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Wednesday, 15 October 2025

कुहासे के पार

कुहासे के पार
सच्चाई, सहज  और अपनी  🛣️ राह पर अलमस्त चलने वाले को  खड़ा होना पड़ता हैं, बार बार कठघरे में 
संदेह के बादल ☁️ उनके ऊपर हमेशा रहते है , जो उनको नहीं , दूसरों को दिखते है,
असल में ये भी बड़ी विडंबना है
मानव  🧠 मन की दृढ़ता कितनी बार क्षणभंगुर सा व्यवहार करती है
हमने कितनी ही लकीरें  खींच दी है, अपने चारों ओर 
एक जाल 🕸️ सा बुना हुआ है
जो संदेह को जन्म देता ही रहता है, प्रति पल
सहज, सरल,  विवेकशील 🦉 
अपनी स्वयं की कसौटी के अनुसार सच को जानने वाले ही सच्चे हो सकते है
वरना इस कोलाहल भरी दुनियां में सहज बने रहना कहा है, संभव 
भेंड़चाल का पथ में भड़कना लगभग तय है
आंखों 👀 में किसी की बताई राह 
पर चलने को अंधकार 🌑 में भटकना होता ही है
इसलिए आंखों पर चश्मा  🕶️ उस बैल की तरह ही लगाया जाता हैं ताकि कोहलू से   निकाल सके
सच और सहजता के सत्व को 
जिससे  कठपुतली का सृजन कर तागों  🧵 से मन चाह अभिनय  करवाया जा सके ताकि सच्चाई , सहजता और आसानी से खड़ा किया जाए कठघरे में 
और निर्मित हो सके एक घटाटोप   कुहासा 🌁 जिसके दूसरी ओर देख पाना आंखों पर चश्मा  🕶️ लगाए आसान नहीं
लेकिन कुहासे के पार सच्चे, सहज ही अपनी निगाहे से देख पाते है ,ये तय है कि कुहासे का आस्तित्व स्थाई नहीं होता ,उसको जाना ही है, आज नहीं तो कल जब प्रकाश पुंज 🕯️ की  रोशनी चश्मे को भेद कर देगी 
उतर जाएगा अंधकार का पर्दा ताकि कुहासे के पार सच को देखा जा सके कार्तिक की पूर्णिमा 🌝 सा साफ और उसकी चमक रोशन कर देगी भीतर पाव पसारे अंधेरे को ये तय हैं, सिद्ध है ......
रमेश मुमुक्षु
9810610400
14.10.2025
5.30 सुबह