कोरोना और मानव का दम्भ
कर लो दुनियां मुट्ठी में, सारी दुनियां मेरे कदमों पर झुकती है, मैं चाहूं तो दुनियां को झुका सकता हूँ , जैसी बातें और भड़के मानव का स्वभाव है।
पत्थर के हथियार से पृथ्वी को नष्ट करने वाले शस्त्र मानव ने मानव को मारने के लिए बना लिए है।
पृथ्वी को अपने आधीन करने की जिद उसको और भी दम्भी बना देती है। लेकिन मानव में पैदा हुए ,कुछ लोग जो प्रकृति के इतना करीब खुद को पाते थे, वो उसकी लय और स्पंदन को महसूस कर लिया करते थे। उन्होंने मानव को चेताया कि तू सब कुछ कर सकता है ,लेकिन प्रकृति को जीत नही सकता। जीतने के बाद भी तू केवल हारेगा ,ये तय है।
आज मानव के पास जानकारी, ताकत, तकनीक सभी है, लेकिन अदृश्य सूक्ष्म या अतिसूक्ष्म जीव से वो सहमा ही नही, बल्कि भयभीत है। कोविड नाम दिया है, उसका, पिछले वर्ष तो पूरा विश्व बिल्कुल एक तरह से दुबक ही गया था। उस वक्त मानव को यकायक ज्ञान हुआ कि उसने सुंदर और स्वच्छ प्रकृति को अपने विकास के दंश से कितना दूषित कर दिया है।
जब 21 दिन में विषाक्त हवा साफ हो गई थी, आकाश साहस नीला हो चला था। पेड़ों के पत्ते साफ और अपने वास्तविक रंग में दिखने लगे थे।
उस वक्त मानव की सारी विकास की यात्रा जैसे ठहर ही गई,लगती थी। कोविड ने मानव को दिखा दिया कि डर और अनुशासन क्या होता है। कोविड को केवल अनुशासन और खास व्यवहार से जीता जा सकता है। लेकिन मानव की जिद और हठधर्मिता उसको हारा हुआ स्वीकार नही करती है। कितने लोग दुनियां को छोड कर चले गए है। लेकिन उसके बावजूद मानव सब कर रहा है, जिसके कारण उसको जान से भी हाथ धोना पड़ रहा है। कोविड ही नही ,बल्कि प्रदूषण से भी वो जूझ रहा है। केवल इसलिए की मानव प्रकृति की लय को अपने अनुसार मोड़ना चाहता है। लेकिन ये केवल उसका भ्रम है। सूक्ष्म जीव ने फिर उसको स्मरण दिला दिया कि प्रकृति से वो बड़ा नही, उसका एक हिस्सा मात्र है।
कोविड को जीतना बहुत आसान है, मास्क, दूरी और संक्रमण से बचाव। ये आदत में डालना ही होगा। कोविड पुनः याद करवा रहा है कि विकास की यात्रा हो, लेकिन नीला आकाश, शुद्ध हवा, शीशे की तरह पारदर्शी बहता जल, कचरा रहित विश्व, शांति और आनंद के साथ सहअस्तित्व को अपने भीतर जीवित रखने का अहसास , मानव को चिरायु बना सकता है। हालांकि मानव ने खुद को तबाह करने के सारे इंतजाम कर लिए है।
इसलिए कोविड निर्देश और व्यवहार को आदत बना ले और उपरोक्त बातों को अपने जीवन में उतार लें अगर प्रकृति की आगोश में सदा रहना है तो.....
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400
8.1.2021
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