये तय है।
रमेश मुमुक्षु 
अध्यक्ष ,हिमाल
9810610400
20.8.2020

Sunday 16 August 2020

क्या मानव प्रकृति के सामने बौना है, क्षुद्र हैं और है , अशक्त ?

क्या मानव प्रकृति के सामने बौना है, क्षुद्र है और है , अशक्त ?
कोरोना तुम काल बनके आये 
किस मकसद से ये कौन जाने 
तितर  बितर कर दिया तूने आदमी का दम्भ और न झुकने का झूठा संसार 
भरी दुनियां में अपनों के चार कंधें भी नही मिल पा रहे है, विडंबना तो देखों सेवा से वंचित आदमी मृत्यु  शैय्या पर कितने अपनो से दूर जाता अनुभव करता होगा।  सब कुछ जो उसने अपने से बुनी दुनियां हथेली से फिसलती जा रही है। सब कुछ लॉक डाउन में तब्दील होता गया। कितना कुछ ठहर सा गया है। लेकिन आदमी के भीतर एक जिद है ,जो उसको आगे और पीछे ले जाती है। उसके बनाये सर्वनाश करने वाले सारे हथियार कितने लाचार है ,कोरोना के सामने ,जो अदृश्य सा सबको लील रहा है। एक बार पुनः प्रकृति से मानव का द्वंद आरम्भ हुआ है। एक बात तय हो गई कि मानव प्रकृति के सामने कितना बौना है, क्षुद्र और है , अशक्त । लेकिन क्या ये सच है कि केवल एक बात?
लेकिन वो इसमें भी उभर जाएगा और समझेगा की वो पुनः जीत गया। फिर उसकी यात्रा पूर्ववत आरम्भ होगी। फिर वो पर्यावरण को भूल जाएगा ,भूल जाएगा कि कोरोना के डर से वो दुबक गया था। फिर होगा ,पहले की तरह जीतने हराने का सिलसिला और भूल जाएगा ,की वो लॉक डाउन में दार्शनिक और चिंतक बन गया था।
उसने एक क्षण में नदियों, आकाश ,जल थल को स्वयं साफ होते हुए देखा और चमत्कृत हुआ था। वन्य प्राणियों को अपने प्राकृतिक  रास्तों से गुजरते हुए देखा था ,जो वो भूल चुका था। लेकिन जो दुनियां हम बुन चुके है, उसमें से कैसे निकले और जमीन के एक एक कतरे को कैसे प्रेम करें ? ये हम  भूल चुके है। जीतना ही हमें याद है। जीतने के लिए ये तय है ,किसी को हराना ही होगा। ये जीतने और हराने  के सिलसिले से ही धरती को हम भूल जाते है, कि हम उसके ऊपर निर्भर है और उस पर ही उल्टे लटके से लगते है ,अगर दूर आकाश से देखें तो। 
क्या लॉक डाउन आत्म मंथन था कि बस किसी वर्षा के दौरान  भीगने से बचने के लिए तनिक किसी पहाड़ से निकली चट्टान के नीचे खड़े हुए टाइम पास ? ये   तो सोचना ही होगा , ये तय है।
रमेश मुमुक्षु 
अध्यक्ष ,हिमाल 
9810610400
15.8.2020

Tuesday 11 August 2020

कृष्णजन्मष्टमी 2020 ऐसे भी मनाई जा सकती है।

कृष्णजन्मष्टमी 2020 ऐसे भी मनाई जा सकती है।
"सेस महेस, गनेस, दिनेस, सुरेसहु जाहिं निरन्तर गावैं
जाहि अनादि, अनन्त अखंड, अछेद, अभेद सुवेद बतावैं
नारद से सुक व्यास रटैं, पचि हारे तऊ पुनि पार न पावैं
ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भर छाछ पे नाच नचावैं " :रसखान द्वारा रचित काव्यपंक्ति श्री कृष्ण के होने का पूरा विवरण प्रस्तुत करती है। लेकिन इस बार कोरोना के कारण ,रास लीला, झूला, डीजे, टेंट, बच्चों के नृत्य और मंदिर में भीड़ न हो ऐसा ही हम सबको करना है। लेकिन कुछ अतिउत्साही होते है, जिन्हें केवल हांडी फोड़ जैसे कार्यक्रम करने ही है। उनसे भी आग्रह है कि कृष्ण लीला को घर बैठकर भी किया जा सकता है। सूरदास की काव्यपंक्तियों का आनंद ले:
मैया! मैं नहिं माखन खायो।
ख्याल परै ये सखा सबै मिलि मेरैं मुख लपटायो॥
मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।
मो सों कहत मोल को लीन्हों तू जसुमति कब जायो॥
कबहुं चितै प्रतिबिंब खंभ मैं लोनी लिए खवावत॥
दुरि देखति जसुमति यह लीला हरष आनंद बढ़ावत।
सूरदास के पदों का आनंद ले ,उनके बारें में कहां जाता है कि वो सबसे महान कवि थे ।
"सूर सुर तुलसी शशि ।,उडगन केशव दास।
अबके कवि खद्योत सम ,जहँ तहँ करहिं प्रकाश ।।"
इस बार सोशल डिस्टेंस, मंदिर में भीड़ न हो, सुरिक्षत रहे और औरों को भी होने दें। हमें नही भूलना है कि कल 60000 कोरोना के केस आएं है। भले लोगों की मरने की संख्या कम है, लेकिन मर ही रहे है। ऐसे में बहुत हर्षोउल्लास न करके उन सभी जो कोरोना के कारण हम सब से दूर हो गए। उस सभी जो कोरोना की जंग में हम मृत्यु को प्राप्त हुए। इस पावन दिवस हम उन सब को भी याद करें। कान्हा को घर बैठकर कर भी याद किया जा सकता है। कभी किसी ने सपने में भी नही सोचा था कि स्कूल बंद होंगे, मेट्रो बंद हो सकती है, कोर्ट, रेल ,हवाई जहाज, सिनेमा हॉल और सभी मनोरंजन बन्द है। इसलिए गृह मंत्रालय के निर्देश का पालन करें।
इस बार मथुरा ,वृंदावन भी शांत है, जैसा माहौल हो ,उसके अनुसार ही व्यवहार करना , उचित होता है।
आओ सभी मिलकर कोरोना के विरुद्ध खड़े हो और शीघ्र ही सब सामान्य हो इसके लिए आगे बड़े।
गोपियों की तरह कान्हा को दूर से स्मरण  करें और पढ़े ऊधव गोपियाँ संवाद : 
"ऊधौ मन ना भये दस-बीस
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, कौ आराधे ईस ।"
राधे कॄष्ण राधे कृष्ण
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष हिमाल
9810610400
11.8.2020

