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Wednesday, 14 November 2018

अवनि की मौत/नरभक्षी/ निवाला बने लोग: एक विमर्श

(अवनि की मौत/नरभक्षी/निवाला बने लोग: एक विमर्श )
किसी जंगल के बीच गांव में जब कभी शाम के धुंधलके में कोई बाघ/ शेर/तेंदुआ गांव  में दिख जाए तो गांव में दहशत का माहौल बन जाता है। अगर किसी इलाके में नरभक्षी बाघ आदि की आहट भी हो जाये तो पूरा इलाका ही डर में समा जाता है। शाम होते ही छोटे बच्चों को घर से बाहर नही निकलने देते है। कुछ समय पूर्व मैं  उत्तराखंड के अपने कार्यक्षेत्र में रात विरात आ जाता था, लेकिन अभी सोचना पड़ता है।
जब नरभक्षी जानवर कभी किसी बच्चे और बड़ो को उठाकर निवाला बना लेता है,  तो डर और गुस्सा आना स्वाभाविक है। अभी इसी वर्ष उत्तराखंड के किसी गांव में रात करीब 8 बजे एक परिवार शादी से लौटा तो उनका बच्चा गाड़ी से उतरा और तनिक सड़क पर आगे चला गया और कुछ गई क्षण में बच्चा सड़क से गायब हो  गया। गांव के लोग समझ गए। उन्होंने रात को ढूंढ मचा दी तो उस बच्चे का अध खाया शरीर मिला। वो लोग केवल शादी के लिए गांव आये थे। इस घटना से उस परिवार पर क्या असर हुआ होगा और उस ओर इलाके में दहशत और गुस्से का माहौल बन गया।
ऐसा ही होता है , जंगल के आस पास रहे है ,ग्रामीणों के साथ। ग्रामीण कभी भी बाघ आदि को मारना नही चाहते लेकिन ऐसी परिस्थिति में उनके पास क्या विकल्प होगा? जिसका अबोध बच्चा बाघ अपना निवाला बना ले तो परिवार क्या करें?
अभी अवनि बाघिन  की मौत ने देश को झकजोर दिया। उसके प्रति लोगों की चिंता और दुःख सोशल मीडिया में छाया रहा। लेकिन अवनि के द्वारा मारे गए 8 से अधिक लोगों की मौत का जिक्र भी नही हुआ। किसी ने भी उन मासूम लोगों की मौत के प्रति संवेदना प्रदर्शित की। इस बात का औचित्य समझ नही आया। जिन लोगों को अवनि ने निवाला बनाया उनके परिवार वालों पर क्या गुजरी होगी। ये भी हमको नही भूलना है।
वन विभाग और ग्रामीणों के बीच ये विवाद चलता ही रहता है। विकास की दौड़ ने जंगलो की शांति और नीरवता नष्ट कर दी। बाघ की  प्रजाति रात्रिचर है। उसका अपना इलाका होता है। सड़क, निर्माण, रिसोर्ट, चमक दमक, घोड़ा गाड़ी, चार धाम जैसे प्रोजेक्ट ने जंगलो के आस पास सब कुछ डिस्टर्ब हो गया। हेलीकॉटर टूरिस्ट से भी जंगल की शांति भंग होती है।
महानगर में रहने वालों को अपने जीवन की आपाधापी से बचने के लिए पहाड़ और जंगल ही चाहिए।
लोगो ने शहरों की शांति भंग करके जंगल में एक तरह से कब्जा ही कर किया। शहरीकरण से कचरा भी बढ़ गया। जंगली जानवरों की फूड हैबिट पर भी असर हुआ है। एक दूसरे के इलाकों में घुसपैठ से वन्य प्राणी और मानव की सहज सरल जीवन में व्यवधान तो आया ही है। उत्तराखंड में नरभक्षी गुलदार द्वारा काफी लोगों को निवाला बना चुके है।
