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Sunday 4 September 2022

यूं तो चांद देखने का उनको शौक था निकला था रात चंद पर वो नींद में रहे

यूं तो चांद देखने का उनको शौक था 
निकला था रात चंद पर वो नींद में रहे
 मेरी पुरानी कविता या ग़ज़ल की लाइन याद आ गई। ये चांद की फ़ोटो आई पी यूनिवर्सिटी के निकट के नाले के पास खड़े होकर खींची  ,नाले में प्रतिबिम्ब दीख रहा था। मोबाइल कैमरा अच्छी क्वालिटी का नही था। लेकिन चांद सूरज महानगर में भी दिखते है। भले वो सागर किनारे व पहाड़ो जैसे न दिखें। टूरिज्म के नाम से कई स्थान चांद सूरज दिखने के लिए प्रसिद्ध हो जाते है। वहां पर विशेषता तो होती ही है। लेकिन लोग ऐसे कैमरे लेकर खड़े हो जाते है कि वो चांद सूरज को देखें बिना नही रह सकते है। कितने लोग ऐसा भी कह देते है कि महानगर आदि में कहां पर चांद ,सूरज, सूर्यास्त फुल मून  दिखते है। उनका कहना पूरी तरह गलत भी नही है। ऊंची मल्टीस्टोरी बिल्डिंग के ग्राउंड फ़्लोर आदि से ये कहाँ देखा जा सकता है। लेकिन बहुत जगह है ,जहां से देखा जा सकता है।
लेकिन हमारे विकास के अनर्गल मॉडल ने आम आदमी को चांद सूरज से भी महरूम कर दिया है। लेकिन मित्रों कभी कभार कही न कही से इनके दर्शन हो ही जाते है। प्रकृति को कही भी निहारना मन को सकून तो देता है है। आजकल एक नया वर्ग बना है ,जिसको पहाड़, नदी का किनारा, पेड़ पौधों से बहुत प्रेम है, ऐसा वो कहते है। लेकिन रोज़मर्रा के जीवन में उनको इन सब से कुछ लेना देना नही । ये वो लोग है ,जिनको घर के आस पास कही भी पेड़ नही चाहिए, ये लोग पार्क में पेड़ बढ़ जाये तो जंगल बढ़ रहा है ,कहने लगते है। कोशिश भी करते है कि ये हट ही जाए। लेकिन पहाड़ो में इनको जंगल के पास जमीन चाहिए। महानगर तो पानी के स्रोत लील ही गया है।  लेकिन नदी किनारे जमीन चाहिए । 
लेकिन चांद सूरज और प्रकृति कभी भेद नहीं करती , अभी पिछली पूनम की रात मैं पहाड़ो में था, कल पैदल आते आते चंद्रमा और नीचे गंदे नाले में चांद में चांद का प्रतिबिंब दिखा तो फ़ोटो लेने का मन हो गया। अगर रूटीन में प्रकृति के किसी भी रूप में हम करीब रहे। भीड़ भाड़ वाली सड़क से भी खूबसूरत सूर्यास्त के दर्शन हो ही जाते है।लेकिन वो पहाड़ो और सागर जितना सुंदर न भी हो लेकिन आनंद तो देता है है। दिल्ली जैसे महानगरों में भी हर सीजन में पेड़ों पर फूल, नए पत्ते, पतझड़ आते जाते ही है। उसकी खूबसूरती का लुत्फ उठाया जा सकता है। द्वारका जैसे उपनगर में तो पार्कों और पेड़ो की कतारें और कैनोपी बहुत खूब सूरत लगती है। अमलतास और अन्य पेड़ों पर फूल दिख ही जाते है। प्रकृति के दर्शन करने की आदत वाले पर्यटन के नाम पर बवाल और  उतावलापन नही  करते है।  मनुष्य ने ही अनाप शनाप विकास से खुद को प्रकृति से दूर कर लिया। बस नज़र उठाने भर की बात है , बहुत कुछ दिख जाता है , नजरिया ही तो बदलना है। 
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
4.9.2022

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