Wednesday 5 August 2020

इसको ही राममय होना कहते है

                 
असीम शक्ति की पराकाष्ठा लेकिन क्रोध रहित विनय भाव से परिपूर्ण आज्ञाकारी एक क्षण बिना सोचे स्वीकार करने वाला विशालतम व्यक्त्तिव शत्रु को भी गले लगाने का अदम्य साहस जो शत्रु वध कर उसका भी तर्पण कर सकने की असीम शक्ति जीवनपर्यत्न संघर्ष माता पिता भाई बंधु भार्या से दूर वनवासी बन विनयपूर्ण परंपरा को अक्षुण्ण रखते हुए चक्रवर्ती सम्राट को क्षण में तजकर अंगवस्त्र तक त्यागकर एक नही दो नही 14 वर्ष वनवासी बनने जैसी अग्नि परीक्षा को सहर्ष स्वीकार कर पिता के वचन को शीश चरण पर रख तजना राजा हरिश्चन्द्र का का वंशज ही कर सकता है प्रजा की सुनने वाला जिसने एक अंतिम व्यक्ति की शंका के आधार पर सीता को भी अग्नि होम में समर्पित किया जो आज तक विमर्ष  का विषय है लेकिन उसके बाद कहाँ पर आनंद और रस से परिपूर्ण जीवन रहा अपनी ही संतान के संग अश्वमेघ युद्ध लड़ा लेकिन अडिग रहा ऐसा व्यक्तित्व जिसका कौन कर सकेगा अनुकरण और अनुसरण  पूरे जीवन भर  गांडीव धारण किया लेकिन  जिसने एक बार ही क्रोध किया केवल समुद्र की हठधर्मिता को तोड़ने को अपने सबसे बड़े शत्रु का वधकर उसके चरणों की ओर खड़े होने का साहस और आसीन प्रेमभाव जो दंभरहित हो जिसके विराट रूप को देखकर शत्रु को प्रतिशोध से परिपूर्ण होना चाहिए था लेकिन भवविहल हो तर्पण के लिए शीष झुका लेता था क्योंकि ये मात्र जीत के लिए युद्ध नही था सत्य के लिए युद्ध थे सदियों से प्रतीक्षा में शापितों का तर्पण जो करना था ऐसे एक मात्र जो अवतरित होते है नाना रूप में ऐसे श्री राम का आगमन हम उनके ऋणी क्या कर सकेंगे उनका स्वागत जल जंगल जमीन वायु पाताल मानवता आपसी प्रेम त्याग बड़ों का सम्मान रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाई को क्या हम किंचित मात्र भी अंगीकार कर सकते है आज कितनी निर्भया न्याय को  तड़प रही है कितनी निर्भया को दिन रात प्रताड़ित किया जा रहा है रावण से बड़े दुष्ट आज मानव समाज में सम्मान पाते है सत्ता के लोलुपता से परिपूर्ण चक्रवर्ती राज को एक क्षण में तजने वाले राम को हम क्या स्वागत कर सकते है शत्रु के वध के बाद भी सम्मानपूर्ण रावण से उनके ज्ञान को नमन करने वाले राम जैसा व्यक्तित्व क्या हमारे भीतर अवस्थित है विद्यमान है कदापि नही लेकिन अब राम जैसा तो संभव नही लेकिन प्रेरित हो एक कदम तो उठाने की चेष्टा की जा सकें ऐसा प्रण लिया जाए अगर प्रण पर टिके रहने का साहस है तो वरना राम को  ह्रदय से स्मरण कर व्यक्तित्व में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगे जिसके बाद जल जंगल जमीन समेत मानवता के प्रति दृष्टि बदले का भाव  ही रामभक्ति का आरम्भ होगा तभी हम राम को दिल से बुला सकते है ताकि उनको लगे कि जो रामराज्य जो  वो छोड़ गए वो अभी भी अस्त्तिव में है श्री राम कहने से क्रोध नही श्री राम का भाव प्रकट होना चाहिए जो क्रोधरहित तेजोमय और विराट हो इसलिए राम होना तो असंभव है लेकिन राम की अतिसूक्ष्म छवि और छाया को अनुभूत करना भी व्यक्ति को राममय बना सकता है केवल दो पंक्ति ही राममय कर सकती है 
*होइ है वही जो राम रचि राखा को करे तरफ बढ़ाए साखा* 
इसको स्वीकारना सरल भी है और असंभव भी है तय हमें करना है क्योंकि मानव मन को स्वयं मानव ही जान सकता है कि भीतर क्या है अगर राम की कृपा रहे और राम की कृपा स्वयं को उसमें विलीन करने की यात्रा से ही आरम्भ होती है और ये यात्रा का कोई आदि अंत नही केवल उस क्षण की प्रतीक्षा ही एक मात्र विकल्प है विडंबना है कि प्रतीक्षा भी करनी नही है निर्लिप्त भाव से परिपूर्ण हो मात्र दर्शनाभिलाषी बन कर्तव्यपूर्ण करते हुए इसको ही राममय होना कहते है ।