वैसे जंगली जानवर और मानव का टकराव हमेशा ही रहा है।  इसको समझना होगा कि कैसे इसको कम से कम किया जा सकते है। सोशल मीडिया में अवनि के बारे में ट्रॉल्लिंग और मैसेज वायरल होना सही था। लेकिन जो लोग अवनि के निवाला बने उनकी भी सुध लेनी थी।
लाइक ,थम और शेयर करने वालो को गांव में दहशत से जी रहे ,ग्रामीणों के डर को भी समझना ही होगा। एक बात को  नही भूलना चाहिए ,हम लोग मच्छर को मारने के लिए रेपलेंट इस्तेमाल करते है। चूहे , कॉक्रोच समेत जो भी मनुष्य को तंग करें , उससे बचने के उपाय करता ही है। बाघ समेत सभी जंगली जानवर को संरक्षित करना हमारा कर्तव्य है ,लेकिन मानव की सुरक्षा पुख्ता करने के साथ। कुछ ठोस कदम उठाने ही होंगे:
1. सबसे पहले वन विभाग को तुरंत टेक्नोलॉजी से  सुज्जाजित करें ताकि नरभक्षी जानवर ,बाघ आदि को जिंदा ही पकड़ सके।
2. ग्रामीणों की रक्षा भी सरकार के लिए चुनौती हो और उसको भी बचाने के लिए जो भी तकनीक व विशेषज्ञता उसको वन विभाग में उपलब्ध करवाना जरूरी है।
3. देश के सारे वनों के कब्जे युद्ध स्तर से हटवाये  जाए। वर्तमान में वनों की भूमि पर कब्जे हो रखे है। इससे से भी वन्य प्राणी का इलाका कम हुआ है और मानव हस्तक्षेप बढ़ गया है।
4. बाघ समेत सारे जंगली जानवरों की मूवमेंट को रूटीन चेक किया जाए।
5. नरभक्षी बाघ की मूवमेंट के लिए  ग्रामीणों से मिलकर सुरक्षा कवच बनाया जाए।
6. सरकार को भी वन विभाग में अगर कर्मचारी कम है तो ग्रामीणों को प्रशिक्षित कर इस काम में तैनात करें।
7. नरभक्षी के डर को कम करने के लिए पिंजरा , मचान, डिटेक्टर अगर हो तो और घात लगाने की तैयारी पुख्ता हो।
8. कोशिश हो कि जान से न मारा जाए ,लेकिन ग्रामीण की सुरक्षा भी हर कीमत पर पुख्ता और चाक चौबंद रहे।
9. टाइगर फ़ूड चेन का केंद्र है। वन विभाग और ग्रामीणों को एक साथ फूड चेन को संरक्षित करने में पहल करनी होगी।
10. वन विभाग, वन पंचायत, ग्राम सभा, ग्रामीण, अन्य सभी जिलास्तर के विभाग एक टास्कफोर्स को तैयार रखे।
आशा है , हम सब मिलकर  इस बारे में ठोस कदम उठा कर सम्पूर्ण वनप्रदेश और एनिमल हैबिटेट को संरक्षित करेंगे।  IIPCC के उपाध्यक्ष श्री एल गोर कहते है कि " अगर  किसी भी प्राणी का एक विशिष्ट  नेचुरल हैबिटेट होता है, अगर वो नष्ट हो जाये तो वो प्राणी भी नष्ट हो जाता है क्योंकि वो अपने से उस विशिष्ट नेचुरल हैबिटेट को पुनर्जीवित और सृजित नही कर सकता "। इस बात को सदैव याद रखना  ही होगा।
प्लीज अपने विचार जरूर दीजियेगा।

