(खबर निष्पक्ष होनी चाहिए)
दैनिक जागरण की ये खबर जिस पत्रकार ने लिखी है ,ये साफ है , उसने पहले ही सोच लिया था कि मुख्यमंत्री की जनसुनवाही की कैसे बखिया उधेरी जाए।
सबसे पहले लिखा कि जनसुनवाही केवल अपने लाभ के लिए थी। इसका अर्थ है कि मुख्यमंत्री को नही आना चाहिए था। इसी खबर में लिखा था कि सोसाइटीज के लोग मिलना चाह रहे थे, लेकिन मुलाकात नही हुई।
उस सभागार में माइक लेने की होड़ ,साबित कर रही थी कि मुख्यमंत्री का आगमन कितना सार्थक था।
पत्रकार ने गलत लिखते हुए जोश में समय का हिसाब नही लगाया और लिख मारा कि 45 मिनट मंच पर सम्मानित करने में लगे। सवा घंटे में 45 मिनट सम्मानित करने में, मेरा दावा है ,दुनियां में ऐसी कोई सभा नही होगी,जो सम्मानित करने में इतना समय ले।
फिर उसने लिखा कि इससे खफा होकर फेडरेशन की सचिव श्रीमती सुधा सिन्हा ने माइक लिया तो आप के लोग एतराज करने लगे।
ये भी पत्रकार भूल गया कि सम्मानित करने द्वारका की एक दूसरी फेडरेशन के प्रेजिडेंट श्री भट्टाचार्य जी एक फोटो लेकर मुख्यमंत्री को भेंट करने गए थे , मतलब 45 मिनट में द्वारका की फेडरेशन भी शामिल है।
नाराज़ भी रहो और फ़ोटो भी खिंचवा लो फेडरेशन का ये अंदाज मुझे पसंद आया। ये बात पत्रकार नही सोच सका। ऐसा ही होता है, जब कोई बात हम पहले से ही सोचकर लिखे ।
जहां तक माइक की बात है, सबसे पहले मैंने एतराज किया क्योंकि मैंने सबसे पहले हाथ उठाया ,लेकिन माइक लेफ्ट साइड ही जा रहा था। माइक वाले को लोग इशारा करके माइक मर्जी से दे रहे थे। जो गलत और अनुशासनहीनता है।
इसलिए पत्रकार का फर्ज होता है कि खबर लिखते समय निष्पक्ष और तथ्यों के आधार पर ही खबर लिखे।
पानी को लेकर लोकल विधायक और अधिकारियों से लगातार मीटिंग चल रही थी।
बाकी काले झंडे और मुख्यमंत्री आप का नही जैसी बातों पर मैं कमेंट नही करूँगा। उस दिन इनका कोई महत्व नही था।
जहां तक बोलने वालों की संख्या को ले । कम से कम 12 से 15 लोग बोले होंगे। मुख्यमंत्री, विधायक, जल बोर्ड के अधिकारी सभी ने बोला।
सवा घंटे का हिसाब आप लगा ले। कुल समय पत्रकार के हिसाब दे 75 मिनट। 45 मिनट सम्मानित किया तो बचे 30 मिनट। अब कोई भी हिसाब लगा ले क्या 30 मिनट में सब अपनी बात बोल गए ?
जो भी पत्रकार था । खबर को तोड़ मरोड़ कर लिखनी भी हो तो भाई समय और तथ्यों का सही से आंकलन तो कर ही लिया करो।
जब हम जीवन में पूर्वागृहपूर्ण कार्य करते है तो ऐसी गलती होगी ही।
पत्रकार चौथा स्तम्भ है, वो कैसे की एक पक्ष की बात ही कहे और लिखते समय क्योंकर उसका अंतर्मन ऐसा करने की इजाज़त दे सकता है।
पत्रकार से विनती है, उपरोक्त बातों पर ध्यान दें और अपनी गलती में सुधार करें।
गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे पत्रकारों की जिंदगी का कुछ तो अध्यनन कर प्रेणना लेने की चेष्टा तुम्हारे भीतर निष्पक्ष और जिम्मेदार पत्रकार बनाने में मदद करेगा। कभी जीवन में उलझन लगे तो मेरे पास आ जाना। मैं तुम्हारी उलझन को सुलझाने का प्रयास करूंगा।
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष , हिमाल
9810610400
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