(रमेश मुमुक्षु)
अध्यक्ष, हिमाल 
5.8.2020

Wednesday 29 July 2020

मास्क की आत्मव्यथा : कोरोना संकट में

मास्क की आत्मव्यथा : कोरोना संकट में
हे ,मूढ़मते मानव मुझे मालूम है ,तेरी फितरत । तू उपयोग करके भूल जाता है ,और फेंक देता है। तुझे केवल अपनी ही चिंता रहती है। लेकिन तू भूलता है कि तेरे पुरखे अभी भी पृथ्वी पर कहीं कहीं रह रहे है। वो हज़ारों वर्षों से एक जैसा जीवन जी रहे है। वो आज भी प्रकृति पर ही निर्भर है। लेकिन तू आगे निकल गया। तूने जल,थल,नभ एवं अंतरिक्ष से सभी का तेजी से दोहन करना आरम्भ कर दिया। 
ऐसा नही कुछ मानव ऐसे हुए जिन्होंने तुझे हज़ारों वर्ष पहले ही चेता दिया था कि प्रकृति के संग मिलकर चल ,उतना ही ले ,जितना उपयोग हो सकें। लेकिन  तेरी भूख मिटती नही। 
कोरोना ने एक बार तो तुझे घरों के भीतर ही दुबका दिया। पूरी दुनियां ऐसे दुबक गई ,जैसे छोटा सा मूषक बिल में डर के घुस जाता है।  कोरोना के डर से बड़े बड़े तीस मार ख़ाँ बिलों में दुबक गए। पूरा विश्व सकते में आ गया । मौतों का सिलसिला तेजी से शुरू हो गया। 
जो देश अपनी सामरिक शक्ति का दम्भ भरते थे,वो भी अदृश्य आपदा के आगे घुटने टेक गए। उनके घातक से घातक अचूक हथियार भी कुंद हो गए। खेर ,आदमी भी जिद्दी है,इसका भी उपाए खोज कर अपनी चाल से ही चलेगा। 
जिन्हें विश्व अवतार या भगवान का दर्जा देता है, उनकी एक छोटी सी बात भी कभी किसी नही मानी की मानव एक ही है,उसमें भेद नही है। पृथ्वी और प्रकृति सबके लिए एक समान है। इसलिए एक साथ भाई चारे के साथ रहो। लेकिन एक दूसरे को नेस्तानाबूत करने की होड़ में विश्व लगा है । जिस पेड़ पर बैठा है,उसी डाल को काटने में लगा है , इंतजार है कि ये डाल कब कट कर गिरती है। 
हथियार ऐसे की एक ही पूरी मानवता को खत्म कर सकता है। लेकिन इस मूढ़मते को कौन समझाए?
कोरोना जैसी अवस्था मानव इतिहास में पहली बार हुई है। 40 दिनों में ही सारा प्रदूषण जाता रहा और ये प्रमाणित हो गया कि प्रकृति तो शुद्ध ही है। ये मानवकृत गंदगी और प्रदूषण के कारण ही सब कुछ प्रदुषित था।
लेकिन इसको कोई अंतर नही पड़ेगा ।मेरा उपयोग कोरोना के संक्रमण से करने के लिए करता है। बहुत बार कोरोना मुझ पर बैठता है। मैं उसको मानव के भीतर जाने से रोक देता हूँ। जिसके कारण बहुत सारे लोग अपनी जान बचा सकें है। लेकिन ये मानव अभी भी बाज नही आ रहा है।मुझे कही भी फेंक देता है।जबकि कुछ समझदार लोग बोलते बोलते थक गए कि इनको यहाँ तहां न फेंक। लेकिन आदमी की पुरानी आदत कि उपयोग करो और भूल जाओ। इस बार भी उसको अक्ल नही आई। हालंकि ये इतना पक चुका है कि मानने को राजी नही। 
लगता था कि ये सबक सीखेगा , वहीं ढाक के तीन पात । कहता फिरता है कि मास्क पहनना जरूरी है। इस्तेमाल के बाद इसका निस्तारण एतिहात से करना जरूरी है। लेकिन फिर भी मुझे अपनी जान बचाने के लिए  पहनता है और फिर मेरा तिरस्कार कर फेंक देता है। जब अभी भी नही सुधरा तो आगे क्या सुधरेगा, ये सोचने का विषय है।
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
29.7.2020