(रमेश मुमुक्षु)
अध्यक्ष, हिमाल
9810610400

Sunday, 4 November 2018

वायु का मानव को संदेश

(वायु का मानव को संदेश)
मैं वायु हूँ , शुद्ध, निर्मल और मंद मंद बहना मेरा स्वभाव है। कभी कभी तीव्र और प्रचंड रूप से भी बहती हूँ। दुनियां के सभी जीव मेरे कारण ही जीवित है। एक पल भी मैं बहना बंद कर दूं तो जीव का अस्तित्व ही समाप्त हो जाये। लेकिन बहना मेरा स्वभाव ही है।मैं बहुत से कण और धूल अपने साथ ले कर बह सकती हूँ। वो भी कभी कभी। लेकिन ये मानव इतना मूर्ख है कि इसको अहसास ही नही कि वो इतने खरनाक रसायन, तत्व मेरे आंचल में भर रहा है। वो भूलता है कि  मेरी भी क्षमता है। पहले ये मानव बहुत कम प्रदूषण मेरे आँचल  में फेंक दिया करता था। लेकिन अभी तो ये दिन रात केवल अपने सुख और मूर्खता के पोषण के लिए इसके जीवन के आधार को ही नष्ट करने को उतारू है।
ये अपना विवेक खो गया है। जैसे जैसे तापमान कम होने लगता है, मैं इतनी प्रदूषण को कैसे साथ लेकर बह सकती हूँ। धीमी और जमीन का सहारा तक लेना होता है। कितने जीव भी मर जाते है। अचरज का विषय है कि ये स्वयं ही उपदेश देता हैं कि सुबह उठ कर लंबी सांस लो ताकि प्राण वायु से शरीर स्वस्थ और निर्मल बने। लेकिन इसने मुझे इतना प्रदूषित कर दिया की अब कह रहा है कि सुबह सांस संबंधी  योगा मत करो। सांस गहरा मत लो।
हे, मानव तू महामूर्ख है। अपनी ही बनाई गंदी दुनिया में केवल तू खुद ही उलझ गया।जल, जंगल ,जमीन तो तू नष्ट करने में लगा है और अब मुझे भी इतना प्रदूषित कर देगा कि घुट घुट कर अपना अस्तित्व ही न समाप्त कर 

ले ।
तूने कभी सोचा है, मेरे  निर्मल , भारहीन स्वभाव को कष्ट होता होगा। अब तो मेरे लिए भी बहना भी दूभर हो गया है। कितनी बार तो सूर्य की किरणें भी जमीन और मानव के शरीर को छूने असमर्थ हो जाती है। तूने कुछ भी नही छोड़ा। कभी सोचती हूँ रुक ही जाऊँ ,लेकिन मानव ही अकेला नही है और भी जीव है, उनके लिए बहना है। अंधे दम्भ में डूबे हुए ,कुछ देर चिंतन कर ले और कितना जहर मेरे  आँचल में उड़ेलेगा।अब तो अचंभा सा लगता है कि मास्क पहने लगा है कि प्रदूषित वायु शरीर में न प्रवेश करें।
इतना बज्र मूर्ख और असंवेदनशील है कि पहले खुद ही मुझे दूषित करने में लगा रहेगा और भी खुद ही वायु साफ करने के तरीके खोजता है। खुद ही प्रदूषण का उत्पादित करता है और फिर उसको शुद्ध करने के उपाए सोचता है। पहले मुझे दूषित करने के साधन आविष्कृत करेगा और फिर साफ करने की खोज करेगा।  मेरे प्रचंड रूप का अंदाज़ा मानव को पूरी तरह नही है, एक क्षण में मैं इसको तिनके की तरह उड़ा सकती हूँ।लेकिन मेरा स्वभाव विनाश नही बल्कि जीवन  है। लेकिन मूर्ख मानव तू खुद ही अपनी जान के पीछे पड़ा है। जब तू जानता है, फिर भी ,तू ऐसी ऐसी चीज़े बनाता है कि प्रदूषण इतना भर देगा कि स्वयं सांस लेना तुझे दूभर होगा। प्लास्टिक, रबर और कितने रसायन तूने मेरे आँचल में भर दिए। जल भी दुःखी है, भूमि भी उकता गई। तुझे इतना कुछ प्रकृति से मिला ,जिसको तू अनंत काल तक उपयोग कर सकता था।  लेकिन तुझे चैन और आराम नही। एक दम तू सब कुछ कर लेना चाहता है। सबको अपनी मुट्ठी में कसना चाहता ही।तू भूलता है, अगर मैं बहना छोड़ दूं तो कितने पल का होगा तेरा जीवन और तेरा अस्तित्व , ये तू खुद ही जानता है, लेकिन मानता नही।
अब भी समय है , चेत जा , वरना मुझे क्या जो मेरे आँचल में उड़ेलेगा ,वो ही तुझे लेना होगा।  तू ही सदियों से कहता आया है, बोयें बीज बबूल का तो आम कहाँ से होए। कुछ तो याद कर और तनिक रुक कर सोच और प्रकृति को शुद्ध ही रहने दे। तेरे प्रदूषण से प्रकृति को कोई अंतर नही होने वाला बस तेरा अस्तित्व नही रहेगा। सरीसृप तक लोप हो गए, तू भी कब तक रहेगा। ये तय है।
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष , हिमाल
9810610400

4.11.2024 पहली बार

22.11.2024.2024