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Tuesday, 23 October 2018

तनिक विचार करें : स्त्री का मंदिर प्रवेश

तनिक विचार करें : स्त्री का मंदिर प्रवेश
जब से मानव का प्रादुर्भाव पृथ्वी पर हुआ है। आम आदमी से लेकर सारे अवतार, पीर पैगम्बर सभी स्त्री की कोख से जन्मे है। भूर्ण से पूर्व इन सब की मां को मासिक धर्म की पावन प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। उसके बाद स्त्री पुरुष के समागम से बच्चे का जन्म हुआ।  उपरोक्त और सारी सृष्टि का ये ही विधान है।
# उपरोक्त सभी के देवालयों, धार्मिक स्थलों पर उनको पैदा करने वाली स्त्री को प्रवेश की अनुमति नही है। 
क्या ईश्वर ने ये आदेश दिया है? कदापि नही।
इसके पीछे एक बात रही होगी। आजकल  सेनेटरी पैड्स के कारण रक्त के रिसाव की संभावना करीब खत्म हो गई है। मालूम नही चलता कि स्त्री मासिक धर्म में है। जब ये पैड्स नही थे , तो रिसाव की संभावना 100 प्रतिशत होती होगी। उस वक्त सफाई और गंदगी के कारण ये प्रतिबंध शुरू हुआ होगा। अभी शहरीकरण से पूर्व ग्रामीण अंचलों में अभी भी स्त्री को घर में आने की मनाही है। खाना भी नही बना सकती।
# लेकिन आज गंदगी और सफाई की बात नही रही।
# क्या आप कल्पना कर सकते है कि आज कोई फरमान जारी कर दे कि मासिक धर्म होने की अवधि में स्त्री सांसद, अधिकारी, डॉक्टर, इंजीनियर, अध्यापक समाज से अलग, घर से भी अलग रहे।
क्या ये संभव और उचित है? कदापि नही।
# अगर पैड्स न होते  अभी भी रिसाव होता, कपड़ो आदि में दीख पड़ता , तो स्त्री को खुद ही अच्छा नही लगता।
# अभी भी जो आदिवासी नग्न रहते है, वो तो पैड्स नही लगाते। वो हम सब सभ्य समाज कहे जाने वालों के पूर्वज ही है। हम कपड़ों तक आगये ,पैड्स बना लिए। वो ठीक वैसे ही है। जब से मासिक धर्म से घृणा शुरू हुई, तभी से नियम पनप गए।
# एक समय था,  जब मानव प्रकृति में रहता था। उस समय  परिवार नही पनपे थे। उस समय मासिक धर्म में सेक्स न होने पर आदमी औरत को मारने को उतारू हो जाता था। उस समय स्त्री की शारीरिक स्थिति सामान्य नही होती।
उसके बाद स्त्री ने मासिक धर्म में छुपना शुरू किया।ये ही प्रथा के रूप में आज भी प्रचलित है।
### उपरोक्त बातों के आधार पर स्त्री को धार्मिक स्थलों में प्रवेश प्रतिबंधित होना ।क्या उचित और न्यायपूर्ण है?
इस पर अपनी प्रतिक्रिया दें और अपनी राय रखें।
प्रवेश प्रतिबंधित होना उचित है।  इस पर भी खुल कर कहे।
रमेश मुमुक्षु

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