Wednesday 15 July 2020

शहरी विकास: जिसकी लाठी उसकी भैंस। द्वारका उपनगर के संदर्भ में

शहरी विकास: जिसकी लाठी उसकी भैंस
द्वारका उपनगर के संदर्भ में
हम सबको याद ही होगा , जब द्वारका उप नगर ,जिसको पपन कलां प्रोजेक्ट कहा जाता था, आरम्भ हुआ ,उस वक्त एक भी पेड़ द्वारका उप नगर में नही था। अधिगृहित होने से पूर्व ये सब कृषि भूमि थी,कितने ही गांवों की। शहर और महानगर बनते है ,कृषि भूमि और प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ता जाता है।  मधु विहार के पास एक पीपल का बड़ा पेड़ था, उसके नीचे ही बस स्टॉप हुआ करता था। नाले के ऊपर सिंगल रोड़ हुआ करती थी। जो लोग अपनी घोड़ा गाड़ी में चलते है, वो शायद न भी जानते हो। 
मेरे कितने पहचान वालों के फ्लैट द्वारका में  निकले ,लेकिन जंगल में कौन जाए , या तो बेच दिया ,या कहीं और मिले कोशिश में लग गए। यहां के डीलर और बिल्डर बोला करते थे कि अभी मेट्रों आने को है, कुछ बहुत पुल बनेंगे। डाबड़ी, एयरपोर्ट , विकास पूरी को जोड़ा जाएगा। साध नगर होते एक सीधा रास्ता जुड़ेगा। ये एशिया का सबसे  बड़ा उप-नगर है। स्पोर्ट काम्प्लेक्स और न जाने क्या क्या होगा। पालम फाटक पर फंसें सभी द्वारका वासी दुआ करते थे कि कब पुल बनेगा और हम सब घर जा सकेंगे। मैं तो बस वाला था, अभी भी हूँ, 3 से 4 घंटे भी कई बार फंसा। साउथ कैम्पस पुस्तकालय  में दिमाग घिसने जाने में घंटों फाटक पर लटके रहो और सरकार से लेकर सबको कोसते राहों। उस वक्त ठेला और BMW एक साथ फाटक पर फंसें किस्मत को कोसते रहते थे। तभी खबर मिली की पालम पर फ्लाई ओवर ब्रिज बनेगा ,तो सभी फंसने वाले उस शुभ दिन का इंतजार करने लगे।लेकिन जिन्होंने पालम कॉलोनी आदि में कभी जमीन ली थी और जो कुछ पैसा पानी रहा था,  प्राइम लोकेशन वाला प्लाट लिया होगा ,उनके लिए ये विनाश ही लगता था। लेकिन पब्लिक इंट्रेस्ट के नाम पर सब कुछ हो सकता है, खुद को लाभ हो ठीक,  नुकसान हो तो गलत ।  खेर,  द्वारका के लोगों के लिए वरदान सिद्ध हुआ। 
 मेट्रों ने सही अर्थों में द्वारका में लोगों को आकर्षित किया था। मेट्रो के साथ ही द्वारका लाइम लाइट में आ गया। 
अभी भी द्वारका के बड़े बड़े ग्रुप ,संस्थाएं द्वारका से निकासी की कितनी ही योजनाओं के लिए डी डी ए के आला अधिकारियों से मिलते हुए, फ़ोटो शेयर करते है। 
बात पालम फ्लाई ओवर की हो रही थी। कॉलोनी के बीच से निकला और को लोग बिल्कुल सटे हुए रहते है, उनके जीवन में शोर और न रुकने वाला शोर स्थाई हो गया है ।कभी किसी छोटे से रेलवे स्टेशन की रेलवे कॉलोनी में बाहर सो कर इसका आनंद लो। ट्रैन सरपट निकल जाती है, लेकिन जो पहली बार सोते है, उन्हें लगता है कि ट्रैन ऊपर तो नही आ रही। 1995 में महारष्ट्र के किसी छोटे से स्टेशन की कॉलोनी में बाहर सो कर मैंने ये अनुभव लिया था । लेकिन जो रहते है, उनको आदत पड़ जाती है।
विकास की आधुनिक अवधारणा एक का विकास और दूसरे के विनाश से ही सम्भव है।नांगल के पुल से नांगल की सारी कॉलोनी दिन रात के शोर में रम गए होंगे ,शायद। अब दूसरा उपाए भी क्या होगा? आजकल को लोग द्वारका एक्सप्रेसवे में रहते है, उनको भी सरकार और डीलर कहते रहते है कि बस थोड़ा सा रह गया ,फिर द्वारका से जुड़ जाएगा। 10 मिनट लगेंगे। ये हर प्रोजेक्ट की कहानी है। अब ये बात केवल चंडू खाने की ख़बर है कि सच, डाबड़ी नाले को कवर करने में जानबूझ कर देरी की गई, ताकि गुरुग्राम का तेजी से विकास हो। ऐसा बहुत बार होता है। एक समय था कि दिल्ली के गांव वाले डरते थे कि उनकी जमीन पर जे जे कॉलोनी न आ जाये। अभी पशुओं के शमशान घाट की चर्चा हो रही थी। द्वारका में आवाज उठी कि द्वारका में नही कहीं और ले जाओ। बामडोली गांव के पास की बात हुई ,तो वहां पर भी विरोध होना ही था। ये इसलिए होता है ,क्योंकि जनता से सरकार संवाद नही करती। सब गोल दूसरे के पाले में सरका दो, हम बच जाए। ये लालच और दूसरे की परवाह न करना , विकास की आधुनिक सोच का अभिन्न अंग है।
लेकिन जिन कॉलोनी में रसूखदार  लोग रहते है, वो अपने हिसाब से प्रोजेक्ट तैयार करवा लेते है। आप सभी बसंत गांव के आधे अधूरे पुल को झेल ही चुके होंगे। असल में वेस्ट एंड के रसूखदार  लोगों,  ने अपनी ओर पुल बनने ही नही दिया, जिससे एक मूर्खतापूर्ण प्रोजेक्ट बना और वर्षों सभी ने झेला। आई आई टी दिल्ली ने भी कई उपाए बताए ,लेकिन सब जनता के पैसों की बर्बादी ही थी। आई आई टी जैसे संस्थान बहुत बार जैसा सरकार चाहे अध्ययन कर लेते है। अभी फिर उस पुल को बनाना ही  पड़ा। जहाँ पर प्रभावित करनें वाले लोग रहते है, वहां पर मेट्रों जमीन के भीतर से गई। कभी कभी एक व्यक्ति ही पूरे प्रोजेक्ट को प्रभावित कर देता है।
अक्सर मैंने देखा कि प्रोटेस्ट करने में ये ख्याल रखा जाता है कि माइक किसके हाथ में रहेगा। सीधी बात है कि कौन उस दिन का नेता  होगा। मुझे याद है, एक वर्षपूर्व   गुरुग्राम में अंडरपास को लेकर प्रोटेस्ट था। मुझे भी कुछ मित्र  वाले ले गए। काफी लोग थे, नारे लग रहे थे। मेरे भीतर भी चिपको का नारा कुलांचे भरने लगा। सुंदरलाल बहुगुणा जी एवं चंडी प्रसाद भट्ट जी ने पेड़ बचाने के लिए इस नारे का शंखनाद पैदल चल के वर्षों तक किया ,जिसका परिणाम वन अधिनियम और न जाने कितने कानून और एक अलग से पर्यावरण विभाग और बाद में मंत्रालय की स्थापना हुई। स्वर्गीय एन डी जुयाल ,जिनकी 93 वें वर्ष 18 मार्च  को ,उनके ट्रस्ट  "द हिमालयन ट्रस्ट"  की स्थापना के दिन हुई। उन्होंने ही पर्यावरण विभाग की स्थापना की , जुयाल जी IMF ,भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन , के अध्य्क्ष और त्रिशुल   चोटी पर पहले भारतीय पर्वतारोहण दल की अगुवाई भी की। उनके भीतर चिपको और टेहरी बांध आंदोलन से हिमालय संरक्षण की बात स्थापित हो गई। इन आंदोलनों में शामिल होने वाले लोग विकास और विनाश की अवधारणा के मर्म को समझते थे। बहुत बार प्रोटेस्ट बहुत कुछ न  समझे ही होता है। बस अधिक लोग चाहिए।
