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Tuesday, 16 November 2021
अवैध निर्माण/ नाजायज़ कब्जा और जनप्रतिनिधि द्वारा रुकवाने की पहल: क्या होती है?
Friday, 15 October 2021
रावण की आत्मव्यथा
Tuesday, 12 October 2021
पुरानी कविता (चलो घूम आओ घड़ी दो घडी)
Saturday, 2 October 2021
महात्मा गांधी : सतत परम्परा के वाहक
Tuesday, 14 September 2021
हिंदी दिवस : आओ विचार करें
Monday, 6 September 2021
पेड़ और विकास : अरावली की सुबह
Sunday, 5 September 2021
अध्यापक दिवस के बहाने कुछ भूली बिसरी यादें ताजा हो गई।. know thyself -Socrates
Tuesday, 6 July 2021
क्या मानव फूल सृजित कर सकता है
Saturday, 26 June 2021
कोरोना खत्म नही हुआ है
Tuesday, 22 June 2021
कोविड की दूसरी लहर के बाद : मंजर ऐसा की कुछ हुआ ही नही
Friday, 4 June 2021
बरगद की आत्म व्यथा भाग -2 मुझ पर धागा बाधने वाले दो पैर के प्राणी : मुझ में भी प्राण है
Sunday, 30 May 2021
द्वारका में स्थित बरगद के पेड़ की आत्मा की व्यस्था
Friday, 9 April 2021
स्मृतिशेष: प्रकृति के बीच चित्रों के संसार में
Saturday, 3 April 2021
काश गांधी को भुलाया नही गया होता
काश गांधी को भुलाया नही गया होता
काश गांधी को भुलाया नही गया होता
तो जल जंगल और जमीन के प्रश्न आज खड़े न होते
ग्राम स्वराज्य से पटे होते गांव
ग्रामीण उद्योग ग्रामीणों को पलायन से रोक लेते
लेकिन उनके ही अपनों ने उन्हें भुला दिया गया था
केवल नाम रह गया उनके काम कहीं काफूर हो गए
गांधी को मठों में बैठा दिया दशकों तक
ग्रामीण अंचल अपनी मिट्टी से भटक गया
गांव जहां से रोजगार पैदा होते है वो शहरों के स्लम में आने लगे
ग्रामीण कुटीर उद्योग भुला दिए गए
लेकिन गांधी को भुलाना संभव नही है
गांधी एक व्यक्ति का नाम नही अपितु एक परंपरा का वाहक है
परंपरा जो ग्रामीण मिट्टी , खेती, स्थानीय संसाधन से उपजी थी
जो गांव के खेत, खलियान, जल संसाधन के साथ चलनी थी
लेकिन धीमे धीमे भूलने लगे उस समग्रता को तेजी से आगे बढ़ने की दौड़ में चलना भी दूभर हो गया
आज पुनः गांधी याद आ ही जाते है
उनकी साउथ अफ्रीका से चंपारण, दांडी मार्च जो उनको हमेशा कालजयी बनाये है
आज भी हम नही खोज पाए कोई नए आयाम
क्योंकि हम भूल चुके थे गांधी के सीधे सरल मार्ग को
जो ग्राम स्वराज्य की ओर जाता है
ग्राम स्वराज्य ग्रामीण अंचल को समग्रता में देखता है
कृषि , वानिकी, बागवानी, जड़ी बूटी, साफ सफाई और मिलनसारी एक साथ समग्र यात्रा जो ग्रामीण को स्थानिक रोजगार की परंपरा से जोड़ें था
काश अगर नही भुला होता गांधी का अहसास और समग्रता जो सतत विकास की अवधारणा पर टिका था
उसमें जोश नही दिखता था क्योंकि वो सतत और टिकाऊ था
जिनको क्रांति की आदत पड़ी थी
उनके लिए गांधी ठहरा हुआ शांत और धीमी चाल सा लगता था
अहिंसा और सत्याग्रह की ताकत
और उसका निडर टिकाऊपन धैर्य प्रदान करता है
जो कभी गांधी के नाम में हरकत नही पाते थे
वो उसमें ऊष्मा खोज रहे है
उन्हें याद आने लगी चंपारण, दांडी और नमक का दर्शन जो अचूक और चिरस्थाई था
लेकिन आज सतत चाल और टिकाऊपन की न रुकने वाली यात्रा का अहसास होने लगा है
समग्रता ही सत्य और ठोस है,जो चलती है, बिना रुके
धीमे धीमे बिना रुके
सतत और लगातार अनवरत
रमेश मुमुक्षु
अध्यक्ष हिमाल
9810610400
3.4.2021