दिल्ली : 💦 पानी के लिए निर्भर क्योंकि अपना पानी खत्म कर दिया
अभी मुनक नहर से पानी नहीं आया तो दिल्ली बिन पानी हो गई। द्वारका उप नगर जिसका नाम लेते ही हम सभी को गर्व होता है। 👉ऊंची ऊंची बिल्डिंग और बढ़ती कीमत जैसी बातें भी कहते थकते नहीं। लेकिन अभी पानी की सप्लाई रुकी तो सबके हाथ पैर ठंडे हो गए। एक बूंद पानी हमारा अपना नही है।
👉सभी गांव में जोहड़, कुएं हुआ करते थे। अभी भी जोहड़ जिसको वाटर बॉडी कहते है, मौजूद है, या तो वो पार्क के रूप में बदल दिए गए या गंदे पानी से भरे हुए है।
👉नजफगढ़ नाला असल में साहिबी या साबी नदी थी। लेकिन अभी ये सीवर के पानी को ढोकर ले जाने वाला नाला बन कर रह गई।
👉नजफगढ़ झील एक पानी का बहुत बड़ा स्रोत है, बल्कि वेटलैंड ही है, लेकिन अभी उसमे भी गुरुग्राम , मानेसर के सीवर और केमिकल युक्त पानी ही आता है। इसके अतिरिक्त यमुना नदी तक कितने सीवर से भरे नाले उसने गिरते है। जो यमुना को सबसे अधिक दूषित कर देता है।
👉पहले एनजीटी और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी वेटलैंड अधिसूचित करने के निर्देश दिए है। लेकिन सरकार और बिल्डर आदि नही चाहते।
द्वारका और द्वारका एक्सप्रेस पूरा ऊंची ऊंची बिल्डिंग से भरा हुआ है। लेकिन प्राकृतिक पानी की एक बूंद भी नही है। एक बोतल पानी भी किसी प्राकृतिक स्रोत से नही ले सकते है।
👉ये है,हमारा बिन पानी के विकास का मॉडल । करोड़ों की बिल्डिंग और एक बूंद पानी प्राकृतिक स्रोत का नही है। ये 🤔बहुत गंभीर चिंतन का विषय है। ये मॉडल पाइप लाइन से पानी लाने का है। पाइप लाइन आया और प्रकृति के स्रोत पूरी तरह इग्नोर कर दिए जाते है । स्थानीय वन और प्राकृतिक वनस्पति भी विकास की आंधी में खत्म होते गए है।👉 कभी दिल्ली जैसे महानगर में अपना खुद का पानी था, जंगल और जैवविविधता थी। लेकिन विकास के मॉडल में उनके लिए स्थान नही तय किया गया।
👉बिन पानी विकास और कूड़े और कचरे के पहाड़ परिणाम है , हमारे शहर और महानगर। लेकिन ये विकास अब गांव की और पैर पसार रहा है।
🤔 अब उत्तराखंड के गांव में भी कचरा विशेषकर प्लास्टिक आदि फैलने लगा हैं । पाइप से पानी का विकास भी तेजी से फैलने लगा है। हालांकि प्राकृतिक स्रोत मौजूद है, लेकिन उनमें भी पानी आदि बहुत कम होता गया है। परंपरागत नौले आदि भी भुला दिए गए है। कभी इन को गांव के लोग रूटीन में साफ और व्यवस्थित करते रहते थे, लेकिन अभी पानी न आने पर ही होता है। 👉पाइप के विकास ने पाइप तोड़ना , बुझा लगाना सीखा दिया है। लेकिन पानी के स्रोत मौजूद है , इनके रिचार्ज के लिए कार्यक्रम चल रहा हैं । इनकी ओर देखना और गांव में प्लास्टिक को मैनेज करने से बहुत कुछ ठीक हो सकता है । विकास हो लेकिन गांव के संसाधनों को संरक्षित करते हुए।
👉महानगर विकास की आंधी में अपने सारे प्राकृतिक और परंपरागत जल स्रोत लील गए। महानगर के विकास के मॉडल में सैंकड़ों किलोमीटर पाइप से पानी लाने का प्रावधान रहता है। लेकिन अब समय की मांग है कि महानगर में भी अपने पानी का संरक्षण और पानी का शोधन करके पानी दार बनना है। घर और कॉलोनी अथवा सोसायटी का पानी पुनः साफ करके इस्तेमाल करें। द्वारका जैसे उप महानगर में वर्षा जल संग्रहण एवं उपयोग के बाद पानी का शोधन युद्ध स्तर पर किया जाना जरूरी है।
अभी विकास के कारण जमीन के नीचे भूजल भी कब का खत्म हो चला है। जो है, वो बहुत ही खारा पीने लायक भी नहीं है ।
इस बार की गर्मी और अभी जल संकट ने बहुत बड़ा इशारा किया है। ये इशारा शहर और गांव सभी के लिए है। पर्वतीय क्षेत्रों में भीषण गर्मी जंगल की आग और सूखते जल स्रोत ने भी बहुत कुछ सोचने पर मजबूर किया है।
सभी को एक साथ बैठकर सोचना ही नही बल्कि आगे बढ़ना ही होगा। महानगर में मियावकी 🌲वन, 🌧️ वर्षा जल संग्रहण और उपयोग हुए जल का शोधन के साथ घर से ही कचरे का प्रबंधन इसका उपाय हो सकता
है ।
रमेश मुमुक्षु
9810610400
16.7.2024