इसलिए प्रोटेस्ट करने से पहले गहन अध्ययन और उसका विकल्प क्या है, ये जानना ,जरूरी और पहली शर्त है।
बात गुरुग्राम के प्रोटेस्ट की है।चिपको का नारा दिल से निकलता है। मीडिया की निगह तो जानी ही थी।  उन्होंने अधिक जगह दे दी तक  कुछ लोग मीडिया में कवरेज कम होने पर व्याकुल हो उठते है। शायद वो प्रोटेस्ट नारों में उलझ कर रह गया। 
जहां तक सरकारों का संबंध है, अभी भी गुप  चुप ही सब काम करती है।किसी प्रोजेक्ट की चर्चा अगर वहां पर रहने वालों से कर ली जाए और उनसे भी फीड बैक लिया जाए तो कितनी बातें साफ हो जाये ।  हालांकि कुछ लोग अपने स्वार्थ ,नाम और कितनी बार लाभ के लिए भी प्रोटेस्ट आदि का सहारा ले लेते है। इसलिए प्रोटेस्ट के लिए एक सतत सिलसिला चलना जरूरी है। 
किसी परियोजना का विरोध क्यों किया जाए ,इसका एक तुलनात्मक अध्ययन हो और संभव हो तो एक विकल्प भी दिया जाए तो बेहतर हो। सरकार को प्रोजेक्ट करना है । जो विरोध करते है, वो भी बहुत बार जिद कर देते है। दोनों का विरोध कितनी बार नाक का विषय बन जाता है। द्वारका में ही भारत वंदना पार्क को सरकार प्लाट कहती है। कुछ लोग जंगल कहते है। सरकार इसका लाभ के लिए उपयोग करना चाहती है, कुछ लोग कहते है,इसको पड़े रहने दो। दोनों किसी  भी बिंन्दू पर एक साथ नही आ सकते। 
सरकार ने DPR में लिखा है कि यहां पर सैंकड़ों गाड़ियों की पार्किंग होगी ,इसका अर्थ है कि भीड़ बढ़ेगी। इस पर चर्चा होनी चाहिए। सरकार और लोगों के बीच कोई बिंन्दू साफ नही हो पाते। फिर प्रोटेस्ट लगातार नही हो सकते। लेकिन इन पर गहन अध्ययन करके ही किसी बिंन्दू पर विस्तार से विरोध होना चाहिए। इसका पता ही नही चलता। अचानक कॉल होती है, कल सुबह किसी पॉइंट पर आना है। किसलिए , विरोध के लिए। अक्सर प्रोजेक्ट आरम्भ होने के साथ ही विरोध होने से सरकार उलझा देती है। 
दुनियां भर के लोग नजफगढ़ झील में आने वाले , विदेशी मूल के पक्षी देखने जाते है। उन सब का कहना है कि इस झील को सरकार वेटलैंड बना दें। लेकिन ताज्जुब है,उसके बगल में रह रहे गांव वाले इस झील में गुरुग्राम से निकलने वाले सीवर के पानी को करीब 20 वर्षों से झेल रहे है। पानी गांव की जमीन पर इकट्ठा रहता है। ये कभी साबी और साहिबी नदी थी। ये एक बड़ा गेप है, जिसका बिल्डर लॉबी लाभ उठा लेती है। जो प्रभावित होगा , उसको लाभ समझ आता है,  भले भविष्य के लिए विनाशकारी ही क्यों न हों। 
हम कोशिश करते है कि एक हमारे यहाँ से प्रोजेक्ट हेट और कहीं ओर ले जाया जाए। कहाँ पर ले जाया जाए ,इसका भी खाका हो तो प्रोटेस्ट में वजन रहता है।  
सरकार को हर बिंन्दू पर चर्चा के लिए तैयार रहना चाहिए। प्रोजेक्ट की सभी डिटेल ऑनलाइन डाल देनी चाहिए। प्रभावित लोगों से लंबा संवाद करना चाहिए। प्रोजेक्ट में पेड़ आदि को कैसे बचाया जा सकें, इस पर लंबी चर्चा की जा सकती है। वर्षो पहले भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 के अतिरिक्त भूमि अधिग्रण पर कोई नीति नही थी। उस समय कितने ही लोगों ने सरकार को सुझाव दिए। मुझे भी अवसर मिला और बहुत से सुझाव के साथ एक बिंदु था कि प्रोजेक्ट शुरू होने से पहले ही कई गुणा अधिक पेड़ लगने चाहिए। पेड़ लगने के बाद ही प्रोजेक्ट शुरू हो। लेकिन आज भी एक साथ ही सब कुछ शुरू होता है। 
अंत में द्वारका उप नगर एक योजनाबद्ध तरीक़े से बनाया गया है। सरकार को चाहिए कि कोई भी प्रोजेक्ट जो भीड़ बढ़ाये , हवा दूषित करें, ध्वनि प्रदूषण बढ़ाये, पानी की किल्लत करें ,नही लाना चाहिए। मैँ तक कहता हूँ, दिल्ली में अभी किसी नए प्रोजेक्ट की जरूरत नही है। दिल्ली की carrying capacity (वहन क्षमता) करीब समाप्त हो चुकी है। लेकिन सेंट्रल विस्टा जैसे 20000 करोड़ के प्रोजेक्ट लगाना अभी उचित नही,लेकिन सरकार के तरकस में बहुत से तर्क वितर्क से लैस तीर होते है।जेब में नही दाने अम्मा चली भुनाने ,अब सरकार तो सरकार है। किस की सुनेगी। लेकिन ठोस आधार पर बात रखी जाए तो क़ुछ प्रभाव पड़ने की संभावना रहती है। पर्यावरण संरक्षण, पेड़ बचाओ की समझ बहुत गहरी न होने पर बात को मजबूती से नही रखा जा सकता है।   लेकिन इन सब पॉइंट्स पर चर्चा हो और हो सकें तो जनता की टास्क फोर्स बने जो उपरोक्त बिंदु पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करें ताकि सरकार के सामने रखा जा सकें। लेकिन एक बात मैं जरूर कहूंगा  कि अनाधिकृत कब्जे और निर्माण रेसिडेंट्स की कमजोरी है। इसका लाभ सरकार उठा रहती है। श्री चंडी प्रसाद भट्ट जी ने द्वारका में ही कहा था कि आंदोलन अंर्तप्रेरित ,स्वस्फूर्त और शांतिपूर्ण ठोस अध्ययन के साथ ही किया जाए।द्वारका में बहुत जानकर और अनुभवी लोगों से उनके अनुभव का लाभ उठाया जाए। किसी प्रोजेक्ट का विरोध करें और कहें कि यहां पर नही ,दूसरी जगह ले जाया जाए ,ये भी बिना विकल्प और ठोस आधार के कहने से प्रोटेस्ट कमजोर पड़ता है। द्वारका के लिए एयरपोर्ट के कारण भी प्रदूषण होता है, इस पर भी हमको फ़ोकस करना ही चाहिए। मुझे याद है  कि श्री एस के मालिक और अखिलेश पांडेय ने इस बात को उठाया तो इनका ही विरोध होने लगा। लेकिन अभी इस बात को स्वीकार किया जा रहा है।  इस लिए सभी विकल्पों पर बिंदुबार चर्चा और गहन अध्ययन करना जरुरी है। जो भी ऊपर लिखा है,ये हम सभी जानते है। लेकिन फिर भी इन सब पर अगर गहन चर्चा कर ली जाए तो उचित ही हो और एक आधार द्वारकावासियों के लिए तैयार रहे, जिससे द्वारका को हमेशा ही संरक्षित किया सकें । द्वारका में भीड़, प्रदूषण बढ़ाने, जल संकट को गहराने वाले प्रोजेक्ट नही चाहिए, ये केवल कभी कभी प्रोटेस्ट करने के साथ एक वैकल्पिक दस्तावेज और प्रोजेक्ट की बारीक से बारीक जानकारी हाथ में रहे तो ही सफलता की थोड़ी उम्मीद है। इस बात से इंकार नही किया जा सकता है।
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष ,हिमाल 
9810610400
14.7.2020
ramesh_mumukshu@yahoo.com

