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Saturday, 16 November 2019

पेड़ की आत्मकथा

पेड़ की आत्मकथा
मेरे मनुष्य भाई तूने दुनिया में कमाल ही कर दिया। जब मैंने होश संभाला तो  मैं खेतो के बीच खुश था। उस वक्त शांति ही शांति थी। तू भी मेहनत करता था। मेरी छाया में तूने दशकों गुजार दिए थे। मेरे पास पक्षी हमेशा रहते थे। हवा भी दूर से ही हाथ हिला देती थी। मुझसे मिलकर हवा दूर बह जाती थी। वर्षा तो धीमे धीमे मुझसे बातें करती रहती थी। बेलों के गले में घंटियां संगीत सुनाती थी। हल बेल में तेरे प्राण बसते थे। चारों और रंग बिरंगी तितली उड़ती कितनी सूंदर लगती थी। लहलहाते खेतों से बातचीत
होती थी। सरसों के फूलों पर मधुमखियों की कतारें गुनगुनाती उड़ती रहती थी और मेरी डालियों पर छत्ते बनाकर  शहद का आनंद देती थी। धुंधलका होते ही सब ओर शांति और नीरवता छा जाती थी। मेरी सेहत भी कितनी अच्छी रहती थी।
लेकिन देखते ही देखते सब कुछ बदल गया। खेत खत्म हो गए। सारे मेरे साथी पेड़ और झाड़ियां खत्म कर दी गई। कितने हमारे साथी कीट पतंग और पक्षी आज न जाने कहाँ पर खो गए। शाम होते ही मेरे गीदड़ साथी आ जाते थे।  अब कही खो गए। मेरे जन्म से ही मैंने शांति ही देखी थी। लेकिन ये मानव न जाने क्या क्या बनाता चला गया। सब ओर कंक्रीट के जंगल उग गए। सड़क और उनपर शोर मचाती गाड़ियां रात दिन गुजरती है। आकाश में गिद्ध की जगह आजकल हवाई जहाज उड़ते है।
पहली बार जब इन सब की आवाज सुनी थी ,तो कितना डर लगता था। लेकिन अब सब एक जैसा ही हो गया। हवा इतनी दुःखी और बीमार रहने लगी है। मज़े की बात है ,ये मानव ही है,जिसने हवा को बीमार किया है। अब खुद ही मास्क लगाकर घूमता है। कितनी बार शरीर छोड़ने का मन करता है। लेकिन मेरी  जड़ों की साथी  मिट्टी अकेली न पड़ जाए। इसलिए जिंदा हूँ। एक तरफ सड़क और गाड़ी और दूसरी ओर सीमेंट की बिल्डिंग। बस अब तो पुराने दिन याद करना ही हुआ।हवा नही, पानी नही और जो है,वो दूषित है। मेरे नीचे कोई नही आराम करता । अब केवल धुप  से बचने के लिए अपनी गाड़ी खड़े करते है। गाड़ी भी उदास खड़ी रहती है। क्या जीवन है,इसका दौड़ते रहे और ढोते रहो? 
  आजकल  सूरज भी कही खो गया लगता है। चांद की चमक भी धूमिल होती गई है। अजीब है,ये मानव पहले बनाता है,फिर आपस में झगड़ता है। सांस तक नही ले पाता है। लेकिन सब कुछ गंदा करता है। मैं अभी कितनी उम्र का हो गया हूँ, लेकिन अभी मुझे ये मानव जिसने मेरी छाया में कड़कती धूप में कितना आराम किया , भूल ही गया लगता है। ये सब कुछ भूल गया । हवा और पानी की मिठास और खुशबू ,ये अब नही रखता है,याद। जिस डाल पर बैठा है,उसको ही काट रहा है। मुझे याद नही आता कि पहले गंदगी भी होती थी। जो भी फेंकता था ,वो खाद बनती जाती थी। कितना मूर्ख है,पहले पन्नी पन्नी को देख खुश हो जाता था। अब पन्नी के नाम से भी डरता है। कितने मेरे साथी बिचारे पन्नी के कारण ही जान धो बैठे। मैं इसके ही मुँह से सुनता था " बोये बीज बाबुल का ,फल काहे को होये" । 
अभी मिट्टी के लिए , कीट पतंग और कुछ पक्षी के लिए जिंदा रहना ही होगा। खुद ही बिगाड़ता  करता है, खुद ही रोता है। खुद ही गंदा करता है और खुद ही साफ करने के लिए शोर भी करता है। अभी तो एक और अचरज की बात सुनी है, उस दिन मैना बता रही थी कि अब ये आप जैसे बूढ़े पेड़ों को उखाड़ कर कही  और भी लगा देता है। मुझे सुनकर डर भी लगा। भला ये मेरी जड़ों को उखाड़ कर मुझे कही और गाड़ देगा। कैसा दुष्ट मानव है, खुद कहता फिरता है,अपनी जड़ों को मत काटों , नही तो जीवित नही रह सकोगें। लेकिन हमारी जड़ों को उखड़ते हुए ,इसको कोई भावना नही रही। जब ये खुद का भला नही सोच सकता तो भला हम जैसे पेड़ों का भला क्या सोचेगा? ये तो शुक्र है,कुछ हम से प्रेम करने वाले मानव है। इसी कारण इस पर अंकुश है। अभी हवा को दूषित करके हम पेड़ों की याद इसको आ रही  है। लेकिन "अब पछताए क्या होत है, जब चिड़िया चुग गई खेत", इसके मुख से ही सुनता आया हूँ।ये खुद ही अपने शोर शराबे से परेशान है।
आधी रात से भोर होने तक कुछ शांति मिलती है। सुबह होते ही , फिर चिल्ल पो आरम्भ। इसकी माया को देख हंस लेता हूँ। रात होने लगी है, सुस्ता लूँ , अभी रात होने के  साथ पक्षी भी आते  होंगे। जब तक जीवन है, देखते है ,ये सब और करता हूँ ,याद बचपन की ,जो  न जाने कहाँ पर पीछे छूट गया है।
रमेश मुमुक्षु 
अध्यक्ष, हिमाल
15.11.2019

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