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Saturday, 24 October 2020

श्री राजेन्द्र सिंह ,एसीपी को समर्पित कुछ पंक्तियां

श्री राजेन्द्र सिंह ,एसीपी को समर्पित कुछ पंक्तियां 
💐सहज उपलब्ध सरल भावयुक्त 
चेहरे पर भीतर तक देख सकने वाली 
अचूक आंखें 
जो दोस्त को देख मुकरा देती है,
लेकिन अपराधी को अंधरे में खोज लेने वाला पैनापन घेर लेता है 
यकायक पलक झपकतें ही 
इससे पहले कोई पलक झपके
अपने पाश में जकड़ने की ताकत और जोश
 जो हमेशा होशयुक्त ही रहा।
निर्भया को न्याय दिलाने को आतुर 
उसके दर्द को महसूस कर 
दरिंदों को अंजाम तक पहुचाने का जज्बा देखते ही बनता है
जिसकी आंखें किसी को भेदने को हो आतुर 
 फर्ज के लिए तल्लीन व्यक्तित्व हमेशा अपना सा ही लगता है
यूं नही कोई सबका अपना 
बन सकता है
कर्तव्य अधिकार समर्पण ही किसी को अपनेपन तक ले आता है
ताकत का डर
 किसी को भयातुर कर सकता है
लेकिन ताकत का सदुयोग डर को दूर भगाकर भयमुक्त वातावरण बना सकें 
इसको ही  ताकत और अनुसाशन का होना कहा जा सकता है।
ये ही अहसास तुमको दोस्तों का दोस्त और अपराधी का कहर बना देता है
कानून के दायरे में
एक बात कहूँ धीमें से 
मेरा दावा है, तुमको दुश्मन भी भूल नही सकता
क्योंकि वो जानता है उसको ईमानदारी से पकड़ा गया था
ये ही अहसास आदमी को अपना बना देता है ,
वरना पैरों से कुचलने वाले निपट अकेले ही गुम हो गए भवसागर में अनगिनत चेहरे और उनपर टिकी आंखें कहां  रहती है याद 
लेकिन तुम्हारी चौकस आंखों 
को भूल जाना कहा होगा संभव 
ये तय है......💐
रमेश मुमुक्षु 
अध्यक्ष ,हिमाल
9810610400
27.5.2020/24.10.2020 

2 comments:

  1. सटीक और सच्ची रचना। अत्यंत सराहनीय कविता

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  2. आदरणीय रमेश मुमुक्ष जी, आपने एसीपी श्री राजेन्द्र सिंह जी के विषय में अति सुन्दर विश्लेषण किया है तथा उनकी personaliy का बहुत ही उचित तथा सजीव चित्रण किया है विशेषतः "दोस्तों का दोस्त" और "अपराधी का कहर" राजेन्द्र जी की छवि पर शत प्रति शत उचित बैठता है।
    ऐसे उत्तम पुलिस ऑफिसर्स की आप जैसे प्रतिभाशाली व सम्मानित व्यक्तियों द्वारा प्रशंसा किया जाना न केवल सम्पूर्ण पुलिस फोर्स और अन्य सुरक्षा एजेंसीज के लिए बाकी सभी सरकारी संस्थाओं व कर्मचारियों के लिए एक खूबसूरत सोच, सामाजिक दायित्व व तथा अपेक्षित सराहनीय परिवर्तन की दिशा को दर्शाता है
    आपको और आपकी महानता को बहुत बहुत धन्यवाद। शुभकामनाओं सहित।
    राकेश शर्मा
    डीडीए-२२ (एसएफएस)

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