Friday 10 July 2020

चिंतन करना होगा कि कैसे पनपते है,ये डॉन

चिंतन करना होगा कि कैसे पनपते है,ये डॉन
विकास दुबे जैसे लोग पनप कैसे जाते है?  
कौन है ,जो इनको शरण देते है? 
कैसे ये AK 47 रखते है ? 
इसको पकड़ने पुलिस आई तो ,पुलिस वालों ने ही दुबे को सूचित किया। 
जो पुलिस वाले मारे गए ,वो उनके ही सहकर्मियों द्वारा मारे गए। पुलिस कभी एनकाउंटर करने नही जाती, वो हो जाता है। 
इसके माध्यम से हम सभी को अपने आस पास ऐसे कौन से लोग है, जो पुलिस और किसी विभाग से नही डरता। किस नेता और बाहुबली का उसको संरक्षण होता है। 
बेहतर हो कि केस बने और कोर्ट  से सजा मिले। बहुत से ऐसे लोगों को विगत में भी सजा मिली है,जो रसूख वाले लोग रहे है।
ऐसे लोगों का पनपना कानून की कमजोरी ही होती है। ताकतवर आदमी कानून को अपने हाथ में लेने की कोशिश करता है।
ऐसे लोग धीरे धीरे ताकतवर बनते चले जाते है। जब व्यवस्था तय करने लगे कि कौन डॉन बनेगा और कब उसका खत्मा होगा तो समझो व्यवस्था न्याय पूर्ण काम नही कर सकेगी। ऐसे लोगों से बहुत से राज खोले जा सकते है। लेकिन ,जो लोग 8 पुलिस कर्मी को मार दें और सीना ठोक कर सामने आ जाये। उसको कोई डर नही है। सम्भव है, उसको ट्रेप में लिया हो। लेकिन ऐसा विगत में भी होता रहा है। होना नही ,चाहिए ,लेकिन ऐसा कदम उठ जाता है,या हो जाता है। 
पुलिस और व्यवस्था ,नेता आदि को ऐसे बदमाशों को पनपने ही न दिया जाए। इस पर हम सब को गहन चिंतन करना ही होगा। हमारे आंखों के सामने जो लोग गैरकानूनी काम सीना ठोक कर लेते है। ऐसे लोग ही दुबे बनने लगते है। आजकल ट्रेंड चला है कि गैरकानूनी निर्माण आदि के ठेके के पैकेज में सभी विभागों को मैनेज करना भी शामिल है। मेरे इस आशय को सभी संमझ गए होंगे। ये ही लोग विभाग और नेता द्वारा संरक्षण प्राप्त करता करता ताकतवर बन जाता है। सभी दलों और विचार धारा के अलग अलग डॉन होते है। जिसका  अवसर मिले वो रास्ता साफ करता रहता है। अगर हम अपने चारों और नज़र दौड़ाए तो बहुत कुछ सामने आता जाएगा। बहुत से लोग ऐसे होते है, जिनको लोग डॉन कहते है, लेकिन उनकी शिकायत करने की किसी की हिम्मत नही होती क्योंकि विभाग वाले उनके पास आते जाते है। इसलिए विकास दुबे जैसों को पनपने ही नही देना चाहिए।
*नोट* एक बात तय है कि बिना किसी वरदहस्त और संरक्षण के बदमाश इतना बड़ा नही बन सकता।
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल 
9810610400

Sunday 14 June 2020

हम नही सुधरेंगें चाहे कुछ भी हो कोरोना संकट पर एक विचार

हम नही सुधरेंगें चाहे कुछ भी हो कोरोना संकट पर एक विचार
# बाइक पर दो से तीन कितनी बार बिना मास्क चलेंगे।
# भीड़ करेंगे ,गप्प करेंगे मास्क के बिना
# हम प्याला होंगे , किसी के घर मास्क को दुर रख ,बच्चों की  परवाह किये बिना, मधुशाला गाएंगे।
# दुकान पर डिस्टेंस किसको याद है, अब कोई पुलिस वाला हूटर नही बाजयेगा।
#गली मोहल्ले में मेला लगा है।
# रात के पंछी अभी भी रात को 9 बजे के बाद निकल जाते है,बेरोकटोक। 
# कर्फ्यू पास चस्पा करके कितने तो मार्च से ही आंखों में धूल झोंक रहे है। 
# इतने ही केस आते जा रहे है,उतना ही लोग फ्री घूम रहे है। पार्क सेहत बनाने के लिए भरे जा रहे है। किसी को फिक्र नही।
# मौत का तांडव होने को है,लेकिन राजनीति अभी भी गर्म है। कोरोना कभी केजरी, कही मोदी कभी योगी, कभी उद्धव , कभी फलाना ढिमकना हो रहा है। 
# अफसोस  है , देश केअस्पताल में  1लाख पर 58 बेड 
बंगला देश 87 बेड
चीन         434
रूस          805
भारत कुल बेड 7 लाख 14000
ICU  35700 कुल सरकारी अस्पताल में।
इसमें किसी  पार्टी की सरकार नही ,सभी बराबर के जिम्मेदार है।सभी  पार्टी वर्णसंकर है, मतलब *कहीं की ईंट कहीं को रोड़ा भागमती ने कुनबा जोड़ा।*  कभी किसी ने  पार्टी और  संघटन द्वारा  स्वास्थ्य पर आंदोलन और चक्का जाम की बात सुनी है। इसमें सभी कसूरवार है। हम सोचते हीनही इस बारे में। 
# दुनियां में 10 लाख पर टेस्ट की स्थिति 
भारत         3462
USA          64335
स्पेन            95308
रूस            119793
ब्रिटेन           82299
 इटली           70063     
पेरू              36185
जर्मनी           51916
चीन के यूहान में एक दिन में 14 लाख जांच करवाई थी।
ये देश भारत से 20 गुणा अधिक टेस्ट करवा रहे है। अब खुद ही हिसाब लगा ले कि अगर 20 गुणा टेस्ट हम करते तो आज कितने पॉजिटिव केस हो सकते थे। कितनों की मौत हो सकती थी। 
# ये हमारी हकीकत है। ये किसी भी पार्टी की प्राथमिकता नही रही। अगर किसी पार्टी की सरकार ने काम नही किया तो दूसरी पार्टी ने कौन सा झंडा गाड़ दिया। कभी उपरोक्त बातों पर आंदोलन और चक्का जाम नही हुआ।
# देश में मेडिको इन्शुरन्स , सरकारी स्वास्थ्य कार्ड धारक बहुत कम होंगे। करीब 80% लोग भगवान भरोसे है। खुद ही नीम हकीम से इलाज़ करवाते है। सभी किस्म की दवा में मिलावट और स्टेरॉइड मिला कर देने वाले पिचास खूब मिलते है। अभी भी देश में  20  से 50  किलोमीटर से दूर डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल है,जहां पर भी इलाज़ की उम्मीद नही होती।  
# अब बताओ कोरोना से कैसे बचें । पहले दूसरे लॉक डाउन में पुलिस का  हूटर सुन दौड़ जाते थे। पिछवाड़ा सेक दिया मशहूर हुआ था। अब ऐसे निकलते है, जैसे कोरोना है ही नही। 
# बुरा न मानों बहुत से लोग केवल लठ के ही यार है। हम लोग मार्च से ही पॉकेट के गेट पर पहरा देते है। अभी तक लड़ाई का अंदेशा रहता है। हमारे यहां पर गेट पर ड्यूटी देने के लिए दो हमले भी हो गए। लेकिन अभी भी कुछ लोगों पर अंतर नही पड़ा। 
# खुद ही हम नही मानते कानून और जो बताया जाता है। आदत ही नही। 
# शराब की दुकान में भीड़ ने रिकॉर्ड तोड़ दिया ,ट्रैफिक जाम आम हो गया। 

# जब मरीज एक न था 
लक्षण रेखा खींची गई
अब मरीज चहुं ओर है
रोक टोक कछु न भई 
कैसा गड़बड़ झाला रे 
ये कैसा गड़बड़ झाला 
कोरोना ने कैसे भैय्या
सबको जाल में डाला
सबको जाल में डाला 
किस पर दोष मढ़े 
इस हमाम में भैय्या 
सभी औंधे पड़े ,औंधे पड़े। 
# इसलिए अपनी जान खुद ही बचाएं।
सावधानी हटी दुघर्टना घटी।
#अगर 15 लाख खींसे में है और किसी नेता के करीबी है ,तो भी बच के रहो,ये कोरोना है,जिसने अमेरिका चीन नही बख्शे , परमाणु बम भी इसका बाल बांका भी नही ,तो किसी को नही बख्शेगा। 
*ये हेकड़ी मूछों पर मरोड़ , सीना फुला के चलना, ऐंठ के घूरना सब धरा रह जायेगा। इसलिए सभी भेद भाव भूल कर साथ में आकर खुद बचो और औरों को बचाओं। ये ही मूल मंत्र है।जिंदा रहे तो भिड़ते रहेंगे,पूरा जीवन ,यहीं करते आ रहे है, सदियों से ,अब हो सकता है ,कुछ ऐंठन कम हो जाये ,कोरोना के कारण। ये तो देखना ही है।
विनीत
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल 
9810610400
13.6.2020

Saturday 16 May 2020

लॉक डाउन और द्वारका पुलिस

*लॉक डाउन और द्वारका पुलिस*
22 तारीख से ही सुबह बीट वाले,श्री वीरेंद्र और कप्तान  की हूटर की आवाज एक आदत सी बन गई है। दिन भर कितनी बार बीट वाले  चक्कर लगाते रहे। माइक लेकर समझाते रहे कि  लोग कोरोना से बचे और घर पर रहे। डी एम श्री राहुल सिंह जी श्री अन्टो अल्फोन्स ,डीसीपी द्वारका पुलिस भी रह रह कर कोरोना संबंधी अपडेट देते रहते है। एक नया संबंध प्रशासन और जनता के बीच  उभर कर आया। पुलिस समेत द्वारका में जनता ने भी इस बारे में अच्छी पहल की।  इस्कॉन ,दिल्ली सरकार, छोटी सी खुशी, द्वारका फोरम, द्वारका फेडरेशन, अनहद ,ट्रेवल्स, आर एस एस , एक मुठ्ठी ट्रस्ट और द्वारका पुलिस के मनीष मधुकर डीसीपी आफिस के , डीसीपी श्री अन्टोअल्फोन्स अतिरिक्त अतिरिक्त डीसीपी श्री मीणा जी एसीपी श्री राजेन्द्र सिंह  ,एसीपी एवं सभी एस एच ओ राशन और खाना बांटने  में लगे रहे। इस सब के बीच एक  दिन राशन बांटने के संदर्भ में श्री संजय जी एस एच ओ द्वारका नार्थ ने अच्छी बात कही कि" राशन वितरण के लिए उतावलापन ठीक नही। कहाँ कितना देना है, किसको देना है, इसका भी ख्याल रखना है।" आरम्भ में भावना बलवती होती है। धीमे धीमे कुछ लोग ही रह जाते है। भोजन और सामग्री देने वाले। कुछ अलग भी होता हुआ ।  हमारी पॉकेट में एक बुजुर्ग महिला ने पीसीआर बुला ली कि उनके पास जो पंखा है,खराब हो गया। गर्मी बढ़ गई है , पंखा चाहिए। बीट के श्री कप्तान सिंह , लग गए मदद के लिए। यहाँ तक भी पुलिस ने मदद करने की कोशिश की। ये सब द्वारका में होता रहा। बुजुर्ग लोगों के यहां भी पुलिस गई। ये सब इसलिए कि हम लोग कोरोना से बचे। हमारी पॉकेट स्टूडियो अपार्टमेंट की RWA और रेडिडेंट्स ने सुबह 7 बजे से रात्रि 1 बजे तक गेट पर तन्मयता से ड्यूटी दी। इस दौरान बाहर से आने वालों से जूझते रहे। ये भी एक बड़ा कदम रहा। नेता भी लगे रहे। सबका नाम मैं जनता ,कोई भूल हो तो , क्षमा करें। ये सब द्वारका को सुरक्षित रखने के लिए।  वैसे BSES ,MCD को भी नही भूल सकते है।पॉकेट के गार्ड, सफाई वाले, फ़ूड सप्लाई वाले भी लगे है। डीसीपी और अन्य बड़े अधिकारी व्यक्तिगत रूप से भी लोगों से मिले ,ये भी होता रहा द्वारका के भीतर। खाना बांटने में छोटी सी खुशी का काम अलग रहा। श्रीमती नामिता  चौधरी बताया कि उन्होंने 50 वालंटियर चुने और सभी ने अपने खाने के साथ एक खाना अतिरिक्त बनवा लिए। प्रतिदिन गार्ड रूम से उनके वर्कर्स खाना लेकर उपयुक्त जगह खाना बांट आते थे। ये भी अलग प्रयोग रहा। श्रीमती माधुरी वर्षांय ने दिल्ली सरकार के माध्यम से राशन, खाना आदि बांटने में बहुत मेहनत कर रही।है।डीसीपी आफिस में कार्यरत श्री मनीष मधुकर जी जो द्वारका पुलिस द्वारा विभिन्न इवेंट्स करवाने में हमेशा दिख पड़ते है। द्वारका जिले बेस्ट सिक्योर्ड सोसाइटी, शतप्रतिशत वेरिफिकेशन , परख ऐप , कम्युनिटी पोलिसिंग में उनका रोल अहम रहा, कम्युनिटी पोलिसिंग व्हीकल, सामुदायिक कियोस्क सेक्टर 10 मार्किट, मेगा रन जैसे द्वारका पुलिस के विभिन्न कार्यो में  सबसे आगे दिखाई देते रहे। अभी कोरोना संकट में भी इन्होंने राशन एवं कम्युनिटी किचन में भी दिखाई पड़े। इन सब कामों में उनके ऊपर डीसीपी श्री अन्टो अल्फोन्स जी प्रोत्साहन रहा। श्रीमती सुधा सिन्हा ने भी डी एम श्री राहुल सिंह एवं डीसीपी द्वारका पुलिस से समय समय पर इंटरव्यू लेकर द्वारका की जनता को जागरूक किया। श्री राजेन्द सिंह एसीपी द्वारका रेसिडेंट्स के जबाव भी बखूबी देते रहे और उपयुक्त जानकारी भी देते रहे। इसके बीच श्री राज दत्त गहलोत उप महापौर अपने हाथ से विभिन्न कॉलोनियों को सैनिटाइज करते दिखे,ये भी नज़ारा अलग ही था। 
*विशेष* सबसे अधिक योगदान मेडिकल स्टाफ का रहा। जो सीधे ही इस संकट से जूझ रहे है। उन सबको तो सलाम करना ही है। लेकिन लोगों की अज्ञानता की बात जरूर करूँगा। हमारे पॉकेट में दो नर्स जो वेंटेश्वर हॉस्पिटल में है, उंनको क्वारंटाइन किया गया। कुछ लोगों को लगा। ये तो कोरोना पोसिटिव है। ये बहुत ही मूर्खतापूर्ण बात थी।हमने उंनको समझाया कि अपने मन से कुछ भी बात करनी ,हमेशा घातक परिणाम को जन्म देती है। मेरा खुद का HIV AIDS के लोगों के साथ काम करके अनुभव हुए। कुछ लोग मुझे भी बोल देते थे कि तू तो इनके साथ काम करता है, तुझे दूर रहना चाहिए। ये मुझे अभी अनुभव हुआ। अगर किसी के घर या पड़ोस में भी पॉजिटिव निकल जाए तो पैनिक नही होना। उसका सामना करना है। जो भी जानकारी और सावधानी है,उसके अनुसार ही करना है।वायरस केवल वायरस होता है, उसका धर्म, जात, क्षेत्र आदि कुछ नही होता। बस सबसे पहला और अंतिम सत्य है, उससे दूर रहना। अचरज की बात है, कुछ लोग इस बात को समझते ही नही, उंनको इस संकट में भी केवल अपने आनंद और इधर उधर जाने का उतावलापन होता है। उनका कहना है कि उंनको कुछ नही होगा। जबकि दिन रात WHO समेत सरकार प्रचार कर रही है कि किसी को संक्रमण हो जाये ,तो उसको क्षति न  भी हो लेकिन वो फैला सकता है। इसको आने ही नही देना है।  इस बात की गांठ मार लो। सावधानी हटी दुर्घटना घटी।
इस बीच एक अविश्वसनीय घटना पूरे विश्व में लोग देख रहे है। आजकल नीला आकाश इस बात का पुख्ता सबूत है कि पर्यावरण मूल रूप में स्वछ ही रहता है। ये हमारे विकास के गलत मॉडल का परिणाम है। साफ हवा का आनंद हम सब ले रहे है। बिना किसी आंदोलन और प्रोटेस्ट के भी सब कुछ स्वछ हो चुका है। पेड़ों के पत्ते भी साफ और चमकीले दीख पड़ते है।दूर तक साफ दिखाई पड़ रहा है। ये अद्भुत नजारा दशकों बाद देखने को रहा है। ये एक नया आयाम दुनियां को देगा और एक रिफरेन्स की तरह इसका इस्तेमाल करना होगा।
इस पोस्ट को 6 मई  को लिख लिया था। लेकिन पोस्ट आज कर रहा हूँ। आगे विस्तार से लिखूंगा।
रमेश मुमुक्षु
9810610400
16.5.2020

Sunday 8 March 2020

होली मुबारक

(होली मुबारक )
2.3.2018 
यमुना मैली गंगा मैली 
मैली सबरी नदियां
मैले पोखर जोहड़ मैले
मैले होते सागर  सबरे 
मैला होता सागर तट
पिघल रहा हिमालय 
भैया पिघल रहे है 
दोनों पोल 
मैली कुचैली 
यमुना जल में 
 कैसे कान्हा खेले 
होली 
कैसे मारे भर पिचकारी 
काला काला पानी 
राधा है जाएगी कारी
कान्हा के रंग में डूबे बिना 
है जाएगी राधा कारी 
राधा है जाएगी कारी
रूठ गई राधा कान्हा से 
दूर रहो यमुना के तट 
से 
बदबू से भरी बयार बहे
कैसे जाए यमुना के पार
पहले कान्हा साफ करो 
द्वापर की यमुना को लाओ 
निर्मल जल शीशे सा दमके 
फिर खेलूंगी होली 
फिर से उठाओ अपनी उंगली
 सुदर्शन चक्र फिर से चलाओ
 यमुना गंगा स्वछ बनाओ
फिर खेलेंगे जल संग होली 
पिचकारी भर भर मारेंगे 
भिगो भिगो के खेले होली
नीले जल को देखे कान्हा
 बीत गया एक पूरा युग 
बहुत हुआ अब नही चलेगा 
ठान लिया मैंने मन में
नीले जल में खेलेंगे होली 
भिगो भिगो के खेले होली 
होली होली होली होली 
नीले रंग की आई होली 
यमुना गंगा झांक रही है
नभ को देखो निहार रही है
अब खेलेंगे होली कान्हा 
अब खेलेंगे होली ।
रमेश मुमुक्षु

मुझे होना है औरत

(विश्व महिला दिवस )
8.3.2018 
(मुझे होना है औरत)
हाँ वो घूरता है 
जिस्मखोरों की तरह 
आंख में उसके शैतानी 
झांकती है
बस हो गया अब घूरना और 
छेड़ने का सिलसिला औरतों 
का जिस्म 
किसी की जागीर नहीं 
उसका भी अपने पर पूरा 
हक है
मना करना उसको भी आता 
है 
लेकिन अब तक उसने 
केवल चुप्पी ही साधी
अब बहुत हुआ 
चुप चाप रहने की सजा 
अब नहीं सह सकेंगे
हम छुना चाहते है
आकाश को 
स्वयं और बेरोकटोक
नुक्कड़ पर खड़े 
होकर बात करने का 
मज़ा अब हम भी लेंगे
मन करेगा तो अकेले दूर तक 
चलने का 
तो चलेंगे 
अकेले 
डर ही रोकता है
मंजिल तक जाने को
ठिठक जाने का सिलसिला अब 
तोडना है
बिंदासपन और 
घूमने का मज़ा अब आएगा।
रात के चाँद का मज़ा 
लेना हमारा भी हक है
बालकनी पर खड़े रहने 
का मज़ा हम क्यों न लें
छत पर घूमने को तरसना 
अब नहीं होगा
चाय के नुक्कड़ पर
करेगे गप शप और 
राजनीति पर बहस
क्योंकि अब मर्ज़ी से 
डालेंगे वोट
ऐसा भी नहीं कि
हम औरत होना छोड़ 
दे लेकिन केवल औरत 
ही बने किसी की 
मोहताज़ नहीं
प्रेम से कोई बोल ले 
चल ले साथ
केवल साथ
सहज और स्वभाविक 
जो औरत को औरत
और मर्द को मर्द बनाता है
औरत को गुलाम और मर्द को 
मालिक बनाने का 
घेरा तोडना है
हाँ  तोडना है 
अपने चारों और 
का घेरा जो 
हमें गुलाम बनाता खुद का 
चलों अब खुली हवा में
घूम आये 
देख ले दुनिया का फेलाव 
और आगोश में भर ले
आज़ादी के पल 
जो केवल एक कदम दूर है
केवल एक कदम दूर
रमेश मुमुक्षु